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Updated: 24 फरवरी, 2016 01:55 PM
गिरिजेश वशिष्ठ
गिरिजेश वशिष्ठ
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"जैसे मुझे नंगा करके बिजली का शॉक दिया गया, बलात्कार किया गया, मेरे अंदर पत्थर डाले गए...मैं कितना रोई. मैंने तीन बच्चों को अपनी योनि से ही बाहर निकाला, लेकिन जब कोलकाता में मेरी योनि से पत्थर निकाले जा रहे थे तो मुझे जो दर्द हुआ वह बच्चा पैदा करने के दर्द से कई गुना ज्यादा था. मेरा क्या गुनाह था, सिवाए इसके कि मैं एक पढ़ी-लिखी आदिवासी महिला थी. मेरी जैसी अनगिनत आदिवासी औरतें इस यातना को आज भी झेल रही हैं. मैं यह सब दिखाना चाहती हूं, लिखना चाहती हूं, ताकि देश के लोग सोचें कि क्या हो रहा है."

ये बयान है सोनी सोरी का. हाल ही में एक इंटरव्यू में सोनी सोरी ने ये राय जाहिर की है. सोनी सोरी आम आदिवासी महिला नहीं हैं. वो संघर्ष की जीती जागती मिसाल हैं और दमन का जिंदा उदाहरण हैं. इस पूरी दास्तान को जब आप पढ़ रहे होंगे तो मन में बार-बार एक सवाल कोंधा होगा. सवाल ये कि आदिवासियों पर अमानुषिक जुल्म करने वाले लोग कौन थे? हो सकता है आपके दिमाग में किसी दबंग और ठेकेदार का नाम आया हो. हो सकता है आपको लगा हो कि ये सब काम आसपास के दंबगों ने किया हो. हो सकता है आप पुलिस थाने में जुल्म की दास्तान मानकर विचलित हो गए हों, लेकिन ये दास्तान इससे कहीं ज्यादा चिंताजनक और दहलाने वाली है.

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कैमिकल अटैक में घायल सोनी सोरी.

सोनी सोरी को 9 सिंतंबर 2011 को छत्तीसगढ़ पुलिस ने गिरफ्तार किया था. सोनी सोरी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 7 जुलाई 2010 को कांग्रेसी नेता अवधेश गौतम पर हुए नक्सली हमले में वो शामिल थीं. सोनी सोरी ने आरोप लगाया था कि ये सारी अमानुषिक यातनाएं उन्हें जेल में दी गई. तीन बच्चों की मां सोनी के पति सोनी के जेल जाने का सदमा बरदाश्त नही कर सके और उनकी भी मौत हो गई. उनके छोटे बच्चे की पढ़ाई बंद है. सोनी के खिलाफ 12 मामले दर्ज किए गए थे जिनमें 11 में वो बरी हो गईं. 1 मामला अब भी चल रहा है. इतना ही नहीं जिन 17 लोगों को पुलिस ने जेल में डाला था वो भी सभी रिहा किए जा चुके हैं. जेल में दी गई यातनाओं के आरोपों पर अब तक सुनवाई शुरू नहीं हो पायी है.

जब आप ये पढ़ रहे होंगे तो आपके मन में सवाल आएगा कि सोनी सोरी जरूर नक्सलवादी नेता होंगी इसलिए उन्हें इसकी ही सजा मिली होंगी. इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपको सोनी सोरी के इतिहास में जाना होगा. सोनी सोरी बस्तर (दंतेबाड़ा जिला, ये वो दुर्गम इलाका है जहां कई जगहों पर जाने के लिए कई कई दिन पैदल चलना पड़ता है) की रहने वाली हैं. सोनी का परिवार शुरू से ही आदिवसियों के लिए काम करता रहा. उनके पिता गांव के सरपंच थे और नक्सलवादियों ने उनकी हत्या कर दी थी. सोनी के परिवार को इसके लिए 80,000 रुपये का मुआवजा भी दिया गया. लेकिन सोनी इस हमले से विचलित नहीं हुईं और लगातार आदिवासियों के लिए काम करती रहीं. वो बच्चों को पढ़ाने का काम भी करती रहीं. उन्होंने आम आदमी पार्टी की सदस्यता ली और चुनाव लड़ा. उन्होंने हजारों ऐसे मामलों में आवाज उठाई जिनमें बेकसूर आदिवासियों को जेल में डाल दिया गया था. छत्तीसगढ़ में दूर दराज के इलाकों में ये आम है. प्रशासन पर ऐसे आरोप लगातार लगते रहे हैं जिनमें चूंचपड़ करने वाले बेकसूरों को पुलिस नक्सल बताकर जेल में डाल दिया करती है.

जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने हाल में दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में दावा किया कि 97 से 99 फीसदी नक्सलवादी गिरफ्तारियों में केस झूठे पाये जाते हैं. छत्तीसगढ़ की जेलें अपनी क्षमता से कई गुना भरी हुई हैं. उदाहरण के लिए कांकेर की जेल में सिर्फ 67 कैदियों की क्षमता है लेकिन उनसें 400 कैदी हैं. ज्यादातर आदिवासी. गिरफ्तारी के बाद न्याय में भी अंधेर वाली हालत है. जगदलपुर सेन्ट्रल जेल में बंद 97 फीसदी आरोपियों के खिलाफ आरोप ही तय नहीं हुए. मुकदमा चलना तो बहुत दूर की बात है. अदालत में लंबे मुकदमे चलने के बाद आदिवासी बरी तो हो जाते हैं लेकिन जेलों में दी गई यातनाओं का क्या करें. उन मामलों में कभी कार्रवाई नहीं हो पाती. जो एनजीओ या मानवाधिकार कार्यकर्ता इनकी मदद के लिए भी जाना चाहते हैं उनके प्रदेश में प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई है.

हमने सोनी सोरी से बात शुरू की थी. उन्हीं के बारे में फिर बात करते हैं. जब सोनी सोरी को जेल में डालने, यातनाएं देने, निराधार मुकदमे लगाने से भी नियंत्रण नहीं पाया जा सका तो हाल ही में एक और दिल दहलाने वाली बात हुई. सोनी सोरी अपने घर गीतम जा रही थीं. रास्ते में 3 मोटरसाइकिल सवारों ने उन्हें रोका और कोई खतरनाक कैमिकल उनके चेहरे पर डाल दिया. सोनी का इलाज दिल्ली के अपोलो अस्पताल में चल रहा है. डॉक्टरों को चिंता है कि उनकी आंखे न चली जाएं. सोनी का चेहरा जलकर काला पड़ चुका है. हमले से चेहरा पूरी तरह सूज गया. दुआ है कि वो जल्दी ठीक हो जाएं. लेकिन सोनी को जितनी दुआओं की जरूरत है उतनी ही जमीनें और खदाने हथियाने के लिए जेलों में डाल दिए गए और यातनाएं झेल रहे आदिवासियों के लिए भी.

लेखक

गिरिजेश वशिष्ठ गिरिजेश वशिष्ठ @girijeshv

लेखक दिल्ली आजतक से जुडे पत्रकार हैं

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