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Updated: 19 अक्टूबर, 2021 07:28 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारत में हिंदू धर्म के त्योहारों पर ज्ञान की गंगा बहाना लोगों के बीच एक पुराना शगल हो चुका है. लेकिन, इन दिनों एक अलग तरह का ट्रेंड चला है. भारत में अब विज्ञापनों के सहारे हिंदू धर्म के त्योहारों को जबरदस्ती 'सेकुलरता' का लबादा उढ़ाने का चलन बहुत तेजी से बढ़ता है. ताजा विवाद (fabindia controversy) कपड़ों और लाइफस्टाइल प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी फैब इंडिया (Fabindia) से जुड़ा है. दरअसल, फैब इंडिया कंपनी ने दिवाली और इस दौरान होने वाले तमाम त्योहारों के मद्देनजर 'जश्न-ए-रिवाज' (Jashn e Riwaaz) नाम का एक कैंपेन शुरू किया था. इस 'जश्न-ए-रिवाज' कैंपेन के बारे में कंपनी ने ट्वीट किया था. जिसके चलते ट्विटर पर ट्रोल कर boycott fabindia का हैशटैग ट्रेंड होने लगा. इसके बाद फैब इंडिया ने इस कलेक्शन को लेकर सफाई दी है कि जश्न-ए-रिवाज को दिवाली (fabindia diwali ad) से जोड़कर देखा जा रहा है. लेकिन, यह दिवाली से जुड़ा हुआ नहीं है. हालांकि, फैब इंडिया ने जश्न-ए-रिवाज कलेक्शन को लेकर जो ट्वीट किया था, उसमें लिखा था कि प्यार और प्रकाश के त्योहार का हम स्वागत करते हैं. फैब इंडिया का जश्न-ए-रिवाज एक ऐसा कलेक्शन है, जो भारतीय संस्कृति की खूबसूरती को दिखाता है.

Jashn e riwaz adफैब इंडिया का ताजा विवाद केवल एक बानगी भर है.

इस तरह के विज्ञापनों के जरिये हिंदू संस्कृति और त्योहारों पर जबरदस्ती के तौर पर धर्मनिरपेक्षता (Secular) को लादने का चलन बीते कुछ समय में सामने आया है. एक सोची-समझी रणनीति के तहत हिंदू धर्म की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचानों व त्योहारों को निशाने पर लिया जा रहा है. अगर 'दिवाली' को केवल दिवाली के तौर पर लिख दिया जाता, तो क्या लोगों की समझ में नहीं आता कि यह कलेक्शन रोशनी और प्रेम के त्योहार के लिए है. लेकिन, भारत में इन दिनों 'अल्ट्रा सेकुलर' दिखने की होड़ मची है. लेकिन, यह होड़ केवल हिंदू धर्म को लेकर ही सामने आती है. हिंदू त्योहारों को लेकर जश्न-ए-रिवाज (Fabindia Jashn e Riwaz) जैसी शब्दावलियों का उन्मुक्त तरीके से इस्तेमाल कर लिया जाता है. लेकिन, अन्य किसी धर्म के त्योहारों पर इन विज्ञापन बनाने वाले लोगों की रचनात्मकता 'ईद की राम-राम' या 'जय श्री क्रिसमस' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने से रोक देती है. क्योंकि, इससे उन धर्मों के अनादर होने का खतरा बना रहता है.

सवाल उठने लाजिमी हैं कि आखिर क्या वजह है कि सब कुछ जानते और समझते हुए भी इस तरह के विज्ञापन बनाए जा रहे हैं? भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं, तो हर तरह की जिम्मेदारी घूम-फिरकर हिंदुओं पर ही क्यों आ जाती है? दूसरे धर्मों को लेकर ऐसी शब्दावली या ऐसे विज्ञापन क्यों नही बनाए जाते हैं? हिंदू धर्म के पर्वों की तरह लोग मुस्लिम और ईसाई धर्म के त्योहारों पर ज्ञान की गंगा (Secularism) बहाने से क्यों बचते हैं?

जान-बूझकर लाद रहे धर्मनिरपेक्षता

बहुत सीधी और स्पष्ट सी बात है कि इसके पीछे एक खास विचारधारा के लोग लगे हुए हैं, जो वामपंथ और मिशनरी संस्थाओं से जुड़े हुए कहे जा सकते हैं. ऐसे विज्ञापन बनाने वालों का नाम हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई कुछ भी हो सकता है, लेकिन इनका माइंडसेट और विचारधारा हिंदूविरोधी ही रहती है. ये सभी लोग कहीं न कहीं अपने नाम या अपने संस्थान की आड़ में हिंदूविरोधी एजेंडे (Hindu Religious) को हवा देते रहते हैं. कहने को फैब इंडिया (fabindia ad) के मालिक विलियम नंदा विसेल एक ईसाई हो सकते हैं. हालांकि, यहां मैं उन पर उंगली नहीं उठा रहा हूं. लेकिन, जब इस तरह के कैंपेन से उनकी कंपनी को ही नुकसान पहुंचने की संभावना तो भी यह कैसे शुरू कर दिया जाता है? फैब इंडिया ने ईद या क्रिसमस के त्योहारों पर क्या हिंदू संस्कृति से जुड़ी चीजों को कभी अपने कैंपेन का हिस्सा बनाया है? जवाब बहुत आसान है कि नहीं बनाया होगा. क्योंकि, अगर इस तरह की रचनात्मकता या कलाकारी किसी अन्य धर्म को लेकर दिखा दी जाए, तो उस स्थिति में तमाम तरह के फतवों और अदालती केस के साथ ही जान पर भी खतरा बना रहता है. लेकिन, हिंदू धर्म के त्योहारों में इस तरह की मिलावट के खिलाफ केवल 'सहिष्णुता' के साथ ट्विटर पर विरोध ही जताया जाता है.

फैब इंडिया (Jashn e riwaz ad) का ताजा विवाद केवल एक बानगी भर है. बीते साल फैब इंडिया की तरह ही तनिष्क ने भी 'धर्मनिरपेक्षता ओवरलोडेड' टाइप का एक विज्ञापन बनाया था. जिस पर काफी हंगामा हुआ था और बाद में उसे हटा दिया गया था. इस विज्ञापन में एक गर्भवती हिंदू महिला को मुस्लिम परिवार के घर की बहू दिखाया गया था. विज्ञापन के अनुसार, मुस्लिम परिवार अपनी हिंदू बहू के आने वाले बच्चे के लिए किए जाने वाले किसी संस्कार की तैयारी में जुटा दिखाया जाता है. आसान शब्दों में कहें, तो देखने पर बहुत ही अच्छा विज्ञापन लगता है. इसी तरह चाय के एक विज्ञापन में मुस्लिम पड़ोसी को घृणा की नजर से देखने वाले हिंदू परिवार को भी भारत के लोग आसानी से पचा जाते हैं. लेकिन, क्या इसी विज्ञापन को उल्टे तरीके से बनाकर टीवी की स्क्रीन पर चलाए जाने की सोच रखी जा सकती है? इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इसके सामने आने के दूसरे दिन ही देशभर में दंगों से लेकर न जाने क्या-क्या तक हो जाने की संभावना बन सकती है. जिसे देखते हुए विज्ञापन बनाने वाले ऐसा कोई विज्ञापन नहीं बनाते हैं.

fabindia adभारत के इन कथित अल्ट्रा सेकुलर लोगों की वजह से देश में भाई-चारा की स्थितियां समय के साथ बिगड़ती चली गई हैं.

भारत के इन कथित अल्ट्रा सेकुलर लोगों की वजह से देश में भाई-चारा की स्थितियां समय के साथ बिगड़ती चली गई हैं. जबरदस्ती बहुसंख्यक हिंदू वर्ग को अपने हिसाब से इस्तेमाल करने की इनका दिमागी कीड़ा कभी शांत नहीं होता है. अगर जश्न-ए-रिवाज कैंपेन के बारे में बिना राजनीतिक या धार्मिक चश्मे के देखें, तो इस कैंपेन की मॉडल्स ने केवल माथे पर बिंदी नहीं लगाई थी. जो आसानी से पचाये जा सकने वाली चीज थी. लेकिन, अल्ट्रा सेकुलर लोगों को इतने में मजा ही नहीं आता है. तो, इसमें धर्मनिरपेक्षता का छौंक लगाने के लिए हिंदू पर्व के लिए उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल कर लिया जाता है. जिस पर बवाल होने के बाद माफी मांग ली जाती है. और, कहा जाता है कि कंपनी जल्द ही दीपावली कलेक्शन को लेकर 'झिलमिल सी दीवाली' प्रोमो लांच करेगी. सवाल जस का तस है कि आखिर कोई ऐसा करने की सोचता ही क्यों है?

सांसद तेजस्वी सूर्या की प्रतिक्रिया ने माहौल बना दिया

फैब इंडिया अपने जश्न-ए-रिवाज दिवाली एड की वजह से ट्विटर पर जमकर ट्रोल (Fabindia troll) हुआ. भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने ट्वीट (Tejasvi Surya tweet) कर फैब इंडिया पर नाराजगी जताते हुए लिखा कि दीपावली जश्न-ए-रिवाज (Deepavali is not Jash-e-Riwaaz) नही है. यह हिंदू त्योहारों को जान-बूझकर बिगाड़ने का प्रयास है. इस तरह के दुस्साहस के लिए फैब इंडिया को आर्थिक नुकसान पहुंचना चाहिए. इतना ही नहीं कई लोगों ने फैब इंडिया के कपड़ों की बुरी क्वालिटी से लेकर महंगे होने तक की बात कहकर कंपनी की जमकर आलोचना की.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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