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Updated: 02 नवम्बर, 2022 05:14 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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किसी महिला को खर्चीली बोलने से पहले हम सोचते नहीं है. हम उसके बाहरी रूप को जज करते हैं और बोल पड़ते हैं यार ये तो बहुत फालूत पैसे उड़ाती है...अरे भाई जब पैसे वह कमाती है औऱ खर्च वह करती है तो आपका क्या जाता है? वह आत्मनिर्भर है और अपने हिसाब से जिंदगी जी सकती है. यह उसकी मर्जी है कि उसे अपने ऊपर कितना खर्च करना है और कितना बचाना है. आप अपनी लाइफ की तुलना उसकी जिंदगी से क्यों करते हैं?

हर किसी की जिंदगी जीने का अपना तरीका होता है. फिर आप क्यों उसके मुफ्त के वीत्तीय सलाहकार बनने लगते हैं? हद तो तब हो जाती है जब उसे इसी बात को लेकर हर बार नीचा दिखाया जाता है. वह जब भी वीत्तीय मामलों को लेकर कोई बात कहती है तो उसे पैसे उड़ाने वाली बताकर मजाक उड़ाया जाता है. महिलाओं के बारे में यह कहावत ही बना दी गई है कि वे अपनी ब्यूटी और फैशन के लिए पैसे कमाती हैं.

हमने अपनी लाइफ में कई बार इस तरह की स्टीरियोटाइप का सामना किया है. माना जाता कि महिलाएं अपना सारा पैसा इन्हीं पर खर्च करती हैं. जबकि यह सही नहीं है, ऐसे लोगों का मानना है कि घर की महिला लक्ष्मी होती है इसलिए उसे अपने ऊपर पैसे खर्च नहीं करने चाहिए. वरना उसे कुलक्ष्मी कहने में देरी नहीं की जाती है.

Women, Money, Handling Money, Shopping, Financial Choices, Gendered pricing, Patriarchy, Dughter in Law, Sasural, Shopping, Saving, Women do not know how to save moneyलोग मानते हैं कि महिलाएं खर्चीली, गैर-जिम्मेदार और पैसे के मामलों से निपटने में सक्षम नहीं होती हैं

अक्सर देखने में आता है कि घर के खर्च को महिलाओं से जोड़कर देखा जाता है. मतलब पति का काम कमाना है औऱ महिला का काम बचाना है. महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि इस घर को संभालने की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर होती है. इसलिए उन्हें अपना पेट काट काटकर पैसे बचाने चाहिए. उन्हें खरीदारी नहीं करनी चाहिए. उन्हें अपने ऊपर खर्च करने से पहले 100 बार सोचना चाहिए. उन्हें घर खर्च में से भी पैसे बचाने चाहिए.

एक महिला जब तक सबके लिए करती रहती है तो किसी को बुरा नहीं लगता मगर जैसे ही वह अपने लिए कुछ खरीदने लगती है तो वह लोगों के लिए फालूत खर्च हो जाता है, क्योंकि उनके हिसाब के महिला घर के सिवा तो कोई औऱ जिंदगी की नहीं होती है. जब महिला पार्लर जाने लगे, मेकअप खरीदने लगे, कपड़े लेने लगे तो लोग उसे ऐसे नजर से देखते हैं जैसे वह कितना बड़ा पाप कर रही है. लोगों को एक महिला से यह कतई उम्मीद नहीं होती है.

परिवार के लोग हमेशा महिला के पैसे पर अपना अधिकार समझते हैं. वे चाहते हैं कि वह सैलरी लाकर उनके हाथों में ऱख दें. फिर वे उसे महीने का खर्चा दें. जो महिला अपनी सैलरी अपने हिसाब से खर्च करती है वह परिवार के लिए बुरी बन जाती है.

लोग उसे खर्चीली बहू बोलकर बदनाम कर देते हैं

कहीं मार्केट जाने से पहले ही उसे हिदायत दे दी जाती है कि कुछ खरीदना नहीं है. अगर इस बीच उसने कुछ खरीद लिया तो सब उसे जलीकटी सुनाने लगते हैं. उसकी शिकायत मायके तक चली जाती है. उससे कहा जाता है कि तुम्हारे पास तो सब है कुछ लेने की जरूरत नहीं है. पैसे बचाने के नाम पर उसे ताने मारे जाते हैं. उसकी दूसरों से तुलना की जाती है. उससे कहा जाता है कि तुम लाइफ में कुछ कर नहीं पाओगी...इतने में रह जाओगी.

महिला अपने पैसों को लेकर आजाद नहीं रहती है

समाज के लोग मानते हैं कि महिलाएं खर्चीली, गैर-जिम्मेदार और पैसे के मामलों से निपटने में सक्षम नहीं होती हैं. क्या सभी महिला को एक ही तराजू में तौलना गलत नहीं है? मान लीजिए महिलाएं खरीदारी पर खर्च करती हैं को उनकी पसंद पर सवाल क्यों?

कई रिसर्च में भी यह बात सामने आई है तो? इसकी एक वजह यह भी है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की जरूरते अधिक हैं. उनके कपड़ों से लेकर पर्सनल केयर तक में अंतर है. महिलाओं की जरूरत के सामान भी पुरुषों की तुलना में अधिक महंगे आते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि वे पैसों को सही ढंग से मैनेज नहीं कर सकती हैं. ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि महिलाएं सिर्फ मेकअप ही नहीं बल्कि कार, यात्रा, शेयर बाजार, इलेक्ट्रॉनिक्स, किताबों और कई दूसरी चीजों पर खर्च करती हैं ताकि उनकी लाइफ बेहतर हो सके. मगर लोगों का मानना है कि ये सारी चीजें पुरुष की खरीदते हैं महिलाएं नहीं...

गलती हमारी मानसिकता में है

हम यह स्वीकार ही नहीं कर पाते हैं कि महिलाओं को भी कमाने, खर्च करने और बचाने का अधिकार है. हम यह स्वीकार ही नहीं करना चाहते हैं कि महिलाएं भी पैसे को संभाल सकती हैं. जबकि यह बात कई रिसर्च से पता चल चुकी है कि सिंगल पुरुषों का कुल खर्च सिंगल महिलाओं की तुलना में अधिक होता है औऱ महिलाएं पुरुषों की तुलना में बेहतर निवेशक होती है. महिलाओं तो पुरुषों की पसंद पर सवाल नहीं उठाती हैं?

यह बात दिमाग से निकाल दीजिए कि महिलाएं सिर्फ फिजूल खर्ची करती हैं और पुरुष ही पैसों को सही जगह खर्च करते हैं. अब समय आ गया है कि हम महिलाओं की पसंद पर सवाल उठाना बंद कर दें. यह सोच दिमाग से निकालना होगा कि महिलाएं नहीं जानती कि फाइनेंस को कैसे संभालना है, क्योंकि फाइनेंस संभालना कोई मर्दाना डोमेन नहीं है. पैसे कमाना और उसे अपने हिसाब से खर्च करना हर महिला का अधिकार है.

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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