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Updated: 01 दिसम्बर, 2019 08:30 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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भारत अपनी शिक्षा तथा दर्शन के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध रहा है. लेकिन कुछ नजारे देखकर आश्चर्य होता है कि क्या ये वही भारत है? कुछ शिक्षक ऐसे भी हैं जो यहां शिक्षा की स्थिति खराब करने पर तुले हुए हैं. हम में से ज्यादातर लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहते, ये जानते हुए भी कि वहां पढ़ाई के लिए कोई फीस नहीं है. लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं और रो-रो कर फीस भी भरते हैं. और एक वायरल वीडियो ये बता रहा है कि भारत के लोग ऐसा क्यों करते हैं.

यूपा के उन्नाव में एक जगह है सिकंदरपुर सरोसी. यहां एक सरकारी स्कूल में जिलाधिकारी देवेंद्र पांडे निरीक्षण के लिए पहुंचे थे. वहां कक्षा में एक टीचर बच्चों को अंग्रेजी पढ़ा रही थीं. डीएम साहब ने एक बच्ची से पाठ पढ़ने के लिए कहा, जिसे वो पढ़ नहीं पाई. तुरंत ही डीएम ने वहां मौजूद टीचर से पाठ का एक पैरा पढ़ने के लिए कहा. लेकिन मैडम जी खुद वो पैरा पढ़ ही नहीं पाईं.

UP teacherEnglish की टीचर खुद English नहीं पढ़ पाईं

एक शिक्षक के ऐसे हालात देखकर डीएम ने तुरंत उन्हें सस्पेंड करने का आदेश दे दिया. उन्होंने नाराज होते हुए कहा कि ये क्या पढ़ाएंगी ये तो खुद नहीं पढ़ पा रहीं. टीचर ने विषय न होने की बात कही, तो डीएम बोले बीए तो पास हो, बीटीसी तो की हो? डीएम ये भी बोले की मैं इस पैरे का अनुवाद करने को नहीं कह रहा, सिर्फ पढ़ने को कह रहा हूं. पढ़ तो सकते ही हैं?

देखिए किस तरह उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की कलई खुली-

हम जानते हैं कि इस वीडियो को देखकर आपको आश्चर्य नहीं हुआ होगा, क्योंकि यूपी, बिहार से अक्सर इस तरह के वीडियो आते ही रहते हैं जहां खुद शिक्षकों की पोल खुलती रही है. 2016 में भी श्रावस्ती में कुछ ऐसा ही हुआ था. तब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री एक सरकारी स्कूल के कार्यक्रम में पहुंचे थे. वहां जब उन्होंने शिक्षा व्यवस्था का हाल देखा तो कहा कि उन्हें शिक्षकों ने धोखा दिया है.

अब सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के ही हालात ऐसे हों तो वो बच्चों को क्या पढ़ा रहे होंगे. और बच्चे क्या सीख रहे होंगे ये साफ तौर पर समझा जा सकता है. और यही वजह है कि सरकारी स्कूलों से पढ़ने वाले बच्चे अक्सर पीछे दिखाई देते हैं, आत्मविश्वास भी नहीं होता क्योंकि उसे बढ़ाने के लिए उनकी शिक्षा का स्तर खुद बहुत नीचे होता है. वहीं अगर इन शिक्षकों की बात की जाए तो सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को प्राइवेट स्कूलों के टीचर्स की तुलना में बहुत ज्यादा वेतन दिया जाता है, लेकिन उस हिसाब से वो पढ़ा नहीं पाते.

ये नजारे देखकर हमें गुस्सा भी आता है और अफसोस भी होता है कि कितने ही पढ़े लिखे लोग आज बेरोजगार हैं और जिनके पास नौकरी है वो या तो कक्षा में मौजूद नहीं होते और जो होते हैं उनका हाल ऐसा है. दरअसल इन शिक्षकों को दोष देना भी गलत है क्योंकि गलती इनकी है ही नहीं. असल गुनहगार तो वो प्रक्रिया है जिसके जरिए ऐसे शिक्षकों की नियुक्ति की जाती है. वरना जिसे खुद पढ़ना नहीं आता वो कैसे पढ़ाने के लिए चुन ली गई. उत्तरप्रदेश में सरकार किसी की भी रहे, कमान अखिलेश के हाथ में हो या फिर योगी आदित्यनाथ के, लेकिन शिक्षा व्यवस्था का हाल बेहाल था और बेहाल रहेगा. और इसीलिए प्राइवेट स्कूलों का साम्राज्य फलता-फूलता रहेगा.

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पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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