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Updated: 03 दिसम्बर, 2020 10:38 PM
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वैसे तो पूरा देश ही कोविड (Covid) से जूझ रहा है और पिछले कुछ दिनों से वैक्सीन (Coronavirus Vaccine) के आने की खबरें इस सर्द मौसम में गर्माहट और राहत का वायस बन रही हैं, लेकिन इस कोविड ने भोपाल वासियों को एक और गैस काण्ड का एहसास दिला दिया है. आज यह सबको पता है कि कोविड का असर सबसे ज्यादा उन्हीं लोगों पर हो रहा है जो कि या तो बुजुर्ग हैं, बीमार हैं या जिनकी इम्युनिटी बहुत कमजोर है. और भोपाल के लोगों की इम्युनिटी आज 36 साल बीतने के बाद भी (1984 गैस ट्रेजेडी के बाद) कमजोर ही है क्योंकि मिक गैस ने सबसे ज्यादा असर फेफड़ों पर ही किया था. अब इस वर्ष कोविड भी कुछ ऐसा ही कर रहा है और यह भी लोगों के फेफड़ों को कमजोर करके उनके जिंदगी पर घातक असर कर रहा है. अब एक बार उस मनहूस वर्ष यानी सन 1984 को भी याद कर लें और देखें कि आज के ही दिन उस वर्ष क्या घटित हुआ था. 

दिसंबर के पहले हफ्ते की शाम और रात भोपाल में अमूमन बहुत ठंडी नहीं होती, बस ऐसी होती है कि आप न तो रज़ाई ओढ़ सकते हैं और न ही चद्दर से काम चला सकते हैं. उस साल भी रात कुछ ऐसी ही थी लेकिन ठण्ड सामान्य से थोड़ा ज्यादा थी. जे पी नगर और आस पास के निवासियों के लिए भी वह एक जाड़े की सामान्य सी रात ही थी. लेकिन वहां और भोपाल के निवासियों को सपने में भी अंदेशा नहीं था कि आज के बाद यह रात इतिहास में एक ऐसी काली रात के रूप में दर्ज हो जाएगी जिसे आने वाली पीढ़ियां भी भूल नहीं पाएंगी. 

Coronavirus, Death, Disease, Treatment, Epidemic, Bhopal, Bhopal Gas Tragedyगैस त्रासदी के परिणाम आज भी भोपाल को भुगतना पड़ पड़ रहा है

3 दिसंबर 1984 की सुबह अपने साथ एक ऐसी भयावह परिस्थिति लाएगी, अगर इसका अंदेशा भोपाल के लोगों को होता तो शायद वह अपने कलेण्डर से इस तारीख को पहले ही मिटा चुके होते. लेकिन समय पर किसका वश चलता है, 2 दिसंबर को क़ाज़ी कैम्प और जे पी नगर (आज का आरिफ नगर) और उसके आसपास के इलाके के लोग रात का भोजन करके सो गए. घरों में सोये पुरुषों और महिलाओं ने अगली सुबह के बारे में कुछ योजनाएं बनायीं होंगी और पता नहीं कितने युवक और युवतियों ने अपने प्रेम की कुछ बातों के लिए अगले दिन को चुना होगा.

बच्चे रविवार होने की वजह से रोज से कुछ ज्यादा ही खेलकूद कर थके होंगे और उनकी माओं ने उनको किसी तरह खिला पिला कर सुलाया होगा कि कल फिर खेल लेना. कुछ युवाओं और युवतियों के लिए आने वाला सोमवार (3 दिसंबर) रोजगार के कुछ अवसर प्रदान करने वाला रहा होगा. और कुछ को उस दिन साक्षात्कार देना रहा होगा जिससे कि वह अपने बुजुर्ग माता पिता और परिवार के लिए सहारा बन सकें. कुछ घरों में मेहमान भी उसी रात आये थे और उन घरवालों को भी यह भान नहीं रहा होगा कि यह मेहमान अब वापस नहीं जा पायेगा. 

उस इलाके में कुछ शादियां भी उस दरम्यानी रात को हो रही थीं और कुछ दूल्हा दुल्हन भी प्रथम मिलन की आस लिए ही दुनिया से कूच कर गए. आधी रात के बाद जब पुराना भोपाल, चंद पुलिसवालों, चौकीदारों और बीमारी से खांसते खंखारते बुजुर्गों को छोड़कर गहरी मीठी नींद में सोया हुआ था तो किसी को खबर भी नहीं थी कि आरिफ नगर की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री उनके लिए जीने का नहीं बल्कि मरने का सबब बन जायेगी.

उस फैक्ट्री में मौजूद तमाम गैस के टैंकों के नंबर भले ही उस समय के कुछ कर्मचारियों और कंपनी के अधिकारियों को याद रहे हों लेकिन आगे चलकर टैंक नंबर इ-610 इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया और भोपाल के लोग चाहकर भी इस नंबर को भूल नहीं पाएंगे. यह वही दुर्भाग्यशाली टैंक था जिससे गैस लीक हुई थी.

खैर भोपाल निवासी धीरे धीरे उस हादसे से उबरने की कोशिश कर ही रहे थे कि कोविड ने उनके पुराने जख्म फिर से बेरहमी से कुरेद दिए. अब बस यही दुआ की जा सकती है कि जल्द से जल्द वैक्सीन बाजार में आये और लोग फिर से खुल कर सांस ले सकें.

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