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Updated: 02 जुलाई, 2020 02:21 PM
संजीव चौहान
संजीव चौहान
 
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COVID-19 vaccine progress- एक ख़तरे ने पूरी दुनिया को एक छत के नीचे ला खड़ा किया है. कोरोना वायरस (Coronavirus) से निपटने के लिए दुनिया भर में करीब 140 वैक्सीन पर काम चल रहा है. लेकिन इस बीच भारत की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ (Bharat Biotech covid-19 vaccine) ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है ‘कोवैक्सिन’ (Covaccine). इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल (Covid-19 vaccine human trial) की मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा.

Coronavirus, Vaccine, Treatment, Medicine, Indiaविश्व के तमाम मुल्कों की तरह भारत में भी कोरोना वायरस की दवा को लेकर शोध जारी है

कोवैक्सिन के प्री-क्लीनिकल ट्रायल के नतीजे काफ़ी उत्साहवर्धक रहे और इस वैक्सीन ने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर अच्छा प्रभाव दिखाया है. इस समय भारत की करीब 6 कंपनियां कोरोना की वैक्सीन तैयार करने में जुटी हैं.

कोरोना के ख़िलाफ़ दुनिया की साझा जंग

आमतौर किसी भी वैक्सीन को बाज़ार तक आने से पहले रीसर्च और टेस्टिंग की लंबी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. साइनटिस्ट पूरा ज़ोर लगा रहे हैं कि किसी भी तरह से नए साल की शुरूआत तक इस घातक वायरस को मिटाने वाली वैक्सीन तैयार कर ली जाए.

SARS-CoV-2 जीनोम को समझने की प्रक्रिया इस साल जनवरी से ही शुरू हो गई थी. इसकी पहली वैक्सीन का ह्यूमन ट्रायल यानि वैक्सीन को इंसान पर आज़माने की शुरुआत मार्च में हुई थी. इनमें से कुछ ट्रायल फेल हो गए तो कई ऐसे भी रहे जो किसी साफ़ नतीजे तक नहीं पहुंच पाए.

हां, कुछ ट्रायल ऐसे ज़रूर रहे जिन्होंने इस वायरस से लड़ने में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली यानि इम्यून सिस्टम को कुछ हद तक उत्प्रेरित ज़रूर किया ताकि वो इस वायरस मात देने के लिए शरीर में ज़रूरी एंटीबॉडीज़ का निर्माण कर सके. कुछ वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर हुआ तो कुछ ऐसी भी हैं जिनका अभी तक कोशिकाओं या जानवरों पर ट्रायल चल रहा है.

लैब से बाज़ार तक कब पहुंचेगी वैक्सीन?

किसी भी वैक्सीन को लैब से क्लीनिक तक पहुंचने में एक लंबी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है. स्टैंडर्ड प्रोसीजर के मुताबिक इस प्रक्रिया के कई चरण होते हैं.

Pre-clinical Testing- सबसे पहले वैक्सीन का इस्तेमाल चूहों या बंदरों पर किया जाता है ताकि ये समझा जा सके कि इस वैक्सीन को देने के बाद शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली कैसी प्रतिक्रिया देती है.

Phase 1, Safety Trial- प्रीक्लीनिकल टेस्टिंग के बाद वैक्सीन की डोज़ कुछ इंसानों को दी जाती है ताकि वैक्सीन की सुरक्षा और मात्रा का निर्धारण किया जा सके.

Phase 2, Expanded Trial- इस फ़ेज़ में साइनटिस्ट अलग-अलग समूहों के लोगों का चयन करते हैं. जैसे बच्चे, बुज़ुर्ग आदि. ऐसे क़रीब सौ लोगों का चयन किया जाता है और उन पर वैक्सीन का ट्रायल कर ये समझने की कोशिश की जाती है वैक्सीन अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों पर कैसा प्रभाव दिखाती है. इसके बाद ये सुनिश्चित किया जाता है कि वैक्सीन कितनी सुरक्षित है और शरीर के इम्यून सिस्टम को कैसे उत्प्रेरित करती है.

Phase 3, Efficacy Trial- इस चरण में वैक्सीन की क्षमता, गुण या प्रभावोत्पादकता को परखा जाता है. इसमें वैक्सीन हज़ारों लोगों पर प्रयोग में लाई जाती है और एक निश्चित समय तक इंतज़ार कर ये देखा जाता है इनमें से कितने लोग रोग से पीड़ित हुए और कितने ठीक. इस ट्रायल में शामिल लोगों में कुछ ‘प्लेसीबो वालंटियर’ भी होते हैं. ये एक महत्वपूर्ण चरण होता है क्योंकि प्लेसीबो वालंटियर वो होते हैं जिन्हें बताया नहीं जाता है कि उन्हें वैक्सीन दी गई है या सैलाइन वाटर. इस ट्रायल से काफ़ी हद तक ये सुनिश्चित हो जात है कि ये वैक्सीन उस रोग से लड़ने में वाकई कितनी कारगर है.

Approval- अब बारी आती है सरकार के औषधि नियामक प्राधिकरण की. प्राधिकरण ट्रायल के नतीजों का गहन अध्ययन करता है और ये तय करता है इस वैक्सीन को निर्माण की अनुमति दी जाए या नहीं. हालांकि इतिहास पर नज़र डालें तो कुछ देशों में बढ़ती महामारी पर काबू पाने के लिए आधिकारिक अप्रूवल से पहले भी वैक्सीन को मान्यता दे दी गई.

जब कोविड महामारी ने अमेरिका को बुरी तरह अपनी चपेट में लिया तो इससे निपटने के लिए सरकार ने ‘ऑपरेशन वार्प स्पीड’ लांच किया. जिसका मकसद था, हर हाल में जनवरी 2021 तक एक सुरक्षित और असरदार वैक्सीन बनाना. फ़ेडरल फंडिंग के ज़रिए 4-5 कंपनियों को को इस वैक्सीन के प्रोडक्शन का ज़िम्मा भी दिया जा रहा है.

Combined Phase- किसी भी वैक्सीन बनने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने के लिए कभी-कभी दो फ़ेज़ का काम एक साथ भी किया जाता है. जैसे कुछ देशों में फेज़ 1 और फ़ेज़ 2 को आपस में जोड़ दिया गया है और कुछ सौ लोगों पर इसका ट्रायल शुरू भी हो चुका है.

दुनिया में 5 तरह की कोरोना वैक्सीन पर प्रयोग चल रहे हैं:

1. जेनेटिक वैक्सीन

2. वायरल वेक्टर वैक्सीन

3. प्रोटीन बेस्ट वैक्सीन

4. होल (Whole) वायरस वैक्सीन

5. रीपर्पस्ड (Repurposed) वैक्सीन

जेनेटिक वैक्सीन (Genetic Vaccines)- इस वैक्सीन में वायरस के अपने जीन पर ही प्रयोग किए जाते हैं ताकि उससे ख़िलाफ़ शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित किया जा सके. इस प्रयोग से जुड़ी अहम कंपनिया हैं..

Moderna Inc. - अमेरिका की ये कंपनी ट्रायल की एडवान्स स्टेज में है. ये 'वार्प स्पीड' फ़ेज़ में है यानि फ़ेडरल फ़ंडिंग के ज़रिए ये जल्द से जल्द कोरोना की वैक्सीन के निर्माण की तरफ़ बढ़ रही है.

BioNTech/Pfizer/Fosun PHARMA- जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक ने अमेरिकी कंपनी फ़ाइज़र और चीनी दवा निर्माता फ़ोसुन फ़ार्मा के साथ मिल कर इस वैक्सीन पर काम शुरू किया है जो काफ़ी आगे बढ़ चुका है. ये mRNA वैक्सीन भी फ़ेडरल फंडिंग की स्टेज में है. फ़ाइज़र के सीईओ के मुताबिक उन्हें पूरी उम्मीद है कि अक्टूबर में उनकी वैक्सीन जनता के बीच होगी.

Imperial College London/MORNINGSIDE- इम्पीरियल कॉलेज लंदन ने मॉर्निंगसाइड वेन्चर्स के साथ RNA वैक्सीन पर काम शुरु किया जो बीते 15 जून से ट्रायल के पहले और दूसरे स्टेज पर है.

ऐसे ही अमेरिका की INOVIO, जर्मनी की CUREVAC, कोरिया की Genexine, फ्रांस की SANOFI Translate Bio जैसी कुछ कंपनियां हैं जो ट्रायल के पहले या दूसरे स्टेज में चल रही हैं.

वायरल वेक्टर वैक्सीन (Viral Vector Vaccines)- इसमें एक ज़िंदा वायरस का इस्तेमाल किया जाता है जो अपने डीएनए के साथ मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है. उस वायरस का डीएनए एंटीजन युक्त होता है. जब ये एंटीजन युक्त डीएनए पीड़ित मानव कोशिकाओं में पहुंचता है तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता सक्रिय हो जाती है.

दुनिया की कुछ अहम कंपनियां वायरल वेक्टर वैक्सीन बनाने में तेज़ी से जुटी हैं.

AstraZeneca/UNIVERSITY OF OXFORD

ब्रिटिश-स्वीडिश कपंनी आस्ट्राज़ेनेका और यूनीवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड मिलकर इस वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. उनका ये प्रयोग चिंपाज़ी के एडीनोवायरस पर आधारित है और फ़ेज़ टू और थ्री में चल रहा है. इसे अमेरिका के ऑपरेशन वॉर्प स्पीड का सहयोग मिल चुका है और बहुत मुमकिन है कि ये अक्टूबर तक कोरोना को हराने की वैक्सीन बना ले.

CanSinoBio

ये चीनी कंपनी भी एडीनोवायरस की मदद से इस वैक्सीन पर काम कर रही है. इसे चीन की एकेडमी ऑफ़ मिलिट्री साइंस की पूरी मदद हासिल है. कंपनी के मुताबिक इसके ट्रायल का फ़ेज़ वन अच्छे नतीजों के साथ अब फ़ेज़ टू में प्रवेश कर चुका है और इसने शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पर अच्छा असर दिखाया है. मुमकिन है कि इस वैक्सीन का प्रयोग चीन के सैनिकों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए हो.

The Gamaleya Research Institute

रूस की मिनिस्ट्री ऑफ़ हेल्थ के अंतर्गत काम कर रही ये कंपनी ट्रायल के फ़ेज़ वन में है. कंपनी दो तरह के एडीनोवायरस Ad5 और Ad26 के साथ कोरोना वायरस के जीन पर प्रयोग कर रही है.

Johnson & Johnson

बोस्टन के Beth Israel Deaconess Medical Center, Ad26 एडीनोवायरस पर काम कर रहा है. जॉनसन एंड जॉनसन को ऑपरेशन वार्प स्पीड का समर्थन मिल चुका है और उसने घोषणा की है कि वो जुलाई के अंत में फ़ेज़ वन/फ़ेज़ टू के ट्रायल शुरू कर देगा.

MERCK iavi

इसी तरह अमेरिकी कंपनी MERCK के ट्रायल भी अच्छे नतीजों के ऑपरेशन वार्प स्पीड में अपनी जगह बना चुके हैं. इसी कंपनी ने इबोला वैक्सीन बनाने में सफलता हासिल की थी.

VAXART

ऑपरेशन वॉर्प स्पीड की फंडिंग के साथ ये कंपनी एक टेबलेट पर काम कर रही है. एडीनोवायरस युक्त ये टेबलेट शरीर में कोरोना वायरस जीन छोड़ेगी जिससे शरीर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर पाएगा.

प्रोटीन-बेस्ड वैक्सीन (Protein Based Vaccines)

इस तरह की वैक्सीन में कोरोना वायरस प्रोटीन के अंश का प्रयोग किया जा रहा है ताकि जब ये शरीर में जाए तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उत्प्रेरित हो सके.

NOVAVAX

मैरीलैंड स्थित ये कंपनी फ़ेज़ वन/फ़ेज़ टू में है और ये कोरोना वायरस प्रोटीन के अति सूक्ष्म कणों के साथ वैक्सीन बनाने में जुटी है. इस वैक्सीन को ‘कोएलिशन फ़ॉर एपीडेमिक प्रिपेयरडनेस इनोवेशन्स’ से 384 मिलियन डॉलर की फ़ंडिंग मिल चुकी है.

ब्रिटेन की Dynavax और अमेरिका की GSK संयुक्त रूप से इस वैक्सीन को बनाने में जुटे हैं. इसी तरह Baylor College of Medicine, Texas Children Hospital, University of Pitsburgh, Australiaकी THE UNIVERSITY OF QUEENSLAND भी तेज़ी से कोरोना की वैक्सीन पर काम कर रहे हैं.

होल वायरस वैक्सीन (Whole-Virus Vaccine)

इस तरह की वैक्सीन में कमज़ोर या निष्क्रिय कोरोना वायरस के साथ प्रयोग किए जा रहे हैं ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली इस वायरस से लड़ने की क्षमता हासिल कर सके.

WUHAN INSTITUTE OF BIOLOGICAL PRODUCTS CO. LTD

काफ़ी पहले टेस्टिंग शुरू कर चुकी चीनी कंपनी Sinopharm के मुताबिक वो ट्रायल के थर्ड फ़ेज़ में है. संयुक्त अरब अमीरात के सहयोग से काम रही ये कंपनी जल्द ही गल्फ़ में इस दवा की क्षमता और उपयोगिता को टेस्ट करेगी.

INSTITUTE OF MEDICAL BIOLOGY

पोलियो और हेपेटाइटिस ए की वैक्सीन विकसित करने वाली चायनीज़ एकेडमी ऑफ़ मेडिकल साइंसेस से जुड़ी इस संस्था के रीसर्चर ट्रायल के फ़ेज़ टू में हैं.

रीपर्पस्ड वैक्सीन (Repurposed Vaccines)

कई ऐसी वैक्सीन हैं जो दूसरी बीमारियों के इलाज में कारगर साबित हुई हैं. इन वैक्सीन का कोविड 19 पर प्रयोग कर ये देखा जा रहा है कि मुमकिन है ये वैक्सीन कोरोना को भी हराने में कामयाब हो पाएं.

किसी को भी मिले, अब जीत ज़रूरी

ये सही है कि कोरोना वायरस के खिलाफ़ जंग में अलग-अलग हथियारों का इस्तेमाल किया जा रहा है. मगर मक़सद सबका एक है- जल्द से जल्द इस वायरस को धरती से मिटा देना. आज इस वायरस से जीत ज़रूरी है वो भले ही किसी को भी मिले. क्योंकि ये जीत किसी एक देश या एक कंपनी की नहीं बल्कि इस घातक वायरस के ख़िलाफ़ संपूर्ण मानव जाति की होगी.

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लेखक

संजीव चौहान संजीव चौहान

लेखक आजतक चैनल से जुड़े पत्रकार हैं

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