New

होम -> समाज

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 01 जुलाई, 2020 06:22 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
  • Total Shares

डॉक्टर (Doctor ) को इस दुनिया में भगवान का दर्जा दिया गया है. जीवन को बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं यह डाक्टर. किसी भी इंसान को सबसे ज्यादा अगर कोई चीज़ प्यारी होती है तो वह है ज़िंदगी. इसी ज़िंदगी को बचाने के लिए डॅाक्टर हर परिस्थिति का सामना करते हैं. मरीज और डाक्टर के बीच का रिश्ता भी वैसा ही होता है जैसे भगवान और इंसान का. जब सारी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं तो किसी भी इंसान को या तो भगवान से आस होती है. या फिर डाक्टर से. आज के समय में डाक्टर का मूल्य हर किसी को पता है. एक तरफ जहां वैश्विक महामारी कोरोना (Coronavirus Pandemic ) दुनिया भर को आंख दिखा रही है. तो दूसरी ओर इसी महामारी की आंख में आंख डालकर डाक्टर्स इसका सामना कर रहे हैं. खतरों का डटकर सामना करने वाले यह डाक्टर बतला रहे हैं कि वह अपनी जान पर खेलकर अपना फर्ज निभाने को हमेशा तैयार हैं. उसी डाक्टर को सम्मान देने के लिए हर साल एक जुलाई को नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors Day ) मनाया जाता है.

Doctors Day, Doctor, Coronavirus, Health, Lifeडॉक्टर डे की इन बातों के बीच हमारे लिए इस दिन के इतिहास को समझना भी बहुत जरूरी है

ये नेशनल डाक्टर्स डे की शुरूआत कब और कैसे हुयी और अन्य देशों में यह कब मनाया जाता है यह भी बेहद दिलचस्प है जिसे आपको ज़रूर जानना चाहिए.

कब हुई शुरुआत

भारत में पहली बार भारत सरकार की ओर से नेशनल डाक्टर्स डे वर्ष 1991 में मनाया गया था. तब से हर साल 1 जुलाई को नेशनल डाक्टर्स डे के रूप में ही मनाया जा रहा है. एक जुलाई का दिन इसलिए क्योंकि यह दिन भारत के महान डाक्टर बिधानचंद्र रॉय की जन्मतिथि और पुण्यतिथि का दिन है.

डाक्टर बिधानचंद्र रॉय का चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत ही अहम योगदान है जिसके लिए वर्ष 1961 में उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था. उन्हीं की याद में सन 1991 में भारत सरकार ने एक जुलाई को नेशनल डाक्टर्स डे के रूप में मनाने का ऐलान किया था.

कौन हैं डाक्टर बिधानचंद्र रॉय 

डाक्टर बिधानचंद्र राय का जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना जिले में हुआ था. उनकी मेडिकल की पढ़ाई कोलकाता में हुई उसके बाद वह लंदन चले गए और वहां एमआरसीपी और एफआरसीएस की उपाधि हासिल की. बताया जाता है कि उनको लंदन में भारतीय होने की वजह से दाखिला नहीं मिल पा रहा था लेकिन वह लगातार आवेदन करते रहे.

आखिर में 30 वीं बार की कोशिश में वह दाखिले पाने में कामयाब हो पाए. अपनी काबिलियत के चलते तीन साल के भीतर ही डॉक्टर राय ने फिजिशन और सर्जन की डिग्री एक साथ प्राप्त कर ली. डिग्री लेने के बाद वह भारत आ गए और सन् 1911 से अपने चिकित्सीय जीवन की शुरूआत की.

चिकित्सा के क्षेत्र में उनका खूब नाम हुआ जिसके लिए उन्हें सन 1961 में भारत रत्न से नवाजा गया. देश का सबसे बड़ा सम्मान पाने के अगले ही साल 1 जुलाई सन 1962 को 80 साल की उम्र में डा0 राय की मृत्यु हो गई.

राजनीति में भी कामयाबी के गाड़े झंडे

डा रॉय ने चिकित्सा के क्षेत्र में कामयाबी पाने के बाद अपनी दिलचस्पी राजनीति में दिखाई और सन 1923 में सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसे दिग्गज राजनेता और तत्कालीन मंत्री के विरुद्ध बंगाल-विधानपरिषद का चुनाव लड़ा और विजयी हुए. यहीं से राजनीति में डा रॉय का प्रवेश हो गया.

बेहद कम समय में ही डॉक्टर रॉय ने बंगाल की राजनीति में अपना चेहरा मजबूत बना लिया. बंगाल की राजनीति उन्हें इस कद्र भा गई कि 15 अगस्त 1949 को डॉक्टर रॉय को उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया पर उन्होंने स्वीकार नहीं किया.

1949 में ही वह बंगाल के स्वास्थमंत्री बनाए गए और उसी साल बंगाल के मुख्यमंत्री डॉक्टर प्रफुल्लचंद्र घोष के इस्तीफा देने के बाद वह मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो गए.

स्वतंत्रता सेनानी भी थे डॉक्टर रॉय

डॉक्टर रॉय चिकित्सा और राजनीति के साथ साथ स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुडे हुए थे. सन 1925 में डॉक्टर रॉय की मुलाकात राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से हुई जिसके बाद वह गांधीजी से बेहद प्रभावित हुए. इसके बाद कई मौकों पर वह गांधीजी के साथ रहे. गांधीजी के निजी डॉक्टर के रूप में भी कार्य किया जिसका लाभ डॉक्टर रॉय को राजनीति के जीवन में भी मिला.

भारत में तो नेशनल डाक्टर्स डे 1 जुलाई को मनाया जाता है लेकिन अन्य देशों में भी नेशनल डाक्टर्स डे कब मनाया जाता है इसको भी जानिए.

आस्ट्रेलिया - 30 मार्च

कुवैत - 3 मार्च

कनाडा - 1 मई

ईरान - 23 अगस्त

तुर्की - 14 मार्च

युनाइटेड स्टेट - 30 मार्च

नेपाल - 4 मार्च

ये भी पढ़ें -

Coronavirus outbreak: दिल्ली और मुम्बई में से कौन कितना गंभीर

Corona की 'दवा' कोरोनिल तो गुजरात में पहले से ही आ गई थी!

Patanjali Corona medicine controversy: गोली बाबाजी की है, विवाद तो लाजमी था

लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय