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Updated: 12 अप्रिल, 2020 04:32 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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मंदिरें बंद-मस्जिदें बंद, किसकी इबादत करें?

हुक्म है ये अब नहीं मजहबी सियासत करें.

ख़ुद ख़ुदा दिख जायेगा भगवान भी मौजूद है,

ग़रीबों की मदद में ही खुदा की ज़ियारत करें.

कोरोना (Coronavirus) की लाठी ने दुनिया को बहुत कुछ सिखाने की भी कोशिश की है. बताया है कि अलगाव और नफरत वाले किसी भी मजहब की कट्टरता में ना भगवान वास करता है और ना खुदा ऐसे मजहबी स्थलों म़ें बसता है. इंसानियत और संतुलन हर मजहब की पहली हिदायत है. जब सभी धर्मों के लोग इंसानियत (Humanity) और संतुलन के खिलाफ हो गये. कुदरत/प्रकृति साक्षात खुदा/भगवान/गॉड की क्रिएशन है. अफसोस कि दुनिया वाले इंसानियत, संतुलन और क़ुदरत के खिलाफ हो गये हैं. और मंदिर (Temple), मस्जिद (Mosque), गुरुद्वारे (Gurudwara) और चर्च (Church) में अपने-अपने अक़ीदे/आस्था की पूजा-इबादत में लगे हैं. बस इसलिए अल्लाह, भगवान या गॉड...सब मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च से बाहर निकल कर झोपड़पट्टी, छोटे घरों, और फुटपाथों पर जरूरतमंद बन कर बैठ गये हैं. अब इबादत/पूजा करनी हैं तो इन जरुरतमंदों की जरुरत पूरी करो. भूखों को खाना खिलाओ. और इस तरह नफरत और अलगाव से बाहर निकलकर संतुलन भी पैदा करो. यानी जिनके पास कुछ नहीं है उन्हें कुछ दो. ज्यादा दौलत वालों की दौलत का भी भार कम हो.

Coronavirus, Lockdown, Mosque, Templeमंदिर हों या मस्जिद कोरोना वायरस के चलते आस्था के सभी प्रमुख केंद्रों को बंद कर दिया गया है

इसी के साथ कोरोना के कहर से हम एक और गुनाह का प्राश्चित कर रहे हैं. हमनें पहाड़ काटे, जंगल काटे, एक-एक पेड़ और हरियाली काटने पर आमादा रहे. तरह-तरह के मांस का भोजन करने का हमें ऐसा शौक़ बढ़ता जा रहा है कि हम किसी भी, पशु, पक्षी यहां तक कीड़े-मकोड़े तक को नहीं छोड़ रहे हैं. पवित्र नदियों को गंदा करते जा रहे हैं. भौतिकता की दौड़ में मशीनों, फैक्ट्रियों, एयरकंडीशन.. इत्यादि के अलावा गाड़ियों के धुएं से हमने हवा में जहर घोलना जारी रखा है.

कोरोना की लाठी ने बता दिया कि ऐसे गुनाह किये बिना भी तुम जी सकते हो। या यूं कहिए कि जीने के लिए तुम्ह़े ये गुनाह कम करने होंगे. कोविड 19 का क़हर चीन तक सीमित रहता तो मान लेते कि सुप्रीम पॉवर यानी भगवान/गॉड/अल्लाह ने नास्तिकता को सबक सिखाया है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. कोविड 19 (कोरोना) ने विश्वव्यापी हर धार्मिक गतिविधियों पर विराम लगा दिया. बड़े-बड़े धार्मिक आस्थाओं के मरकज़ (केंद्र)बंद हो गये.

दुनिया का हर चर्च, गुरुद्वारा बंद है. दुनियाभर के मुसलमानों का काबा बंद है. हर इस्लामी अक़ीदे के मजहबी स्थल बंद. स्वर्ण मंदिर बंद. बाला जी का तिरुपति मंदिर बंद. सिरडी का साईं मंदिर बंद. वैष्णोदेवी और महाकालेश्वर भी बंद. सैकड़ों वर्षों तक विवाद के बाद अयोध्या में बहुप्रतीक्षित राम लला विराजमान हुए. भारतीय हिन्दुओं के लिए ये मौका और ये नवरात्रि कितना ख़ास था. किंतु नवरात्रि में राम लला के दर्शन के लिए अयोध्या के द्वार प्रवेश की इजाजत नहीं दे सके. लगने लगा कि धर्म-आस्था और इंसान के बीच रुकावटें डालने के लिए कोई महाशक्ति काम कर रही है.

इस्लाम का प्रमोशन और मुसलमानों को अपने धर्म के प्रति जागरूक करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी इस्लामी तब्लीगी जमात ही भारत में कोरोना वायरस फैलाने की विलेन की भूमिका में प्रचलित हो गई. कुछ लोग कहने लगे कि धर्म के खिलाफ प्रकृति का आक्रमण जारी है. तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं.

सवाल- नवरात्रि ग़ुज़र गई, शबेबरात भी सूनी रही. हमें कोरोना महामारी की दहशत में डालने वाला चाइना आखिर चाहता क्या है? क्या ये हम सब को अपने जैसा नास्तिक भी बना देगा. वायरस का ख़ौफ और इससे बचने के लिए हमने अपनी ज़िंदगी का ढर्रा ही बदल लिया. हम अपनी धर्म संस्कृति की सामूहिक और सामुदायिक परंपराओं से ही दूर हो गये.

जवाब- नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है. सच ये है कि चाइना सहित सारी दुनिया को क़ुदरत ने सबक़ सिखाने की एक छोटी सी कोशिश की है. अधर्मियों को भी और धर्म को गलत तरीके से समझने वालों को क़ुदरत सज़ा दे रही है. ये जानकर भी हम ये भूल जाते हैं कि सबका सबसे बड़ा धर्म 'मानवता' है. गरीब गरीब होता जाये और अमीर अमीर होता जाये ये असंतुलन भी कुदरत (प्रकृति) से छेड़छाड़ जैसा है.

इन तमाम बातों को महसूस करते हुए दुनिया के सम्पन्न लोग अपने-अपने धार्मिक स्थलों से महरूम होकर लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी और भुखमरी का शिकार जरुरतमंदों की मदद कर अस्ल इबादत में लग गये हैं. लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता सुशील दुबे बताते हैं कि वो नित्य तमाम मंदिरों में पूजा-पाठ और दर्शन किये बिना जी नहीं सकते थे.

लॉकडाउन शुरु होने के बाद से वो काफी दिनों से किसी मंदिर के पास से भी नहीं गुज़रे. गरीब मजदूरों की मजदूरी भी बंद है. उनके खाने-पीने के इंतजाम में उन्ह़े सबसे बड़ी पूजा-आराधना का भाव महसूस होता है. भूखे गरीब ज़रूरत मंदों में उनको भगवान, देवी-देवता नजर आते हैं. मंदिरें बंद हैं लेकिन बस्तियों में भगवान के दर्शन भी हो जाते हैं और प्रसाद भी चढ़ा देते हैं.

दुबे कहते हैं- इतनी आत्म संतुष्टि कभी किसी मंदिर में प्रसाद चढ़ाने से नहीं हुई, जो आज भूखे को भोजन कराने में जो सुकून मिलता है शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता. हर रोज भगवान के साक्षात दर्शन हो रहे हैं.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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