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Updated: 23 मार्च, 2020 09:29 PM
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कोरोनावायरस (Coronavirus) एक ऐसी बीमारी जिसने पूरे विश्व में जबरदस्त घमासान मचा रखा है. बीमारी कितनी खौफनाक है इसका अंदाजा WHO की उस गाइडलाइन से लगाया जा सकता है जिसमें इस बीमारी की आक्रामकता देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी का दर्जा दे दिया है. गुड़गांव की एक हाउसिंग सोसाइटी का एक वीडियो (Gurgaon Housing Society Corona Song) सोशल मीडिया पर खूब सुर्खियां बटोर रहा है. वायरल हुए इस वीडियो (Gurgaon Viral Video) में लोग एक साथ एक ही समय पर अपनी अपनी बालकनी पर खड़े होकर गायत्री मंत्र (Gayatri Mantra) और हम होंगे कामयाब गाते हुए नजर आ रहे हैं. लोगों का मानना है कि मंत्रों में वो शक्ति है जिससे खौफनाक से खौफनाक बीमारी के पांव हिलाए जा सकते हैं. ध्यान रहे कि जिस हिसाब से एक के बाद एक लोगों के मरने की ख़बरें आ रही हैं हालात विचलित करने वाले हैं. चूंकि बीमारी की कोई दवा अभी बाज़ार में नहीं आई है इसलिए परिस्थितियां कुछ ज्यादा ही जटिल मालूम देती दिखाई दे रही हैं.

Gurgaon, Viral Video, Balcony, Songs, India कोरोना से बचने का जो रास्ता गुड़गांव वालों ने निकाला है वो कमाल का है

कहावत है कि मुश्किल के क्षणों में व्यक्ति ईश्वर के ज्यादा करीब हो जाता है. इस मामले में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला है. बीमारी लोगों की चौखट तक न पहुंचे इसलिए पूरी दुनिया की एक बड़ी आबादी धार्मिक होती नजर आ रही है. इटली और स्पेन से ऐसे तमाम वीडियो हमारे सामने आ चुके हैं जिनमें हमने लोगों को अपने अपने अंदाज में भक्ति करते देखा है. भारत में भी कोरोना का असर है इसलिए भारतीय भी कहां पीछे रहने वाले थे. 

गुड़गांव का जो वीडियो आया है ये इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यहां हमें लोगों की एकता दिखाई दे रही है. वीडियो वाकई कमाल का है. वीडियो पर गौर करें तो ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति नहीं है कि जटिलताओं के इस दौर में आम लोगों ने साथ आकर ये सिद्ध कर दिया है कि जब कुछ नहीं होता है तब ख़ुदा या ये कहें कि ईश्वर होता है.

इंटरनेट पर वायरल हुए इस वीडियो की पूरी रूपरेखा विश्वास पर आधारित है. और ये विश्वास ही है जो मुश्किल वक़्त में लोगों को एक साथ लेकर आया है. ट्विटर पर ये वीडियो अच्लेंद्र कटियार ने पोस्ट किया है. कटियार के अनुसार गुरुग्राम के सेक्टर-28 में डीएलएफ फेस-4 स्थित हैमिल्टन कोर्ट सोसाइटी में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लोगों ने किया गायत्री मंत्र का जाप. निर्धारित समय पर सभी लोग बालकनी में आकर इस मुहिम में हुए शामिल.

गुड़गांव का ये वीडियो हमारे सामने हैं. इस वीडियो को देखकर कुछ मजेदार सवाल खड़े हो रहे हैं. खुद कल्पना करिए उस स्थिति की जब ऐसा ही कुछ मिलता जुलता नजारा हमारे आपके शहरों का हो. यानी तब क्या होगा जब ऐसा ही कुछ हम लखनऊ में देखें या फिर बैंगलोर के उन लोगों की प्रतिक्रिया क्या होगी जिनके घरों के सामने इस तरह का आयोजन हो रहा है.

भारत में तमाम शहर हैं. अगर उन शहरों में इस तरह का आयोजन हो जाए तो नजारा इसलिए भी ख़ास होगा क्योंकि हर शहर का अपना एक मिजाज होता है जो उस शहर के लोगों को भी प्रभावित करता है.

कहते हैं कि हर शहर का एक मनोविज्ञान है. इसलिए अगर ऐसा कुछ हम उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में देखें और वहां बालकनी पर खड़े लोगों को पहले आप शुरू करिए. नहीं, पहले आप शुरू करिए कहते सुनें तो हमें इस लिए भी हैरत में नहीं आना चाहिए क्योंकि, लखनऊ जाना ही जाता है अपनी तमीज और तहज़ीब के लिए.

इसी तरह तब उस वक़्त हमें हैरत नहीं होनी चाहिए जब हम किसी कनपुरिये को पूरी आस्था के साथ 'इतनी शक्ति हमें दे न दाता' का जाप करते सुनें. अरे भाई कानपुर का होने की शर्त गुटखा खाना और उसे इधर उधर थूकना हरगिज़ नहीं है. बिलकुल नहीं है. रहते हैं वहां वो लोग जो गुटखा नहीं खाते. 

बात बालकनी में खड़े होकर गाना गाने की हो रही है तो हमारी पूरी सहानुभूति उन लोगों के साथ है जो मुंबई में रहते हैं. वो क्या है न कि ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुंबई में लोगों के घरों में बालकनी नहीं होती.

अब सोचिये गाजियाबाद में रहने वाला कोई व्यक्ति अपनी बालकनी पर आए और कोरोना से बचने का गाना शुरू करे तो क्या होगा? सिंपल जवाब है उसका पड़ोसी उसे मना कर देगा नौबत पहले बहस फिर लड़ाई झगड़े की आ जाएगी और थाना पुलिस होगा.

इस मामले में सबसे सही पाकिस्तान वाले रहेंगे. अगर कोई पाकिस्तानी अपनी बालकनी पर खड़े होकर गाना गए तो फ़ौरन ही उसके पड़ोसी उसे ज्वाइन कर लेंगे और फिर ब्लास्ट होगा. घनघोर होगा. घमासान होगा.

बालकनी में खड़े होकर गाना गाने का सबसे सही मामला बैंगलोर और चेन्नई जैसे शहरों में होगा. पता चले कि कोई गाना गाने आए और ये कहता हुआ पाया जाए कि यार इस आदमी को तो मैं रोज़ सोसाइटी के बाहर वाली पान की दुकान पर सिगरेट पीते देखता था ये मेरा पड़ोसी है ? और साथ ही ये गाना हिंदी में क्यों गा रहा है ? क्यों नहीं इसने गाने के लिए तमिल या कन्नड़ भाषा का चुनाव किया. 

सबसे मजेदार किसी इंदौर वाले को बालकनी में खड़े होकर गाना गाते देखना होगा. वो बेचारा इसी गफलत में रहेगा कि पहले गाना गाया जाए या पोहा जलेबी खा लिया जाए.

हम लगातार इस बात को कह रहे हैं. बार बार इस बात को कह रहे हैं कि हर शहर का अपना मिजाज है. एक पूरा मनोविज्ञान शहर के लोगों के लिए काम करता है तो इस मामले में सबसे ज्यादा मुश्किल दिल्ली वालों को होने वाली है. पता चला कोई दिल्ली वाला अपनी बालकनी में आया और गाने का मुखड़ा गाते ही मर गया और पोस्ट मार्टम में आया कि मौत का एक बड़ा कारण दम घुटना और प्रदूषण है.

पुणे जैसे शहर में तो स्थिति और गंभीर होगी वहां लोगों के पास टाइम की इतनी ज्यादा कमी है कि किसी एक व्यक्ति का गाना सभी का गाना मान लिया जाएगा.

बहरहाल, कोरोना के इस दौर में जब सभी परेशान हों बालकनी में खड़े होकर गाना गुनगुनाना व्यक्ति के लिए कितना फायदेमंद होगा और साथ ही कौन कौन से शहर इस प्रथा का पालन करते हैं इसका पता तो हमें आने वाले दिनों में लग ही जाएगा. मगर जिस तरह सिर्फ एक बीमारी के चलते अलग अलग विचारधारा और पंथ के लोग साथ आए हैं वो इस लिए भी कमाल है क्योंकि यही हमारा देश है जो जाना ही जाता है अपनी विविधता और एकता के लिए.  

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