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Updated: 02 जून, 2018 05:39 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अपना बचपन याद कीजिए, और बताइए कि आपने अपनी गर्मियों की छुट्टियां कैसे बिताई थीं? हम सभी के जवाबों में बहुत सी चीजें कॉमन होंगी, जैसे- नानी के घर जाना, घूमने जाना, खेलना, वगैरह. कुल मिलाकर खुशनुमा छुट्टियां और होमवर्क की कोई टेंशन नहीं, क्योंकि वो तो स्कूल खुलने से एक दिन पहले ही किया जाता था.

पर जब हम अपने बच्चों की तरफ देखते हैं तो लगता है कि बच्चों को तो छुट्टियों में भी चैन नहीं. प्रोजेक्ट्स, एसाइनमेंट्स जैसे तमाम भारी भरकम शब्दों के बोझ के तले दबे बच्चे अक्सर छुट्टियों में भी बिजी और स्ट्रेस्ड रहते हैं. और तो और पेरेंट्स पर भी होमवर्क पूरा करवाने का अच्छा खासा दबाव होता है. बच्चे न करें तो मां-बाप करते हैं, मगर पूरा करना है, चाहे जैसे भी हो...क्योंकि इसके नंबर भी रिजल्ट में जुड़ते हैं.

चेन्नई के एक स्कूल ने अपने बच्चों को छुट्टियों का जो एसाइनमेंट दिया वो पूरी दुनिया में वायरल हो रहा है. वजह बस इतनी कि उसे बेहद सोच समझकर बनाया गया है. इसे पढ़कर अहसास होता है कि हम वास्तव में कहां आ पहुंचे हैं और अपने बच्चों को क्या दे रहे हैं. अन्नाई वायलेट मैट्रीकुलेशन एंड हायर सेकेंडरी स्कूल ने बच्चों के लिए नहीं बल्कि पेरेंट्स के लिए होमवर्क दिया है, जिसे हर एक पेरेंट को पढ़ना चाहिए.

holiday homework

उन्होंने लिखा-

पिछले 10 महीने आपके बच्चों की देखभाल करने में हमें अच्छा लगा.आपने गौर किया होगा कि उन्हें स्कूल आना बहुत अच्छा लगता है. अगले दो महीने उनके प्राकृतिक संरक्षक यानी आप उनके साथ छुट्टियां बिताएंगे. हम आपको कुछ टिप्स दे रहे हैं जिससे ये समय उनके लिए उपयोगी और खुशनुमा साबित हो.

- अपने बच्चों के साथ कम से कम दो बार खाना जरूर खाएं. उन्हें किसानों के महत्व और उनके कठिन परिश्रम के बारे में बताएं. और उन्हें बताएं कि उपना खाना बेकार न करें.

- खाने के बाद उन्हें अपनी प्लेटें खुद धोने दें. इस तरह के कामों से बच्चे मेहनत की कीमत समझेंगे.

- उन्हें अपने साथ खाना बनाने में मदद करने दें. उन्हें उनके लिए सब्जी या फिर सलाद बनाने दें.

- तीन पड़ोसियों के घर जाएं. उनके बारे में और जानें और घनिष्ठता बढ़ाएं.

- दादा-दादी के घर जाएं और उन्हें बच्चों के साथ घुलने मिलने दें. उनका प्यार और भावनात्मक सहारा आपके बच्चों के लिए बहुत जरूरी है. उनके साथ तस्वीरें लें.

- उन्हें अपने काम करने की जगह पर लेकर जाएं जिससे वो समझ सकें कि आप परिवार के लिए कितनी मेहनत करते हैं.

- किसी भी स्थानीय त्योहार या स्थानीय बाजार को मिस न करें.

- अपने बच्चों को किचन गार्डन बनाने के लिए बीज बोने के लिए प्रेरित करें. पेड़ पौधों के बारे में जानकारी होना भी आपके बच्चे के विकास के लिए जरूरी है.

- अपने बचपन और अपने परिवार के इतिहास के बारे में बच्चों को बताएं.

- अपने बच्चों का बाहर जाकर खेलने दें, चोट लगने दें, गंदा होने दें. कभी कभार गिरना और दर्द सहना उनके लिए अच्छा है. सोफे के कुशन जैसी आराम की जिंदगी आपके बच्चों को आलसी बना देगी.

- उन्हें कोई पालतू जावनर जैसे कुत्ता, बिल्ली, चिड़िया या मछली पालने दें.

- उन्हें कुछ लोक गीत सुनाएं.

- अपने बच्चों के लिए रंग बिरंगी तस्वीरों वाली कुछ कहानी की किताबें लेकर आएं.

- अपने बच्चों को टीवी, मोबाइल फोन, कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से दूर रखें. इन सबके लिए तो उनका पूरा जीवन पड़ा है.

- उन्हें चॉकलेट्स, जैली, क्रीम केक, चिप्स, गैस वाले पेय पदार्थ और पफ्स जैसे बेकरी प्रोडक्ट्स और समोसे जैसे तले हुए खाद्य पदार्थ देने से बचें.

- अपने बच्चों की आंखों में देखें और ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने इतना अच्छा तोहफा आपको दिया. अब से आने वाले कुछ सालों में वो नई ऊंचाइयों पर होंगे.

माता-पिता होने के नाते ये जरूरी है कि आप अपना समय बच्चों को दें.

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अगर आप माता-पिता हैं तो इसे पढ़कर आपकी आंखें नम जरूर हुई होंगी. और आखें अगर नम हैं तो वजह साफ है कि आपके बच्चे वास्तव में इन सब चीजों से दूर हैं. इस एसाइनमेंट में लिखा एक-एक शब्द ये बता रहा है कि जब हम छोटे थे तो ये सब बातें हमारी जीवनशैली का हिस्सा थीं, जिसके साथ हम बड़े हुए हैं, लेकिन आज हमारे ही बच्चे इन सब चीजों से दूर हैं, जिसकी वजह हम खुद हैं.

हम अच्छे स्टूडेंट तो थे लेकिन मां-बाप फेल हैं

आजकल का समय ऐसा है कि पिता के साथ-साथ माएं भी कामकाजी हैं, जिसकी वजह से बच्चों को पूरा समय नहीं दे पाते. ऐसे में बच्चे और पेरेंट्स सिर्फ रात के खाने पर ही एकसाथ आ पाते हैं. बाकी समय टीवी, स्मार्ट फोन्स, टैब्स और कंप्यूटर खा जाता है जिसके बिना आज किसी का काम नहीं चलता चाहे बच्चे हों या फिर उनके मां-बाप. नतीजा ये कि न तो बच्चे बाहर जाकर खेलना पसंद करते हैं और न ही पेरेंट्स बच्चों के साथ बाहर जाते हैं. हां शॉपिंग मॉल्स में जरूर जाते हैं. आज के माता-पिता बच्चों को लेकर ज्यादा ही सोचते हैं या कहें कि ओवर प्रोटेक्टेड रहते हैं, जिसकी वजह से वो उन्हें किसी तरह का रिस्क नहीं लेने देते, न ही घर में उनसे काम लेते हैं, जो वास्तव में उनके विकास के लिए बेहद जरूरी है.

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पहले तो रोजमर्रा की जरूरत की चीजें बच्चे ही दुकानों से ले आया करते थे. तो हिसाब किताब में भी खुदबखुद परफेक्ट हो जाते थे. पर आज ज्यादातर घरों में ऐसा नहीं होता. सोसाइटी में रहने वाले परिवार अकेले ही रहना पसंद करते हैं, आस-पड़ोस में कौन रहता है उसमें किसी की कोई रुचि नहीं. जबकि हमारे जमाने में पूरे मोहल्ले के चाचा- चाचियों के नाम तक याद होते थे. पहले नानी के घर जाना साल की अनिवार्य चीजों में शामिल होता था, पर आज वर्किंग पेरेंट्स और न्यूकलियर फैमली होने से बच्चे न तो नाना नानी और न दादा दादी के पास जी भरकर रह पाते हैं. 

तो आज के समय में छुट्टियां तो वैसी ही होती हैं, लेकिन छुट्टियों में मिलने वाला होमवर्क बदलने लगा है. कभी नहीं सोचा था कि वो दिन भी आएगा कि हमारे बच्चों को इस तरह का होमवर्क दिया जाएगा, जो वास्तव में उनका हक है और उन्हें देने के लिए स्कूल की तरफ से माता-पिता को समझाइश दी जा रही है. ये सिर्फ एक स्कूल है जिसने ये काम किया है लेकिन देश के सभी स्कूलों में ये एसाइनमेंट अनिवार्य रूप से लागू होने की सख्त जरूरत है, क्योंकि ये नहीं करेंगे तो बच्चे भले ही पास हो जाएंगे लेकिन मां-बाप फेल ही कहलाएंगे.

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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