New

होम -> समाज

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 06 नवम्बर, 2020 02:50 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
  • Total Shares

बांग्लादेश में जिन लड़कों ने माइनॉरिटी (Bangladesh Minorities) के घरों पर हमला किया था, मोहल्ले के मंदिर तोड़े थे, फेसबुक पोस्ट का समर्थन नहीं करना चाहिए ऐसा सबक सिखाया था; उनपर तुरत-फुरत एक्शन लेकर प्रशासन ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है. इतना ही नहीं, उनकी सज़ा भी मुकर्रर हो गयी है. इसे कहते हैं न्याय कानून इन स्पीड. बस ये न पूछना कितनी सज़ा? क्योंकि डेढ़ साल को 1.5 साल लिखना है या 1.6, मैं ये सोच कंफ्यूज़ जाऊंगा. 15 मंदिर तोड़ने, 100 से ज़्यादा मकान लूटने और 5 या 6 मकानों में आग लगाने के बाद मोबाइल अदालत ने सख़्ती बरतते हुए डेढ़ साल प्रत्येक की लम्बी सज़ा दी है. न्याय की बांछें खिल गयी हैं. सूत्रों से पता चला है कि न्याय की देवी ने तराजू ज़मीन पर रखा और घण्टों अपनी पीठ थपथपाती रही. किसी प्रकार के कोई मुआवज़े की बात नहीं मिली है. हां, आरोपियों को इतनी नसीहत ज़रूर दी गयी है कि "दोबारा ऐसा नहीं करना, गन्दी बात होती है न?' आरोपियों ने मुंडी हिलाकर हांजी भी कहा होगा, मुझे पूरी उम्मीद है.

मेरी छठी क्लास में एक छः फिट का लड़का था सिकंदर, वो बस तीन बार फेल हुआ था, उसकी आदत थी कि पेन फाइटर खेलते वक़्त 'छोटे' बच्चों का पेन छीन लिया करता था और अक्सर खेलने-फेंकने-पटकने में पेन टूट जाते थे. क्लास टीचर डिंपल मैडम उसे डांटती थीं 'क्यों किया ऐसा? क्लासरूम खेलने के लिए होता है?' फिर मैडम कहतीं 'जाओ क्लास से बाहर खड़े हो जाओ', वो हो जाता और मज़े से बाहर निकलते बढ़ते बच्चों से बातें करता, पीरियड ख़त्म होने पर दूसरी क्लास में जाती मैडम ताक़ीद करती थीं 'दोबारा ऐसी ग़लती नहीं होनी चाहिए सिकंदर'

Bangladesh, Minority, Hindu, Muslim, France, Prophet Mohammadबांग्लादेश में कुछ यूं अल्पसंख्यकों की संपत्ति को निशाना बनाया गया है बांग्लादेश में कुछ यूं अल्पसंख्यकों की संपत्ति को निशाना बनाया गया है

जवाब मिलता 'नहीं होगी मैम.' जाओ अंदर बैठो. सिकंदर बैठ जाता और फिर पेन फाइटर खेलने लगता. 

बांग्लादेश की भी अपनी मजबूरियां हैं. घर जलाया ग़लत किया, लूट लिया वो और ज़्यादा ग़लत किया, आख़िर लूट का हिस्सा नामक भी तो कोई चीज़ होती है कि नहीं? प्रशासन को मज़ाक समझते हैं ये उपद्रवी.15 मंदिर टूटे चलो कोई नहीं, हिन्दुस्तान में 28 साल पहले 1 मस्जिद भी तो तोड़ी थी, कोई पूछेगा तो हम उसमें एडजस्ट करवा देंगे. लेकिन पीड़ित को भी तो फ्रांस राष्ट्रपति के समर्थन में पोस्ट नहीं करनी चाहिए थी न, उसे भी सोचना था कि बहुसंख्यकों की भावनाएं हैं, आहत हो जायेंगी तो क्या होगा?

न्यायालय ने निष्पक्ष रूप से दोनों पार्टीज़ को संतुष्ट कर दिया है. तुम जाओ 18 महीने मुफ्त की रोटी तोड़ो, और तुम? तुम आइन्दा से ये सब पोस्ट न करना, और घर में अग्निशमक क्यों नहीं रखते हो भाई? रखा करो. आग-वाग लगे तो बुझा लिया करो, प्रशासन तुम्हारे साथ है, हिम्मत रखो और थोड़ा डर के रहो. चिल ब्रो.

बांग्लादेश में तो फिर भी मामला फ्रांस और हिन्दू मुस्लिम के बीच झूल रहा था जो भावनाओं ने आहत हो नौजवानों को घर जलाने पर मजबूर किया. हाल ही में अफगानिस्तान में हुआ हमला तो मुस्लिम ने मुस्लिम पर ही किया है. सदी पुरानी यूनिवर्सिटी पर ये तीसरा हमला है, इस बार 25 लोग जन्नत गए हैं जिसमें 19 बच्चे/स्टूडेंट हैं.

ये शियाओं का गुस्सा सुन्नीज़ पर निकला है. मोदी जी कह रहे हैं हम आतंकवाद के ख़िलाफ़ और अफ़ग़ानों के साथ हैं, बताओ क्या करना है? अफ़ग़ानिस्तान क्या बताए? अब तक किसी आतंकी संगठन ने हमले की ज़िमम्मेदारी ही नहीं ली.

ये भला कोई बात हुई?

विश्व भर में सबसे ज़्यादा वादे नेता करते हैं लेकिन सबसे ज़िमम्मेदार कोई है तो वो आतंकी संगठन हैं. ये ऐसी फटाफट ज़िम्मेदारी लेते हैं जैसी एक आम बाप अपने घर के ख़र्चों की न ले पाता होगा. बम में टाइमर लगाकर फटने से कहीं पहले ज़िम्मेदारी लेने वाला वीडियो बन चुका होता है, अच्छे क्वालिटी एडिटर से उसे एडिट कराया जाता है, साउंड लाइट का विशेष ध्यान रखा जाता है. फिर एचडी क्वालिटी में वीडियो रिलीज़ होती है, सब ताली बजाते हैं, मेरा ऑफिस मैनेजर एक रोज़ कहता है 'सीखो सिद्धार्थ, जैश-ए-मोहम्मद से सीखो, कुछ भी तोड़ फोड़ करते हैं तो तुरंत बिना पूछे ज़िमम्मेदारी लेते हैं, एक तुम्हारी टीम है, परसों प्रिंटर का ढक्कन टूटा, लाख पूछने पर भी कोई न बोला कि हांजी मैंने तोड़ा.'

जवाब तो मेरे पास था कि 'स्टाफ कुछ टूटने-'फूटने' की ज़िमम्मेदारी लेगा तो उसकी सैलरी से पैसा कटेगा, वहीं जैश को ज़िमम्मेदारी लेने पर फंड मिलेगा, फ़र्क़ तो है' फिर भी, मानता हूं कि जिम्मेदारी लेना हौसले का काम है, पैसा सेकेंडरी है. लेकिन इधर अफ़ग़ानिस्तान हमले में कोई ले ही नहीं रहा, कतई ग़ैर-ज़िमम्मेदार हो रहे हैं ये लोग, सब ग्लोबल वॉर्मिंग का असर लगता है. आतंकियों में नेताओं वाले लच्छन नज़र आने लगे हैं.

उधर बांग्लादेश का न्याय आंखों में आंसू ले आता है, इधर अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर-ज़िमम्मेदार आतंकियों को देख अफ़सोस होता है वहीं जब अपने कट्टर हिन्नु शेरो को लक्ष्मी या केबीसी पर बॉयकॉट-बॉयकॉट खेलते देखता हूं, तो लगता है कि चलो कुछ ही सही उम्मीद तो इधर भी बन रही है, क्रांति आंटी यहां भी खिल रही हैं. आपने धमाल देखी है? हांजी वही जावेद जाफरी वाली. उसमें 'मानव' पेड़ से लटकते हुए कहता है न 'ए आदी, ये शेर स्लोवली स्लोवली बड़ा हो रहा है.'

हमारा कट्टर हिन्नु शेर भी स्लोवली स्लोवली बड़ा हो रहा है. देखो कबतक वयस्क हो सकेगा.

ये भी पढ़ें -

फ्रांस विरोध में कट्टरपंथ का लबादा ओढ़कर इन बच्चों ने तो कठमुल्लाओं के कान काट दिए हैं!

पैगंबर मोहम्मद पर कूड़ा फेंकने वाली बुढ़िया के साथ क्या सुलूक हुआ था, भूल गए?

Freedom Of Speech का सबसे वीभत्स चेहरा तो शायर मुनव्वर राणा निकले!

लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय