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Updated: 15 अक्टूबर, 2020 10:59 PM
मशाहिद अब्बास
मशाहिद अब्बास
 
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'सपने वो नहीं होते जो हम सोते हुए देखते हैं बल्कि सपने तो वो होते हैं जो हमें सोने ही न दे.' इस वाक्य को बोलने वाले इंसान ने न सिर्फ ये कहा है बल्कि इसे अपने जीवन में उतारा भी है. आज उसी व्यक्ति की जयंती पर इस बात की चर्चा करते हैं कि कैसे ख़्वाब देखकर उसे पूरा किया जाता है ये कोई उनकी जिंदगी से कैसे सीख सकता है. हम बात कर रहे हैं देश के पूर्व राष्ट्रपति (Ex President) और देश के श्रेष्ठ वैज्ञानिक अब्दुल कलाम की. तमिलना़डु के रामेश्वरम में 15 अक्टूबर को जन्में डा कलाम का परिवार पेशे से नाविक था, उनका मुख्य कार्य नाव बना कर मछुवारों को किराये पर देने का था. डा कलाम ने उऩ्हीं इलाकों में हवाओं में उड़ने का ख्वाब देखा, वह बड़े होकर पायलट बनने का सपना पाले हुए थे. लेकिन उनकी परिस्थितियां ऐसी थी की ये ख्वाब महज एक ख्वाब मालूम पड़ता था. स्कूल में पढ़ाई के साथ साथ डा कलाम अखबार बेचने का काम भी करने लगे. अब उस वक्त किसने सोचा रहा होगा कि यही बच्चा एक दिन अखबार के हर पन्नों में छाया होगा. पढ़ाई के लिए आगे बढ़ने में रूकावटें हज़ार थी लेकिन डा कलाम हार मानने वालों में से कहां थे.

APJ Abdul Kalam, President, Birthday, Scientist, Science, Musalmanबच्चों और छात्रों से बहुत प्यार करते थे पूर्व राष्ट्रपति कलाम

मात्र 1 हज़ार रूपये की फीस भरने के लिए डा कलाम ने अपनी बहन के गहने तक गिरवी रख दिए थे. डा कलाम ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने ख्वाब पूरे करने के लिए एयरफोर्स में इंटरव्यू के लिए गए जहां उन्हें निराशा हाथ लगी. कहा जाता है कि सेलेक्शन मात्र 8 लोगों का होना था और डा कलाम का स्थान नौंवा था. डा कलाम हार मानने वालों में से कहां थे वह दिल्ली आ गए और वैज्ञानिक बन गए. उनका मासिक वेतन मात्र ढ़ाई सौ रुपये ही था. अपनी मेहनत अपनी लगन के बदौलत डा कलाम आगे बढ़ते गए. वह नासा गए और वहां से लौटकर भारत के लिए पहला राकेट तैयार कर दिया.

समाज के हर वर्ग के लोगों को अब्दुल डा कलाम के जीवन से प्रेरणा लेने की ज़रूरत है. संघर्ष भरी ज़िंदगी, विफलताओं के मौके आने के बावजूद हिम्मत और बहादुरी से आगे बढ़ने वाले डा कलाम ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा था. वैज्ञानिक जब तक रहे तब तक देश की तरक्की के लिए काम किया और जब राष्ट्रपति बन गए तो जनता के लिए क्या बेहतर हो सकता है हमेशा इसकी बात की. जीवन के अंतिम पलों में भी वह देश की तरक्की की बातें ही कर रहे थे.

बच्चों से लगाव हरेक से मिलनसार तरीके से मिलना उनकी पहचान को और बढ़ावा देती थी. धर्म, जाति, संस्कृति, उम्र, समाज, परिवार, रिश्तेदार सब उनके लिए एक शब्द था जिसे वह अपने जीवन पर कभी नहीं उतारते थे. प्रेम उनका धर्म, कर्म उनकी जाति, देश उनका परिवार, और देश के लोग उनकी संस्कृति थे. आज हरेक भारतवासी कामना करता है कि डा कलाम जैसा सपूत भारत की धरती पर बारमबार जन्म ले. उनसे नफरत करने वाला इंसान शायद ही कोई हो.

डा कलाम का जीवन अगर देखा जाए तो वह एक पाठशाला है जिसका पाठ हर इंसान को करना चाहिए और कामयाबी, ईमानदारी, मेहनती, और सच्चे रास्ते पर चलने का हुनर सीख सके. डा कलाम में सिर्फ शिक्षा या सेवा का ही गुण नहीं था बल्कि उनका स्वाभाव भी उन्हें एक सच्चा और इमानदार बनाता था. वह राष्ट्रपति बनने के बाद भी अपने जूते बनाने वाले दोस्त और ढ़ाबा मालिक को नहीं भूले थे. वह खर्च करने से भी परहेज करते थे.

न तो मंहगे पोशाक का शौक न ही घूमने की ललक, यही वजह थी की वह अपनी पूरी तनख्वाह दान कर देते थे. उनका मानना था कि वह राष्ट्रपति हैं अब उनके मरने तक सरकार उनका ध्यान रखेगी इसलिए मुझे कुछ जुटाने की ज़रूरत नहीं है. आमतौर पर लोग जब फ्री होते हैं तो वह विश्व की खूबसूरत जगहों का भ्रमण करने की योजना तैयार करते हैं लेकिन डा कलाम जब फ्री होते थे तो वह बच्चों के साथ होते थे. वह बच्चों को सिखाते थे और उन्हें आगे बढ़ने के टिप्स देते थे.

डा कलाम के किस्से हज़ारों हैं जिनका जिक्र एक पूरी किताब में भी नहीं किया जा सकता है, डा कलाम. एक वक्त डा कलाम नहीं थे. वो पल पल डा कलाम थे. उनका हर लम्हा हर कार्य एक प्रेरणा देता है. उनका सबसे खास वाक्या अगर कहना हो तो वह उनके संस्थान डीआरडीओ का ही है. उनका एक जूनियर वैज्ञानिक उनके पार आया और कहने लगा सर आज मुझे जल्दी छुट्टी चाहिए मैंने अपने बच्चों से वादा किया है कि मैं उन्हें प्रदर्शनी घुमा कर लाउंगा.

कहते हैं कि वह वैज्ञानिक काम में मशगूल होकर यह बात भूल गया. रात जब घर पहुंचा तो उसे मालूम चला कि डा कलाम तय वक्त पर उसके घर पहुंच गए थे और उसके बच्चों को प्रदर्शनी घुमा लाए थे. डा कलाम का स्वाभाव सिर्फ इंसानों के साथ ही नहीं बल्कि जानवरों के साथ भी वैसा ही था. एक बार डीआरडीओ में सुरक्षा के चलते एक प्रस्ताव आया कि संस्थान के चारों ओर की दीवारों पर कांच के टुकड़े लगा दिए जाएं ताकि सुरक्षा गहरी हो सके.

डा कलाम ने इससे फौरन असहमति ज़ाहिर कर दी, उनका कहना था कि अगर ऐसा होगा तो दीवार पर पक्षियां नहीं बैठ पाएंगी और अगर बैठेंगी तो घायल हो जाएंगी हमें उनकी फिक्र करनी चाहिए.कलाम की ये बातें सुनकर लगता है कि वह व्यक्ति किस स्वभाव का रहा होगा और हमें फख्र हैं कि वह भारत का बेटा था और भारत के सर्वोच्च पद तक पहुंचा जिसका वह हकदार था.

आज के दौर में ऐसे इंसानों का जीवन हमें प्रेरणा देता है और अपने स्वभाव को भी उनके जैसा बनाने के लिए प्रेरित करता है. डा कलाम की यादें भारत के इतिहास के पन्नों में सदैव जीवित रहने वाली है. उनके जीवन के किस्सों के बारे में बच्चों को अधिकतर सुनाए और बताए जाने की ज़रूरत है. बच्चे उनके जीवन से काफी कुछ सीख ले सकते हैं.

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लेखक

मशाहिद अब्बास मशाहिद अब्बास

लेखक पत्रकार हैं, और सामयिक विषयों पर टिप्पणी करते हैं.

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