कश्मीर की ये फुटबॉलर अब पत्थरबाज़ नहीं है...
अफ्शान की वो तस्वीर जम्मू-कश्मीर के युवाओं की हताशा का प्रतीक थी, जो कई अखबारों, वेबसाइटों और टेलीविजन चैनलों का हिस्सा बन गई थी. उस घटना के आठ महीने बाद भी आज अफ्शान कहती हैं कि वो गलत था, लेकिन...
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अफ़्शान आशिक, एक पत्थर पेल्टर से बनी जम्मू-कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान ने कहा, 'मेरी राष्ट्रीयता भारतीय है यदि कुछ लोग सहमत नहीं हैं, तो उनकी समस्या है 'अफ्शान आशिक इस साल अप्रैल में राष्ट्रीय सुर्खियों में थीं जब उनकी जम्मू-कश्मीर पुलिस पर पत्थर फेंकने की तस्वीरें वायरल हुई थीं. आज, वह जम्मू-कश्मीर महिला फुटबॉल टीम की कप्तान और गोलकीपर हैं. वह मानती हैं कि पत्थर फेंकने वाली घटना पर खेद है परन्तु उसको भूल कर जिंदगी में आगे बढ़ना चाहती हैं और उनका एकमात्र सपना है भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल में प्रतिनिधित्व करना.
अफ्शान की वो तस्वीर जम्मू-कश्मीर के युवाओं की हताशा का प्रतीक थी, जो कई अखबारों, वेबसाइटों और टेलीविजन चैनलों का हिस्सा बन गई थी. उस घटना के आठ महीने बाद भी आज अफ्शान कहती हैं कि वो गलत था, लेकिन इसके लिए कोई आत्मग्लानि नहीं है क्योंकि उन्होंने जो भी किया वो अपनी टीम के साथियों की रक्षा के लिए किया.
अफ्शान की विरोध प्रदर्शन की वह तस्वीर 12 अप्रैल की है जब सुरक्षा बलों और पुलवामा डिग्री कॉलेज के छात्रों के बीच तनाव की स्थिती बन गई थी.
अफ्शान का कहना है कि वह और उनकी टीम विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे. "मैंने पत्थर फेंकना तब शुरू किया, जब मेरी टीम को पीटा गया, दुर्व्यवहार किया गया और उनकी गरिमा को कुचला गया. मुझे इस तरह विरोध प्रदर्शन करने का खेद है, लेकिन मेरी टीम की लड़कियों का बचाव करने में कोई आत्मग्लानि नहीं है. यदि आवश्यक हो तो मैं अपनी टीम का फिर से बचाव करूंगी, " अफ्शान ने कहा.
6 दिसंबर को, अफ्शान ने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की और जम्मू-श्मीर में खेल सुविधाओं की कमी के बारे में बात की. अफशान को धैर्यपूर्वक सुनने के बाद, राजनाथ सिंह ने मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती को फोन किया और राज्य में खेल की बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने में समर्थन दिया.
अफ्शान, जो अपनी टीम के लिए 24 फुट लंबी और 8 फुट के गोल पोस्ट की गोलकीपिंग करतीं हैं, उनका कहना है कि कश्मीर घाटी में बहुत प्रतिभाशाली युवा हैं, बस उनको एक अवसरवादी मंच की जरूरत है. वह मानती हैं कि उनके जीवन और कैरियर ने पत्थर फेंकने वाली घटना से एक उल्लेखनीय यू-टर्न लिया जब उनकी तस्वीर राष्ट्रीय मीडिया में एक पत्थर पेल्टर के रूप में प्रकाशित हुई. लेकिन अब अफ्शान के वहीं हांथ पत्थर फेंकने के लिए नहीं बल्कि गोलपोस्ट में बॉल को रोकने का काम करते हैं.
वह जम्मू-कश्मीर के एक बहुत रूढ़िवादी परिवार से हैं. उनके पिता ने शुरू में उन्हें फुटबॉल खेलने की अनुमति नहीं दी थी. परन्तु, वह अपनी इच्छा पूरी करने के लिए अडिग थीं, और पिता को खेलने देने के लिए मना ही लिया. वह कहती हैं कि लोगों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
बचपन से ही अफ्शान का खेल के प्रति झुकाव रहा है और धीरे-धीरे फुटबाल की ओर आकर्षित होती चली गयीं. वह अब 5 साल से फुटबल खेल रही हैं. यह उनके अच्छे कद के कारण कोच ने गोलकीपर बनने का सुझाव दिया. उनका मानना है कि गोलकीपर टीम की रीढ़ है. कभी-कभी, जब उन्हें लगता है कि विपक्ष टीम खेल में हावी हो रही है तब वह गोलकीपिंग छोड़ कर आगे बढ़ जाती हैं और फॉरवर्ड खिलाड़ी के रूप में खलने लग जाती हैं.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए खेलने का उनका सपना पूरा करने के लिए, वह जम्मू-कश्मीर से बाहर निकल गई हैं और अभी मुंबई में प्रशिक्षण ले रही हैं.
सोशल मीडिया ने उन्हें मुंबई क्लब में एक जगह दिलाने में में मदद की है. एक दिन उसे क्लब से संदेश मिला कि वे एक गोलकीपर की तलाश में थे और उन्होंने आसानी से इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया.
अफ्शान, अमेरिकी टीम की कप्तान और गोलकीपर होप सोलो को अपनी प्रेरणा मानती हैं.
अफ्शान से जुड़ी जिंदगी की कहानी बॉलीवुड जगत में इतनी रुचि उत्पन्न हुई है कि अब निर्देशक मनीष हरिशंकर ने उनके एक जीवनचरित्र पर फिल्म बनानी शुरू कर दी है.
अफ्शान का मानना है कि कश्मीर में जमीनी और राजनीतिक हालात के बावजूद, वह एक भारतीय हैं और श्रीनगर में भारतीय जर्सी निडरता से पहनती हैं. वह कहती हैं, "मेरी राष्ट्रीयता भारतीय है और यदि कुछ लोग सहमत नहीं हैं, तो वह उनकी समस्या है, और मुझे कश्मीर में भारतीय जर्सी पहनने से कोई नहीं रोक सकता है.”
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