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Updated: 01 दिसम्बर, 2016 08:44 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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एड्स जागरूकता और हनुमान चालीसा के पाठ के बीच क्या ताल्लुक है? क्या सिर्फ हिंदू ही एड्स से ग्रसित होते हैं? माथा घूम गया? बिलकुल ऐसा ही हुआ जब बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पर सुनवाई शुरू हुई - और खुद जजों ने ये सवाल उठाये.

हनुमान चालीसा क्यों?

दरअसल, नागपुर नगर निगम एक स्थानीय मंदिर ट्रस्ट के साथ मिलकर एड्स जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन करने वाला है, जहां कार्यक्रम के दौरान हनुमान चालीसा के पाठ का प्रोग्राम है. खास बात ये है कि नागपुर नगर निगम में बीजेपी का बोलबाला है.

वैसे हाईकोर्ट ने नगर निगम से एक और सवाल किया, "सिर्फ हनुमान चालीसा का पाठ ही क्यों, कुरान, बाईबल या दूसरे धार्मिक ग्रंथों का क्यों नहीं?" पिछले महीने ही एक खबर आई थी. घाना में सलावातिया मुस्लिंम मिशन के नेता शेख इमाम रशीद ने दावा किया कि जो भी मरीज एचआईवी या एड्स से जूझ रहा है - उनका इलाज महज 24 घंटे में मुमकिन है, वो भी सिर्फ और सिर्फ कुरान में. रशीद ने बताया कि ये इलाज बेहद आसान और पूरी तरह सफल भी है.

इसके साथ ही बॉम्बे हाई कोर्ट ने साफ किया कि वो किसी धर्म से जुड़े कार्यक्रम के खिलाफ नहीं हैं और उनकी चिंता सिर्फ इस बात को लेकर है कि सरकारी एजेंसियों को किसी धर्म के कार्यक्रम से नहीं जुड़ना चाहिए.

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कोर्ट ने एड्स जागरुकता कार्यक्रम और हनुमान चालीसा पाठ के बीच कम से कम एक घंटे का अंतर रखने की हिदायत दी है. कोर्ट ने दोनों कार्यक्रमों के लिए अलग-अलग बैनर लगाने को भी कहा, जिन पर उनके आयोजकों के नाम हों. कोर्ट ने कहा कि कार्यक्रम का अच्छे से हो लेकिन इसमें हनुमान चालीसा पाठ का जिक्र न हो.

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बस रामबाण...

सोशल मीडिया पर लोगों ने अपने अपने हिसाब से अपनी बात रखी है. एक टिप्पणी में इसे ब्रह्मचर्य से जोड़ा गया है. असल में हिंदू मान्यता में हनुमान को ब्रह्मचर्य से जुड़ा देवता माना जाता है. ऐसे लोगों की राय है कि शादी से पहले (...और शायद तलाक के बाद भी!) ब्रह्मचर्य की प्रैक्टिस की जाए तो एड्स से बचा जा सकता है.

डर के आगे जीत!

इस वाकये से एक घटना याद आ गई. बीस साल पहले की बात होगी. बनारस में एक व्यक्ति के यहां इलेक्ट्रिक फैन में इस्तेमाल होने वाले मोटर वाइंडिंग का काम होता था. पंखे बनाने वाली कंपनी कॉपर वायर सहित सभी जरूरी सामान भिजवाती थी. एक दिन कॉपर वायर का एक बंडल गायब हो गया. हर किसी को वहां काम करनेवाले एक ही लड़के पर शक था. दिलचस्प बात ये थी कि वो लड़का भी खोज बिन में बराबर हिस्सा ले रहा था. घर का कोना कोना छान मारा गया - कहीं कुछ पता न चला. फिर उसी लड़के ने एक मौलवी की मदद लेने का सुझाव दिया.

जब लोग मौलवी के पास पहुंचे तो उसने बैठने का इशारा किया. एक बड़े से कमरे में 50 से ज्यादा लोग बैठे हुए थे. कुछ देर बाद मौलवी ने एक नींब और एक सूई लाने को कहा. सामान बेचनेवाला बाहर ही बैठा था इसलिए दिक्कत नहीं हुई.

मौलवी ने एक कागज पर कुछ लिखा और उसे फोल्ड करके देते हुए इस्तेमाल का तरीका समझाया. दिन में ठीक 12 बजे सूर्य की ओर मुंह करके नींबू पर मुड़ा हुआ कागज रख कर सूई से छेद करना था. मौलवी ने समझाया कि जैसे जैसे सूई अंदर जाएगी चोर के सीने में दर्द होगा और वो तड़पते हुए सामान कहीं न कहीं आस पास लाकर रख देगा.

अब तक जो लड़का साथ साथ सामना खोज रहा था - और खुद ही मौलवी के पास भी ले गया - लौटते वक्त कोई काम बताकर चला गया. नियत समय पर छत पर टोटका हुआ. उस वक्त वो लड़का कहीं गायब रहा. शाम होने से पहले ही बाहर वाले कमरे में एक चौकी के नीचे कॉपर वायर का बंडल पड़ा मिला.

बाद में मोहल्ले में एक घड़ी गायब हुई तो पूरी श्रद्धा और उम्मीद के साथ लोग मौलवी के पास पहुंचे. इस बार भी वैसा उपाय हुआ, लेकिन घड़ी नहीं मिली.

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कॉपर वायर को लेकर जिस लड़के पर शक था वो हफ्ते भर बाद काम पर लौटा. किसी ने उससे कुछ भी नहीं पूछा, लेकिन उसके हाव भाव बदल गये थे. वो मेहनती बहुत था. बाद में वो चुपचाप काम करता और चला जाता.

कॉपर वायर की रहस्यमय चोरी और बरामदगी की सच्चाई पता तो नहीं चली, लेकिन कयास लगाए गए कि जिसने चोरी की थी वो डर के मारे उसे चौकी के नीचे रख गया. ये बात अलग है कि डर का ये फॉर्मूला घड़ी चोरी करनेवाले पर बेअसर रहा.

अभी तक तो योग के जरिये होमोसेक्सुअलिटी और कैंसर के सफल इलाज के दावे किये जाते रहे. अब हनुमान चालीसा का ये फायदा भी सामने आ ही गया. भारत माता की जयकारे के फायदे नुकसान तो इन दिनों सुर्खियों में हैं ही, हो सकता है किसी छोर से ऐसी सलाह आए कि इस मंत्र का 11 हजार जाप करने से बीमारियों से निजात तो मिलती ही है देश भी तरक्की करता है - और लोग गणेशजी को दूध पिलाने की तर्ज पर आंख मूंद कर मंत्र का जाप भी करने लगें. है कि नहीं?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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