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Updated: 02 अक्टूबर, 2022 04:19 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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मुंबई की लाइफलाइन कहे जानी वाली लोकल ट्रेन (Mumbai Local Train) में महिलाओं ने शानदार गरबा (Garba) किया है. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. सच में हमारे देश की महिलाओं का जवाब नहीं है. यही तो हमारे देश की रूह है जो रोज हमें आगे की तरफ ले चलती है.

अब एक तरफ इस वीडियो की तारीफ की जा रही है तो दूसरी ओर कुछ लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं. जो भी हो यह बात तो सही है कि नवरात्रि के अवसर पर महिलाओं ने ट्रेन में उत्सव के जश्न का माहौल बना दिया है, मगर यह बात कुछ लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रही है.

कई लोगों ने गरबा करने वाली महिलाओं के खिलाफ जगर उगला है. वे गरबे की तुलना सार्वजनिक स्थल पर की जाने वाली नमाज से कर रहे हैं और महिलाओं के लिए सजा की मांग कर रहे हैं. अब आप बताइए भला क्या दोनों में समानता है? महिलाएं ट्रेन में पूजा-पाठ नहीं कर रही हैं बल्कि नांच-गा रही हैं. तो फिर गरबा करना और नजाम अदा करना एक समान कैसे हो गया?

ट्विटर पर इसी गरबे को लेकर बहस छिड़ी हुई है-

साहिबन अहमद नामक यूजर ने लिखा है कि सार्वजनिक ट्रेनों, हवाई अड्डों में गरबा करना सुंदर है. मदर एक छोटी सी जगह मॉल या अस्पताल के एक कोने में नमाज़ करना क्रिमिनल है. इस पर रिचा ने जवाब गिया है कि, हां क्योंकि ट्रेन में और भी लोग होंगे जिन्हें गरबा देख कर अच्छा महसूस हो रहा होगा. वे खुश हो रहे होंगे. उन्हें उत्सव वाइब्स आ रही होगी ना कि वो सब असुरक्षित महसूस कर रहे होंगे...

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अहमद ने लिखा है कि नमाज हो रही होती तो सारी अंदर होतीं. इस पर आदित्या राय ने कहा है कि होना ही चाहिए. वहीं सैय्यद शादाब जैद का कहना है कि मुस्लिम नमाज़ पढ़ ले तो वह अपराधी हो जाता है, उस पर केस दर्ज हो जाता है कि उसने माहौल बिगाड़ने की कोशिश की है. वाह हिन्दुस्तान के कानून का भी जवाब नहीं.

दीपू चौरसिया कह रहे हैं कि मुस्लिम समाज के लोगों ने यह किया होता तो अब तक जेहाद हो गया होता. वहीं मोहम्मद युसूफ इसे गरबा जिहाद करार दे रहे हैं. जावेद हुसैन का कहना है कि हां लेकिन अगर कोई नमाज पढ़ना रहा होगा तो क्या वे शांति से तो करने देंगे? हम हिंदुस्तानियों का जवाब नहीं.

शहनवाज तुर्क का कहना है कि बिल्कुल तुम जैसे दो तरफा लोगों का कोई जवाब नहीं...अभी इन्हीं औरतों की जगह मुस्लिम औरतें चुपचाप एक साइड में नमाज पड़ रही होती तो सबके खिलाफ मुकदमा हो जाता और उन्हें जेल जाना पड़ता.

मनफिरोज़ रेज़ा ने कहा है कि, अच्छा हम्म हॉस्पिटल अपने लिए सजदे पर तो जेल होती है. क्या हम ऐसे ही कलमा फुसफुसा सकते हैं. वहीं गांव का देहाती छोरा नाम के यूजर ने लिखा है कि अगर कोई मुस्लिम नमाज पढ़ लेता तो सबके कलेजे पर सांप लोट जाते...ख़ैर ये ही हिंदुस्तान की सुंदरता है.

आरिफ अली ने लिखा है कि हिंदुस्तानी नहीं सिर्फ़ हिंदू...अगर नमाज़ पढ़ रहे होते तो अब तक कितने केस लग गए होते. प्रदीप कुमार पांडा ने लिखा है कि हिन्दुस्तानियों का नहीं, हिंदुओं का बोलो. दूसरे धर्म के होते तो अब तक मीडिया वाले आपना प्राइम टाइम नीलाम कर चुके होते.

सादिक अनवर ने कहा है कि बेशर्म और बेगैरती की कोई हद नहीं...कोई मुसलमान नमाज़ पढ़े तो एफआईआर दर्ज करते हो और लानत मलामत करते हो. वहीं हिंदू खुलेआम पब्लिक ट्रांसपोर्ट पब्लिक प्लेस पर पूजा करे, रोड जाम करे भजन कीर्तन करे तो ताली बजाते हो...

इस पर पूरबइया नामक यूजर ने पूछा है कि "नमाज़ और गर्बा एक ही चीज़ हैं क्या सेठ जी? नमाज़ हो या आरती, अपने घर या मन्दिर/ मस्जिद में ही ठीक है. वहीं नवनीत पांडेय का कमेंट सबसे अलग है वे लिखते हैं कि मुझे तो दया भाबी की याद आ गई.

सैय्यद आशिक ने कहा है कि हिन्दू सरकारी ट्रेन में गरबा करे तो वाह-वाह और मुस्लिम मॉल में नमाज पढ़े तो हाय तौबा मच जाती है. इनके जवाब में बाबू लाल बिसनोई ने कहा है कि यह डांस है जो कही भी करो कोई परेशानी नहीं है. यह कोई हवन-पूजन नहीं कर रही हैं. योग से भी सिर्फ भारत के मुसलमानों को ही प्रॉब्लम है, जो नकली मुस्लिम हैं. असली मुस्लिम अरब में है उनको तो कोई प्रॉब्लम नहीं है.

वहीं रोहित गुप्ता नामक यूजर ने लिखा है कि गरबा करना त्योहार का एक अंग है कोई प्रार्थना नहीं है. नमाज पढ़ना एक प्रार्थना है. दोनों को तुलना करना सरासर ग़लत है. गरबा करना या ना करना एक विकल्प है जबकि नमाज पढ़ना इस्लाम में आवश्यक है. इस्लाम में सार्वजनिक जगहों पर नमाज अदा करना वर्जित है, कृपया भ्रम और घृणा न फैलाएं...आपको क्या लगता है, क्या महिलाओं के गरबे की तुलना नमाज से करना सही है या बेतुका है?

देखिए वीडियो-

 

 

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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