New

होम -> सोशल मीडिया

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 18 जुलाई, 2018 12:28 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

I am an Indian Muslim

I am Human Too !!!

You Can Talk To Me

#TalkToAMuslim

#StopThisHate

ट्विटर, मुसलमान, सोशल मीडिया कैम्पेन, ट्वीट    #TalkToAMuslim (किसी मुसलमान से बात करो) कैम्पेन को लेकर एक संदेश भरा प्‍लेकार्ड थामे गौहर खान.

यानी मैं एक भारतीय मुस्लिम हूं. मैं एक इंसान भी हूं. आप मुझसे बात कर सकते हैं. फिर दो हैशटैग. एक ऐसे वक़्त में जब एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने माना है कि भारत में नफरत अपने चरम पर है. एक ऐसा वक़्त जब  सारी बातें हिन्दू या मुस्लिम के दायरे में रख कर सामने लाइ जा रही हैं. माइक्रो ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर पर  हैशटैग #TalkToAMuslim #StopThisHate निकल कर सामने आ रहे हैं. इस हैश टैग को आगे बढ़ाने वालों में राना सफवी भी शामिल हैं. बात अगर इस हैश टैग पर हो तो इसको लाने की वजह बस इतनी है कि आज आम आदमी के सामने मुसलमानों को लेकर पूर्वाग्रह बन गए हैं उन्हें बातचीत के माध्यम से तोड़ा जा सके और लोग प्रेम और सौहार्द से रह सकें.

पहली नजर में इस हैशटैग को एक अच्छी पहल के रूप में देखा जा सकता है मगर जब इसका आंकलन किया जाए तो सवाल उठने लाजमी हैं. इस हैशटैग के अंतर्गत लोग अपनी तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं उसके साथ इन तीन चार लाइनों में अपनी बात रख रहे हैं. किसी मुद्दे पर अपनी बात रखने में बुराई नहीं है मगर देखा जाए तो इस हैश टैग पर जो लोगों का अंदाज है वो विचलित करने वाला है.

हो सकता है इतना पढ़कर कोई भी प्रश्न करे कि इसमें विचलित होने या फिर आश्चर्य में पड़ने जैसा क्या है, तो बताते चलें कि कुछ बातें इस पूरे अभियान को संदेह के घेरों में डाल रही हैं. ये अभियान सोशल मीडिया पर शुरू हुआ है और वर्तमान परिदृश्य में हमारे लिए ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि किसी भी तरह के अभियान को शुरू करने के लिए फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया माध्यम एक बेहद सतही जगह हैं.

इस अभियान को ट्विटर पर शुरू किया गया है और कहा जा रहा है कि किसी भी तरह का पूर्वाग्रह बनाने से पहले आम लोग मुसलमानों से बात करें. यानी इस कैम्पेन के जरिये सारा फोकस उन लोगों पर रखा गया है जिन्होंने मुसलमानों से दूरी बना ली है और उनके लिहाज से बातचीत के सारे रास्ते बंद हो गए हैं. यहां बात खुद साफ हो जाती है कि जब लोगों ने किसी बात को लेकर एक राय बना ली है तो उस राय को बदलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

सेलिब्रिटियों के आने से ये खाई पटने के बजाए और बढ़ेगी

सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटियों द्वारा किसी भी मुद्दे को हाईजैक करना कोई नई बात नहीं है. यहां इस कैम्पेन #TalkToAMuslim #StopThisHate में भी कुछ ऐसा ही होता नजर आ रहा है. ध्यान रहे कि सिने/ टीवी जगत के दो बड़े सितारों स्वरा भास्कर और गौहर खान द्वारा लगातार इस मुद्दे पर अलग-अलग लोगों की फोटो को ट्वीट और रिट्वीट किया जा रहा है.

स्वरा भास्कर और गौहर खान दोनों के समर्थकों और आलोचकों द्वारा लगातार इस मुद्दे पर भांति भांति के तर्क दिए जा रहे हैं. एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि ये एक ऐसा कैम्पेन है जो अपने आप में बेबुनियाद है और जिसकी कोई जरूरत नहीं है और ऐसे कैम्पेन का आयोजन कर बेकार का प्रोपोगेंडा फैलाया जा रहा है.

ऐसे कैम्पेन लोगों की नफरत को और बढाएंगे

हमेशा की तरह एक बार फिर इस कैम्पेन के जरिये मुसलमाओं को विक्टिम दिखाया गया है. अब सोचने वाली बात ये है कि अब जब इस तरह का विक्टिम कार्ड खेल लिया गया है तो जाहिर है इससे दूरियां खत्म होने के बजाए और गहरी होंगी और कहीं न कहीं ऐसे कैम्पेन हमारे समाज को दो धड़ों में विभाजित कर देंगे.

इस पूरे कैम्पेन और इस कैम्पेन में मुस्लिम समुदाय के लोग जिस तरह सामने आ रहे हैं उसके बाद अगर हम दूसरे तीसरे या फिर चौथे समुदाय को एक होते देखें तो हमें आहत, बहुत आहत होने की जरूरत नहीं है. उस पल हमें ये मानने का कोई अधिकार नहीं है कि अन्य लोग मुसलमानों के खिलाफ आकर एक साथ एक जगह पर लामबंध हो गए हैं.

ऐसे कैम्पेन कहीं सेल्फी पोस्ट करने का माध्यम न बन जाए

इस कैम्पेन में भी अन्य कैम्पेन की तरह  सेल्फियां हैं. हाथ में तख्ती पकड़े लोग दिख रहे हैं. भांति भांति के पोज में तस्वीरें पोस्ट की जा रही हैं.  इस कैम्पेन के जो शुरूआती रुझान हैं हमारे लिए कहना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि कहीं ये कैम्पेन भी स्टाइलिश सेल्फी  पोस्ट करने का दूसरा माध्यम न बन जाए.

बात तो हो हो रही है फिर किस बात की बात कर रहा है ये कैम्पेन

सबसे अंत में हम ये कहते हुए इस बात को विराम देना चाहेंगे कि सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा ये प्रोपेगेंडा एक व्यर्थ का और निराधार प्रोपेगेंडा है. इस कैम्पेन के बावजूद आज भी हिन्दू और  मुसलमानों में बात हो रही है और जम कर हो रही है. लोग एक दूसरे से मिल रहे हैं. एक दूसरे के यहां जा रहे हैं. एक दूसरे के साथ खा पी रहे हैं. जब सबकुछ वैसे ही चल रहा है तो ये बात समझ से परे हैं कि आखिर इस कैम्पेन को लाकर एक दूसरे के बीच दूरी बढ़ाने की जरूरत क्या थी.

इस मुद्दे के भी राजनीतिक हित है

जब बिना किसी राजनीतिक हित के देश में कुछ नहीं होता तब ये अपने आप माना जा सकता है कि इस मुद्दे और इस हैश टैग के पीछे भी राजनीति छुपी हुई है और वो दिन दूर नहीं जब इस मुद्दे पर रखकर लोग अपने राजनीतिक हित साधेंगे.

अंत में हम भी ये कहकर अपनी बात खत्म करेंगे कि जिस तरह की चीजें सोशल मीडिया पर चल रही हैं वो एक झुंड को तो लाकर खड़ा कर सकती हैं मगर जब बात किसी मुद्दे पर अमली जामा पहनाने की आएगी तो इसी सोशल मीडिया के लोग होंगे जो सबसे पहले मुद्दे से अपने हाथ पीछे खींचेगे.सारी बातों को जानकार ये कहने में भी गुरेज नहीं है कि ये हैश टैग एक मजाक है जिससे खाए पिए थके अघाए लोग और कुछ नहीं बस अपना हित साध रहे हैं.

ये भी पढ़ें -

सही तो कहा सुप्रीम कोर्ट ने, भला ताज महल भी कोई नमाज पढ़ने की जगह है!

लड़कियों के कपड़े क्‍यों काट रही पुलिस !

'नकली' दलित हितैशी, बुलंदशहर की इस घटना को बहुत आसानी से नजरअंदाज़ कर देंगे

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय