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Updated: 14 अक्टूबर, 2021 04:58 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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आजाद भारत में अगर वीर सावरकर (Veer Savarkar) को सबसे विवादित चरित्र कहा जाए, तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगा. सावरकर (Savarkar) को लेकर राजनीतिक दलों से लेकर विचारधारा विशेष के इतिहासकारों (Historians) ने इतना कुछ और ऐसे तर्क और तथ्य गढ़ दिये हैं, जिनके सहारे उन्हें अंग्रेजों से माफी मांगने वाला और कट्टर हिंदूवादी (Hindutva) चेहरा साबित करने की कोशिश की जाती रही है. 'क्या सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी?' दशकों से इस सवाल को विवादास्पद बनाए रखा गया है.

ये सवाल एक बार फिर से चर्चा में हैं. और, उससे भी ज्यादा सुर्खियों में हैं वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब (Irfan Habib) का वो जवाब, जो उन्होंने इस मामले पर दिया है. दरअसल, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने विनायक दामोदर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) पर लिखी गई किताब के विमोचन कार्यक्रम में कहा कि वीर सावरकर के बारे में एक झूठ फैलाया जाता है कि उन्होंने बार-बार ब्रिटिश हुकूमत के सामने आजीवन कारावास की सजा को खत्म करने के लिए माफीनामा भेजा था. लेकिन, सच ये है कि उन्होंने महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के कहने पर दया याचिका डाली थी. सावरकर ने ये दया याचिका कैदी के अधिकार के तहत पेश की थी.

Mahatma Gandhi advised Savarkar for Mercy Petitionवीर सावरकर की ब्रिटिश हुकूमत को दी गई दया याचिका को महात्मा गांधी से जोड़कर एक नई बहस को जन्म दे दिया गया है.

विनायक दामोदर सावरकर को लेकर किये गए इस दावे से नेताओं से लेकर इतिहासकारों के बीच जुबानी जंग छिड़ गई है. आइए इस बहस पर एक नजर डाल लेेते हैं.

सबके अपने-अपने दावे

राजनाथ सिंह के दावे पर प्रश्न चिन्ह लगाते हुए जाने-माने वामपंथी पत्रकार इरफान हबीब ने ट्वीट करते हुए लिखा कि महात्मा गांधी के जिस पत्र की बात की जा रही है, वह उनकी उदारता को दर्शाता है. उन्होंने सावरकर बंधुओं को लेकर कहा था कि ये साफ है कि वे दोनों ब्रिटिश सरकार से आजादी नहीं चाहते हैं. इसके ठीक उलट, उन्हें लगता है कि अंग्रेजों के साथ मिलकर भारत की नियति को अच्छा बनाया जा सकता है.

इरफान हबीब ने एक अन्य ट्वीट करते हुए कहा कि हां, मोनोक्रोमैटिक इतिहास लेखन सच में बदल रहा है. इसका नेतृत्व वो मंत्री कर रहे हैं, जो दावा करते हैं कि गांधी ने सावरकर को दया याचिका लिखने के लिए कहा था. कम से कम अब तो यह मान लिया गया है कि उन्होंने पत्र लिखा था. जब मंत्री दावा करते हैं, तो किसी दस्तावेजी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती है. नए भारत के लिए नया इतिहास.

इरफान हबीब की इस टिप्पणी पर दक्षिणपंथी इतिहासकार और वीर सावरकर की बायोग्राफी लिखने वाले डॉ. विक्रम संपत ने ट्वीट कर तंज कसते हुए लिखा कि विख्यात इतिहासकार और दस्तावेजी साक्ष्य. वे हर दिन सार्वजनिक रूप से खुद को शर्मिंदा क्यों करते हैं? और, फिर भी अपने लिए सम्मान की मांग करते हैं? आपको कुछ गुणवत्ता से भरा काम करके सम्मान पाना चाहिए, है ना? डॉ. विक्रम संपत ने अपने एक अन्य ट्वीट में इरफान हबीब को बौद्धिक रूप से बेईमान आदमी बता दिया. संपत के अनुसार, इरफान हबीब ने स्वीकार किया कि ऐसा कोई पत्र है. लेकिन, वह इसे गांधी की उदारता बता रहे हैं.

विक्रम संपत ने सिलसिलेवार ट्वीट में इरफान हबीब पर हमलावर होते हुए कहा कि जो भी गिरगिट की तरह रंग बदलने के लिए क्रैश कोर्स या गोल पोस्ट्स बदलना सीखना चाहते हैं. तो, केवल किसी वामपंथी इतिहासकार के साथ भिड़ जाओ. आपको जिंदगी भर के लिए सीख मिल जाएगी. बेशर्म.

विक्रम संपत के इस जवाब से तिलमिलाये इरफान हबीब ने ट्वीट कर लिखा कि जब आप गलत इतिहास बताते हुए पकड़े जाते हैं, तो ऐसा ही व्यवहार करते हैं. ऐसे किसी भी मामले में बचाव का ये सबसे आसान तरीका है कि वामपंथ ने झूठ फैलाया है.

इस पर विक्रम संपत ने कटाक्ष करते इरफान हबीब पर इतिहास की गलत व्याख्या करने का आरोप लगा दिया.

इरफान हबीब ने इस पर जवाब देते हुए लिखा कि आप फिर से झूठ बोल रहे हैं. इस विवाद को आपने शुरू किया और मैंने जवाब दिया.

खैर, इन दोनों इतिहासकारों के बीच छिड़ी इस जंग के बीच एक यूजर ने गांधी आश्रम सेवा ग्राम की वेबसाइट पर छपा महात्मा गांधी का वो पत्र शेयर किया. जिसमें महात्मा गांधी ने 1920 में सावरकर बंधुओं का नाम लेते हुए यंग इंडिया में लिखा था. जिसके आधार पर दावा किया गया कि गांधी ने वीर सावरकर को ब्रिटिश हुकूमत के आगे दया याचिका लगाने के लिए कहा था. यंग इंडिया में महात्मा गांधी का वो पत्र आप यहां देख सकते हैं...

Young India Gandhi Savarkarयंग इंडिया में गांधी ने सावरकर बंधुओं के नाम से यह पत्र लिखा था.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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