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Updated: 01 फरवरी, 2018 04:55 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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बीजेपी कुछ करे और चर्चा के साथ-साथ हो हल्ला न हो, ऐसा भला हो सकता है? इधर संसद में, वित्त मंत्री पहली बार हिन्दी में, सरकार का बजट पेश कर रहे थे और उधर सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर लोगों को इससे मतलब नहीं था कि क्या महंगा हुआ और क्या सस्ता. ट्विटर पर जेर-ए-बहस मुद्दा ये था कि वित्त मंत्री ने अपना संबोधन हिन्दी में क्यों किया. क्या वो गैरहिन्दी भाषी लोगों और राज्यों पर अपने इस भाषण के माध्यम से जबरदस्ती हिन्दी थोपने का प्रयास कर रहे हैं? वित्त मंत्री के हिन्दी में दिए गए भाषण से आहत लोगों ने ट्विटर पर हिन्दी बजट नाम का हैशटैग चला दिया जिसपर लोग लगातार अपने तर्क और कुतर्क पेश करते नजर आ रहे हैं.

बजट, अरुण जेटली, हिन्दी, ट्विटर बजट को लेकर ट्विटर पर एक अलग तरह का घमासान मचा हुआ है

वित्त मंत्री द्वारा लिए गए इस फैसले से बहुत से लोग आहत हैं. ये लोग लगातार यही कह रहे हैं कि, हमेशा की तरह इस बार भी सरकार ने इस भाषण के माध्यम से, दक्षिण भारतीय राज्यों और गैर हिन्दी भाषी लोगों को नजरंदाज कर उन्हें नीचा दिखाने का काम किया है. इसके विपरीत भाषण को हिन्दी में दिए जाने के विषय में सरकार कह रही है कि ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि ये बजट मुख्य रूप से किसानों के लिए हैं और वो बात आसानी से समझ जाएं इसलिए बजट को अंग्रेजी के अलावा हिन्दी में पेश किया गया है. सरकार के इस बयान पर भी आलोचकों के अपने तर्क हैं. आलोचकों का ये कहना है कि ऐसा भला किसने कह दिया या मान लिया कि देश में जो भी लोग कृषि से जुड़े हैं और किसान हैं हिन्दी जानते हैं.

बजट, अरुण जेटली, हिन्दी, ट्विटर  काफी हद तक गैर हिन्दी भाषी लोगों का मानना है कि सरकार उनपर हिन्दी थोपने का काम कर रही है

बहरहाल, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ट्विटर पर इस विषय को लेकर युद्ध की स्थिति बनी हुई है. लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं दिख रहा कि सरकार ने उनके हित में क्या किया. कहां उनका नुकसान हुआ? कहां क्या घटा, कहां क्या बढ़ा. लोगों की सारी चिंता इसी बात पर दिख रही है कि आखिर भाषण के लिए अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी का ही चयन क्यों किया गया. तो आइये एक नजर डालते हैं ट्विटर पर और देखते हैं उन 10 प्रोफाइल्स को जिनकी भावना वित्त मंत्री द्वारा इस्तेमाल की हुई हिन्दी से आहत हो गयी है.

खैर इस पूरे प्रकरण को देखकर कहा जा सकता है कि हम भारतीय बड़ी ही अजीब स्थिति में हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हमें अपने मूल अधिकारों, रोजगार, महंगाई, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दों के लिए प्रदर्शन करने चाहिए हम एक ऐसे मुद्दे को लेकर आक्रोश में हैं जिसका न तो सिर है न पैर.

अंत में हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि अगर ट्विटर की बुद्धिजीवी जनता ने "हिन्दी बजट" की जगह कोई ऐसा हैशटैग बनाया होता जो आम नागरिकों के हित से जुड़ा होता तो ये प्रयास सराहनीय कहलाता. कहा जा सकता है कि अब वो वक़्त आ गया है जब देश की सरकार को भाषा की इस लड़ाई के प्रति गंभीर हो जाना चाहिए. कहीं ऐसा न हो जब तक सरकार इसके लिए गंभीर हो तब तक बहुत देर हो जाए और देश की अखंडता खतरे में आ जाए और देश टूट जाए.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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