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Updated: 03 मई, 2017 05:06 PM
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एक फेसबुक पोस्ट ने सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है. ये पोस्ट है रायपुर की डिप्टी जेलर वर्षा डोंगरे की, जो इस वक्त सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. अपनी पोस्ट में वर्षा डोंगरे ने सरकार, नक्सलियों और सुरक्षाबलों के जवानों के खिलाफ लिखा है. उन्होंने आदिवासियों के जीवन की वो कड़वी सच्चाइयां उजागर की हैं, जिसे सुनकर शायद किसी को यकीन न हो.

इस फेसबुक पोस्ट को फिलहाल डिलीट कर दिया गया है, लेकिन उससे पहले ही ये दूर-दूर तक पहुंच गई. जिससे वर्षा को सरकार की नाराज़गी झेलनी पड़ रही है. खबर है कि उन्हें नोटिस जारी करते हुये जवाब तलब किया गया है.

वर्षा डोंगरे ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था -

' #पूंजीवादी #व्यवस्था #के #शिकार #जवान #शहीदों #को #शत #शत #नमन्...

मगर मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुदबखुद सामने आ जाऐगी... घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं... भारतीय हैं. इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना, उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार. आदिवासी महिलाऐं नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है. टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों के जल जंगल जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान अनुसार 5वीं अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमीन को हड़पने का.

tribes, chhattisgarh, varsha dongreवर्षा डोंगरे ने इस फेसबुक पोस्ट को फिलहाल डिलीट कर दिया है

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है ? नक्सलवाद खत्म करने के लिए ? लगता नहीं. सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है. आदिवासी जल जंगल जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हें फर्जी केस में चार दिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है. तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाऐं. ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहती है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत कहती है. जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार...उन्हें फर्जी नक्सली केस में जेल में ठूंस दिया जाता है. अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है. ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता.

मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था, जिसके निशान मैने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी, कि इन छोटी छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किसलिए. मैंने डाॅक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा.

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हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें. इसलिए सभी को जागना होगा...राज्य में 5 वीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जाए. आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं. हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक. पूंजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझें. किसान जवान सब भाई भाई हैं. अतः एक दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है इसलिए न्याय सबके साथ हो.

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई, प्रलोभन रिश्वत का आॅफर भी दिया गया.वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं. लेकिन हमने इनके सारे ईरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई...आगे भी होगी.

अब भी समय है, सच्चाई को समझें नहीं तो शतरंज के मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इंसानियत ही खत्म कर देंगे. ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे.

जय संविधान, जय भारत !'

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