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Updated: 14 नवम्बर, 2016 08:54 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
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भारत में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार है. कहने को हिंदू सरकार. दक्षिणपंथी विचारधारा की सरकार. क्या इस सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप मढ़ा जा सकता है?

क्या आपको यकीन होगा कि भारत सरकार के चलते एक लाख से ज्यादा हिंदू बेघर हो चुके हैं. उनकी नागरिकता को छीनते हुए उन्हें जबरदस्ती उनकी जमीन से निकाल दिया गया है.

आज वह अपने देश से निर्वासित हैं. वह नेपाल के इमीग्रेंट कैंपों में कुछ साल बिताने के बाद अब अमेरिका पहुंच चुके हैं. बीते 20 साल से लगातार हम हिंदू हैं, हम हिंदू हैं, चिल्लाने के बावजूद भारत ने उनकी गुहार को न सिर्फ अनसुना किया है, बल्कि उन्हें उनके देश से निकाल कर नेपाल पहुंचाने में पूरी मदद भी की है.

दरअसल, पूरा मामला किंगडम ऑफ भूटान का है. भारत और भूटान का रिश्ता अंतरराष्ट्रीय मिसाल है. हमारी सरकार के लिए भूटान कितना अहम है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विदेश मंत्रालय के वार्षिक बजट का सबसे बड़ा हिस्सा इस देश पर खर्च किया जाता है.

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भूटान दुनिया में अपने हैपिनेस इंडेक्स के लिए भी जाना जाता है. एक बुद्धिस्ट स्टेट, जहां राजा सॉवरेन है. लोग खुश हैं. खर्च भारत सरकार उठा रही है. भारत सरकार ने यहां राजा के हितों को साधने के लिए 1958 में नागरिकता पा चुके नेपाली मूल के हिंदू जनसंख्या की आवाज को अनसुना किया है.

बीते कई साल से ये हिंदू नेपाल की सीमा पर बने सात कैंपों में रह रहे थे. संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों के बाद हाल ही में 8 देशों ने इन हिंदुओं को अपने देश में बतौर इमीग्रेंट लिया है. इस एक लाख में 85 हजार से ज्यादा हिंदुओं को अकेले अमेरिका ने लिया और बाकी अन्य विकसित देशों में हैं. कुछ हिंदू अभी भी किसी देश द्वारा लिए जाने का इंतजार कर रहे हैं और वह नेपाल की सीमा पर कैंपों में रह रहे हैं.

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 भूटान के राजा के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

भूटान से निर्वासित इन हिंदूओं की समस्या का हल आज कुछ विकसित देश कर रहे है. अमेरिका ने बेघर हुए इन हिंदुओं को सहारा दिया. क्या भारत सिर्फ दुनियाभर में फैले हिंदुओं की बात ही करेगा या फिर किसी देश में हिंदू के साथ भी खड़ा होगा.

सवाल यह है कि क्या अमेरिका जा बसे इन 85 हजार से ज्यादा हिंदुओं को भारत सरकार से कोई उम्मीद नहीं थी? भारत सरकार ने इन हिंदुओं के साथ ऐसा क्यों किया?

आज देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. उसे भूटान के निर्वासित हिंदूओं के मुद्दे पर जवाब देना चाहिए. आखिर क्यों किसी पार्टी ने इन हिंदुओं की आवाज नहीं उठाई? क्यों किसी ने तब इनकी सुध नहीं ली जब ये भूटान से ट्रकों में भरकर भारत की सीमा के अंदर होते हुए नेपाल भेजे गए.

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इस प्रक्रिया में कई हिंदुओं की हत्या और हिंदू महिलाओं के बलात्कार की शिकायत भी संयुक्त राष्ट्र के पास है. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सामने जाकर इन हिंदुओं को अपनी सीमा में शरण देने की बात नहीं कही. इसके उलट उसने इन हिंदूओं को ट्रकों में लादकर नेपाल की सीमा में पहुंचाने का काम बिना रोकटोक होने दिया

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पूर्वी नेपाल में भूटान से आए हिंदू शरणार्थियों का एक कैंप.

क्या भारत वैश्विक स्तर पर इमीग्रेंट की समस्या का सामना नहीं कर सकता?

डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद एक बार फिर इमीग्रेट का राग अलापा है. अब जनवरी में सत्ता मिलते ही वह देश से लगभग 30 लाख गैरकानूनी इमीग्रेंट को बाहर निकाल देंगे. अमेरिका में एक बड़ी इमीग्रेंट जनसंख्या को बेघर होने का खतरा है.

आजादी के बाद से ही भारत शरणार्थी समस्या से घिरा रहा है. पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल समेत लगभग सभी पड़ोसी देशों से आ रहे शरणार्थी उसके लिए मुसीबत हैं. जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप कहते हैं कि उसके पड़ोसी देशों से आए गैरकानूनी शरणार्थियों और मुसलमानों ने अमेरिका के लिए खतरा बढ़ा दिया हैं.

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लेकिन भारत एक हिंदू बाहुल देश है. दुनियाभर में मौजूद हिंदुओं की बात करने वाले कई हैं. लेकिन कैसे एक साथ उसकी नीतियों के अधीन किसी अहिंसक बौद्ध धर्म वाले किंगडम भूटान ने हिंदुओं के साथ ऐसा किया. भारत ने इन हिंदुओं की तरफ देखने की कोशिश भी नहीं की.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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