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Updated: 16 जनवरी, 2022 02:48 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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हिंदुस्तान में एक अंतराल के बाद होते दर्दनाक रेल हादसों ने हमारे पुराने रेल तंत्र को रिफॉर्म करने की जरूरत को और महसूस करा दिया है. रेल की पटरियां, पुराने सिस्टम के डिब्बे, इंजन आदि को बदलते की जरूरत है. बिना देर किए विघुतीकरण और आधुनिकीकरण की ओर मुड़ना होगा. इस दिशा में कुछ वर्ष पूर्व एक समानांतर बदलावरूपी प्रयोग की आहट सुनाई भी दी थी. केंद्र सरकार ने रेल बजट को आम बजट में विलय किया था. मकसद था भारतीय रेल नेटवर्क को मजबूत करना और उसे आधुनिक रूपी जामा पहनाना. पर, उससे रिजल्ट कोई खास नहीं निकला. कमोबेश रेलवे की स्थिति पहले ही जैसी बनी हुई है. हादसे रुके नहीं, बल्कि लगातार होते जा रहे हैं. गुरूवार शाम एक और बड़ा रेल हादसा हो गया. पश्चिम बंगाल में जलपाईगुड़ी के नजदीक रेल बेपटरी हो गई. बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस की कई बोगियां एक साथ पटरी से उतर गई हैं. कईयों के हताहत होने की खबर है. घायलों का आकंड़ा तो अनगिनत सामने आया है. ट्रेन बीकानेर से चली थी जिसे गुवाहाटी पहुंचना था, लेकिन बीच रास्ते में ही हादसे का शिकार हो गई.

Bikaner Guwahati Express Derail Indian Rail, Train, Train Accident, Accident, Death, Injured, Central Governmentबीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस रेल हादसे ने एक बार फिर रेलवे के लचर सिस्टम को हमारे सामने जाहिर किया है

हादसे के शुरुआती कारण वही पुराने बताए गए हैं कि मौसम खराब था, पटरी खराब थी, चालक समझ नहीं पाया, वगैरा-बगैरा. लेकिन कायदे से देखें तो ये कारण ना बुनियादी हैं और ना ही मौलिक. मूल कारण तो सबके सामने है, कराहता पुराना रेल सिस्टम? घटना को बेशक पुरानी घटनाओं की तरह मृतकों के परिजनों को मुआवजे देकर शांत कर दिया जाएगा. लेकिन इससे सरकारी खामियां नहीं छिप पाएंगी.

हादसे में हताहत होने वालों की चीखें लगातार खोखले रेल तंत्र की कमियों को उजागर कर रही हैं. चीखों की तस्वीरें सीधे हमारे सरकारी तंत्र को कटघरे में खड़ा करती हैं. इसमें हम सीधे हुकूमतों को भी दोषी नहीं ठहरा सकते, क्योंकि काम तो रेल अधिकारियों को ही करना होता है. हादसों के वक्त उनकी घोर लापरवाही कई तरह के सवाल खड़ा करती हैं.

पटरियों का रखरखाव भी वह अच्छे से नहीं करवाते. सर्दी के वक्त बेलदार पटरियों से नदारद रहते हैं. जबकि, नियमानुसार प्रत्येक रेल के गुजरने के बाद पटरी का मुआयना करना होता है. लेकिन ऐसा किया नहीं जाता. बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस पांच राज्यों, चौंतीस रेल स्टेशनों से गुजर कर अपने गंतव्य को पहुंचती है. वह रूट व्यस्त माना जाता है. पटरी में दरार की भी बात कही जा रही है.

अगर हादसे कारण खराब पटरियां होंगी, तो अधिकारियों की ही प्रथम दृष्टया लापरवाही कही जाएगी. हिंदुस्तान का रेल नेटवर्क आम जनता की जीवनदायिनी मानी गई है, जिसमें रोजाना करोड़ो यात्री सफर करते हैं. हमारे यहां कितना भी हवाई मार्ग दुरूस्त हो जाए, या कितने भी निजी वाहन देश में बढ़ जाएं, पर रेल की अहमियत कभी कम नहीं होगी.

क्योंकि वह प्रत्येक नागरिक के जीवन से वास्ता रखती है और रखती रहेगी. लेकिन रेल बजट के खात्मे के बाद ऐसा प्रतीत होता कि जैसे रेलवे विभाग बेसहारा हो गया है. रेलवे की दशा को दुरुस्त करने के लिए अलग बजट की फिर से जरूरत महसूस होने लगी है. हम देश में बुलेट ट्रेन चलाने की बात कर रहे हैं, अच्छी बात चलनी चाहिए.

पर, मौजूदा रेल नेटवर्क की अव्यवस्थाओं के चलते पूरा महकमा हाफ रहा है. उस पर ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है. बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस का हादसे का शिकार होना इसी बात का परिचायक है कि रेल तंत्र पर हम उतना ध्यान नहीं दे पा रहे. रेल हादसों का हमारे पास पुराना इतिहास है. साल दर साल हादसे होते हैं.

13 फरवरी 2015 को बेंगलुरु से एर्नाकुलम जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन की आठ बोगियां होसुर के समीप पटरी से उतर थीं जिसमें कईयों की मौत हुई थी. 25 मई 2015 को राउरकेला से जम्मू-तवी एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी. 26 मई 2014 को यूपी के संत कबीर नगर में गोरखधाम एक्सप्रेस ने एक मालगाड़ी से टकराई थी. 4 मई 2014 को महाराष्ट्र के रायगढ़ में कोंकण रूट पर एक सवारी गाड़ी का इंजन और छह डिब्बे पटरी से उतरे थे.

वहीं, 17 फरवरी 2014 को नासिक के घोटी में मंगला एक्सप्रेस के 10 डिब्बे पटरी से उतरे थे. 28 दिसंबर 2013 मे आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में बेंगलुरु नांदेड एक्सप्रेस के एक एसी कोच में आग लगने से 26 लोगों की मौत हुई थी. 19 अगस्त 2013 में बिहार के खगड़िया में कावड़ियां लोग पटरियों के रास्ते गुजर रहे थे तभी राज्यरानी एक्सप्रेस ने इन्हें कुचल दिया था उस हादसे में 37 लोग मारे गए थे.

ऐसे कई अनन्त हादसे हैं उन्हें उँगलियों पर गिनाए जा सकते हैं. सवाल उठता हमारा रेल तंत्र सबक क्यों नहीं लेता. मौजूदा रेल हादसे का जिम्मेदार किसे माना जाए सरकार को या प्रशासन को? लेकिन मरने वाले परिजनों की चीखें सिस्टम को जरूर ललकार रही हैं. हादसे में किसी ने अपना भाई खोया, किसी ने अपना पति, तो किसी ने अपना दोस्त? उन चीखों का जवाब शायद ही कौन दे पाए. हताहत हुए लोगों के जख्मों पर कौन मरहम लगाएगा?

हादसे में मारे गए यात्रियों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा हुई है. पर, मुआवजे का यह मरहम हादसों को रोकने का शायद विकल्प नहीं हो सकता? ऐसे हादसों की भरपाई के लिए मुआवजों का खेल खेलकर सरकार-प्रशासन अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. लेकिन असल सच्चाई पर पर्दा नहीं डाला जा सकता.

सवाल यह है कि हादसों को रोकने के मुकम्मल इंतजाम क्यों नहीं किए जाते? पिछले कुछ दशकों में इस तरह के अनगिनत हादसे हुए. हादसों के बाद मुआवजा देकर शांत कर दिया जाता है. इस रेल हादसे में भी यही होगा. मरने वालों को मुआवजा देकर जिंदगी फिर उसी मोड़ पर चलने के लिए छोड़ दी जाएगी. फिर नए हादसे का हम इंतजार करेंगे.

रेल हादसे में जो यात्री जान गवाते हैं उनके परिजनों का दुख हम महसूस कर सकते हैं पर दर्द का अंदाजा नहीं लगा सकते. हादसे का जख्म उनको ताउम्र झकझोरता है. रेल तंत्र हम भारतीयों का बहुत बड़ा आवागमन का साधन हैं. हर आम लोगों की जीवन का हिस्सा है. फिर इसके प्रति इतनी घोर लापरवाही क्यों?

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