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Updated: 18 मई, 2018 08:13 PM
हामिद मीर
हामिद मीर
 
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2008 में मुंबई हमलों पर पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बयान से बवाल मच गया है. लेकिन सच्चाई ये है कि 26/11 हमलों के बारे में नवाज शरीफ ने कुछ नया नहीं कहा था. पर उनके कुछ शब्दों ने पार्टी में हलचल पैदा कर दी है. उनके धूर विरोधी इमरान खान ने इस मौके को लपक लिया है और "मोदी के यार" पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया जाए. यहां तक की नवाज शरीफ के छोटे भाई और पंजाब के मुख्यमंत्री शहबाज़ शरीफ ने बड़े भाई के इस बयान से न सिर्फ किनारा कर लिया बल्कि उसका खंडन भी किया. लेकिन नवाज ने अपने इंटरव्यू को मीडिया में दोबारा दोहरा कर उनके लिए शर्मिंदगी का माहौल बना दिया.

वरिष्ठ उर्दू स्तंभकार अब्दुल क़ादिर हसन ने नवाज शरीफ को पाकिस्तान में भारत का एजेंट घोषित कर दिया. दि डेली एक्सप्रेस में उन्होंने लिखा कि भूतपूर्व प्रधानमंत्री को पाकिस्तान छोड़कर अपने असली देश भारत चले जाना चाहिए. मैंने देखा कि कम से कम 12 उर्दू स्तंभकारों ने विभिन्न अखबारों में नवाज शरीफ की खिंचाई की है.

आखिर उस इंटरव्यू में गलत क्या था?

कुछ दिन पहले, नवाज शरीफ ने अंग्रेजी समाचार पत्र डॉन को एक साक्षात्कार दिया, जहां उन्होंने कहा, "आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं. उन्हें नॉन स्टेट एक्टर कहते हैं. क्या हमें उन्हें सीमा पार करने और मुंबई में 150 लोगों को मारने की अनुमति देनी चाहिए? मुझे इसका जवाब दें. आखिर हम मुकदमें को पूरा क्यों नहीं कर सकते?"

nawaz sharif, Mumbai attacksमुंबई हमले पर बोलकर नवाज शरीफ फंस गए

नवाज शरीफ के लंबे इंटरव्यू में से ये कुछ पंक्तियां हैं जिन्हें कई भारतीय समाचार चैनलों ने उठाया और सुर्खियां बन गईं. भारतीय मीडिया ने बोलना शुरु किया कि पूर्व पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने 2008 के मुंबई हमले में पाकिस्तान के आतंकवादियों की संलिप्तता को स्वीकार कर लिया और ये सुझाव भी दिया कि ऐसे आतंकवादी हमलों को रोका जा सकता था.

इसके बाद कई पाकिस्तानी टीवी चैनलों ने भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन के बयान को हाथों हाथ ले लिया. निर्मला सीतारमन ने कहा था कि नवाज शरीफ ने मुंबई हमलों पर भारत के स्टैंड को सही साबित कर दिया था. वास्तव में उनके इस बयान को पाकिस्तानी मीडिया ने ये साबित करने के लिए इस्तेमाल किया कि नवाज शरीफ भारत की भाषा बोल रहे हैं. पाकिस्तान के पूर्व आंतरिक मंत्री चौधरी निसार अली खान ने नवाज शरीफ के बयान का खंडन करने में कोई देरी नहीं की. उन्होंने कहा कि 26/11 के मुंबई हमलों में संदिग्धों के खिलाफ मुकदमा पूरा नहीं हुआ क्योंकि भारत ने कभी पाकिस्तान के साथ सहयोग ही नहीं किया.

निसार 2013 से 2017 तक नवाज शरीफ की सरकार में आंतरिक मंत्री थे. पिछले साल सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवाज शरीफ को अयोग्य घोषित करने के बाद से निसार ने पुरानी दोस्ती को भूला दिया. निसार, नवाज शरीफ के नेतृत्व में काम करने के लिए तो तैयार थे. लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से मरियम नवाज को अपने नेता के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

2017 में नवाज शरीफ ने भले ही अपनी सरकार खो दी थी लेकिन उनकी लोकप्रियता बरकरार थी. इसके बाद वो डिफेंसिव नहीं रहे बल्कि अग्रेसिव हो गए. उन्होंने अपने प्रसिद्ध जीटी रोड मार्च के दौरान सेना और न्यायपालिका दोनों पर जमकर हमला किया.और मध्य पंजाब के विभिन्न शहरों में भारी भीड़ को आकर्षित किया. नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली पाकिस्तानी पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के साथ गठबंधन करने की भी कोशिश की. वो ज़रदारी ही थे जिसने 2014 में नवाज की सरकार को बचाया था. इस समय पर्दे के पीछे से जनरल राहेल शरीफ के समर्थन के बाद इमरान खान ने 120 दिनों से अधिक समय तक संसद के सामने धरना दिया था.

nawaz sharif, Mumbai attacksइमरान खान इस मौके को भी अपने पक्ष में भुनाने में लग गए हैं

उस वक्त नवाज शरीफ के खिलाफ इमरान खान का उपयोग करने के पीछे दो मुख्य उद्देश्य थे-

जनरल राहील शरीफ पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ को बचाना चाहते थे. मुशरर्फ पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजद्रोह के मुकदमे का खतरा मंडरा रहा था. दूसरा, वो अपनी सेवा में तीन साल के विस्तार के साथ ही फील्ड मार्शल बनना चाहते थे. नवाज शरीफ ने मुशर्रफ को तो राजद्रोह से बचा लिया, लेकिन राहेल शरीफ को विस्तार देने से इनकार कर दिया. उन्होंने जनरल कमर जावेद बाजवा को नया सेना प्रमुख नियुक्त किया और सोचा कि अब वो बच गए. लेकिन दुर्भाग्य से पनामा पेपर लीक ने उनका बंटाधार कर दिया.

नवाज शरीफ ने पनामा पेपर मामले को बिगाड़ दिया. इस मामले को राजनीतिक रूप से निपटने के बजाय, वो खुद इसे सर्वोच्च न्यायालय में ले गए. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया और फिर वो जनता से समर्थन के लिए सड़क पर उतर आए.

लेकिन इस बार जरदारी ने नवाज शरीफ का साथ देने से मना कर दिया. क्योंकि 2015 में जब उन्होंने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल राहेल शरीफ के खिलाफ बयान दिया था तो नवाज शरीफ ने उनका साथ देने के बजाए पल्ला झाड़ लिया था. जरदारी से बात नहीं बनने के बाद, नवाज शरीफ ने सऊदी अरब में अपने पुराने दोस्तों के माध्यम से सेना के साथ सौदा करने की कोशिश की. इन दोस्तों ने 2000 में मुशर्रफ के साथ नवाज के सौदे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. हालांकि, इस बार, सऊदी अरब भी नवाज से गुस्से में था. क्योंकि वो चाहते थे कि नवाज शरीफ पाकिस्तानी सेना को यमन के खिलाफ लड़ने के लिए भेजें. लेकिन  नवाज शरीफ ने उन्हें सिर्फ जनरल राहेल शरीफ की सेवाएं दी, सेना मुहैया नहीं कराई.

nawaz sharif, Mumbai attacksजरदारी ने भी शरीफ का साथ छोड़ दिया

कुछ महीने पहले, नवाज शरीफ सेना की आलोचना करना बंद कर सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय को टारगेट करने लगे थे. इस रणनीति ने उनको ही फंसा दिया. सेना, सुप्रीम कोर्ट के साथ खड़ी थी और उन्होंने नवाज शरीफ के साथ किसी भी तरह का कोई सौदा करने से इनकार कर दिया. अब एक बार फिर से नवाज शरीफ ने सेना की बुराई करनी शुरु कर दी. नवाज के आस-पास के कई लोगों ने उन्हें सलाह देने की कोशिश की कि उन्हें सीधे सेना पर हमला नहीं करना चाहिए. इसके बजाय चुनाव का इंतजार करना चाहिए. एक बार जब उनकी पार्टी संसद में बहुमत प्राप्त कर लेगी, तो वे उन कानूनों को बदल सकते हैं जिनके जरिए उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था.

nawaz sharif, Mumbai attacksकसाब, शरीफ के लिए गले की फांस बन गया

लेकिन नवाज शरीफ ने किसी की सुनी नहीं. उन्होंने 26/11 के बारे में बोलकर सेना पर दबाव डालने का फैसला किया. उनका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना था. उन्होंने मुंबई हमलों के बारे में कुछ भी नया नहीं कहा. लेकिन शायद उनकी टाइमिंग या फिर शब्दों का चयन गलत हो गया.

अब इमरान खान जैसे विरोधी नेता नवाज शरीफ की मिट्टी पलीद कर रहे हैं. वो नवाज से सवाल कर रहे हैं कि आखिर क्यों नवाज ने अजमल कसाब के बारे में बात की लेकिन कभी भी भारत द्वारा पाकिस्तान में जासूसी करने के लिए भेजे गए कुलभूषण जाधव के बारे में बात नहीं की. उनकी खुद की पार्टी की सरकार ही उनके बयान का खंडन करने के दबाव में आ गई. पीएम शाहिद खकान अब्बासी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की आपातकालीन बैठक बुलाई गई और नवाज शरीफ द्वारा दिए गए बयान की निंदा की गई.

nawaz sharif, Mumbai attacksपीएम साहब के लिए असमंजस की स्थिति बन गई है

मीटिंग के बाद नवाज शरीफ ने पीएम को समन किया और साफ शब्दों में कह दिया कि वो एनएससी के वक्त्वय का बहिष्कार करेंगे. अब पीएम के लिए कशमकश की स्थिति बन आई थी. वो अपने नेता को ये नहीं जताना चाहते थे कि उनके कठिन समय में उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया. आनन फानन में पीएम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और दावा किया कि डॉन ने नवाज शरीफ की बात को गलत ढंग से पेश किया. अखबार पर इल्जाम डालकर उन्होंने अपने नेता का बचाव करने की कोशिश तो की. लेकिन खुद नवाज शरीफ ने कभी भी अपने इंटरव्यू का खंडन नहीं किया. इससे स्थिति और खराब हो गई और अब हालत ये है कि आर्मी नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री के लिए शर्मिंदगी का माहौल बन गया है और पूरी पीएमएल एन पार्टी की हालत खराब है.

नवाज शरीफ से मैं कई मुद्दों पर असहमत होता हूं. पर उनके खिलाफ राजद्रोह का मामला तय करने के मैं खिलाफ हूं. राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाना एक पुरानी परंपरा है. सैन्य तानाशाह जनरल अयूब खान ने 1965 में मुहम्मद अली जिन्ना की बहन, फातिमा जिन्ना को उनके खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के कारण गद्दार और एक भारतीय एजेंट घोषित कर दिया. शेख मुजीबुर रहमान (हसीना वाजिद के पिता) ने फातिमा जिन्ना का समर्थन किया इसलिए उन्हें भी गद्दार घोषित कर दिया गया था.

इन राजद्रोह के आरोपों ने पाकिस्तान का कभी भी भला नहीं किया. बल्कि इसी तरह के आरोपों ने 1971 में पाकिस्तान के भूगोल को भी बदलकर रख दिया था.

nawaz sharif, Mumbai attacksमुशरर्फ ने तो संविधान को ही रद्द कर दिया था

वास्तव में, सबसे पहले तो पूर्व तानाशाह परवेज मुशर्रफ के राजद्रोह मुकदमें को पूरा किया जाना चाहिए उसके बाद ही हमारे "देशभक्त" दूसरों के बारे में सोचें. अगर हम फरार हो चुके मुशर्रफ के खिलाफ मुकदमा पूरा नहीं कर सकते हैं, तो हमें कथित तौर पर राजद्रोह करने के लिए तीन बार के प्रधान मंत्री को दोषी नहीं ठहराना चाहिए. मुशर्रफ ने दो दो बार संविधान को रद्द कर दिया. नवाज शरीफ ने कभी संविधान को तो रद्द नहीं किया.

हमें आने वाले चुनावों की तरफ ध्यान देना चाहिए. जल्द ही भ्रष्टाचार के मामलों में नवाज शरीफ सलाखों के पीछे जा सकते हैं. वो लोगों में ये संदेश देना चाहते कि उन्हें भ्रष्टाचार के लिए जेल की सजा नहीं दी जा रही बल्कि सेना के खिलाफ आवाज उठाने के कारण उन्हें सजा दी गई है. कुछ हफ्तों के बाद वो बड़ी रैलियों को संबोधित नहीं कर सकते लेकिन "गद्दार नवाज" इमरान खान और असिफ जरदारी की चुनावी रैलियों का अहम विषय जरुर होगा.

इमरान खान को पूरा यकीन है कि इस बार वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनेंगे और वो नवाज शरीफ पर देशद्रोह का मुकदमा कराने को लेकर भी कटिबद्ध हैं. लेकिन मेरे हिसाब से ये बहुत बड़ी गलती होगी. देशद्रोह के मुकदमों में अपना समय गंवाने के बजाए अगली सरकार को मुंबई हमलों के मुकदमे को जल्द जल्द खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए.

( पाकिस्‍तान के नामी पत्रकार हामिद मीर ने यह लेख DailyO के लिए अंग्रेजी में लिखा है, जिसका हिंदी अनुवाद यहां प्रस्‍तुत है )

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लेखक

हामिद मीर हामिद मीर

लेखक पाकिस्तानी पत्रकार हैं और जियो टीवी से जुड़े हैं.

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