New

होम -> समाज

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 मई, 2018 10:04 PM
अली मदीह हाशमी
अली मदीह हाशमी
  @AliMadeehHashmi
  • Total Shares

थॉमस जेफरसन ने लिखा है, "जब अन्याय ही कानून बन जाता है, तो प्रतिरोध कर्तव्य बन जाता है."

2016 में, जियो MAMI के अठारहवें मुंबई फिल्म महोत्सव में फैज़ अहमद फैज़ द्वारा लिखी गई फिल्म जागो हुआ सवेरा के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया था ताकि इंडियन पीपु्ल्स थियेटर एसोशिएशन से संबद्ध और पद्मा श्री से सम्मानित तृप्ति मित्रा सहित कई भारतीय कलाकारों के घमंड को बरकरार रखा जाए. उस समय के एक लेख में दोनों देशों के बीच की बढ़ती खाई और दुश्मनी की मैंने भर्त्सना की थी और स्पष्ट किया था कि फैज़ जितने पाकिस्तान के हैं उतने ही हिंदुस्तान के भी हैं.

फैज़ का जन्म पाकिस्तान में सियालकोट के पास हुआ था. फैज़ ने माओ कॉलेज से पढ़ाई खत्म करने के बाद सबसे पहली नौकरी अमृतसर में की थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने दिल्ली में ब्रिटिश भारतीय सेना में सेवा की. उन्होंने विवाह श्रीनगर में किया और 1947 में जो जमीन भारत बनी उसके लिए उन्हें गहरा लगाव भी था.

faiz ahmed faizफैज जीतना पाकिस्तान के थे उतने ही हिंदुस्तान के थे

उनकी दोनों बेटियां आज के भारत में पैदा हुई थीं.

हालांकि फैज ने कभी भी विभाजन के बारे में अपनी कोई राय नहीं दी. लेकिन 1947 से छपने वाले पाकिस्तान टाइम्स में उनके संपादकीय लेखों में सांप्रदायिक रक्तपात के बारे में वो क्या सोचते हैं ये बात स्पष्ट हो जाती थी. एक समय उन्होंने लिखा, "मुसलमानों को अपना पाकिस्तान मिल गया, हिंदुओं और सिखों को उनका पंजाब और बंगाल मिल गया, लेकिन मैं अभी भी एक ऐसे व्यक्ति फिर चाहे वो मुस्लिम हो, हिंदू या सिख से नहीं मिला जो भविष्य के बारे में उत्साहित हो. मुझे ऐसा कोई देश याद नहीं आता जिसकी जनता आजादी के दिन इतनी दुखी हो."

ये वही भावनाएं थीं जो उन्होंने अगस्त 1947 में लिखी गई अपनी प्रतिष्ठित कविता सुब्ह-ए आजादी में व्यक्त की थी. इसमें पंजाब और अन्य जगहों पर धर्म और देशभक्ति के नाम पर हो रहे कत्लेआम के बारे में लिखा था.

इसी साल मेरे दादा फैज़ की जीवनी फैज़, लव एंड रेवोल्यूशन जो मैंने लिखी थी दिल्ली में प्रकाशित हुई थी. इस किताब पर मैंने तीन साल काम किया था और दिल्ली में अपने दोस्तों और शुभचिंतकों के बीच इसे लॉन्च करने के लिए उत्सुक था. लेकिन अफसोस की बात ये है कि जब तक किताब के लॉन्च का समय आया, तब तक हमारे दोनों देशों के बीच संबंध एक बार फिर से खराब हो गए. इसलिए जब तक चीजों में सुधार नहीं होता तब तक इससे दूर रहने में ही मैंने बुद्धिमान समझी.

लेकिन मुझे क्या पता था कि हालात अच्छे होने के बजाय खराब ही होने वाले हैं.

मेरी मां मोनेज़ा हाशमी एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्ध मीडिया व्यक्तित्व हैं. पिछले हफ्ते मेरी मां एक मीडिया समिट में भाग लेने के लिए नई दिल्ली गई थीं. समिट में उन्हें क्वालालंपुर स्थित एशिया-पैसिफिक इंस्टीट्यूट फॉर ब्रॉडकास्टिंग डेवलपमेंट (एआईबीडी) ने आमंत्रित किया था. पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने इस तरह के कई सम्मेलनों में अपने वक्त्व्य दिया है. उन्हें आधिकारिक तौर पर आमंत्रित किया गया था और भारत के लिए मल्टीपल इंट्री वीजा था. इसी वीजा का इस्तेमाल कर वो अक्सर अपने दोस्तों से मिलने और कलाकारों और लेखकों को लाहौर स्थित फैज फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करती हैं.

लेकिन सम्मेलन की शाम को उन्होंने मुझे फोन किया. वो परेशान थीं. वो उसी होटल में थीं जहां सम्मेलन आयोजित किया जाना था. होटल पहुंचने पर उन्हें बताया गया कि उनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया है. इतना ही नहीं, होटल में भी उनके रिजर्वेशन को रद्द कर दिया गया था और आयोजकों ने उन्हें सम्मेलन में भाग लेने से भी मना कर दिया था. यहां तक कि उन्हें सम्मेलन में भाग लेने आए प्रतिनिधियों के साथ डिनर में भी शामिल नहीं होने दिया गया! आयोजकों में से एक मां का पुराना दोस्त था. मां ने बताया कि वो बस रोने ही वाले थे. उन्होंने जल्दी से दूसरे होटल में मां के ठहरने का इंतजाम कराया.

मैं गुस्से से तमतमाया हुआ था. लेकिन मेरे छोटे भाई ने मुझे समझाया कि गुस्सा करना फैज़ का तरीका नहीं है. दो मीटिंग के लिए मेरी मां दिल्ली में ही रही और फिर इस घटना के बारे में किसी से बात किए बिना घर वापस आ गई. लेकिन फिर भी कुछ मीडिया हाऊस को उनकी ये कहानी पता चल गई. और मुझे फैज़ के परिवार और फैज़ फाउंडेशन का पक्ष रखने के लिए कहा गया.

तो हमारा पक्ष ये है:

हम मानते हैं कि किसी सम्मानित अतिथि के अधिकारों का इस बड़े पैमाने पर उल्लंघन, किसी भी तरह से भारतीयों (और पाकिस्तानियों) के विशाल बहुमत के विचारों और दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है. ये सीमा पार होने वाली यात्राओं के जरिए आसानी से देखा जा सकता है. मुझे याद भी नहीं कि न जानें कितनी बार दिल्ली में एक टैक्सी चालक या दुकानदारों ने मुझसे पैसे लेने से मना कर दिया. जैसे ही उन्हें पता चलता कि मैं लाहौर से हूं. बल्कि वो मुझे पंजाब से संबंधित दादा दादी की कहानियां सुनाते और पुराने दिनों को यादकर भावुक होते. लाहौर का दौरा करने वाले कई भारतीयों ने भी इस तरह की ही कई कहानियां सुनाई.

हम सभी शांति और सौहर्द के साथ रहना चाहते हैं. और फिर चाहे हमारे जो भी मतभेद हों उन्हें शांतपूर्ण ढंग से सुलझा सकते हैं.

इसका दोनों ही तरफ के उन लोगों से कोई मतलब नहीं है जो हम पड़ोसी देशों के बीच युद्ध और हिंसा की आग को भड़काए रखना चाहते हैं. जैसा कि फैज़ साहब कहा करते थे- उपमहाद्वीप के लोगों सहित पूरे मानव जाति की विरासत शांति है. यहां तक की 1965 में भी जब पाकिस्तान सरकार द्वारा फैज़ साहब पर "देशभक्ति गीत" लिखने के लिए भारी दबाव बनाया जा रहा था, तब भी उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया था. बल्कि उन्होंने दोनों ही देशों के युद्ध में अपनी मातृभूमि की रक्षा में जान न्योछावर कर देने वाले सिपाहियों के लिए कविता लिखी.

और अपने लेनिन शांति पुरस्कार भाषण में फैज़ ने शांति को "... मानव जीवन की सारी सुंदरता का पहली शर्त" कहा. उन्होंने कहा, "शांति और आजादी बहुत ही सुंदर और चमकदार हैं... हर कोई कल्पना कर सकता है कि शांति अनाज और नीलगिरी के पेड़ों की तरंगें की तरह है. यह नवविवाहित दुल्हन के घूंघट और बच्चों के मासूम हाथों की तरह है."

और इसलिए, दोनों तरफ के नफरत, हिंसा और युद्ध भड़काने वाले लोगों के अलावा हम हर शांतिप्रिय भारतीय को कहना चाहते हैं:

तुम खौफ-ओ-खतर से डर-गुजरो

जो होना है सो होना है

गर हंसना है तो हंसना है

गर रोना है तो रोना है

तुम अपनी करनी कर गुजरो

जो होगा देखा जाएगा

(DailyO से साभार)

ये भी पढ़ें-

26/11 पर नवाज शरीफ का कबूलनामा बताता है कि पाक भरोसे के काबिल नहीं है

'राज़ी' सिर्फ नेशनलिस्ट ही नहीं, लिबरल और डेमोक्रेटिक भी है

लेखक

अली मदीह हाशमी अली मदीह हाशमी @alimadeehhashmi

लेखक फैज़ अहमद फैज़ की जीवनी लव एंड रिवॉल्यूशन के लेखक हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय