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Updated: 14 फरवरी, 2019 04:33 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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मुलायम का मोदीमय होना चर्चा का विषय बन गया है. इस पर एक नहीं दर्जनों नजरिये पेश हो रहे हैं. कोई कुछ कह रहा है तो कोई कुछ. जो बात हमेशा से कही जाती रही है वो बात आज दोहरायी गयी. वो ये कि समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव का भाजपा से अंदरूनी रिश्ता रहा है. मोदी उदय के बाद मुलायम ने नरेंद्र मोदी से भी करीबी रिश्ता रखा. मुलायम परिवार के निजी कार्यक्रमों में नरेंद्र मोदी आते भी रहे. कहा जा रहा है कि जिस तरह मुलायम के अनुज शिवपाल यादव पर्दे के पीछे से भाजपा के लिए काम कर रहे थे, और अब मुलायम खुद खुल कर मोदी सरकार की प्रशंसा के गुणगान गाने लगें.

मुलायम सिंह यादव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा चुनाव 2019   मुलायम सिंह का मोदी को समर्थन करना अखिलेश की मुसीबत बढ़ाता हुआ नजर आ रहा है

मुलायम सिंह के मुताबिक मोदी सरकार ने मुलायम के काम किये हैं. सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुलायम पुत्र को सीबीआई से बचाने का काम मोदी सरकार ने किया है? और इसका अहसान चुकाने के लिए मुलायम कामना कर रहे हैं कि नरेंद्र मोदी पुनः सरकार बनायें.

अपने दल से बेदखल होने का दर्द?

दशकों पहले समाजवादी विचारधारा से जुड़े तमाम बड़े नेता कई हिस्सों में बंट गये थे. समाजवादी विचारधारा की पार्टियां बनीं और मिटीं. अंत में समाजवादी नेता मुलायम सिंह की कयादत में उतर प्रदेश में समाजवादी पार्टी जम गयी. इस पार्टी ने कई बार यूपी में सरकार बनायी. केंद्र की सत्ता में भी सपा की भागीदारी रही. समाजवादी मुलायम राजनीति में लम्बी रेस के घोड़े साबित हुई. जब शेर बूढ़ा होने लगा तो घर(सपा) बिखर सा गया. मुलायम ने पुत्र अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया.

जिसके बाद मुलायम को ही पार्टी के अध्यक्ष पद से बेदखल कर दिया गया. मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव भी पार्टी से बेदखल कर दिये गये. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर काबिज भतीजे अखिलेश यादव से निराश और हताश शिवपाल यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. मुलायम ने बिखर रही सपा को एक करने की लाख कोशिशों में नाकामी पाकर आज भाजपा के महानायक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आस्था व्यक्त कर दी.

यानी समाजवाद तीन हिस्सों में बट गया. एक- अखिलेश यादव (सपा) वाला समाजवाद. दूसरा समाजवाद- शिवपाल यादव वाली प्रगतिशील समाजवादी पार्टी में समायोजित हो गया. और तीसरा सबसे वरिष्ठ समाजवादी पुरोधा मुलायम सिंह यादव भाजपा के नरेंद्र मोदी की आस्था में लीन हो गये. ऐसा नहीं है कि संसद के आखिरी दिन मुलायम सिंह यादव की जुबान फिसल गई और उनके मुंह से प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कोई अच्छाई निकल गई.

ऐसा भी नहीं कि शिष्टाचार के तहत मुलायम ने मोदी को एक वाक्य में शुभकामनाएं दीं. मुलायम सिंह यादव ने तयशुदा तरीके से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी प्रशंसा में पूरा भाषण दिया. भाजपा सरकार के कसीदे वाले पिता मुलायम के भाषण पर पुत्र अखिलेश क्या जवाब देते हैं, इसका हर किसी को इंतजार है.

सीबीआई का डर?

मुलायम सिंह यादव अपनी पार्टी लाइन से अलग रख कर नरेंद्र मोदी की खुलकर तारीफ क्यों कर रहे हैं? अपने वोट बैंक को नाराज करके वो ऐसा किस मजबूरी में कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर चर्चा ये भी हो रही है कि मोदी की तारीफ करने वाले मुलायम की मजबूरियां हैं. बेटे अखिलेश सरकार के खनन घोटाले की पर्दें खुलेंगे तो पिता के शासन काल तक पंहुच सकती हैं. सपा सरकार के पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति खनन और तमाम मामलों में जेल मे हैं.

बताया जाता है कि खनन की नाजायज कमाई का हिस्सा मुलायम के उस कुंबले को पंहुचता था जो अखिलेश विरोधी है. यही नहीं आय से अधिक सम्पत्ति जैसे तमाम संगीन मामलों में मुलायम सिंह यादव को कभी सीबीआई अपने गिरफ्त में ले सकती है. मोदी सरकार का पूरा कार्यकाल खत्म होने को है लेकिन इस दौरान मुलायम के प्रति मुलायम रही मोदी सरकार. अब बस ये डर है कि पुत्र अखिलेश यादव पर सीबीआई अपना शिकंजा तेज ना कर दे.

यूपी का राजनीतिक समीकरण बिगाड़ा

अब चर्चाएं तेज हो गयी हैं. मुलायम पर आस्था रखने वाले और मोदी का विरोध करने वाले अभी तक खामोश हैं. लेकिन ये तय है कि संसद में मुलायम के मोदीमय होने के बाद यूपी में कांग्रेस को बड़ा फायदा हो सकता है. यहां सपा-बसपा गठबंधन और कांग्रेस दोनों ही मुसलमानों की पसंद हैं. यूपी की आबादी का बीस फीसद हिस्सा मुस्लिम समाज कशमकश में था कि वो किसे ताकत दे. यदि सपा-बसपा गठबंधन को वोट करें तो लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का पहला प्यार कांग्रेस हार जायेगा. जबकि केंद की सत्ता से यदि भाजपा बेदखल हुई तो केंद में केंद्रीय भूमिका कांग्रेस की ही रहेगी.

मुसलमानों की ये कशमकश मुलायम सिंह की मनोभावना की अभिव्यक्ति ने दूर कर दी. सपा से नाराज होकर अब यूपी की बीस प्रतिशत आबादी वाला मुस्लिम समाज एकजुट होकर कांग्रेस की झोली भर सकता है. मुलायमवादी यादव समाज भाजपा पर आस्था व्यक्त कर सकता है. यानी इस नजरिए से देखिए तो मुलायम के भाषण ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही खुश कर दिया.

साथ ही अपनी पैदा की हुई पार्टी से बेदखल और इसे एक करने में नाकाम हो चुके मुलायम सिंह यादव ने अब प्रधानमंत्री बनने की उम्‍मीद तो छोड़ दी होगी, तो क्‍या इस बयान के पीछे भविष्य में राष्ट्रपिता या उपराष्ट्रपति बनने की हसरत हो सकती है? इन तमाम चचाओं के बीच इस पूरे मामले पर एक मशहूर शेर भी वायरल हो रहा है-

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी,

मुलायम यूं ही बेवफा नहीं होते.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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