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Updated: 30 नवम्बर, 2017 02:10 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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गृह युद्ध के मार्ग पर बढ़ते हुए और तमाम तरह की आंतरिक अशांति के बीच पाकिस्तान में बहुत कुछ ऐसा है जिसपर पाकिस्तान समेत दुनिया भर में लम्बी चर्चा संभव है. चर्चा को देखते हुए इस बात का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि आज आखिर पाकिस्तान के पिछड़ने की वजह क्या है. इन चर्चाओं को ध्यान से सुनिए. मिलेगा कि चर्चा के पैनल में मौजूद कोई शख्स ऐसा ज़रूर होगा जिसका ये मानना होगा कि पाकिस्तान के ऐसे हालात होने के पीछे वहां की सेना जिम्मेदार है. या फिर आज पाकिस्तान जिन संघर्षों का सामना कर रहा है वो केवल इस लिए हो रहे हैं कि नौकरशाही पर सेना हावी है.

बीते दिनों ईश निंदा को लेकर पाकिस्तान में बड़ा आंदोलन चल रहा था और आंदोलन की अगुवाई करने वाले प्रमुख संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान ने मांग की थी की देश के कानून मंत्री अपना इस्तीफ़ा दें. पाकिस्तान के कानून मंत्री ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया है और इसको लेकर संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के सरपरस्त खादिम हुसैन रिज़वी का मत है कि प्रदर्शन को उग्र बनता देख सेना ने कानून मंत्री जाहिद हामिद को मजबूर किया कि वो अपना इस्तीफ़ा दें जबकि कानून मंत्री की ये मंशा बिल्कुल नहीं कि वो इस्तीफ़ा दें. ऐसा इसलिए क्योंकि सेना और उनके संगठन में 'बातचीत' हुई थी और उस बातचीत में ये निकल कर सामने आया कि इस प्रदर्शन को रोकने का एक मात्र तरीका ये है कि कानून मंत्री अपना इस्तीफा देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दें.

यहां आपको ये बताना ये बेहद ज़रूरी हो जाता है कि संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान की पूरी बातचीत सेना और आईएसआई से हुई थी और इस पूरी बातचीत में 'सरकार' मामले से दूरी बनाते हुए दिखी. ये बात सिर्फ एक उदाहरण है ये दर्शाने के लिए कि कैसे पाकिस्तान के निजाम में सेना घुसी हुई है और आए रोज उसे खोखला कर रही है.पाकिस्तान, पाकिस्तान सेना, प्रधानमंत्री नवाज शरीफपाकिस्तान की हर गतिविधि पर उसकी सेना की नजर एक चिंता का विषय है

तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान और सेना के बीच हुई इस बातचीत को देखकर ये कहना अतिश्योक्ति न होगा कि शायद पाकिस्तान में कराची की किसी गली में खडंजा बिछाने से लेकर जनता के लिए चीन से कितने मोबाइल फोन और पेनड्राइव लिए जाएं तक सारे फैसलों में सेना का दखल है. जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप मौजूदा परिदृश्य में पाकिस्तान की स्थिति देखकर यही लगता है कि वहां सरकार किसी कठपुतली की तरह है जिसे सेना अपने इशारों पर नचा रही है. पाकिस्तान की सियासत पर सेना का प्रभाव कोई आज का नहीं है. चाहे कश्मीर मुद्दे पर आतंकवाद को खाद पानी देते हुए आतंकियों के समर्थन की बात या फिर अमेरिका और चीन समेत दूसरे मुल्कों से बातचीत पाकिस्तान की सियासत में कई ऐसे मौके आए हैं जब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सेना ने वहां अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. ईश निंदा को लेकर तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के ही इस प्रकरण को नजीर बनाया जाए तो मिलता है कि पाकिस्तानी हुक्मरानों में सेना का लेकर खौफ़ है और वो किसी भी प्रकार से सेना या उनकी कार्यप्रणाली को आहत नहीं करना चाहते.

आइये एक नजर डालें कि देश को सुरक्षा देने के उद्देश्य से निर्मित की गयी पाकिस्तान की सेना अपना काम छोड़ और कहां-कहां अपनी सेवा दे रही है.

पाकिस्तान, पाकिस्तान सेना, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ   पूरे विषय के सामने माना जा रहा है कि पाकिस्तान सेना आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है

आतंकवाद का पोषण और उसे खाद पानी देना

बात जब आतंकवाद के अंतर्गत आती है तो जुबान पर पाकिस्तान का नाम आना स्वाभाविक हो जाता है. इसके बाद रही गयी कसर पूर्व आर्मी जर्नल परवेज मुशर्रफ जैसे लोगों के बयान पूरे कर देते हैं जिनका ये मानना होता है कि लश्कर ए तैयबा और जमात-उद-दावा जैसे संगठन और हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकी उन्हें पसंद करते हैं. साथ ही कैसे सेना आतंकियों को ट्रेनिंग, हथियार और आर्थिक मदद मुहैया कराती है. इन बातों के बाद ये बात अपने आप साफ हो जाती है कि यदि पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है तो उसके पीछे की एक बड़ी वजह सेना ही है.

अंतरराष्ट्रीय मुलाकातें और सेना

ये बात किसी भी देश को हैरत में डाल सकती है कि पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जहां देश की नीतियों पर चर्चा और अपने सारे अहम फैसले सुनाने के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति नहीं बल्कि सेना के जर्नल जाते हैं. इसे आप  पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा की ईरान यात्रा के सन्दर्भ में देखिये. बाजवा ने ईरान जाकर वहां के नेताओं से विभिन्न द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर विचार विमर्श किया था और इस दिशा में अपने प्रयासों से ईरान की हुकूमत को अवगत कराया था. अब आप खुद बताइए कि जब देश में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मौजूद हैं तो फिर सेना प्रमुख बाजवा को ऐसी क्या जरूरतपड़ गयी जो उन्हें ईरान जाकर वहां के राजनेताओं से अलग-अलग द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर विचार विमर्श करना पड़ा. ये मुलाकात ये बताने के लिए काफी है कि पाकिस्तान में बिना सेना और जीएचक्यू की अनुमति के परिंदा भी पर नहीं मार सकता.

पाकिस्तान, पाकिस्तान सेना, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ   अपनी सेना के कुकर्मों के कारण ही पाकिस्तान अँधेरे में जा रहा है

कट्टरपंथियों को चरमपंथ फैलाने के लिए पूर्ण समर्थन

पाकिस्तान और पाकिस्तान में मौजूद चरमपंथ को देखें तो मिलता है कि इन ताकतों को सेना का पूरा समर्थन प्राप्त है. कहा जा सकता है कि सेना के एक इशारे पर ये ताकतें पूरा पाकिस्तान जलाकर स्वाहा कर देने में एक पल की भी देरी नहीं लगाएंगी. बताया जाता है कि पाकिस्तान में 75% कट्टरपंथी संगठन सेना और आईएसआई के इशारों पर फल फूल रहे हैं. कहने को तो पाकिस्तान में लोकतंत्र है मगर वहां सेना इस कदर हावी है कि आज इसका खामियाजा उस देश के एक आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है.

सेना और नागरिकों के बीच से लगभग गायब हो गए हैं नेता

किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए ये बेहद जरूरी है कि उसके नागरिकों और उसके नेता का सीधा संवाद हो और कोई उनके बीच में न आए. ये बात दुनिया में किसी भी लोकतांत्रिक देश पर लागू हो सकती है मगर जब बात पाकिस्तान को ध्यान में रखकर हो तो यहां मामला थोड़ा पेचीदा हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस देश में छोटे से लेकर बड़े तक लगभग सभी मुद्दों में सेना की दखल अंदाजी हो तो फिर संवाद के मायने लगभग समाप्त हो जाते हैं.

पाकिस्तान, पाकिस्तान सेना, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ   आज पाकिस्तान के पतन का कारण खुद वहां की सेना है

अपने निजी स्वार्थ के चलते पाकिस्तान को गर्त में ढकेल रही है सेना

हममे से बहुत से लोग इस बात से सहमत होंगे कि अगर कोई देश अपनी सेना के कारण गर्त के अंधेरों में जा रहा है तो वो भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान है. आज जिस तरह सभी प्रमुख मुद्दों को सेना अपने शिकंजे में जकड़े हुए है उसको देखकर ये साफ पता चल रहा है कि वो दिन दूर नहीं जब यहां के नागरिक अपने अधिकारों के लिए अपनी ही रक्षा करने वाले सेना के सामने बगावत का बिगुल बजा दें. 

इन बातों को जानने के बाद ये कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि जब एक तरफ सेना का प्रमुख काम अपने नागरिकों की सुरक्षा करना है तो वहीं पाकिस्तान की सेना को देखकर प्रतीत होता है कि वो नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराने के अलावा हर वो काम कर रही है जो उसे नहीं करना चाहिए. कहा जा सकता है कि यदि भविष्य में पाकिस्तान की स्थिति खराब हुई तो जहां एक तरफ इसकी जिम्मेदारी उसके नेताओं की होगी तो वहीं इसके लिए वहां की सेना को भी बराबर का जिम्मेदार माना जाएगा. साथ ही हर छोटी बड़ी बात पर पाकिस्तानी सेना की दखलंदाजी देखकर फ़िलहाल यही मालूम दे रहा है कि वो दिन दूर नहीं जब केवल सेना के ही कारण ये देश एक बड़े विद्रोह का सामना कर धूं-धूं कर के जल उठे.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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