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Updated: 08 दिसम्बर, 2018 08:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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पूरी तरह न सही. Exit Poll के अनुमान चुनाव नतीजों के जितने करीब होंगे, राहुल गांधी का कद भी उसी हिसाब से देखा जाएगा. कांग्रेस के भीतर भी और बाहर भी. तेलंगाना एक्सपेरिमेंट का हाल भले ही यूपी में साइकिल के हैंडल को हाथ लगाने जैसा होता लग रहा हो, फिर भी चंद्रबाबू नायडू के साथ राहुल गांधी का हाथ काफी मजबूत हो चुका है.

नायडू का राहुल गांधी के साथ आना मौजूदा विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की सक्रियता की बदौलत ही संभव हुआ है. नायडू ऐसे पहले सीनियर नेता हैं जो राहुल गांधी के साथ खुल कर मैदान में उतरे हैं. मुलाकातें तो शरद पवार जैसे कद्दावर नेताओं के साथ भी राहुल गांधी की हुई, लेकिन ममता बनर्जी और एचडी देवगौड़ा जितना शायद ही किसी ने उन्हें नजरअंदाज किया हो. यहां तक कि मायावती ने भी राहुल गांधी से दूरी बनाये रखी. आगे भी यही सब होगा, ऐसा फिलहाल तो नहीं लगता.

राहुल गांधी की फील्ड एक्टिविटी दर्ज तो हुई है

राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने से पहले गुजरात चुनाव में खूब मेहनत की थी. फिर कर्नाटक चुनाव पर भी उनका पूरा जोर रहा. जोर इतना कि मेघालय सहित नॉर्थ ईस्ट के तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों की ओर रस्म निभाने से ज्यादा देखा तक नहीं. कर्नाटक चुनाव के खत्म होते ही राहुल गांधी लगातार छत्तीसगढ़ जाते पाये गये.

rahul gandhiमोर्चे पर मुस्तैद

छत्तीसगढ़ को लेकर राहुल गांधी की दिलचस्पी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 90 सीटों के लिए जितनी जनसभाएं की, संख्या के हिसाब से मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी उतना ही चुनाव प्रचार किया. छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी की 20 चुनावी सभाएं हुईं जबकि मध्य प्रदेश की 230 सीटों के लिए 21 रैलियां और पांच रोड शो किये - और राजस्थान की 200 सीटों के लिए भी 20 ही जनसभाएं की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राहुल गांधी की तुलना की जाए तो दोनों में दोगुना से भी ज्यादा फासला रहा. राहुल गांधी ने एक पब्लिक मीटिंग से लगभग 10 सीटें कवर कीं तो प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली से 22-24 सीटों को कवर किया. बीजेपी ने 5 राज्यों की 679 सीटों के लिए प्रधानमंत्री मोदी के लिए 32 रैलियां आयोजित की थी, दूसरी तरफ कांग्रेस ने राहुल गांधी के 77 चुनावी कार्यक्रम कराये.

मोदी की चौकीदारी से लेकर हिंदुत्व तक चैलेंज

पूरे चुनाव प्रचार में राहुल गांधी राफेल सौदे को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर लगातार हमलावर रहे. हकीकत जो भी हो सुर्खियां तो बटोरी ही. चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी चौकीदार कह कर प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट करते रहे और लोगों को समझाते रहे कि किस तरह कुछ बड़े कारोबारियों को मोदी सरकार फायदा पहुंचा रही है. राहुल गांधी ने एक बार राफेल डील से अंबानी को फायदा पहुंचाने का इल्जाम लगाना शुरू किया तो आखिर तक कायम रहे. चुनाव प्रचार जब जोर पकड़ा तो राहुल गांधी ने स्लोगन भी चलाया - गली गली में शोर है, चौकीदार चोर है. आखिर के हर कार्यक्रम में राहुल गांधी खुद बोलते 'चौकीदार...' तो भीड़ से आवाज आती - '...चोर है'.

narendra modiचौकीदार पर निशाना

बीजेपी निश्चित तौर पर इससे परेशान हुई. राजस्थान में वोटिंग के ऐन पहले जब हेलीकॉप्टर सौदे के दलाल क्रिश्चियन मिशेल जेम्स को प्रत्यर्पण कर भारत लाया गया तो प्रधानमंत्री मोदी ने जोरदार तरीके से उसे प्रोजेक्ट किया. सोनिया गांधी का नाम लेते हुए मोदी ने भरी सभा में ऐलान किया - राजदार आ चुका है, राज खुलेंगे. हालांकि, तब काफी देर हो चुकी थी. मिशेल के आने में भी और मोदी के राजस्थान पहुंचने में भी.

मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में राहुल गांधी की सभाओं में बोल बम के नारे लग रहे थे. असल में उसी दौरान राहुल गांधी कैलाश मानसरोवर यात्रा की मन्नत पूरी कर लौटे भी थे और कांग्रेस को जनेऊधारी हिंदू से आगे कदम बढ़ाते हुए शिव भक्त के रूप में स्थापित करने की कोशिश हो रही थी. इसी बीच राहुल गांधी के गोत्र को लेकर भी बीजेपी ने खूब बवाल किया.

चुनाव प्रचार का आखिरी दौर आते आते राहुल गांधी ने एक दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिंदुत्व के ज्ञान पर ही सवाल खड़े कर दिये. राहुल को जवाब देने के लिए सुषमा स्वराज को मोर्चा संभालना पड़ा.

गुटबाजी खत्म करने की रणनीति

कांग्रेस से जुड़े मामलों में जब से राहुल गांधी ने जिम्मेदारी उठायी अंदरूनी गुटबाजी बार बार उनके सामने चुनौती बन कर उभरी. गुटबाजी की मिसहैंडलिंग का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस को नॉर्थ ईस्ट में हिमंता बिस्व सरमा जैसे नेता गंवाने पड़े - और अब खामियाजा भी भुगतना पड़ रहा है. वैसे करतारपुर कॉरिडोर के नाम पर पंजाब कांग्रेस में जो कुछ हाल फिलहाल हुआ है वो ताजातरीन है.

rahul gandhiड्रामे भी करने पड़े...

विधानसभा चुनावों में भी राहुल गांधी के लिए गुटबाजी को किनारे कर आगे बढ़ना आसान नहीं था. गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी ने सचिन पायलट को राजस्थान का कांग्रेस अध्यक्ष और अशोक गहलोत को दिल्ली में कांग्रेस महासचिव बना दिया. संगठन में राहुल गांधी के बाद अशोक गहलोत सबसे ताकतवर नेता बन गये.

माना गया कि सचिन और गहलोत का झगड़ा खत्म करने के लिए ये तरीका अपनाया गया. लेकिन जब राहुल गांधी को फीडबैक मिला कि बगैर गहलोत को मैदान में उतारे वसुंधरा राजे के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को भुनाया नहीं जा सकता तो रणनीति बदली. सचिन पायलट के साथ साथ अशोक गहलोत को भी चुनाव लड़ाने का फैसला हुआ. लोगों में सही मैसेज भी जाये इसके लिए ड्रामा भी किया. बाइक पर बैठा कर दोनों को सड़क पर उतार दिया - हैंडल सचिन को पकड़ाया और गहलोत को राइडर बना दिया. सुर्खियां तो बननी ही थीं. बाद में जब लोगों के बीच रैली करने पहुंचे तो खास तौर पर जिक्र किया - ताकि लोग यकीन कर सकें कि दोनों में कोई झगड़ा नहीं है. सब मिल जुल कर काम कर रहे हैं.

congress leadersसबको साथ रखने की चुनौती भी रही...

राजस्थान जैसा ही टकराव मध्य प्रदेश में भी रहा. वहां भी राहुल गांधी ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कदम-कदम पर साथ-साथ खड़े दिखाने की पूरी कोशिश की. सिर्फ कमलनाथ और सिंधिया ही नहीं, दिग्विजय को भी कहीं न कहीं उलझाये रखना जरूरी था. ये भी छोटी मोटी चुनौती नहीं थी, लेकिन राहुल गांधी ने इसे भी सुलझाया.

ये राहुल गांधी के लिए डबल चैलेंज रहा. पहले तो दोनों पक्षों को एक साथ काम पर लगाये रहना, फिर कार्यकर्ताओं और लोगों तक ये संदेश पहुंचाना कि हम सब एक हैं - फिक्र करने की जरूरत नहीं है.

धीरे धीरे ही सही राहुल गांधी 2019 की ओर मजबूती से कदम बढ़ा लग रहे हैं. एक तर्क ये हो सकता है कि राहुल गांधी को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल रहा है. फिर तो जवाब भी यही होगा कि ऐसा ही फायदा तो 2014 में मोदी को भी मिला था.

मौजूदा दौर की राजनीति में बीजेपी का छोटा सा भी नुकसान कांग्रेस के लिए बड़ा फायदा साबित हो सकता है. तीन राज्यों में जिस हिसाब से बीजेपी को नुकसान की आशंका जतायी जा रही है - कांग्रेस का राजनीतिक मुनाफा तो उम्मीदों से भी ज्यादा ही माना जाना चाहिये.

राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार खत्म करने के बाद मीडिया से मुलाकात और बात की. साथ ही चुनौती दी कि प्रधानमंत्री मोदी भी ऐसा करके दिखायें तो जानें. जब अमित शाह से इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि बीजेपी की ओर से इस बारे में संबित पात्रा देंगे. ताजा चुनाव बीजेपी के लिए बड़ा सबक साबित हो सकते हैं - आखिर बीजेपी को ऐसा क्यों लगता है कि कांग्रेस और राहुल गांधी अच्छे दिन फिर से नहीं आने वाले हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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