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Updated: 09 सितम्बर, 2022 12:53 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की 17 अति पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को अनुसूचित जाति (एससी) में शामिल करने की दो अधिसूचनाओं को रद्द कर दिया है. सियासी गलियारों में चर्चा है कि योगी सरकार अब मानसून सत्र में विधानसभा के दोनों सदनों से प्रस्‍ताव पास कराकर इसे केंद्र सरकार को भेजने की तैयारी कर रही है. क्योंकि, बीते दिनों इसी बाबत सूबे की भाजपा सरकार में मंत्री संजय निषाद और राकेश सचान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी. योगी सरकार के सामाजिक कल्याण मंत्री असीम अरुण ने भी कहा है कि 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है. और, पूरा होते ही इसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया जाएगा. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि यूपी की राजनीति में 17 ओबीसी जातियों को SC का दर्जा देने के क्या मायने हैं?

Casteism OBC SC UP Politicsइसी बाबत सूबे की भाजपा सरकार में मंत्री संजय निषाद और राकेश सचान ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी.

किन जातियों को एससी कोटे में शामिल करने की हो रही है मांग?

उत्तर प्रदेश की 17 जातियां कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी, मछुवा अतिपिछड़ा वर्ग में दर्ज हैं. और, लंबे समय से मांग की जा रही है कि इन जातियों को ओबीसी से हटाकर एससी कोटे में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया जाए. बता दें कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार के दौरान भी इन जातियों को एससी में शामिल करने के लिए अधिसूचना जारी की गई थी. लेकिन, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अब सपा सरकार के साथ ही योगी सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना को रद्द कर दिया है.

अखिलेश और सपा के लिए क्या मायने हैं?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को ओबीसी समाज के नेता के तौर पर जाना जाता है. माना जाता है कि अति पिछड़ी जातियों का वोट बैंक हमेशा से ही समाजवादी पार्टी के साथ रहा है. यूपी की सत्ता में काबिज होने वाली समाजवादी पार्टी की ओबीसी मतदाताओं पर अच्छी-खासी पकड़ मानी जाती है. हालांकि, इनमें से यादव वोट बैंक को समाजवादी पार्टी के काडर के तौर पर जाना जाता है. अगर इन जातियों को ओबीसी कोटे से निकाल कर एससी में शामिल किया जाता है. तो, करीब 15 फीसदी आबादी वाला ये वोट बैंक अखिलेश यादव से छिटक सकता है. हालांकि, ये वोट बैंक पूरे सूबे में कई जगहों पर फैला हुआ है. लेकिन, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले इतने बड़े एकमुश्त वोट बैंक का नुकसान न अखिलेश यादव झेल पाएंगे. और, न ही समाजवादी पार्टी.

भाजपा के लिए क्या मायने हैं?

यूपी की सियासत में जातीय समीकरण हमेशा से ही मायने रखते हैं. और, भाजपा इन जातीय फॉर्मूलों को डिकोड करने में सबसे आगे है. 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही भाजपा की राजनीति ओबीसी केंद्रित हो चुकी है. सरकार से लेकर संगठन तक में ओबीसी नेताओं को वरीयता मिलना इसका संकेत भर नहीं है. बल्कि, भाजपा की रणनीतिक सोच को दिखाती है. हिंदुत्ववादी विचारधारा के साथ जातीय फॉर्मूले का कॉम्बिनेशन बनाकर भाजपा खुद को मजबूत कर रही है. और, जातिगत राजनीति करने वाली पार्टियों के वोट बैंक कहे जाने वाले दलित और ओबीसी समुदाय में भरपूर सेंध लगाई है. इन 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से जहां भाजपा को इस वोट बैंक को साधने में मदद मिलेगी. क्योंकि, अनुसूचित जाति में शामिल होने पर इन 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी समुदाय की तरह ही तमाम लाभ मिलने लगेंगे. और, अगर ऐसा होता है, तो ये वोट बैंक भाजपा की ओर मुड़ना तय है.

दलित जातियों और दलित राजनीति के लिए क्या मायने हैं?

उत्तर प्रदेश में दलित आबादी करीब 22 फीसदी है. इनमें जाटव, वाल्मीकि, धोबी, कोरी, पासी, समेत 66 उपजातियां हैं. इन 17 अति पिछड़ी जातियों के एससी में शामिल होने से दलित वोट बैंक काफी मजबूत हो जाएगा. आसान शब्दों में कहें, तो इन जातियों के शामिल होने के बाद यूपी में दलित आबादी करीब 37 फीसदी हो जाएगी. यह एक तरह से सियासी दलों के लिए दोधारी तलवार का काम करेगा. क्योंकि, अगर इस वोट बैंक के बीच से चंद्रशेखर रावण जैसा कोई नेता उभरता है. तो, यह राजनीतिक पार्टियों के लिए ही सिरदर्द बनेगा. ये अलग बात है कि अनुसूचित जाति में शामिल होने पर इन 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी समुदाय की तरह ही तमाम लाभ मिलने लगेंगे. और, अगर ऐसा होता है, तो संभव है कि ये वोट बैंक भाजपा के खाते में जाए. लेकिन, सियासी तौर पर इस बात का खतरा तो बना ही रहेगा कि कोई छोटा राजनीतिक दल और न खड़ा हो जाए.

ओबीसी राजनीति के लिए क्या मायने हैं?

भाजपा की ओबीसी केंद्रित राजनीति अति पिछड़ी जातियों में भी गैर-प्रभावशाली जातियों पर टिकी हुई है. दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए रोहिणी आयोग ने ओबीसी कोटे को चार श्रेणियों में बांटने का प्रस्ताव तैयार किया है. रोहिणी आयोग का मानना है कि ओबीसी लिस्ट में शामिल कुछ प्रभावशाली जातियां ही आरक्षण का लाभ उठा रही हैं. और, अन्य जातियों को इसका समान लाभ नहीं मिल पा रहा है. रोहिणी आयोग ने इन चारों श्रेणियों में से पहली को 2 फीसदी, दूसरी को 6 फीसदी, तीसरी को 9 फीसदी और चौथी को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव तैयार किया है. अगर रोहिणी आयोग की रिपोर्ट लागू हो जाती है. तो, भाजपा के खिलाफ जातिगत राजनीति करने वाले सियासी दलों का जातीय जनगणना का हथियार भी कमजोर पड़ सकता है. क्योंकि, इसके चलते ओबीसी जातियों में शामिल उस क्रीमीलेयर का नुकसान होगा. जो भाजपा का वोट बैंक नहीं है. वैसे भी एससी-एसटी समुदाय की पहले से ही जातिगत जनगणना की जाती रही है. तो, भाजपा के लिए जातिगत जनगणना कोई बड़ी समस्या बनकर नहीं उभरेगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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