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Updated: 04 मई, 2021 09:02 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने 'डबल सेंचुरी' लगाते हुए शानदार जीत दर्ज की है. तृणमूल कांग्रेस को मिले प्रचंड बहुमत से कार्यकर्ताओं का उत्साह सातवें आसमान पर पहुंच गया है. टीएमसी कार्यकर्ताओं के जीत के जश्न में गुलाल के साथ खून भी शामिल हो रहा है. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का 'खेला' शुरू हो गया है. चुनाव नतीजों के सामने आने के बाद से राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिंसा व आगजनी का दौर जारी हो गया है. बंगाल का 'रक्तचरित्र' एक बार फिर से उभर कर सामने आने लगा है. चुनाव नतीजों के आते ही नंदीग्राम में भाजपा के दफ्तरों में आग लगाई जा रही है, भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों में तोड़-फोड़ और हत्या की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बंगाल लोकतंत्र के 'जंगलराज' में बदलने जा रहा है?

ममता की शांति की अपील में भी छिपा है 'दर्द'

पश्चिम बंगाल की हिंसा पर ममता बनर्जी ने चिंता जताते हुए तृणमूल कार्यकर्ताओं से शांति बरतने की अपील की है. उन्होंने कहा कि हमें भाजपा और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने बहुत तकलीफ पहुंचाई है. लेकिन मैं लोगों से शांति की अपील करती हूं. लोग हिंसा में शामिल ना हों. अगर कोई झगड़ा होता है तो पुलिस को सूचित करें. ममता का बनर्जी के टीएमसी कैडर से की गई ये अपील फिलहाल माहौल को शांत कर सकती है. लेकिन, 'दीदी' के इस बयान में भी यह साफ नजर आ रहा है कि भाजपा ने उन्हें दर्द पहुंचाया है और पार्टी के लोग इसका हिसाब आज नहीं, तो कल करेंगे.

बंगाल में शासन करने वाले चेहरे बदलते रहे हैं, लेकिन प्रतिशोध की राजनीति का रक्तचरित्र नहीं बदलता है.बंगाल में शासन करने वाले चेहरे बदलते रहे हैं, लेकिन प्रतिशोध की राजनीति का रक्तचरित्र नहीं बदलता है.

सत्ता के साथ नहीं बदलता है बंगाल का रक्तचरित्र

ममता बनर्जी को बंगाल में अगले 5 सालों तक शासन चलाना है. बंगाल में शासन करने वाले चेहरे बदलते रहे हैं, लेकिन प्रतिशोध की राजनीति का रक्तचरित्र नहीं बदलता है. पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा कोई नई बात नहीं है. आजादी के बाद कांग्रेस के कार्यकाल में वामदलों के कार्यकर्ता इसका शिकार होते रहे. वामदलों के शासन में कांग्रेस के लोग निशाने पर रहे. तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने पर हिंसा ने बदले का रूप लेते हुए वामदलों के कार्यकर्ताओं पर कहर ढाना शुरू कर दिया. अब राज्य में भाजपा मुख्य प्रतिद्वंदी बन गई है, तो वह निशाने पर है.

ममता ने खुद कहा था- 'गद्दारों' के नहीं किया जाएगा माफ

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान दल-बदलुओं को 'गद्दार' घोषित कर दिया था. चुनाव प्रचार में 'दीदी' ने कहा था कि इन गद्दारों को माफ नहीं किया जाएगा. जनता के साथ धोखा करने वाले इन लोगों के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनने के बाद कार्रवाई की जाएगी. क्या सवाल नहीं उठना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा को तृणमूल कांग्रेस मुखिया के इस बयान से बल मिला होगा. राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने के लिए हिंसा का 'खेला' करने में बंगाल का पुराना इतिहास लोगों के सामने है. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 1999 से 2016 के बीच राजनीतिक हत्याओं का औसत 20 रहा है. वहीं, 2018 के पंचायत चुनाव से बीते साल अक्टूबर तक करीब 100 नेताओं की हत्या हुई है.

एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 1999 से 2016 के बीच राजनीतिक हत्याओं का औसत 20 रहा है.एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 1999 से 2016 के बीच राजनीतिक हत्याओं का औसत 20 रहा है.

'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' की तर्ज पर राजनीति

पश्चिम बंगाल में बीते कई दशकों से 'जिसकी लाठी, उसकी भैंस' की तर्ज पर राजनीति होती रही है. यहां के पंचायत चुनावों में लोगों को नामांकन तक दाखिल नहीं करने दिया जाता है. लोकतंत्र में शायद ही कोई ऐसी घटनाओं के बारे में सोच सकता होगा. लेकिन, बंगाल में ये सभी चीजें 'न्यू नॉर्मल' में आती हैं. जनता भी सियासी हिंसा को देखते हुए इसकी अभ्यस्त हो गई है. प्रतिशोध की राजनीति की जड़ें पश्चिम बंगाल में गहरी जम चुकी हैं. ममता बनर्जी के शासनकाल में भी यह बदस्तूर जारी रहा है. वर्तमान में पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी खूब चल रहा है. पश्चिम बंगाल में विपक्षी दलों ने जब भी सत्तारूढ़ दल के लिए चुनौतियां पैदा की हैं, राजनीति उसका दमन हिंसा से करती आई है.

'दीदी' खुद नहीं बदल सकीं प्रतिशोध की राजनीति

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ तक हिंसा पर चिंता जता रहे हैं. लेकिन, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे रोकने के लिए केवल अपील करती दिख रही हैं. पश्चिम बंगाल में हमेशा से ही 'लोकतंत्र की हत्या' होती रहती है और आजतक इस पर कोई कुछ नहीं कर सका है. इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करने और विपक्षी पार्टी को कमजोर करने के लिए भविष्य में भी हिंसा का सहारा लिया जाएगा. एक चुनी हुई सरकार अपने ही राज्य के लोगों के मरने पर आरोपों की राजनीति करने लगती है, तो उससे कोई उम्मीद रखना बेमानी ही होगा. आंकड़े बताते हैं कि ममता बनर्जी की सरकार अपने 10 सालों के शासन में भी राजनीतिक हत्याओं पर रोक नहीं लगा सकी है. कहना गलत नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल लोकतंत्र के जंगलराज की ओर बढ़ रहा है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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