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Updated: 22 जून, 2018 03:29 PM
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मामला जब टक्कर का हो तो फैसला कई राउंड में होता है. राजस्थान में बीजेपी की राजनीति में फिलहाल टाइम आउट है. फाइनल से पहले सन्नाटा छाया हुआ है. चार दिनों तक अपने लाव लश्कर के साथ दिल्ली में डेरा डाले रहीं वसुंधरा राजे वापस जयपुर लौट आई हैं, और दिल्ली में बीजेपी के नीति-नियंता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह फिलहाल खामोश हैं.

डग आउट में बैठे नेताओं की मानें तो यह तूफान से पहले का सन्नाटा हो सकता है. जब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अमित शाह ने मिलने के लिए दिल्ली बुलाया तो ऐसा माना जा रहा था कि राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष पद की घोषणा हो जाएगी. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे अपने सारे मंत्रियों को लेकर दिल्ली गई थीं और जाने से पहले पूरी व्यूह रचना तैयार करके गई थीं.

दिल्ली कूच से पहले मुख्यमंत्री निवास पर मैराथन मीटिंग हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा बीजेपी के दूसरे सभी नेताओं से मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के सिपहसालार मंत्रियों की चर्चा इस मामले पर पहले हो चुकी थी. लेकिन कहा जा रहा है कि बीजेपी का कोई भी शीर्ष नेता बीजेपी प्रदेशाअध्यक्ष पद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह का खुलकर विरोध नहीं कर पाया या यूं कहिए कि वसुंधरा राजे के साथ खुलकर खड़ा होने की हिम्मत किसी की नहीं हुई.

vasundhara raje amit shah meetingवसुंधरा राजे और अमित शाह की मुलाकात बेनतीजा रही (फाइल फोटो)

इसके बाद इसबार तो वसुंधरा राजे और अमित शाह की वन टू वन मीटिंग भी हुई मगर बैठक बेनतीजा रही. अमित शाह कैंप की तरफ से ये खबर बाहर आई कि वसुंधरा राजे को दो टूक कह दिया गया है कि हम अपने निर्णय पर कोई पुनर्विचार नहीं करेंगे. गजेंद्र सिंह हमारी तरफ से पसंद हैं, आपको जितना वक्त लेना हो आप वक्त ले लीजिए लेकिन आपको सहमति गजेंद्र सिंह के नाम पर ही बनानी पड़ेगी.

विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में हैं. वक्त कम है, लेकिन वसुंधरा राजे को जानने वाले जानते हैं कि मैडम इतनी जल्दी हथियार नहीं डालतीं. लिहाजा लड़ाई को अनिर्णित छोड़कर वसुंधरा राजे जयपुर लौट आएंगी, राजनीतिक गलियारे में इसे युद्ध विराम की संज्ञा दी जा रही है.

इसी बीच वसुंधरा कैंप से एक खबर यह आई है कि अब अमित शाह और नरेंद्र मोदी के फौलादी इरादे वसुंधरा की हिम्मत के आगे पिघलने लगे हैं और हो सकता है कि वसुंधरा राजे के पसंद का ही कोई प्रदेशाध्यक्ष राजस्थान में चुना जाए. यह भी हो सकता है कि बीच की सहमति के रूप में ओम प्रकाश माथुर की वापसी बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में हो. ओम माथुर का राजस्थान में कोई जनाधार नहीं है, लिहाजा वह किसी भी तरह से वसुंधरा राजे के लिए कोई राजनीतिक खतरा कभी भी नहीं बन सकते. भूपेंद्र यादव के ऊपर 2019 लोकसभा की काफी जिम्मेदारी है, लिहाजा राजस्थान भेजकर उनकी प्रतिभा का सस्ता व्यय बीजेपी नहीं करना चाहती है.

vasundhara rajeवसुंधरा राजे की हिम्मत के आगे शायद अमित शाह हथियार डाल दें

कोटा के सांसद ओम बिरला का नाम भी जोर-शोर से उछला. ये बीजेपी नेताओं की पसंद हो सकते हैं जिसपर वसुंधरा सरकार सीधे तो वीटो नहीं लगा रही हैं, लेकिन उनकी प्रतिभा को देखते हुए वसुंधरा शक की नजरों से देखती हैं. केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का नाम भी प्रदेशाध्यक्ष पद के लिए उछला मगर सामंती स्टेट में बीजेपी दलित कार्ड खेलने में ज्यादा उत्साहित नहीं दिख रही है, फिर वसुंधरा को हमेशा से मेघवाल की निष्ठा पर संदेह रहा है.

वसुंधरा की पहली इच्छा तो ये है कि निवर्तमान प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी को ही चुनाव तक प्रदेशाध्यक्ष बनाए रखा जाए. परनामी वसुंधरा के यसमैन की भूमिका में पिछले चार सालों से रहे हैं. अगर बदलना ही है तो उनके सबसे भरोसेमंद शहरी विकास मंत्री श्रीचंद कृपलानी को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाए. वसुंधरा की तीसरी पसंद प्रभाव की दृष्टि से कमजोर नेता रहे समाज कल्याण मंत्री अरुण चतुर्वेदी भी कंप्रोमाइजिंग कैंडिडेट के रुप में हो सकते हैं. ब्राह्मण चेहरे के रुप में चित्तौड़ के सांसद सीपी जोशी का नाम भी समझौता उम्मीदवार के रुप में आ रहा है.

गजेंद्र सिंह को लेकर वसुंधरा राजे के मन में संशय है कि अमित शाह नरेंद्र मोदी राजस्थान की राजनीति में गजेंद्र सिंह को आगे कर कोई आगे की चाल चल रहे हैं. वसुंधरा हारना नहीं जानती हैं. वसुंधरा राजे को जानने वाले जानते हैं कि जब राजनाथ सिंह ने वसुंधरा राजे को राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष से हटाने की कोशिश की थी तो वसुंधरा राजे ने किस तरह से बगावत कर दी थी. बीजेपी के सारे विधायक वसुंधरा के समर्थन में दिल्ली में परेड कर रहे थे. यहां तक कि गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने चुनाव से पहले यात्रा निकालने की बात कही तो वसुंधरा राजे ने नई पार्टी बनाने तक की धमकी दे दी थी. और हर बार बीजेपी के आलाकमान को वसुंधरा के आगे झुकना पड़ा है, क्योंकि यह सच्चाई है कि राजस्थान में वसुंधरा राजे से ज्यादा लोकप्रिय नेता बीजेपी के पास नहीं है. वसुंधरा राजे ही विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिला सकती हैं और उसके आगे लोकसभा चुनाव है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को केंद्र में सरकार बनाने के लिए सांसद चाहिए. राजस्थान से लोकसभा में वसुंधरा राजे के पास ही बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद भेजने में सक्षम नेता हैं.

vasundhara rajeवसुंधरा राजे के पास ही बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद भेजने में सक्षम नेता हैं.

करीब 70 दिन हो गए राजस्थान में बीजेपी का कोई अध्यक्ष नहीं है. कहा जा रहा है कि जब से बीजेपी पार्टी बनी है तब से पहली बार ऐसा हो रहा है की पार्टी के किसी राज्य में प्रदेशीध्यक्ष का पद 70 दिनों से खाली पड़ा हो. बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष पद इसलिए नहीं खाली है क्योंकि बीजेपी में कोई काबिल नहीं है, बल्कि लड़ाई इस बात की है कि किसकी पसंद का व्यक्ति प्रदेशाध्यक्ष बनेगा.

ऐसा कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह चाहते हैं कि सरकार से अलग पार्टी काम करे, जिसमें पार्टी आगे चलकर  कोई भविष्य तलाश सके. इसके लिए प्रधानमंत्री ने गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम आगे किया है लेकिन वसुंधरा राजे का तर्क गजेंद्र सिंह के नाम पर भारी पड़ रहा है. वसुंधरा का कहना है कि राजपूत जाति से प्रदेशाध्यक्ष बनाने पर राजस्थान का बड़ा वोट बैंक जाट नाराज हो सकते हैं, क्योंकि भले ही वह जाट परिवार की बहू हैं लेकिन राजस्थान में उन्हें राजपूत की बेटी के रूप में जाना जाता है.

वसुंधरा राजे राजस्थान की राजनीति की एक मंझी हुई खिलाड़ी हैं. वसुंधरा जब राजस्थान की राजनीति में आई थीं तब भैरो सिंह शेखावत और जसवंत सिंह जैसे बीजेपी के कद्दावर नेताओं का दबदबा था. वसुंधरा राजे ने एक-एक करके सभी नेताओं को हाशिए पर ला दिया और उसके बाद से अपने तरीके से राजस्थान में बीजेपी को चलाती रही हैं. प्रदेश के महत्वकांक्षी नेताओं  हरीशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी से लेकर घनश्याम तिवाड़ी, किरोड़ी लाल मीणा और राजेंद्र राठौड़ को उनकी औकात दिखाती रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के लिए यह बड़ी बात नहीं है कि वसुंधरा राजे की बात मान जाएं और एक अदद प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा की पसंद का बन जाए. बड़ी बात तो यह है कि अगर वसुंधरा राजे जिद करके अपनी बात मनवा लेती हैं तो बीजेपी के दूसरे राज्यों में भी क्षेत्रीय नेता अपनी बात दबाव डालकर मनवाने लगेंगे.

कहा जाता है बंद मुट्ठी लाख की और खुल गई तो खाक की. अभी अमित शाह और नरेंद्र मोदी का बीजेपी में डंका बज रहा है अगर वसुंधरा ने उस डंके पर चोट कर अपना प्रदेशाध्यक्ष बनवा लिया तो दूसरे नेता भी डुगडुगी बजाने निकल सकते हैं. ऐसा हुआ तो अमित शाह और नरेंद्र मोदी की भी किरकिरी होगी. लिहाजा कहा जा रहा है कि इस बार पिछली बार की तरह कमजोर राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह नहीं बल्कि मोदी और अमित शाह की जोड़ी है ऐसे में मुकाबला कांटे का है. लगता है बीजेपी की राजस्थान की राजनीति में कुछ राउंड और बाकी हैं.

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