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Updated: 10 सितम्बर, 2021 06:20 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पांच साल बहुत होते हैं बदलाव के लिए. सत्ता समाज में बहुत बदलाव भले न ला पाये, लेकिन नेता में तो बदलाव ला ही देती है. योगी आदित्यनाथ में भी ऐसा ही बदलाव महसूस किया जा सकता है - क्योंकि अब कट्टर हिंदुत्व का वो कुदरती तेवर कम ही नजर आता है.

हो सकता है हाव-भाव और बोल चाल का वो नैसर्गिक लहजा जिम्मेदारियों के बोझ तले दब गया हो, लेकिन अपनी फायरब्रांड छवि तो योगी आदित्यनाथ ने बरकरार रखी हुई है ही - और ऐसा भी नहीं कि टारगेट बदला है, हां - निशाने का वो पुराना अंदाज जरूर बदल गया है.

गोरखपुर से लोक सभा सांसद रहते योगी आदित्यनाथ जिन बातों को लेकर गरजते रहे, सत्ता मिलने पर बरसने की कोशिश भी किये. ठीक से बरस पाये या बूंदा-बांदी से ही काम चला लिये - ये अलग से बहस का विषय हो सकता है.

ऐसा भी नहीं कि कुर्सी की जिम्मेदारी और गंभीरता को देखते हुए योगी आदित्यनाथ ने गरजना ही बंद कर दिया हो - 'ठोक दो' जैसी एनकाउंटर स्टाइल तो देखने को मिलती ही है. सब्जेक्ट बदल गया, लहजा वही है.

2017 के बाद से देश भर में होने वाले चुनावों के दौरान योगी आदित्यनाथ में अब वो पुराना तेवर न तो देखने को मिलता है और न ही वे अल्फाज सुनने को - हो सकता है ये मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ को मिले दो सहयोगी डिप्टी सीएम और दो सरकारी प्रवक्ताओं के बीच जिम्मेदारियां बंट जाने की वजह से ऐसा हो गया हो.

...और अब मिले दो सहयोगी स्टार प्रचारक!

जैसे योगी आदित्यनाथ को दो डिप्टी सीएम और दो सरकारी प्रवक्ता मुहैया कराये गये थे, आने वाले चुनावों के लिए बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने योगी आदित्यनाथ की मदद के लिए उनके ही मिजाज की पॉलिटिकल लाइन पसंद करने वाले दो नये सहयोगी भी धर्मेंद्र प्रधान वाले चुनावी पैकेज में ही मिल गये हैं - आगे से मोदी सरकार में IB और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर (Anurag Thakur) और केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे (Shobha Karandlaje) बीजेपी समर्थकों में पहले के योगी की तरह ही जोश भरते रहने की कोशिश करेंगे - और हाथ के हाथ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के बीजेपी के एजेंडे (Hindutva & Nationalism Agenda) को भी आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे. शोभा करंदलाजे के विवादित ट्वीट तो विख्यात ही रहे हैं, अनुराग ठाकुर का फायरब्रांड अंदाज का भी दिल्ली विधानसभा चुनाव गवाह रहे हैं.

Anurag Thakur, Shobha Karandlaje, yogi adityanathये तो मानना पड़ेगा अनुराग ठाकुर और शोभा करंदलाजे के आ जाने से उत्तर प्रदेश के लोग योगी आदित्यनाथ के पुराने अंदाज को मिस तो नहीं ही करेंगे!

2020 के दिल्ली दंगों से पहले हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी के जिन नेताओं ने खूब सुर्खियां बटोरी थी, एक नाम अनुराग ठाकर भी था. हालांकि, ये सुर्खियां अनुराग ठाकुर को उनके भड़काऊ बयान और उनके खिलाफ चुनाव आयोग के एक्शन की वजह से बनी थीं. पूरे मामले का एक पक्ष ये भी रहा कि चुनाव नतीजों के बाद एक इंटरव्यू में बीजेपी नेता अमित शाह ने माना भी कि अनुराग ठाकुर जैसे नेताओं के बयानों को विपक्ष ने मुद्दा बना दिया और उससे बीजेपी को नुकसान भी हुआ. हालांकि, उसे लेकर बीजेपी नेतृत्व की तरफ से अनुराग ठाकुर या बवाल कराने वाले किसी भी नेता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

अनुराग ठाकुर नये सिरे से लाइमलाइट में तब आये जब जुलाई, 2021 में मोदी मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल में कैबिनेट मंत्री के रूप में प्रमोशन मिला - और उसके बाद उनके पहले हिमाचल प्रदेश दौरे में स्वागत के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर एक घंटे पहले ही हाजिर हो गये थे. हिमाचल प्रदेश में अनुराग ठाकुर का अब जो जलवा देखने को मिल रहा है वो एक संकेत ये भी दे रहा है कि 2022 के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी उनको मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी बना सकती है. 2017 में अनुराग ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल भी बीजेपी के सीएम कैंडिडेट थे लेकिन अपनी सीट से चुनाव हार जाने के कारण दावेदारी जाती रही.

जम्मू-कश्मीर में हुए डीडीसी चुनावों की कामयाब पारी के बाद अनुराग ठाकुर को अब केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में बनी बीजेपी की यूपी कैंपेन टीम में सह प्रभारी बनाया गया है. साथ ही, उसी मिजाज की राजनीति करने वाली एक और केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे को भी सह प्रभारी बना कर टीम में शामिल किया गया है.

दिल्ली चुनाव के दौरान अनुराग ठाकुर जिस चीज को लेकर विवादों में छाये रहे वो मामला था 27 जनवरी, 2020 को उनकी सभा में हुई नारेबाजी को लेकर. तब की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चुनावी सभा में वो नारे की पहली लाइन देते - "देश के गद्दारों को..." और फिर लोग उसे पूरा करते - "गोली मारो ... को.''

बाद में एक बार जब मीडिया ने नारेबाजी को लेकर सवाल किया तो अनुराग ठाकुर आपे से बाहर हो गये और सीधा इल्जाम लगाया - आप लोग बिल्कुल झूठ बोल रहे हैं.

बोले, 'मैं तभी कहता हूं कि मीडिया में जितनी जानकारी है, पहले उसमें सुधार कीजिए. आपको पूरी जानकारी रहनी चाहिये... क्योंकि आधी जानकारी किसी के लिए भी घातक है... वो मीडिया का दुष्प्रचार हो या किसी और का.'

लेकिन जब पूछा गया कि सच क्या है - वो खुद ही बता दें तो वो ठिठक से गये और मामले को सब-ज्यूडिस बता कर टाल गये. अनुराग ठाकुर का कहना रहा, 'ये मामला न्यायालय में लंबित है, इसलिए मैं इस पर ज्यादा नहीं बोल रहा हूं.'

धर्मेंद्र प्रधान के टीम की एक और सह प्रभारी शोभा करंदलाजे की पॉलिटिकल लाइन भी अनुराग ठाकुर जैसी ही रही है. कर्नाटक के वोक्कालिगा समुदाय से आने वाली शोभा करंदलाजे को जब मंत्री बनाये जाने जानकारी मिली तभी पाया गया कि फटाफट ट्विटर टाइमलाइन पर स्वच्छता अभियान ही चला डालीं. हमेशा ही लव जिहाद, गाय, आतंकवाद और धर्म परिवर्तन जैसे टॉपिक से लबालब भरा रहने वाला उनका ट्विटर टाइमलाइन अब काफी साफ सुथरा देखा जा सकता है. CAA विरोध प्रदर्शनों के दौरान भी शोभा करंदलाजे के ट्वीट पर विवाद और फिर केरल की मलप्पुरम पुलिस ने केस भी दर्ज किया था.

आम चुनाव से करीब साल भर पहले 2018 में शोभा करंदलाजे के ट्वीट पर खूब बवाल हुआ था - ये ट्वीट शोभा करंदलाजे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के गढ़ माने जाने वाले मिदनापुर में होने वाली एक रैली से पहले किया था. शोभा करंदलाजे ने एक खबर शेयर करते हुए ट्विटर पर लिखा था, ''वेलकल टू इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ वेस्ट बंगाल!! शोवन मंडल नहीं जानते थे कि उन्हें 'जय श्री राम' बोलने पर हेडमास्टर के द्वारा पीटा जाएगा... कलावा बांधने और तिलक नहीं लगाने के लिए भी डराया और धमकाया जा रहा है.''

कहने की जरूरत नहीं कि बीजेपी नेतृत्व ने दोनों नेताओं को काफी सोच समझ कर ही यूपी चुनाव में प्रभारी बनाया है. वैसे भी जेपी नड्डा जब बंगाल चुनाव में बीजेपी की हार की समीक्षा कर रहे थे तो बीजेपी नेता इसी नतीजे पर पहुंचे थे कि मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण के चलते पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. निश्चित तौर पर बीजेपी नेतृत्व को पक्की उम्मीद होगी कि ये टीम उत्तर प्रदेश में श्मशान-कब्रिस्तान 2.0 को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचा कर यूपी में बंगाल का हाल तो नहीं ही होने देगी.

'समझदार' मुस्लिम कोई असर दिखाएगा क्या?

2017 में बलरामपुर में बीजेपी की चुनावी रैली में योगी आदित्यनाथ का दावा रहा, ‘अगर समाजवादी पार्टी जीतेगी तो कर्बला-कब्रिस्तान बनेंगे, जबकि बीजेपी की सरकार बनेगी तो अयोध्या में राम मंदिर बनेगा.’

करीब साल भर पहले ही जून, 2016 में योगी आदित्यनाथ के एक बयान की खूब चर्चा रही, जब वो कहे थे, 'जब अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने से कोई नहीं रोक सका तो मंदिर बनाने से कौन रोकेगा.'

ये तभी की बातें हैं जब योगी आदित्यनाथ गोरखपुर लोक सभा सीट से सांसद हुआ करते थे - और अब तो वो बतौर मुख्यमंत्री राम मंदिर निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भूमि पूजन भी कर चुके हैं और अयोध्या में मंदिर निर्माण का कार्य प्रगति पर है.

2017 के चुनावों के जब नतीजे आये तो तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सामने आकर जनादेश को स्वीकार करते हुए कहा था, 'हमने पांच साल अच्छा काम किया है, लेकिन शायद जनता इससे भी अच्छा काम चाहती है.'

लगे हाथ अखिलेश यादव ने एक और बात जोड़ दी, '...कभी-कभी लोकतंत्र में समझाने से वोट नहीं, बहकाने से वोट मिलता है.'

एक बार फिर अखिलेश यादव यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने के लिए साइकल पर सवार हैं - और अकेले दम पर चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर चुके हैं. आम चुनाव में समाजवादी पार्टी ने मायावती की बीएसपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, लेकिन नतीजे आने के कुछ ही दिन बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर डाली.

2017 के चुनाव में एक खास चीज देखने को मिली थी, वो ये कि बीजेपी को यूपी की कई मुस्लिम बहुल आबादी की सीटों पर भी कामयाबी मिली थी - मसलन, देवबंद, मुरादाबाद नगर और मुरादाबाद की ही कांठ सीट, फैजाबाद की रुदौली सीट, शामली जिले की थाना भवन सीट और उतरौला विधानसभा सीट. खास बात ये रही कि हार जीत का अंतर भी अच्छा खासा दर्ज किया गया - क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत की 'समझदार' मुस्लिम की तलाश पूरी होने पर नंबर में इजाफा हो सकता है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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