New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 25 मई, 2019 02:08 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
  • Total Shares

Lok Sabha Election 2019 Results| नरेंद्र मोदी की ऐतिहासिक जीत के बाद अब चुनाव का विश्लेषण करने की बारी आ गई है. Narendra Modi और Rahul Gandhi ने अपने-अपने स्तर पर लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भरपूर प्रयास कर लिया. पर आखिर में अगले प्रधानमंत्री भी मोदी ही बनेंगे. मोदी की जीत में सबसे ज्यादा बड़ा रोल निभाने वाला राज्य है उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh Lok Sabha Election Results). इसी के साथ, एक और राज्य जो भाजपा के लिए अहम है वो है बिहार (Bihar Pradesh Lok Sabha Election Results). इन चुनावों में जिस तरह का वोटिंग पैटर्न इन दोनों राज्यों में दिखा है वो भाजपा की रणनीति दिखाता है. लोकसभा चुनाव नतीजे 2019 (Loksabha Election Results 2019) में उत्तर प्रदेश और बिहार का वोट प्रतिशत दिखाता है कि दोनों राज्यों में किस तरह अलग-अलग स्तर का राजनीतिक समीकरण बैठाया गया. खासतौर पर BJP vote share, Smajwadi Party vote share और BSP Vote share के मामले में.

उत्तर प्रदेश में भाजपा का वोट प्रतिशत 49 रहा और बिहार में यही घटकर आधा हो गया, लेकिन वहां मौजूद गठबंधन ने भाजपा को जीत दिला दी. इन दोनों राज्यों में वोटिंग प्रतिशत और गठबंधन की बयार दोनों ही बहुत अलग तरह से बहती है. उत्तर प्रदेश में भाजपा का अपना दल से गठबंधन था, लेकिन उसे जरूरत नहीं थी पर बिहार जीतने के लिए भाजपा को गठबंधन की बहुत जरूरत थी.

उत्तर प्रदेश और बिहार का वोट प्रतिशत दिखाता है कि दोनों राज्यों में किस तरह अलग-अलग स्तर का राजनीतिक समीकरण बैठाया गया.उत्तर प्रदेश और बिहार का वोट प्रतिशत दिखाता है कि दोनों राज्यों में किस तरह अलग-अलग स्तर का राजनीतिक समीकरण बैठाया गया.

दोनों राज्यों को हिंदू हार्टलैंड माना जाता है और ऐसे में दोनों के मुद्दे भी काफी हद तक एक जैसे रहे, लेकिन फिर राजनीति में इतना बदलाव?

उत्तर प्रदेश: भाजपा का गणित जो आम लोगों को समझाया गया

उत्तर प्रदेश में भाजपा को 49.6% वोट मिले हैं और इसका मतलब सीधा सा है यहां किसी भी गठबंधन की जरूरत भाजपा को नहीं है. इसकी जीत का एक कारण ये भी है कि यहां राज्य में भी भाजपा सरकार का दबदबा था.

भले ही भाजपा को 2014 के मुकाबले कम सीटें मिली हों, लेकिन फिर भी 50% वोट शेयर मिला. SP-BSP-RLD गठबंधन को मिलाकर 20 सीटें मिलीं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में भाजपा ने काफी अच्छा काम किया. अमेठी जो कांग्रेस का गढ़ था वहां भी स्मृति ईरानी जीतीं. यहां जातिवादी समीकरणों को पीछे छोड़ दिया गया. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के काम की नहीं, लेकिन केंद्र सरकार की स्कीमों की बहुत चर्चा रही. उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसानों के लिए शुरू की गई योजनाएं आदि सब कुछ उत्तर प्रदेश में भाजपा के समर्थन में ही गया. कट्टर हिंदुत्व वाली छवि तो साथ में थी ही, लेकिन पहली बार दलितों, यादवों ने भी भाजपा का ही समर्थन किया.

क्योंकि केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकारें थीं इसलिए स्कीमों का फायदा जल्दी आम लोगों तक पहुंच गया. इसी के साथ, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रवाद का मुद्दा चरम पर रहा. राम भक्त और राष्ट्र भक्तों की सेना ने भाजपा को उत्तर प्रदेश में विजय बनाया.

बिहार: केंद्र के साथ-साथ अपनी छवि का भी ध्यान रखा सुशासन बाबू ने

बिहार में JDU और BJP का गठबंधन पहले से ही काफी लोकप्रिय रहा है. सुशील कुमार मोदी और नीतीश कुमार की जोड़ी पहले से ही जमीन तैयार करने में जुटी रही. यहां भाजपा को दिक्कत तो थी लेकिन गठबंधन ने साथ दिया.

भाजपा गठबंधन में बिहार में 40 में से 39 सीटें मिली और RJD जो वहां की अहम विपक्षी पार्टी है उसने साबित कर दिया कि वो लालू यादव के बिना अधूरी थी.

राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सभी 6 सीटें जीत ली जिसमें वो चुनाव लड़ रही थी.

यहां पर नीतीश कुमार का गठबंधन हमेशा से अहम रहा है. नितीश कुमार के साथ एक बात ये भी है कि वो भाजपा के प्रमोशन के साथ-साथ अपनी छवि का भी ध्यान रखते हैं. खुद को चमकाने का भी कोई मौका नहीं छोड़ते.

बिहार में भी जातिवादी समीकरण तो है, लेकिन साथ ही साथ स्थानीय नेता का दबदबा भी है. नीतीश कुमार की छवि का इसमें अहम कारण है. दूसरी बात ये कि पहले से ही यही सरकार वहां चली आ रही है और इसका भी थोड़ा असर तो लोगों पर पड़ा.

क्यों गठबंधन उत्तर प्रदेश में फेल और बिहार में पास?

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-आरएलडी का गठबंधन मोदी सूनामी के आगे नहीं चल सका. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी सपा और कांग्रेस के गठबंधन को वोट नहीं मिले थे. नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद काफी बढ़ गई थी. याद हो कि यूपी विधानसभा चुनावों में भी नरेंद्र मोदी और भाजपा को सर्जिकल स्ट्राइक का फायदा हुआ था.

बिहार में गठबंधन खुद भाजपा के साथ था. साथ ही, नीतीश कुमार का चेहरा भी था जो मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही अपनी छवि को सुधारने में लगे हैं. नीतीश कुमार ने अपने बयानों और कामों में केंद्र सरकार और पब्लिक सेंटिमेंट का ध्यान रखा. चाहें वो नोटबंदी हो, चाहें जीएसटी, चाहें सर्जिकल स्ट्राइक. ये फायदा नीतीश कुमार और भाजपा सरकार को मिला.

ये भी पढ़ें-

Modi 2.0 : मोदी की अगली पारी की ताकत बनेगी तीन शपथ

कांग्रेस की हार के साथ ट्विटर पर 'Chowkidar' का हिसाब बराबर

लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय