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Updated: 24 फरवरी, 2022 09:40 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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बीते दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव यानी केसीआर (K Chandrasekhar Rao) मुंबई के एक दिवसीय दौरे पर थे. इस दौरान के चंद्रशेखर राव (KCR) ने शिवसेना अध्यक्ष और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के साथ ही एनसीपी नेता शरद पवार (Sharad Pawar) से मुलाकात की. दोनों ही बैठकों के बाद हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक नया मोर्चा बनाने का स्पष्ट संदेश दिया गया. और, उद्धव ठाकरे और शरद पवार से केसीआर की मुलाकात इसी कोशिश की ओर उठाया गया पहला कदम बताया गया. आसान शब्दों में कहा जाए, तो के चंद्रशेखर राव भी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह ही बिना कांग्रेस के तीसरे मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे हैं. हालांकि, टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी फिलहाल अपनी पार्टी को विस्तार देने के लिए गोवा के चुनाव में शिवसेना के साथ गठबंधन कर जोर लगा रही हैं. लेकिन, ममता बनर्जी का ये प्रयास कितना सफल होगा, इसका फैसला चुनावी नतीजे करेंगे. लेकिन, के चंद्रशेखर राव के इस दौरे से एक साफ संदेश ये भी निकलता नजर आता है कि 2024 के लिए एकजुट विपक्ष 'मृग मरीचिका' साबित होता जा रहा है.

KCR Rahul Gandhi Mamata Banerjeeके चंद्रशेखर राव से मुलाकात के बाद शरद पवार ने इसे विकास की बात करने के लिए की गई बैठक बताया.

क्या शरद पवार का 'जादू' राष्ट्रीय स्तर पर चलेगा?

महाराष्ट्र की राजनीति में एनसीपी चीफ शरद पवार ने वो कर दिखाया था, जिसकी उम्मीद लगभग असंभव थी. विचारधारा के तौर पर दो विपरीत ध्रुवों वाली शिवसेना और कांग्रेस को महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए साथ में लाने का 'जादू' निश्चित रूप से केवल शरद पवार ही कर सकते थे. वहीं, अगर एकजुट विपक्ष की कोशिशों की बात की जाए, तो ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद शरद पवार ने महागठबंधन को समय की जरूरत बताया था. लेकिन, ये भी कहा था कि कांग्रेस के बिना कोई मोर्चा काम नहीं करेगा. वहीं, के चंद्रशेखर राव से मुलाकात के बाद शरद पवार ने इसे विकास की बात करने के लिए की गई बैठक बताया. शरद पवार ने कहा कि 'देश में एक अलग माहौल बनाया जा सकता है, ऐसे ही माहौल बनाने की कोशिश होगी.' अब शरद पवार कौन सा माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, इसके बारे में फिलहाल कयास लगाया जाना बेमानी होगा. क्योंकि, सोनिया गांधी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक जिस शख्स की तारीफ करते नजर आते हों, उस शरद पवार की राजनीति को समझना इतना आसान नहीं है.

हां, ये जरूर कहा जा सकता है कि शरद पवार से मुलाकात करने वाला कोई भी शख्स खाली हाथ नहीं जाता है. या तो उसे आशीर्वाद मिलता है या फिर सलाह. ममता बनर्जी को शरद पवार ने सलाह ही दी थी. और, केसीआर की मानें, तो शरद पवार ने उन्हें आशीर्वाद दिया है. यही वजह है कि के चंद्रशेखर राव ने एनसीपी नेता के साथ अगली बैठक उनके गृहनगर में करने का फैसला लिया है. हालांकि, इन सबसे इतर एक बात ये भी है कि शरद पवार ने एक सलाह कांग्रेस को भी दी थी. जिसमें उन्होंने कांग्रेस को उसकी जमींदार वाली मानसिकता छोड़ने का संकेत दिया था. और, नेतृत्व की बात आने पर संवेदनशील होने से बचने की सलाह भी दी थी. खैर, यहां सबसे अहम बात यही है कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन की एमवीए सरकार को मूर्तरूप देने वाले शरद पवार क्या महाराष्ट्र जैसा करिश्मा ही राष्ट्रीय स्तर पर कर पाएंगे. क्योंकि, कांग्रेस में उभरते नए नेतृत्व की आहट के बीच ये असंभव ही लगता है.

कांग्रेस पर केसीआर का नरम रुख क्या कहता है?

उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ हुई मुलाकात के बाद किसी ने भी बिना कांग्रेस के एकजुट विपक्ष का जिक्र नहीं छेड़ा. लेकिन, कांग्रेस की ओर से टीआरएस प्रमुख के चंद्रशेखर राव संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) को तोड़ने का आरोप लगा दिया गया. हालांकि, बीते कुछ समय से केसीआर का रुख कांग्रेस के खिलाफ नरम नजर आया है. हाल ही में के चंद्रशेखर राव ने राहुल गांधी द्वारा पुलवामा हमले के जवाब में पाकिस्तान पर की गई एयर स्ट्राइक के सबूत मांगने को जायज ठहराया था. इतना ही नहीं उन्होंने खुद भी सबूतों की मांग कर डाली थी. वहीं, ममता बनर्जी की बात करें, तो उन्होंने सीधे तौर पर यूपीए पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया था. वैसे, सीटों के लिहाज से तेलंगाना में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है. लेकिन, केसीआर के निशाने पर भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी ही नजर आते हैं.

दरअसल, बीते कुछ समय में तेलंगाना में भाजपा ने अपनी पकड़ को लगातार मजबूत किया है. हैदराबाद नगर निगम में उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन के साथ दो विधानसभा सीटों के उपचुनाव में जीत दर्ज कर भाजपा ने के चंद्रशेखर राव के माथे पर बल ला दिया है. इस स्थिति में बहुत हद तक संभावना है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले तेलंगाना में टीआरएस और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो जाए. क्योंकि, अतीत की बात की जाए, तो कांग्रेस और टीआरएस का गठबंधन पहले भी हो चुका है.

क्या विपक्ष के नेतृत्व का मोह छोड़ पाएगी कांग्रेस?

इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में शरद पवार ने कांग्रेस पर तंज कसते हुए कहा था कि 'नेतृत्व की बात आने पर कांग्रेस (Congress) के नेता संवेदनशील हो जाते हैं. कांग्रेस अब वह पार्टी नहीं रही, जिसका कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक दबदबा था. कांग्रेस के नेताओं को यह स्वीकार करना चाहिए.' लेकिन, भले ही जी-23 नेताओं ने शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया हो, राज्यों में आंतरिक कलह का सामना कर रही हो, पार्टी के बड़े नेताओं का पलायन जारी हो, कांग्रेस कई राज्यों (पश्चिम बंगाल) में शून्य पर पहुंच कर कमजोर हो गई हो जैसी दर्जनों समस्याओं के बावजूद कांग्रेस आलाकमान इस बात पर तैयार नहीं हो सकता है कि 2024 में विपक्ष दलों के महागठबंधन का नेतृत्व राहुल गांधी के अलावा और कोई कर सकता है. देश का सबसे पुराना राजनीतिक दल कांग्रेस भले ही कमजोर हो गया हो. लेकिन, अभी भी कांग्रेस की उपस्थिति हर राज्य में है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो 2024 के आम चुनाव से पहले कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजे आने से पहले किसी भी तरह के एकजुट विपक्ष की बात करना केवल 'मृग मरीचिका' ही साबित होने वाला है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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