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Updated: 28 फरवरी, 2022 07:21 PM
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रूस कीव को जीत सकता है क्या? रूस, कीव को जीत भी ले तो क्या उसपर क़ब्ज़ा कर रख सकता है? रूसी राष्ट्रपति पुतिन जानते हैं कि दोनों परिस्थितियां रूस के पक्ष में नहीं हैं. किसी भी भू-भाग को समझने के लिए वहां के जल, जंगल, ज़मीन और जोरू के मिजाज को समझना होता है. इतिहास बताता है कि यूक्रेन लंबे समय तक एक मुकम्मल आज़ाद मुल्क कभी नहीं रहा पर किसी आक्रमणकारी को लंबे समय तक रहने भी नहीं दिया है. रूसी टैंक के आगे एक यूक्रेनियन का डट कर खड़े हो जाना और मिस यूक्रेन का क्लासनिकोव रायफ़ल्स लेकर पोज देना कीव के लिए नया नहीं है. यूक्रेन को रूस ने दिल जीत कर ही जीता था और दिल जीतकर ही जीत सकता है. युद्ध से तो हरगिज़ नहीं. आज हम कीव और मॉस्को का यह रिश्ता क्या कहलाता है और कीव के मिज़ाज को समझेंगे.

यूरोप में कीव को हीरो सिटी कहा जाता है. दुनिया का यह पहला शहर है जहां द्वितीय युद्ध के बाद रूस में कम्युनिस्ट बोल्सेविकों के सत्ता में आने के बाद महज़ तीन साल में 1919 से 1921 के बीच 16 बार सत्ता बदली. क़ब्ज़ा और आज़ादी का खेल खेला गया. तीन साल में 16 बार सत्ता परिवर्तन के बाद भी न यूरोप समर्थित पोलैंड और न रूसी रेड आर्मी क़ब्ज़ा रख पाया तो अंत में हारकर 1921 की रीग संधि में इसे आपस में ईस्टर्न और वेस्टर्न यूक्रेन में बांट कर रख लिया.

Russia, Ukraine, Vladmiri Putin, Poland, War, Kiev, History, America, Europeरूस यूक्रेन युद्ध का इतिहास से गहरा नाता है जिसमें मुहब्बत से लेकर अदावत तक सब है

इस युद्ध में कीव पूरी तरह से एक बार फिर बर्बाद हो गया. इसीलिए कीव को अभिशप्त शहर भी कहते हैं जिसके वैभव को किसी न किसी बाहरी आक्रमणकारी या दुश्मन देश की नज़र लगती रहती है. मगर कीव पहली बार बर्बाद हुआ नहीं हुआ था और जिस हालात से से गुजर रहा है कोई नहीं कह सकता कि आख़िरी बार बर्बाद हो रहा है.

कीव का पराक्रम

रूस -यूक्रेन के रूसी हमले के 24 घंटे में यूक्रेन के सरेंडर होने का सपना देखने लगा था. कुछ लोगों ने खेल ख़त्म मान लिया था पर कीव का इतिहास कुछ  और कहता है. मगर यहां स्वाभिमान के लिए जान देने की परंपरा है. कीव ने सरेंडर की जगह अपनी बर्बादी को चुना है. 9 -10 वी सदी के Golden Era के बाद कीवियन रूस का का कीव का सम्राज्य ढलान पर था तो 1223 में मंगोल शासक चंगेज़ ख़ान के ख़्वाब पूरा करने उसके पोते बातु खान ने रशियन प्रिंसपलिटी के कीव और मास्को पर हमला बोला.

कीव ने मंगोलों की शक्ति देखकर कहा ‘हमारे पापों के लिए न जाने कौन सा अनजाना दुश्मन हमारे दरवाज़े पर खड़ा है जो सब ख़त्म कर देगा.’ बातु खान कीव का वैभव देखकर चकाचौंध हो गया था. वह इसे लूटना नहीं पाना चाहता था इसलिए 1240 से 1242 के बीच कीव के बाहर सेना लेकर वह सरेंडर का इंतज़ार करता रहा. जब कीव ने बातु खान के शांति संधि का प्रस्ताव लेकर गए दूत को मार डाला और जंग का एलान कर दिया तो बातु खान ने इस शानदार शहर को भूतहा बना डाला.

बुजुर्ग महिलाओं और बच्चों को छोड़कर कीव का हर शख़्स अपने अंतिम शांस तक लड़ता रह. जंग ख़त्म होने 50 हज़ार की आबादी वाले कीव में दो हज़ार बुजुर्ग और बच्चे बचे थे. मंगोलों की शर्त इतनी थी कि उनका शासन  मानकर ‘खान टैक्स’ उन्हें देते रहें पर कीव ने क़ुर्बानी चुनी. इसलिए कहा जा रहा है कि रूस के लिए कीव पर क़ब्ज़ा आसान नहीं होगा.

दूसरे विश्वयुद्ध में कीव ने जर्मन नाजियों के सामने सरेंडर नहीं कर आख़िरी तक संघर्ष करने वाला शहर था. सोवियत संघ का यह एकबड़ा मात्र शहर था जो 85 फ़ीसदी तक नाजियों से संघर्ष में बर्बाद हो गया था. इसीलिए इसे हीरो शहर यानी बहादुरों का शहर कहा जाने लगा.

रूस - यूक्रेन दोस्ती का सफ़र

रूस का आग्रह यूक्रेन को लेकर एतिहासिक रहा है. रूस आज भी 1654 में जीता है जब पहली बार कीवियन रूस के एक देश में या एकशासन में लाने की पहल हुई थी. यह जनवरी 1654 में पेरियास्लाव शहर में पेरियास्लाव परिषद के रूप में हुई थी. इसे इतिहास में पहली बार यूक्रेन के देश के रूप में गठन की शुरुआत और यूक्रेन के रूसीफिकेशन के तौर पर देखा जाता है.

मौजूदा यूक्रेन के क्षेत्र परपोलिश लिथुआनिया कॉमनवेल्थ का शासन था जहां पर यूक्रेनियन किसान और व्यापारी उनके अत्याचार से परेशान थे. तभी पोलिश लिथुआनिया कॉमनवेल्थ के खिलाफ नागरिक विद्रोह कर बोहदान खमेलनित्स्की ने कोसैक हेटमैन शासन का गठन किया. यह सब 1648 में मास्को के रूसी जारडोम की सहमति से शुरू हुआ था.

पोलिश लिथुआनिया कॉमनवेल्थ से बचने के लिए यूक्रेन के को सैकहेटमैन और रूसी जारडम के बीच मार्च 1954 में पेरियास्लाव परिषद की संधि हुई जिसमें यूक्रेन एक स्वायत्त देश बना पर विदेश और रक्षा के मामले रूसी शासन के पास रहा.

यह व्यवस्था नाम मात्र के रूसी सम्राज्य के 1721 में शासन में आने तक रहा और 1782 तक चला पर धीरे-धीरे स्वायत्ता ख़त्म कर रूस ने इसे अपने में मिला लिया था. यह व्यवस्था 1917 की रूसी क्रांति तक चला जब पश्चिम यूरोप और अमेरिका का यूक्रेन का ग्रेट गेम शुरू हुआ. क्रेमलिन अब भी 1654 की उसी पेरियास्लाव युग में जीता है.

यूएसएसआर के दौरान इसे रूसी प्रजाति के एकीकरण को लेकर बड़े स्तर पर सेलिब्रिट किया जाता रहा. दरअसल उस वक्त भी यह संधि केवल यूक्रेन को बचाने के लिए नहीं बल्कि रूस ने खुद भी बचने के लिए किया था. पोलिश लिथुआनिया कॉमनवेल्थ के मज़बूत सम्राज्य और तुर्की सम्राज्य से रूसी जारडम डरा हुआ था इसलिए यूक्रेन को साथ रखना चाहता था.

यहां तक हेटमैन शासन की स्थापना करने वाला खमेलनितस्की भी पोलिश लिथुआनिया कॉमनवेल्थ का विद्रोही सैनिक था जिसे रूसी जारडम पर क़ब्ज़ा करने का आदेश था मगर वह मॉस्को से जा मिला.

रूस का पेरियास्लाव प्रेम

इस संधि को लेकर मॉस्को का ऐसा आग्रह है कि 1954 में रूसी शासक निकिता ख्रुश्चेव ने पेरियास्लाव परिषद का 300वें जश्न के उपलक्ष्य में क्रीमिया को यूक्रेन को गिफ़्ट कर दिया जिसे 2014 में नाराज़गी के बाद छीन भी लिया. साढ़े तीन सौ साल बाद भी कमोबेश वैसा हीं हालात हैं और मॉस्को की सोच भी वैसे हीं है.

2004 में जब रूसी समर्थित यूक्रेन राष्ट्रपति लियोनिड कुचमा ने 18 जनवरी पेरियास्लाव संधि की 350 वीं वर्षगांठ मनाने की घोषणा की तो इसे रूसी षड्यंत्र बताकर यूक्रेन में खूब विरोध हुआ. रूसी साहित्य और प्रोपोगंडा मशीन इसे महान रूसी प्रजाति की एकता बताते हैं तो पश्चिमी यूरोप और अमेरिका समर्थित साहित्य और प्रोपोगंडा बताते हैं कि किस तरह से पेरियास्लाव संधि को धीरे-धीरे ख़त्म कर रूस ने यूक्रेन पर क़ब्ज़ा कर लिया.

यह अब भी न्यूट्रल और स्वायत्त देश के नाम पर यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करना चाहता है. कुछ लोग इसे पुतिन का सपना भी मानते हैं कि कीवियन रूस प्रजाति के देश रूस, यूक्रेन और बेलारूस एक रहें. यूक्रेन और रूस स्वभाविक और परंपरागत साथी रहे हैं. आज भी यूक्रेन की एक बड़ी आबादी खुद को रूस से जोड़कर देखती हैं. यही रूस की ताक़त भी है. रूस के साथ इसके आसानी से रहने की वजह भी है.

रूस, बेलारूस और यूक्रेनपूर्वी यूरोप में कीवियन रूस जिन्हें ईस्ट स्लावियन की प्रजाति का माना जाता है, एतिहासिक रूप से एक रहे हैं. यह भी एतिहासिक सच है कि जिसे रूसी प्रजाति के नाम से जाना जाता है वह भी कीवियन रूस या कीवियन रस हीं कहा जाता है. रूस की ज़िद है कि यूक्रेन रूस दोस्त देश बन कर रहे और यूरोप-अमेरिका इसे पोलैंड की तरह स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश के नाम पर नाटो देश बनाकर रखना चाहते.

मगर इतिहास को दुहराना और इतिहास की घड़ियों की आगे निकल गई सूईयों को वापस लाकर उसी वक़्त को निहारना दो अलहदा बातें हैं. इतिहास दुहराए जाने की शक्ल में भी मिटता और बनता है. इतिहास को पाने की सनक बड़े बड़े सम्राज्य मिटा दिए हैं.

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