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Updated: 29 सितम्बर, 2019 07:32 PM
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उद्धव ठाकरे का बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में किसी शिवसैनिक को CM बनाना ठीक वैसा ही है जैसे 'मंदिर वहीं बनेगा', लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से. अब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला नहीं सुनाया तो, ये कैसे संभव होगा?

राम मंदिर को लेकर सुप्रीम कोर्ट से क्या फैसला आएगा ये तो निश्चित नहीं समझा जा सकता, हालांकि, BJP के एक विधायक तो ये भी दावा कर चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट भी अपना ही है - लेकिन ये जरूर निश्चित है कि गठबंधन की सरकार में मुख्यमंत्री बीजेपी का ही होगा और इसमें किंतु-परंतु की कोई गुंजाइश भी नहीं बची है. अमित शाह ने साफ साफ कह दिया है कि गठबंधन सरकार की सत्ता में वापसी पर देवेंद्र फडणवीस भी मुख्यमंत्री बनेंगे. हां, बीजेपी की ओर से एक ऑफर की चर्चा जरूर है कि वो शिवसेना को डिप्टी CM का पद दे सकती है.

उद्धव ठाकरे के रूख में अचानक बदलाव क्यों?

महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में आदित्य ठाकरे के लिए डिप्टी सीएम की कुर्सी पक्की मानी जाने लगी थी - क्योंकि बीजेपी ने अपनी ओर से शिवसेना के हिस्से में ये पद देने को लेकर हामी भर दी थी. अब जबकि वोटिंग की तारीख नजदीक आती जा रही है, उद्धव ठाकरे पैंतरा बदलने लगे हैं. अब उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि वो अपने पिता बालासाहेब ठाकरे से किया हुआ वादा निभाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उद्धव के इस बयान के बाद गठबंधन में पेंच फंसने जैसी चर्चाएं भी हवाओं में तैरने लगी हैं.

उद्धव ठाकरे ने साफ शब्दों में कह दिया है, 'मैंने बालासाहेब से वादा किया था कि मैं एक शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाऊंगा. मैंने यह वादा पूरा करने की प्रतिज्ञा की है. मैं महाराष्ट्र में सत्ता चाहता हूं, लिहाजा मैंने सभी 288 सीटों के टिकट के दावेदारों को बुलाया है... अगर गठबंधन होता है तो शिवसेना, बीजेपी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करेगी लेकिन शिवसेना के उम्मीदवारों को भी बीजेपी का समर्थन मिलना चाहिए.'

uddhav with aditya and modiउद्धव ठाकरे ने चाल तो चल दी - दाल भी गलेगी क्या?

वैसे शिवसैनिक को सीएम बनाने से उद्धव का आशय मातोश्री से या फिर ठाकरे परिवार से लगता है - क्योंकि शिवसैनिक तो पहले भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं - और सबके सब एक्सीडेंटल-CM में रूप में ही गये. 1999 में चुनावों के ऐन पहले जिस तरह बाल ठाकरे ने मनोहर जोशी को हटा कर नारायण राणे को कुर्सी पर बिठा दिया, शक की बहुत गुंजाइश भी नहीं बचती.

सवाल ये उठता है कि आखिर उद्धव ठाकरे ये नया पैंतरा क्यों शुरू कर दिये हैं? क्या उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र की राजनीति में वो कोई नयी लहर महसूस हो रही है? ऐसा लगता है जैसे नारायण राणे पर थोड़ी तनातनी और थोड़ा शरद पवार के ED केस में राजनीतिक दांव से बदले माहौल में उद्धव ठाकरे भी रंग जमाने की कोशिश करने लगे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले महाराष्ट्र दौरे से दो बातें साफ हो गयी थीं. एक, बीजेपी-शिवसेना गठबंधन 'अटल' है और दूसरा, गठबंधन के अटल होने के चलते आदित्य ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने का सपना अभी होल्ड करना पड़ेगा - क्योंकि बीजेपी ने पहले से ही कह रखा है कि CM तो उसी का नेता बनेगा.

शिवसेना चाहे जितना शोर मचा ले, कोई ऑप्शन नहीं है

अमित शाह ने तो राजनीतिक नाकेबंदी पहले ही कर दी थी, लेकिन तस्वीर तब ज्यादा साफ हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र पहुंचे और उद्धव ठाकरे भी साथ में मंच पर मुस्कुराते हुए प्रकट हुए. काफी देर तक 'मोदी-मोदी' करने के बाद उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ हाथ उठाकर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को अटल भी बता दिया, लेकिन शिवसेना नेता के ताजा रूख से लगने लगा है कि वो सब फाइनल नहीं था.

प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ गठबंधन को विशेष रूप से 'अटल' बताया था - लेकिन अब महाराष्ट्र में सभी 288 सीटों पर तैयारी और शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने का वादा पूरा करने की प्रतिज्ञा काफी हद तक प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा ही लगती है.

देखा जाये तो महाराष्ट्र और केंद्र सरकार में हिस्सेदार होने के बावजदू शिवसेना एक सक्रिय विपक्ष की भूमिका भी निभाती रहती है. शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय इसके मिसाल रहे हैं. फिर भी बीजेपी और शिवसेना चुनावों में साथ हो जाते हैं. मतलब शिवसेना विपक्ष की भूमिका भी फ्रेंडली मैच की तरह निभाती है - लड़ाई चाहे जैसी भी हो दोनों मिलकर संयुक्त विजेता ही बने रहेंगे. बीच बीच में सुनी जाने वाली गिदड़भभकी तो गठबंधन के लिए गहना जैसी ही है.

उद्धव ठाकरे कहने लगे थे कि लोक सभा चुनाव के वक्त ही विधानसभा के सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी तय हो गया था. जब देवेंद्र फडणवीस का बयान आया कि कुछ भी तय नहीं हुआ है, तो उद्धव ठाकरे के बोल भी बदले बदले नजर आने लगे. उद्धव ठाकरे के रूख में जो बदलाव आया है उसमें एक अड़ियल व्यवहार भी देखा जा सकता है.

उद्धव ठाकरे अब लोगों से बाल ठाकरे से किया गया वादा पूरा करने की बात कर रहे हैं - सवाल ये है कि उद्धव ठाकरे के इस दावे का आधार क्या है? अभी तक ऐसा कोई संकेत तो नहीं मिला है जिससे लगे कि शिवसेना की लहर चल रही हो - या फिर आदित्य ठाकरे अपनी आशीर्वाद यात्रा के बाद किसी तेजस्वी यूथ आइकन के रूप में उभरे हैं. आदित्य ठाकरे की पहचान बाल ठाकरे के पोते से ज्यादा तो है नहीं. हां, उद्धव ठाकरे से दो कदम आगे जरूर लग रहे हैं जब मातोश्री से निकल कर चुनाव के लिए नामांकन भरने और खुद के लिए वोट मांगने की तैयारी कर रहे हैं.

ऐसे में जबकि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ह्यूस्टन में अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ मंच शेयर करने और संयुक्त राष्ट्र में भाषण देकर आने के बाद विश्व विजय सेलीब्रेट कर रही है, शिवसेना के पास खुद को बेहतर साबित करने का कोई उपाय तो नहीं ही नजर आता.

ऐसी स्थिति में अगर उद्धव ठाकरे शिवसैनिक को सीएम बनाने की बात करते हैं तो यही लगता है जैसे वो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनवाने का वादा कर रहे थे - और बाद में उन्हें भी बीजेपी के साथ साथ सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार होने लगा.

तो क्या उद्धव ठाकरे ये माहौल सिर्फ इसलिए बना रहे हैं ताकि शिवसेना के वोट शेयर थोड़े बढ़ जायें और बीजेपी से हिस्से में मिली सीटें वो ज्यादा से ज्यादा जीतने में कामयाब रहें?

एक बात और भी समझने वाली है कि जब बीजेपी हर तरीके से भारी पड़ रही है, फिर वो क्यों शिवसेना के साथ समझौते करने को मजबूर होगी. बीजेपी नेतृत्व आत्मविश्सास इस हद तक भरा हुआ है कि वो शिवसेना के साथ के बगैर अकेले भी सरकार बनाने में सक्षम है.

उद्धव ठाकरे जोर देकर कहते हैं कि वो चाहते हैं कि शिवसेना महाराष्ट्र में सत्ता में आये. उद्धव ठाकरे समझाना चाहते हैं कि बीजेपी के साथ अब जो भी समझौता होगा वो बिलकुल बराबरी पर होगा - सीटों के मामले में भी, कैबिनेट में मंत्रियों की हिस्सेदारी के मामले में भी और मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को लेकर भी.

दरअसल, बीजेपी शिवसेना को ज्यादा से ज्यादा डिप्टी सीएम का पद देने को राजी हो सकती है. बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की गतिविधियों को करीब से जानने वाले बताते हैं कि उद्धव ठाकरे आदित्य ठाकरे को डिप्टी नहीं बल्कि पूरा का पूरा सीएम बनवाने की कोशिश में हैं - भले ही ये आधी पारी बारी बारी के आधार पर तय हो - लेकिन लगता नहीं कि बीजेपी नेतृत्व इसके लिए राजी होगा.

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