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Updated: 16 जून, 2019 05:55 PM
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उद्धव ठाकरे आम चुनाव से पहले भी अयोध्या गये थे और मंदिर निर्माण को लेकर खूब गरजे भी थे. पहली मोदी सरकार को जी भर कोसे और अपने अंदाज में धमकाये भी थे - लेकिन इस बार तेवर बड़े नरम नजर आये हैं. ऐसा लग रहा जैसे मन्नत पूरी होने पर रस्म अदायगी के लिए पहुंचे हों और राजनीति करनी है तो कुछ न कुछ बोलना ही है.

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर मांग की है कि केंद्र सरकार कानून बनाये. कहा तो ये भी है कि अगर जरूरत पड़ी तो शिवसेना मंदिर निर्माण के लिए फिर से आंदोलन भी करेगी.

'मोदी-मोदी' तो उद्धव ठाकरे के भाषण में तब भी सुनायी दिया था - लेकिन जो जोर रहा वो इस बार बिलकुल नहीं दिखा, न क्रोध दिखा और न ही वैसा सख्त विरोध ही. ऐसा लगा जैसे लोगों को भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हों कि नरेंद्र मोदी फिर से प्रधानमंत्री बन गये हैं और मान कर चलना चाहिये कि मंदिर निर्माण हो कर ही रहेगा - लगता तो यही है कि शिवसेना अब वो वाली नहीं रही. शायद इसीलिए पुरानी शिवसेना वाली भूमिका नीतीश कुमार निभाने की तैयारी में लगे हैं.

उद्धव ठाकरे को नहीं मालूम अगली बार अयोध्या कब जाएंगे

महज छह महीने का वक्त और एक आम चुनाव बीता है - और कितना बदल चुके हैं शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे!

जो शिवसेना प्रमुख पिछली मोदी सरकार को धिक्कारते नहीं थकते रहे - 'आखिर अब नहीं तो कब बनेगा मंदिर', वही उद्धव ठाकरे अब डंके की चोट पर ऐलान कर रहे हैं - 'मोदी सरकार को मंदिर निर्माण से कोई नहीं रोक सकता.'

लगता है ये शिवसेना की जबान नहीं बीजेपी को मिले भारी बहुमत का दबाव बोल रहा है. शिवसेना जैसी पार्टी को भी समझ में आने लगा है कि जब वक्त की बागडोर दूसरे के हाथ में हो तो संयम कितना जरूरी होता है. वरना, शिवसेना के मुखपत्र सामना की स्टाइल शीट में संयम शब्द को तो कभी जगह भी कहां मिल पायी.

उद्धव ठाकरे खुद कहने लगे हैं कि पिछली बार जब आया था तो लोगों को लगा कि मैं सियासत करने आया हूं लेकिन मैंने तभी नारा दिया था 'पहले मंदिर फिर सरकार...' उद्धव ठाकरे बताते हैं कि राम लला से उन्होंने चुनाव बाद आने का वादा किया था और वही निभा रहे हैं. कहना चाहते हैं कि मंदिर बन कर ही रहेगा.

स्लोगन जो भी हो. स्लोगन की बात और है, लेकिन उद्धव ठाकरे के बयान से जो समझ आ रहा है वो तो लगता है स्लोगन का ठीक उलटा है - 'पहले सरकार फिर मंदिर...' शब्द जो भी हो, भाव तो यही समझ आ रहा है. सरकार ही सरकार है. सरकार बोले तो मोदी सरकार. जैसे शब्द शब्द में 'जय हो' गुंजायमान हो.

uddhav thackeray with shiv sena mpsक्या बीजेपी को मिले बहुमत से शिवसेना के तेवर बदल गये हैं?

उद्धव ठाकरे के मुंह से एक और अजीब बात सुनने को मिली - 'मैं अयोध्या आता रहूंगा लेकिन अगली बार कब आऊंगा, पता नहीं.' इससे पहले नवंबर, 2018 में उद्धव ठाकरे अयोध्या गये थे.

उद्धव ठाकरे के साथ अयोध्या पहुंचे शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत भी अपने नेता की ही बात को आगे बढ़ाते हैं, '2019 का बहुमत राम मंदिर निर्माण के लिए है. राज्य सभा में भी 2020 तक हमारा बहुमत हो जाएगा... हरेक मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट के हस्‍तक्षेप से नहीं सुलझाया जा सकता.'

लगता तो नहीं कि कोई दबाव बना पाएंगे

उद्धव ठाकरे इस बार पूरी शिवसेना के साथ अयोध्या पहुंचे थे, लेकिन पिछली बार जैसा ताम झाम नहीं देखा गया था. पिछली बार संतों और विश्व हिंदू परिषद की ओर से भी कुछ कार्यक्रम रखे गये थे - वैसे शहर में पोस्टर पर जगह जगह भगवा लहरा रहा था. उद्धव ठाकरे के साथ बेटे आदित्य ठाकरे और संजय राउत के साथ साथ महाराष्ट्र से चुन कर आये सभी 18 सांसदों भी अयोध्या में राम लला का दर्शन किये. शिवसेना के दो सांसद राज्य सभा में भी हैं. करीब छह महीने के अंतराल पर हुई उद्धव ठाकरे की दोनों यात्राओं को चुनावों से जोड़ा गया. पिछली वाली लोक सभा चुनाव 2019 से और ये वाली विधानसभा चुनाव 2019 से.

उद्धव ठाकरे भले ही अपनी अयोध्या यात्रा को गैरराजनीतिक बतायें, अगर आगामी विधानसभा चुनाव से इसका कोई लेना देना है तो सवाल है कि क्या मकसद हो सकता है?

क्या शिवसेना खुद की बनी छवि को बनाये रखने के लिए अपने वोट बैंक को समझाने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी के प्रति तेवर भले ही नरम पड़े हों, लेकिन अंदाज और एजेंडा नहीं बदलने वाला है.

क्या शिवसेना अयोध्या पहुंचकर बीजेपी पर कोई दबाव बनाने की कोशिश में है? शिवसेना का अयोध्या दौरा परदे के पीछे किसी रणनीति का हिस्सा भले हो लेकिन उद्धव ठाकरे या संजय राउत या आदित्य ठाकरे के हाव भाव से तो बहुत ज्यादा नहीं लगता.

एक खास बात जरूर है जिसमें हर किसी की दिलचस्पी हो सकती है - क्या आदित्य ठाकरे मातोश्री में किसी नयी परंपरा के वाहक बनने जा रहे हैं? अभी तक तो परंपरा यही रही है कि मातोश्री में सिर्फ रिमोट रहता है, सत्ता में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं होती रही है. लगता है आगे से ऐसा नहीं होगा. तीसरी पीढ़ी, आदित्य ठाकरे के चुनाव मैदान में भी उतरने की चर्चा चल रही है.

'बीजेपी और शिवसेना के सत्ता में वापसी करने पर क्या आदित्य ठाकरे उप मुख्यमंत्री बनेंगे?' ये सवाल संजय राउत के सामने उठा तो तपाक से बोले, 'ठाकरे उप पद नहीं लेते. ठाकरे परिवार के सदस्य हमेशा प्रमुख बने हैं.'

फिर तो एक और सवाल का जवाब भी मिल गया है - अगर विधानसभा चुनाव में शिवसेना, बीजेपी से ज्यादा सीटें जीत कर आती है तो आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री पद के भी दावेदार हो सकते हैं. वैसे एक थ्योरी छह-छह महीने के मुख्यमंत्री वाली भी सियासी हलकों में तैरने लगी है. पक्के तौर पर किसी ने कुछ नहीं कहा है.

आम चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन कामयाब रहा है. अभी तक दोनों दलों के मिल कर ही चुनाव लड़ने की संभावना जतायी गयी है. तब क्या होगा जब बीजेपी अकेले चुनाव मैदान में उतरने का फैसला कर ले - जाहिर है शिवसेना की चुनौतियां बढ़ेंगी और उद्धव ठाकरे के नरम तेवर फिलहाल वही इशारा कर रहे हैं.

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