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मुकुल रॉय के खिलाफ FIR नहीं, चुनावी हिंसा की आशंका खतरनाक है
आम चुनाव के ऐन पहले पश्चिम बंगाल में टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या एक खतरनाक संकेत है. एक लोकप्रिय विधायक की हत्या और उसमें बीजेपी के बड़े नेता का नामजद होना आने वाले दिनों के लिए आगाह कर रहा है.
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पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के विधायक की हत्या बहुत बड़े खतरे का संकेत है. ये खतरा चुनावी हिंसा को लेकर है. अब तक बीजेपी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या के लिए सत्ताधारी टीएमसी को जिम्मेदार बताती रही है. इस हत्या के बाद टीएमसी ने बंदूक बीजेपी पर तान दी है.
टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या के मामले में बीजेपी नेता मुकुल रॉय को भी FIR में नामजद किया गया है. ये वही मुकुल रॉय हैं जो कभी टीएमसी के बड़े नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बेहद करीबी हुआ करते थे. घोटालों को लेकर जब मुकुल रॉय केंद्रीय जांच एजेंसियों की जद में आये तो पाला बदल कर भगवा ओढ़ना स्वीकार कर लिया.
बीजेपी ने टीएमसी विधायक की वजह हत्या पार्टी की अंदरूनी राजनीति को बताया है. पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष ने तो हत्या की जांच सीबीआई से कराने की मांग की है.
राजनीतिक तनाव के बीच विधायक की हत्या
टीएमसी विधायक की हत्या ऐसे वक्त हुई है जब लोक सभा चुनाव को लेकर पश्चिम बंगाल में पहले से ही राजनीतिक तनाव का माहौल बना हुआ है. बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ता आमने सामने भिड़ने के लिए आतुर हैं. किसी मौजूदा विधायक की हत्या आम कार्यकर्ताओं की हत्या से कहीं ज्यादा बड़ी घटना है. सत्यजीत बिस्वास की जिस तरह लोकप्रियता की बात हो रही है, उस हिसाब हत्या राजनीतिक साजिश का हिस्सा लगती है.
पश्चिम बंगाल की ममता सरकार के मंत्री उज्ज्वल बिस्वास ने तो टीएमसी विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या के लिए सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है. हत्या को लेकर पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है, ‘बिस्वास बहुत ही जाने-माने नेता थे और उनकी हत्या दुर्भाग्यपूर्ण है. टीएमसी में असामाजिक तत्व भरे पड़े हैं. जब भी तृणमूल के लोग ऐसी घटनाओं में भाजपा को घसीटते हैं, बाद में पता चलता है कि वह उनके अंदरूनी झगड़े का नतीजा थी.’
सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के नदिया जिले की कृष्णागंज विधानसभा से तृणमूल कांग्रेस के विधायक थे. सत्यजीत बिस्वास अपनी पत्नी और 7 महीने के बेटे के साथ इलाके में सरस्वती पूजा के कार्यक्रम में गए थे - और लौटते वक्त हमलावरों ने उनपर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी.
हिंसा पर उतारू कार्यकर्ताओं पर लगाम कसना जरूरी है
सत्यजीत बिस्वास पश्चिम बंगाल के मटुआ समुदाय से आते थे जो राजनीतिक दलों के हिसाब से एक बड़ा वोट बैंक है - बीजेपी और टीएमसी में मटुआ समुदाय का वोट बटोरने की होड़ लगी हुई है.
TMC सत्यजीत विधायक सत्यजीत बिस्वास इलाके में सरस्वती पूजा कार्यक्रम में गये थे और गोली मार कर हत्या कर दी गयी
पिछले चुनावों में मटुआ समुदाय ममता बनर्जी के साथ खड़ा रहा है. लेकिन अब उसका झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ रहा है. पश्चिम बंगाल में मटुआ समुदाय की आबादी करीब 30 लाख बतायी जाती है और करीब पांच लोक सभा सीटों पर हार जीत का फैसला यही समुदाय करता है. उत्तर और दक्षिण 24 परगना के इलाकों में मटुआ समुदाय का सबसे ज्यादा असर है.
2 फरवरी को 24 परगना के ठाकुरनगर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रैली की थी. ये रैली खास तौर पर मटुआ समुदाय के लोगों को भी ध्यान में रख कर आयोजित की गयी थी. बाकी कार्यक्रमों की कौन कहे प्रधानमंत्री की रैली में ही हिंसा होते होते बची थी.
रैली में ही झड़प की आशंका में उस दिन प्रधानमंत्री को 14 मिनट में ही अपनी रैली खत्म करनी पड़ी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से शांत रहने की कई बार अपील की लेकिन वे नहीं माने और आखिरकार मोदी को रैली खत्म करने की घोषणा करनी पड़ी. रैली में हुई झड़प में कुछ लोग घायल भी हुए थे जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
हिंसा की हालिया घटनाओं की बात करें तो अक्टूबर 2018 में हुई चुनावी हिंसा में दर्जन भर लोग मारे गये थे. तब बीजेपी और वाम मोर्चे का आरोप रहा कि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता उनके कार्यकर्ताओं को चुनाव न लड़ने के लिए धमका रहे हैं - और जो विरोध कर रहे हैं उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है. चुनावी हिंसा का नतीजा ये हुआ कि बड़ी संख्या में उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित घोषित हो गये. हैरानी की बात ये रही कि उसमें 20 हजार से ज्यादा सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के रहे.
पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. फर्क बस ये है कि जो आरोप ममता बनर्जी पहले वाम मोर्चे के कार्यकर्ताओं पर लगाती रहीं, अब तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लग रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अपनी रैलियों में अक्सर इस बात का जिक्र करते रहे हैं कि पार्टी कार्यकर्ताओं पर योजनाबद्ध तरीके से हमले हो रहे हैं. हालांकि, वे कार्यकर्ताओं को भी दिलासा दिलाते हैं कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा.
बीजेपी नेतृत्व का कहना है कि ममता सरकार को उखाड़ फेंकना है - और ममता बनर्जी कह रही हैं कि चुनाव बाद मोदी सरकार को सत्ता में वापस नहीं आने देना है.
कार्यकर्ताओं की हौसला अफजाई तो ठीक है, लेकिन उन्हें हिंसक होने से रोकना हर राजनैतिक नेतृत्व की जिम्मेदारी बनती है. टीएमसी विधायक की हत्या की जांच तो जरूरी है ही, ये पता लगाना भी जरूरी है कि कहीं ऐसी हिंसक वारदात की योजनाएं तो नहीं बन रही हैं. चुनाव आयोग को भी टीएमसी विधायक की हत्या को हिंसा के अलर्ट के तौर पर लेना चाहिये - और भविष्य में किसी तरह की हिंसा न हो ये सुनिश्चित करने के लिए पहले से जरूरी इंतजाम करने चाहिये.
विधायक सत्यजीत बिस्वास की हत्या में टीएससी से साल भर पहले बीजेपी में आये मुकुल रॉय का नामजद होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि इस हत्या से चुनावी हिंसा की ओर इशारा हो रहा है वो ज्यादा खतरनाक है.
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