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देश वाकई बदल रहा है या 'बदला' ले रहा है ?
देश में जिस तरह 'बदले की राजनीति' हो रही है, उससे तो हर तरफ राजनीति का बदलापुर ही नजर आने लगा है. बदले की राजनीति की वर्षों पुरानी परंपरा को निभाता हुआ. चुनाव आते आते क्या होगा, अंदाजा ही लगाया जा सकता है...
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अच्छे दिनों का आलम ये है कि अब आम चुनाव होने को हैं - और बदलाव का ये दौर बदले की राजनीति की ओर बढ़ चला है. मामला दिलचस्प ये हो गया है कि बदले की इस राजनीति में कोई भी कम नहीं. अपनी अपनी सामर्थ्य के हिसाब से हर कोई बदले की झुलसती आग के साथ सियासी शोले बरसा रहा है. यहां हर किसी का अपना बदलापुर है. अच्छी बात ये है कि पब्लिक भी बड़े गौर से हर वाकया देख रही है. यहां वहां जहां तहां - जिधर देखिये बदल रहा देश बदलापुर बन चुका है. जरूरी नहीं कि बदलापुर सिर्फ एक फिल्म तक सीमित हो - जरा नजर दौड़ाइए और देखेंगे कि हर तरफ सीन एक जैसा ही है.
बदलापुर का एक ट्रेलर 1995 में उत्तर प्रदेश में देखा गया था - गेस्ट हाउस कांड. 12 जनवरी को समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव के साथ प्रेस कांफ्रेंस में मायावती के शब्द और भाव दोनों बता रहे थे कि कड़वीं यादें भुलाना हर किसी के लिए कितना मुश्किल होता है. जरूरी नहीं कि राजनीति में जहर पीने की बात करने वाले का नाम लालू प्रसाद ही हो. ये भी हो सकता है कि जिसके लिए जहर पिया वो भी कुछ दिन बाद पाला बदल कर जहर उगलने लगे.
1996 से 2001 के बीच बदलापुर दूसरा ट्रेलर दक्षिण की राजनीति में देखने को मिला. सत्ता में आते ही डीएमके की करुणानिधि सरकार अपनी सियासी दुश्मन जे. जयललिता पर तो टूट ही पड़ी थी. आय से अधिक संपत्ति के कानून और भ्रष्टाचार के दर्जनों मामले दर्ज हुए. जयललिता को जेल भी जाना पड़ा. दोनों नेताओं की लड़ाई जीते जी तो जारी रही ही, मौत के बाद भी नहीं थमी. मरीना बीच पर करुणानिधि की समाधि को लेकर 2018 में जो जद्दोजहद मची वो मिसाल है.
'चौकीदार ही चोरों को जेल भेजेगा'
राफेल डील को लेकर चौकीदारी पर सवाल उठाता स्लोगन अब नये नये मुहावरे भी गढ़ने लगा है. ममता बनर्जी कह रही हैं कि चुनाव आते ही राफेलवाला कब चायवाला बन जाता है पता नहीं चलता. बीजेपी के अंदरूनी बदलापुर के शिकार शिवराज सिंह चौहान ने नयी बीमारी की खोज की है - 'राफेलेरिया'.
सर्दी, खाँसी न मलेरिआ हुआ, ये गया यारों इसको रॉफेलेरिआ हुआ!
— ShivrajSingh Chouhan (@ChouhanShivraj) February 8, 2019
2014 की चुनावी बयार शुरू होने से पहले जो लोग 'नमोनिया' के शिकार बताये जाते थे, शिवराज सिंह की सहानुभूति भी उसी लॉबी से रही. अमित शाह द्वारा बीजेपी उपाध्यक्ष बना कर भोपाल छुड़ाये जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान दिल्ली के मोर्चे पर गरजने लगे हैं.
सिनेमा के बाद देखिये सियासत का बदलापुर
सोहराबुद्दीन केस में कोर्ट का फैसला आने के बाद भी असलियत का पता नहीं ही चला, लेकिन कोर्ट की वो टिप्पणी बड़ी महत्वपूर्ण रही. सीबीआई के विशेष न्यायाधीश एसजे शर्मा ने सीबीआई पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, "पूरी जांच एक किसी तरह राजनेताओं को फंसाने के क्रम में गढ़ी गई कहानी पर केंद्रित थी. सीबीआई ने किसी तरह साक्ष्य तैयार किया और आरोपपत्र में गवाहों का बयान आपराधिक दंड प्रकिया की धारा 161 या धारा 164 के तहत दर्ज किया गया झूठा बयान पेश किया."
जैसे जैसे चुनाव की संभावित तारीख नजदीक आती जा रही है, राजनीतिक बदले की नयी नयी कहानियां सामने आ रही हैं. कुछ नमूने देखिये -
1. बंगाल में बीजेपी बनाम ममता सरकार : इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम की पड़ताल से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी की रथयात्रा को रोकने के लिए जिस रिपोर्ट को आधार बनाया गया उसका आधार ‘जमीनी सुराग’ नहीं थे, जैसा कि ममता बनर्जी सरकार का दावा रहा. बीजेपी की रथयात्रा रोकने के लिए ऐसी रिपोर्ट तैयार की गयी थी कि कोर्ट जाने पर भी बीजेपी को रथयात्रा की अनुमति नहीं मिली और रैली से संतोष करना पड़ा. अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में बीजेपी को मजबूत करने के मकसद से रथयात्रा की लंबी रूप रेखा तैयार की थी और उसके तहत 7 दिसंबर, 2018 को कूचबिहार से, 9 दिसंबर, 2018 को 24 परगना से और 14 दिसंबर, 2018 को बीरभूम से रथयात्रा निकलनी थीं.
#Exclusive #OperationRathYatraदंगे की आशंका पर बनी 'मनगढंत रिपोर्ट'Live: https://t.co/fOz5QPkk43 pic.twitter.com/DiXVac1UBb
— आज तक (@aajtak) February 8, 2019
बीजेपी ने रथयात्रा पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, लेकिन खारिज हो गयी. सुप्रीम कोर्ट ने पाया - 'राज्य सरकार की ओर से जताई गई आशंकाएं बेबुनियाद नहीं हैं.' स्टिंग ऑपरेशन से स्पष्ट है कि रथयात्रा पर रोक धुंधली और अस्पष्ट इटेंलीजेंस रिपोर्ट के आधार पर लगाई गई. कोलकाता के ब्रिगेड ग्राउंड पर तो ममता बनर्जी ने एक तरीके से साफ कर ही दिया था कि बीजेपी नेताओं के हेलीकॉप्टर को पश्चिम बंगाल में उतरने की इजाजत तो मिलने से रही. अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ और शिवराज सिंह चौहान के चुनावी दौरों में यही हो भी रहा है. योगी आदित्यनाथ तो झारखंड की तरफ से दाखिल हुए. झारखंड में बीजेपी के रघुबर दास की सरकार है. आखिर ये सब क्या चल रहा है? ये कौन सा देश बदल रहा है? समझ में नहीं आ रहा ये देश कितना तेजी से बदल रहा है?
2. सीबीआई अफसर के करीबियों के पीछे पुलिस : जैसे ही कोलकाता के पुलिस कमिश्नर सीबीआई पूछताछ के लिए शिलॉन्ग रवाना हुए, उनके साथी और मातहत छापेमारी में जुट गये.
कोलकाता के बाद दिल्ली की ओर...
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आज तक को बताया कि बहुबाजार थाने में दर्ज एक पुरानी शिकायत के आधार पर छापे मारे गये हैं. मामला पुराना था लेकिन जांच पड़ताल और छापे के लिए ऐसे ही सही वक्त का इंतजार था. कोलकाता पुलिस ने जांच के तहत एंजेला मर्केंटाइल्स के दो दफ्तरों पर छापेमारी की. रिपोर्ट के अनुसार 30 पुलिस अधिकारियों के एक दल ने इन दो कार्यालयों पर छापा मारा जो सीबीआई के अंतरिम निदेशक रहे एम. नागेश्वर राव की पत्नी मन्नेम संध्या से कथित रूप से संबद्ध है. पुलिस अधिकारी ने दावा किया कि कंपनी और संध्या के बीच कई लेन-देन हुए हैं और उसी की जांच चल रही है. नागेश्वर राव ने इसे पूरे छापे को एक प्रोपेगैंडा करार दिया है. एक बयान जारी कर राव पहले ही एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड से किसी तरह का संबंध होने से इंकार कर चुके हैं.
Former interim CBI chief M Nageshwar Rao issues a press statement, refuting any link with M/s Angela Mercantile Pvt Ltd which is being raided by Kolkata Police today. pic.twitter.com/g9RfW3Yl4c
— ANI (@ANI) February 8, 2019
राजनीति ने सरकारी अफसरों को भी बांट दिया है - और अपने आकाओं के लिए वो एक्शन भी ले रहे हैं और कीमत भी चुका रहे हैं. केंद्र सरकार ने कोलकाता में ममता बनर्जी के आंदोलन में शिरकत करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की सलाह दी है और उनके मेडल वापस लेने की भी तैयारी है. अफसरों के बचाव में मजबूती से डटीं ममता बनर्जी कह रही हैं कि वो अपने अफसरों को पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा अवॉर्ड देंगी. आखिर ये सब क्या चल रहा है? ये कौन सा देश बदल रहा है? समझ में नहीं आ रहा ये देश कितना तेजी से बदल रहा है?
3. वाड्रा-चिदंबरम पर एक्शन : लगता है आने वाली पीढ़ियां देश के राजनीतिक इतिहास के पन्ने पलटेंगी तो उसमें 'चोर और चौकीदार' किस्से जरूर होंगे. ऑपरेशन चौकीदार ऐसे चल रहा है कि चुनावी फैसलों को भी प्रभावित करने लगा है.
अब तो राहुल गांधी का हर कार्यक्रम एक नारे से शुरू भी होता है और खत्म भी - 'चौकीदार चोर है'.
'चौकीदार चोर है'... लेकिन वाड्रा और चिदंबरम?
बदले की आग इधर भी है और उधर भी. बदले की इस आग की लपटें काफी ऊंची उठने लगी हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम भी एक ही वादे के साथ शुरू और खत्म होते हैं - ये चौकीदार ही चोरों को उनकी सही जगह पहुंचाएगा. ये चौकीदार ही चोरों को जेल भेजेगा. इसके लिए राजदार भी जुटाये जा चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री मोदी बताते भी हैं - एक नहीं, दो नहीं तीन तीन राजदार आ चुके हैं. फर्ज कीजिये ये राजदार राज खोलेंगे तो क्या होगा?. अगस्टॉ वेस्टलैंड केस में मिशेल के अलावा दो और आरोपी सरकारी एजेंसियों के कब्जे में हैं. कानूनी प्रक्रिया जारी है.
राहुल गांधी के जीजा रॉबर्ट वाड्रा से प्रवर्तन निदेशालय के अफसर जोर शोर से पूछताछ कर रहे हैं. कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम और उनके बेटे कार्ती चिदंबरम को भी बार बार पेशी देनी पड़ रही है. कांग्रेस नेताओं का भी यही आरोप है मोदी सरकार राजनीतिक बदले की कार्रवाई कर रही है. ममता बनर्जी भी उसी बात को एनडोर्स कर रही हैं.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी पति को पिक-ड्रॉप कर अपने तरीके से रिएक्ट कर रही हैं.
पूछे जाने पर राहुल गांधी भी अपने स्टैंड पर डटे हुए हैं. कहते हैं वाड्रा-चिदंबरम जांच से किसी को कोई परहेज नहीं, लेकिन राफेल पर क्या हो रहा है? राहुल गांधी राफेल डील पर जवाब भी मांग रहे हैं और जांच की मांग भी कर रहे हैं. जांच जेपीसी से ही होनी चाहिये. यही बात सड़क पर भी कह रहे हैं और संसद में भी.
आखिर ये सब क्या चल रहा है? ये कौन सा देश बदल रहा है? समझ में नहीं आ रहा ये देश कितना तेजी से बदल रहा है?
देश तो, दरअसल, बहुत पहले से बदल रहा था. बदलाव पर दावेदारी शायद बहुत देर बाद जतायी गयी. चुनाव नजदीक आते आते बदलाव में तेजी इस कदर आ गयी कि देश का कोना कोना बदलापुर नजर आने लगा है - और ये फिल्मी नहीं है.
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