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Updated: 16 मार्च, 2022 02:05 PM
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आधी दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटिश शासन का खात्मा हो गया मगर दुनिया की इस 'मंथरा' ने जो रायता फैलाया है उसे पूरी दुनिया भुगत रही है. ब्रिटेन ने दुनिया में जहां-जहां राज किया वहां के अस्सी फीसदी भूभागों पर विवादों की ऐसी विरासत छोड़ आए हैं जहां पर कई बार युद्ध हो चुके हैं या फिर युद्ध की आशंका बनी ही रहती है. जहां राज नही किया वहां तो और भी लड़ाईयां करवाई हैं. रूस और यूक्रेन का यह युद्ध भले ही सोवियत काल की विरासत की जंग लग रहा हो मगर इसकी बुनियाद करीब 200 साल पहले ग्रेट ब्रिटेन की कुटिल चालों की वजह से रखी जा चुकी थी जो आज भी रूप बदल-बदल कर हमारे सामने आती रहती है. युद्ध हमेशा से इतिहास की वह विरासत होती है जो हक-हुकूक, मान-सम्मान, रक्षा-प्रतिरक्षा के भाव-अभाव पर लड़ी जाती रही है. रूस और यूक्रेन का युद्ध भी इतिहास की इन्हीं विरासतों को समेटे हुए है. दुनिया ने कई बड़े बदलाव देखे हैं मगर दुनिया के आधुनिक शक्ति संतुलन का बदलाव तो फ्रांस की क्रांति के बाद ही आया.

Ukraine, Russia, Vladimir Putin, War, Britain, America, Stress, Boris Johnsonअगर आज रूस और यूक्रेन आमने सामने हैं तो इसकी वजह ग्रेट ब्रिटेन है

पहली बार ग्रेट ब्रिटेन की चूलें हिली. नेपोलियन बोनापार्ट पूरी दुनिया के वर्ल्ड ऑर्डर को ध्व्स्त करता हुआ रूस तक जा पहुंचा था. रोमन सम्राज्य से भी ज्यादा बड़े भूभाग पर वह कब्जा कर चुका था. रूस ने 1807 के युद्ध में नेपोलियन से हार कर संधि कर ली जिसे कॉंटिनेंटल संधि कहा गया. इसमें रूस को नेपोलियन ने जीतने के बाद छोड़ तो दिया मगर उसके बदले रूस को ग्रेट ब्रिटेन के समुद्री मार्गों को रोकने की पहरेदारी करनी थी.

रूस ब्रिटेन से लड़ता रहा मगर धीरे-धीरे ब्रिटेन ने रूस के जार एलेकजेंडर प्रथम को पटा लिया. जब इस बात का पता नेपोलियन को लगा तो उसने मास्को अभियान के तहत 1812 में मास्को पर चढाई कर दी. यहीं नेपोलियन का अंत हो गया. रूसी जार ऐलेकजेंडर प्रथम ने तीन लाख सैनिकों के साथ पेरिस की सड़कों पर प्रदर्शन किया तो ब्रिटेन थर्रा गया.

फिर यूरोप में रूस के एलेक्जेंडर प्रथम और आस्ट्रिया के मैटरनिख का राज शुरू हुआ जिसे यूरोप में मैटरनिख युग कहते हैं. इन देशों के बीच नई संधि हुई जिसे होली अलायंस कहा गया. जिस ब्रितानी राज में सूरज नहीं डूबता था उसमें यूरोप के दूसरे देशों ने सूरज के नीचे अपना हिस्सा मांगना शुरू कर दिया.

अब उस वक्त का दुनिया का सबसे ताकतवर और धनी देश ग्रेट ब्रिटेन डरने लगा. ब्रिटेन खुद एक बड़ी औपनिवेशिक ताकत था और नहीं चाहता था कि कोई दूसरा इसकी तरह यूरोप में मजबूत बने. जैसे लोग खुद के दुख से दुखी न होकर पड़ोसी या गांव वालों के सुख से ज्यादा दुखी होते हैं.

ग्रेट ब्रिटेन ने कभी भी नहीं चाहा कि यूरोप में कोई ताकतवर बने. यूरोप की नई ताकतें नए उपनिवेश के लिए लैटिन अमेरिका में जड़ें जमा रही थी तो इन्हें रोकने के लिए ग्रेट ब्रिटेन ने उस वक्त के कमजोर रीजनल पावर को कई सालों के बाद एक विदेश नीति के लिए राजी कर लिया जिसे आज भी आमेरिका की विदेश नीति की नींव कहा जाता है.

ग्रेट ब्रिटेन की खुद में इनसे लड़ने की हिम्मत नहीं थी तो इनके खिलाफ मंथरा बनकर अमेरिका को खड़ा करना शुरू किया. रूस पहले नेशन लीग और बाद में बने संयुक्त राष्ट्र को इसका एक्सटेंशन मानता है. यह नीति यूनाईटेड स्टेट ऑफ अमेरिका का मोनरो डॅाक्ट्रिन या संयुक्त राज अमेरिका का मोनरो का सिद्धांत कहते हैं जिसने नाटो को पैदा किया और उसी नाटों की वजह से सारा लफड़ा है.

फसाद की जड़ मोनरो सिद्धांत

ग्रेट ब्रिटेन की सलाह पर अपने पुराने उपनिवेश अमरिका के राष्ट्रपति जेम्स मोनरो ने 2 दिसंबर 1823 को अमेरिकी विदेश नीति की घोषणा की जिसे मोनरो डॅाक्ट्रिन कहा गया. इसके तीन मुख्य बिंदु थे.अमेरिका यूरोप के देशों के बीच विवाद और युद्ध में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा.  

वेस्टर्न हेमिशफेयर जिसमें पूरा अमेरिका महाद्विप आता है, अमेरिका, लैटिन अमेरिका, कनाडा अलास्का समेत कई छोटे-मोटे द्वीप आते हैं उस पर किसी भी देश का औपनिवेशिक हस्तक्षेप नहीं होगा.

किसी भी यूरोपीय शक्ति या राष्ट्र के द्वारा अमेरिकी महाद्वीप में हस्तक्षेप होता है तो उसे यूनाईटेड स्टेट आफ अमेरिका के खिलाफ वार यानी युद्ध माना जाएगा.

अमेरिका ने पहले नियम की पालन नहीं की और हर जगह हस्तक्षेप करता रहा मगर दूसरे-तीसरे की पालना कराने के लिए हर देश से लड़ता रहा. लैटिन अमेरिकी देश क्यूबा और वेनेजुएला का मामला तो सबके सामने है कि कैसे अमेरिका यह भी बर्दाश्त नहीं कर पाया कि कोई लैटिन अमेरिकी देश किसी और देश का साथी बने, और आज वही तो पुतिन कर रहे हैं कि अपने पड़ोस में किसी और का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं .

हालांकि जो दूसरे के लिए गड्ढा खोदता है उसका शिकार वह खुद होता है इसलिए 1833 में मोनरो सिद्दंत के तहत अमेरिका ने सबसे पहले फॅाकलैंड आईलैंड को लेकर ग्रेट ब्रिटेन को हीं आंख दिखाई. बाद में 1867 में मैक्सिको सरकार को फ्रांस समर्थित होने पर हटाया.

रूजवेल्ट कोरोलरी

1901-02 के वेनेजुएला के सिविल वार में जब यूरोपीए देशों ने ब्लॅाकेड किया तो अमेरिकी राष्ट्रपति थीयोडोर रूजवेल्ट ने मोनरो सिद्दांत में परिवर्तन करते हुए ऐसे मामलों में अमेरिकी सैन्य कार्रवाई का नियम बनाया जिसे बिग स्टिक पॅालिसी कहा गया. यानी दूसरे पड़ोंसी देशों को अपना हलका बताकर मुहल्ले का दादा बनने का नियम अमेरिका ने बनाया.

बाद में 1933 में अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट ने आर्गेनाईजेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट के बैनर तले घोषित किया कि लैटिन अमेरिका की विदेश नीति भी अमेरिका तय करेगा. जिसका वेनेजुएला, हैती, मैक्सिको, ब्राजिल, निकारागुआ और क्यूबा जैसे देशों में विरोध हुआ. दुनिया ने भी इसे गलत बताया गया मगर पहले विश्व युद्ध के बाद अमेरिका मजबूत हो चुका था और रूस खुद अपने पड़ोस में उलझा हुआ था.

ग्लोबल डॅाक्ट्रिन यानी दुनिया का सिद्धांत 

वर्ल्ड वार फर्स्ट के बाद सोवियत संघ बनना शुरू हुआ और यहीं से अमेरिका ने वह करना शुरू किया जिसकी वजह से सोवियत संघ विखंडित हुआ. और रूस-यूक्रेन जैसे भाई-भाई एक दूसरे का खून बहा रहे हैं. ग्रेट ब्रिटेन रूसी साम्यवाद की विस्तावादी नीतियों से डरा हुआ था.

वह यूरोप की सबसे बड़ी ताकत नहीं रह गया था मगर बना रहना चाहता थो तो अपने बचाव के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन को जबरन समझा-बुझा कर सोवियत संघ की सीमा पर राजनीति करने ले आया. विल्सन ने कहा मोनरो सिद्धांत अब पूरी दुनिया पर लागू होगा. जहां भी हमारे मित्र देश होंगे उनके लिए हम और हमारे सैनिक काम करेंगे .

नैटो की बुनियाद भी वुडरो के ग्लोबल डॅाक्ट्रिन की वजह से पड़ी. 16 प्वाईंट चार्टर के तहत सोवियत संध के आसपास के देशों में पश्चिमी  यूरोप-अमेरिका समर्थित सरकारें बनाने का सिलसिला शुरू हुआ. और फिर चेकोस्लोवाकिया, यूगोस्लाविया समेत सोवियत संघ का विघटन हुआ. यानी वेस्टर्न हेमिशफेयर के मोनरो डॅाकट्रिन का विस्तार 200 साल बाद ईस्टर्न हेमिशफेयर के ग्लोबल डॅाक्ट्रिन के रूप में हो गया.

बराक ओबामा ने कहा कि मोनरो डॉक्ट्रिन को खत्म करने का वक्त आ गया है मगर डोनाल्ड ट्रंप इसे अमेरिका का सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड मानते थे. आज यूक्रेन के मौजूदा विवाद में रूस सारे फसाद की जड़ ब्रिटेन को मानता है. अब पुतिन वही तो कह रहे और कर रहे हैं जिसकी शुरुआत अमेरिका और ब्रिटेन ने की थी और करता रहा है. रूसी कह रहे हैं कि अमेरिका करे तो रासलीला और रूस करे तो कैरेक्टर ढीला.

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