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Updated: 22 अगस्त, 2021 09:30 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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तालिबान का हिंदुओं-सिखों के विरुद्ध अत्याचार जगजाहिर है. मध्य एशियाई मुल्क अफगानिस्तान को कब्जाने के बाद तालिबानी आतंकियों ने अपने इरादों का परिचय समूचे संसार को दे दिया है. जिसमें सबसे ज्यादा चिंता करने की जरूरत हिंदुस्तान को है. हम अपने नजरिए से तालिबान की क्रूरता को देखे तो दर्द के निशान दूर-दूर तक दिखाई देते हैं. क्योंकि तालिबान के भीतर हिंदुओं और हिंदुस्तानियों के प्रति हमेशा नफरत रही है. उसने हिंदुओं, सिखों व अन्य धर्म जो भारत से ताल्लुक रखते हैं, को निशाना बनाया है. हाल ही में उन्होंने भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी को जिस बेरहमी के साथ मारा, उससे उन्होंने अपनी भारत के प्रति दुर्दांत सोच को जाहिर किया. जब उन्हें पता चला कि दानिश भारत का रहने वाला है तो उसके शव के साथ घोर अमानवीयता दिखाई. उल्लेखनीय है, अफगानिस्तान में कभी हिंदुओं और सिखों संख्या अच्छी खासी हुआ करती थी. दो दशक पूर्व जब वहां तालिबानियों का वर्चस्व था, तब भी उन्होंने हिंदुओं और सिखों को चुनचुन खदेड़ा और मारा. इन दोनों समुदायों पर तालिबानियों का अत्याचार हमेशा से रहा.

Taliban, Afganistan, President, Ashraf Ghani, Hindu, Sikh , Murderये अपने में दुर्भाग्यपूर्ण है कि अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा सिखों और हिंदुओं का कत्ले आम हो रहा है

अफगानिस्तान में हिंदुओं और सिखों की आबादी बहुत प्राचीन समय से रहती आई है. दोनों समुदाय अफगान में अल्पसंख्यक के तौर पर रहे हैं. पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी तक ने अफगान की तरक्की और समद्व व्यापार संबंध में उनके उल्लेखनीय योगदान की सराहना करते रहे. पर, जब तालिबान का वर्चस्व बढ़ा तो हिंदुओं और सिखों के सामने मुसिबतों का पहाड़ टूटा.

यातनाओं का तांड़व ऐसा कि वहां की सरकारों ने भी ज्यादा कुछ नहीं किया? तालिबानी हुकूमत के बाद भारतीयों का पलायन वहां से तेजी से हुआ. आज हजारों की संख्या में वह भारत में शरणार्थी के रूप में अपना जीवन जाने को मजबूर हैं. अब दोबारा से तालिबान आतंकी अफगानिस्तान में अपनी सत्ता जमाने के बाद निश्चित रूप से भविष्य में भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.

कब्जा जमाए अभी उन्हें एकाध दिन ही हुए हैं, इसी बीच उनके दोनों खासम खास मित्र मुल्क पाकिस्तान और चीन ने उनकी सत्ता को अप्रत्याशित रूप से मान्यता भी दे दी है. पाकिस्तान-चीन सबसे पहले तालिबानियों का इस्तेमाल कश्मीर के लिए कर सकते हैं. अंदेशे ऐसे भी कुछ हैं कि दोनों खुरापाती मुल्क सबसे पहले तालिबानियों को भारत के खिलाफ उकसाएंगे और भड़काएंगे.

दूसरा अंदेशा ये है, अफगान में तालिबान के कब्जा जमाने के बाद संसार भर के आतंकी गुटों की अब आरामदेह और पनाहगार जगह अफगानिस्तान बनेगी. ये बात जगजाहिर है भी तालिबानियों को प्रशिक्षण अलकायदा व आईएसआई देती रही है. ये बात पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति मुशर्रफ स्वीकार कर भी चुके हैं. इस सच्चाई में कोई शक सुबह या संदेह नहीं है कि तालिबान हमेशा से पाकिस्तानी आतंकियों का पोषित रहा है.

उन्हें बाकायदा ट्रेनिंग देना, हथियार मुहैया कराना, आधुनिक तकनीकों से लबरेज करना आदि शामिल रहा है. तालिबान के साथ गठबंधन की बात को भारत कई मर्तबा ग्लोबल फार्म पर उठाता भी रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह भी ये मसला यूएन में उठा चुके हैं.

हिंदुस्तान के प्रति पाकिस्तान ने तालिबानियों को शुरू से भड़काया है, नफरतें भरी हैं. लेकिन कभी प्रत्यक्ष रूप से अटैक करने की हिम्मत नहीं हुई. दरअसल, नए भारत की ताकत को तालिबान ठीक से समझता है. खुदा न खास्ता अगर उसने चीन और पाकिस्तान के कहने पर कश्मीर में कोई हिमाकत दिखाई भी तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी.

केंद्र सरकार की भी तालिबानियों की हर हरकत पर नजर बनाए हुए है. एनएसए अजीत डोभाल ने तालिबानियों के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया है. अफगान में कब्जा जमाने के बाद उनकी अमेरिका, रूस, फ्रांस आदि शक्तिशाली देशों के एनएसए के साथ विमर्श जारी है. हिंदुओं पर पड़ताड़ना का गुजरा वक्त शायद कोई भूल पाए. तालिबान ने हिंदुओं और सिखों के समक्ष तुगलकी फरमान जारी किया था.

तालिबान ने उन्हें सख्त तौर पर शरिया कानून का पालन करने को कहा था. जब किसी भी सूरत में हिंदुओं ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया था. उसके बाद तालिबानी आतंकियों ने उनकी संपत्तियों पर जबरन कब्जा करना शुरू कर दिया था. महिलाओं के साथ अत्याचार करना भी आरंभ कर दिया था. उनके धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया.

इसके अलावा तालिबान हुकूमत में गैर-मुस्लिम परिवारों के लिए सख्त हिदायत थी कि वह अपने मकानों के बाहर पीले रंग का बोर्ड लगाएं और गैर-मुस्लिम महिलाएं पीले रंग की ड्रेस पहनें. तालिबानियों की यातनाओं के बाद हिंदुओं और सिखों ने मजबूरन पलायन करना शुरू किया. कईयों को उन्होंने मौत के घाट भी उतारा. महिलाओं की इज्जत सरेराह नीलाम कर दी.

ऐसा जुल्म बरपाया जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. जब तालिबानियों की सत्ता गई तो उसके बाद मुल्क में लोकतंत्र की बहाली हुई? फिर शेष बचे हिंदुओं और सिखों के लिए रहना आसन हुआ. पर, अब गुजरे वक्त की मुसीबतें फिर से शुरू होंगी. हालांकि अब हिंदुओं और सिखों की संख्या ना के बराबर है. ज्यादातर हिंदुओं ने भारत में पनाह ली हुई है, दिल्ली के रिफयूजी कैंप में इस वक्त सैकड़ों की तादाद में अफगान के विस्तावित भारतीय रह रहे हैं जिनमें से ज्यादातर सिख पंजाब के विभिन्न जिलों में चले गए हैं.

सन् 1999-2000 के समय भारत से ताल्लुक रखने वाले अफगानियों पर तालिबानियों ने जमकर यातनाएं दी. विशेषकर महिलाओं को, हिंदू और सिख महिलाओं को खास मार्क वाले पीले रंग के कपड़े पहनने का फरमान दिया गया. पीले कपड़े इसलिए पहनने को बोला गया ताकि वह अलग से पहचानी जा सकें.  ये भी फरमान जारी हुआ कि हिन्दू महिलाएं मुस्लिमों से एक फासले पर चलें.

मुस्लिमों से बातचीत या मेलजोल कतई न करें. हिंदुओं की पूरी कौम को उन्होंने अलग-थलग कर दिया था. सार्वजनिक स्थानों पर आने-जाने की मनाही थी. सांस्कृतिक कार्यक्रमों, तीज-त्योहारों में मुस्लिमों के साथ मेलजोल पर भी रोक लगा दी थी. जबकि, ईसाइयों को उन्होंने छूट दी हुई थी. यहां तक कि हिंदू और सिख धर्म की महिलाओं को मुस्लिमों के घर जाने और उनके यहां किसी मुस्लिम के आने पर भी पाबंदी लगा दी थी.

इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि तालिबान भारतीयों से किस कदर चिढ़ते हैं. हिंदुओं की प्रति उनके ये नफरत किसी हिंसा में तब्दील न हो, उससे पहले ही उनके मंसूबों को हमें कुचलना होगा.

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