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Updated: 18 अगस्त, 2021 10:22 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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तालिबान (Taliban) का नाम सुनते ही लोगों के सामने एक बर्बर इस्लामिक आतंकी संगठन की तस्वीर सामने आ जाती है. 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन करने वाले तालिबान ने महिलाओं और पुरुषों के अधिकारों को जिस तरह से कुचला था, उसे दुनिया आज तक नहीं भूली है. माना जा रहा था कि तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के साथ ही अफगानिस्तान (Afghanistan) में अत्याचारों की नई इबारत लिखी जा सकती है. लेकिन, इस बार तालिबान का एक अलग ही चेहरा लोगों के सामने आ रहा है. तालिबान के प्रवक्ता महिलाओं के हक-हुकूक के हिमायती नजर आ रहे हैं. हथियारों के दम पर अफगानिस्तान पर कब्जा करने वाला तालिबान (Afghanistan crisis) बिना किसी बड़ी हिंसा के काबुल में सत्ता पर काबिज हो गया है.

अफगानिस्‍तान पर कब्‍जे के बाद तालिबान ने पहली बार प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये देश-दुनिया को लेकर अपनी रणनीति, महिलाओं के अधिकारों जैसे मामलों पर अपना रोडमैप दुनिया के सामने रखा. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद (Zabihullah Mujahid) ने दुनिया के सामने कई बड़े-बड़े वादे किए. दूतावासों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और सहायता एजेंसियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने से लेकर अफगानिस्तान में रह रहे लोगों के जीवन स्तर को सुधारने तक की बात तालिबान ने कही है. तालिबान के इस बदले हुए उदार चेहरे (Afghanistan Taliban) ने दुनियाभर के लोगों का आश्चर्य में डाल दिया है. जबीहुल्ला मुजाहिद ने तालिबान के खिलाफ रहे सभी लोगों को अपने नेता के आदेश पर माफ करने की बात कही थी.

तालिबान के इस बदले हुए उदार चेहरे ने दुनियाभर के लोगों का आश्चर्य में डाल दिया है.तालिबान के इस बदले हुए उदार चेहरे ने दुनियाभर के लोगों का आश्चर्य में डाल दिया है.

हालांकि, काबुल से सामने आ रही तस्वीरें एक अलग ही कहानी बयां कर रही हैं. अफगानी लोग अपनी जान की कीमत पर भी अफगानिस्तान छोड़कर भागने की कोशिश कर रहे हैं. बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियां घरों में छिपी हुई हैं. फिलहाल दुनियाभर की मीडिया की नजर काबुल पर है, तो अफगानिस्तान के अन्य प्रांतों में स्थितियां क्या हैं, इसे लेकर कोई खास जानकारी (Afghanistan current situation) सामने नहीं आ रही है. लेकिन, काबुल की तस्वीरों को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल नही है कि कमोबेश उन प्रांतों में भी काबुल जैसे ही हालात होंगे. कहा जा रहा है कि तालिबान बदल गया है. अगर अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन इतनी ही शांत तरीके से हो गया है, तो वहां के बाजार, स्कूल जैसे जगहों पर सन्नाटा क्यों पसरा हुआ है?

आमतौर पर टीवी व अखबारों में आने वाले विज्ञापनों या कोई इंश्योरेंस और म्यूचुअल फंड वाली स्कीम लेने पर एक छोटी सी जगह में कुछ शब्द लिखे होते हैं. इनमें साफतौर पर लिखा होता है कि *Terms & Conditions applied. ऐसा ही कुछ तालिबान के साथ भी है. उनकी ओर से अब तक किए गए हर वादे में 'टर्म्स एंड कंडीशंस' का कॉलम पहले ही जुड़ा हुआ है. तालिान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी हर बात रखने के साथ इस बात पर जोर दिया था कि इस्लामिक और शरिया कानूनों के हिसाब से ही महिलाओं को उनके अधिकार दिए जाएंगे. मुजाहिद ने कहा था कि जब तालिबान सरकार बन जाएगी, तब बताया जाएगा कि महिलाओं को क्या छूट दी जाएगी.

क्या सच में महिलाओं को लेकर तालिबान 'उदार' हो गया?

अफगानिस्तान में अमेरिका की आमद के बाद सत्ता से बाहर हुआ तालिबान अब बहुत फूंक-फूंककर अपने कदम आगे बढ़ा रहा है. हालांकि, दो दशक पहले का क्रूर तालिबानी चेहरा अभी पूरी तरह से उभर कर सामने नहीं आया है. लेकिन, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जल्द ही वो समय आएगा, जब तालिबान अपने पुराने रंग में लोगों के सामने होगा. तालिबान लोगों के सामने खुद की उदार छवि पेश करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन, उसकी हरकतें इस बात की गवाही दे रही हैं कि वह बदला नही है. तालिबान ने महिलाओं के अधिकारों पर बड़ी-बड़ी बातें बोलने के अगले ही दिन अफगानिस्तान के एक सरकारी न्यूज चैनल से सभी महिला एंकरों की छुट्टी कर दी है. दरअसल, तालिबान की ओर से पहले ही साफ कर दिया गया था कि मीडिया को स्वतंत्रता के साथ काम करने दिया जाएगा. बस उन्हें अफगानिस्तान के मूल्यों का ख्याल रखना होगा. अब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा है, तो ये स्पष्ट सी बात है कि अफगानिस्तान के मूल्य का मतलब है, तालिबान के मूल्य. और, तालिबान के मूल्य इस्लाम और शरिया के अनुसार ही चलने वाले हैं. ऐसे में महिलाओं के लिए कोई जगह बचती ही नही है.

बदला नहीं बदलाव का पक्षधर तालिबान?

दोबारा सत्ता पर काबिज हुए तालिबान ने चौंकाते हुए बदले से इतर बदलाव की रणनीति अपनाई हुई है. जबीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि तालिबान का विरोध करने वाले सभी लोगों को माफ कर दिया गया है. अफगानिस्तान के पूर्व सैनिकों, अफगान सरकार के पूर्व सदस्यों या देश की आम जनता से बदला लेने का इरादा नहीं है. हालांकि, तालिबान की ओर से यहां भी साफ कर दिया गया कि उनकी विचारधारा और विश्वास में कोई अंतर नही आया है. वो मुसलमान हैं और अपने मजहब के अनुसार ही सभी चीजों पर आगे बढ़ेंगे. तालिबान ने माना है कि बीते करीब दो दशकों में उसमें केवल एक बदलाव आया है और ये उसके अनुभवों के संदर्भ में है. कहा जा सकता है कि वो सीख गए हैं कि उन्हें कैसे अपनी छवि को चमकाए रखना है. बाकी सब कुछ पहले के जैसे ही चलता रहेगा. धीरे-धीरे ही सही लेकिन तालिबान अपने टर्म्स एंड कंडीशंस वाले कॉलम की ओर बढ़ रहा है.

फिलहाल तालिबान, अफगानिस्तान में अपनी सरकार को स्थापित करने के लिए जद्दोजहद कर रहा है. वह दुनिया के तमाम देशों से तालिबानी सरकार को मान्यता देने की अपील कर रहा है. इस स्थिति में उसकी कोशिश होगी कि किसी भी तरह से लोगों के सामने उसकी इमेज खराब न हो. हाल-फिलहाल नहीं, तो आने वाले कुछ समय में ये इस्लामिक आंतकी संगठन शरीयत और इस्लाम पर लौटकर आएगा ही. और, तालिबान के अफगानिस्तान पर कब्जे से ही महिलाएं हिजाब और बुर्के में नजर आने लगी हैं, तो उसे इन चीजों के लिए ज्यादा मेहनत करने की जरूरत वैसे भी नहीं पड़ेगी.

वैसे, हाल ही में तालिबानी लड़ाकों ने बामियान में मारे गए हजारा नेता अब्दुल अली मजारी की प्रतिमा को ध्वस्त कर दिया. ये घटना तालिबान के उस निष्ठुर और क्रूर चेहरे को दिखाने के लिए काफी है, जब उसने बामियान स्थित भगवान बुद्ध की मूर्तियों को बम से उड़ा दिया था. खैर, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद बड़ी संख्या में लोगों को लग रहा है कि तालिबान बदल गया है. लेकिन, वो शायद भूल रहे हैं कि इस्लामिक और शरिया कानूनों के हिसाब से चलने वाला तालिबान अपने हर वादे में 'टर्म्स एंड कंडीशंस' का कॉलम पहले ही जोड़ चुका है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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