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Updated: 15 नवम्बर, 2020 10:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सुशील मोदी (Sushil Modi) को बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के कमजोर होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है - आगे से नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की CM और डिप्टी सीएम की 15 साल पुरानी जोड़ी बिहार में देखने को नहीं मिलने वाली है.

ये खबर भी सुशील मोदी ने खुद ही ट्विटर पर अपनी भड़ास के साथ ब्रेक की - और बतौर सबूत अपने प्रोफाइल से डिप्टी सीएम पद जिक्र भी खत्म कर दिया. सुशील मोदी ने ट्विटर पर ही गुस्से का इजहार कर दिया - "...कार्यकर्ता का पद तो कोई छीन नहीं सकता!"

अपने ही नेता के खिलाफ एक्शन लेकर बीजेपी नेतृत्व ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही सख्त मैसेज देने की कोशिश की है. देखने में भले लगता हो कि बिहार बीजेपी में सुशील कुमार मोदी का पत्ता कट गया है, लेकिन असल बात तो ये है कि बीजेपी ने नीतीश कुमार के पर कतरने शुरू कर दिये हैं.

बिहार बीजेपी पर नेतृत्व का पहला प्रहार

एनडीए की मीटिंग के बाद बिहार में सरकार गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दिल्ली से केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) को पर्यवेक्षक बना कर पटना भेजा गया था. राजनाथ सिंह मीडिया के सामने सुशील मोदी के साथ ही आये. नीतीश कुमार को लेकर कोई शक शुबहे की गुंजाइश तो बची नहीं थी, लिहाजा पत्रकारों को डिप्टी सीएम की पोस्ट को लेकर राजनाथ सिंह से आधिकारिक जानकारी चाहिये थी. राजनाथ सिंह ने अपनी तरफ से कहा भी कि डिप्टी सीएम पर फैसला लिया जाएगा तो बता दिया जाएगा.

चूंकि एनडीए की मीटिंग होने के बाद से ही सुशील मोदी को दिल्ली तलब किये जाने और कामेश्वर चौपाल को डिप्टी सीएम बनाये जाने की चर्चा शुरू हो चुकी थी, इसलिए इस मसले पर राजनाथ सिंह से ही आधिकारिक जानकारी की उम्मीद रही. बार बार पूछे जाने पर भी राजनाथ सिंह का यही कहना रहा कि जब डिप्टी सीएम तय होगा तो बता दिया जाएगा. राजनाथ सिंह ने सवाल टाल कर भी जवाब दे ही दिया था.

sushil modi, nitish kumarसुशील मोदी को बीजेपी ने बिहार का आडवाणी बना दिया है!

थोड़ी ही देर बाद नीतीश कुमार ट्विटर पर एक्टिव हुए और ताबड़तोड़ एक एक कर कई ट्वीट किये. एक ट्वीट में तारकिशोर प्रसाद को भाजपा विधानमंडल दल का सर्वसम्मति से नेता चुने जाने पर बधाई दी और दूसरे ट्वीट में लिखा, 'नोनिया समाज से आने वाली बेतिया से चौथी बार विधायक श्रीमति रेणु देवी के भाजपा विधान मण्डल दल के उप नेता सर्वसम्मति से चुने जाने पर हार्दिक बधाई!'

फौरन ही मुद्दे की बात पर भी आ गये. पहले तो 40 साल के राजनीतिक जीवन में तमाम जिम्मेदारियों से नवाजे जाने को लेकर बीजेपी का शुक्रिया अदा किये, लेकिन लगे हाथ ये भी बता दिया कि जो कर दिया उससे ज्यादा कर भी क्या लोगे? बहरहाल, सुशील मोदी को जवाब मिलते भी देर नहीं लगी क्योंकि तब तक उनके और नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह मोर्चे पर आ डटे थे.

सुशील मोदी को शक तो तभी हो गया होगा जब नीतीश कुमार राज्यपाल फागू चौहान से मिल कर सरकार बनाने का दावा पेश करने अकेले पहुंचे. जुलाई, 2017 से चार साल पहले की अवधि को छोड़ दें तो नीतीश कुमार और सुशील मोदी एक दूसरे के साथ साये की तरह बने रहे और जब भी दोनों में से किसी पर भी कोई राजनीतिक मुश्किल आयी, एक दूसरे को जी जान से बढ़ कर बचाव करते रहे. यहां तक कि नीतीश कुमार के महागठबंधन का मुख्यमंत्री बनने के बाद भी सुशील मोदी उनके साथ मकर संक्रांति पर निजी रिश्तों की दुहाई देकर दही-च्यूड़ा और खिचड़ी खाते रहे.

2005 से भी नीतीश कुमार, सुशील मोदी के साथ ही राज भवन जाते रहे हैं और सरकार बनाने का दावा पेश करते रहे हैं. महागठबंधन से पाला बदल कर एनडीए में लौटने के बाद ये सिलसिला फिर से शुरू हो गया था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.

बीजेपी नेतृत्व नीतीश कुमार को एनडीए का मुख्यमंत्री बनाने का चुनावी वादे से पीछे तो नहीं हटा, लेकिन कदम ऐसे बढ़ाया है कि अब वो जेडीयू के मुख्यमंत्री नहीं रहे. अब तक नीतीश कुमार बीजेपी के मंत्रियों का कोटा तय करते रहे, लेकिन अब बीजेपी ने संकेत देना शुरू कर दिया है कि कोटा तो अब सिर्फ जेडीयू का तय हुआ करेगा.

2019 में केंद्र में मोदी कैबिनेट 2.0 के गठन के दौरान जब सहयोगी दलों को बीजेपी ने एक से ज्यादा विभाग देने से मना कर दिया था तो नीतीश कुमार ने विरोध में जेडीयू से किसी को केंद्रीय मंत्री बनाने ही नहीं दिया. कुछ ही दिन बाद जब नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो बीजेपी के कोटे को तो नहीं छुआ लेकिन पूरी मनमानी की.

बिहार में चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के भी दो विधायक थे, लेकिन नीतीश कुमार ने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी. चिराग पासवान ने चुनावों के दौरान ही बताया था कि जब इस सिलसिले में वो संपर्क किये तो नीतीश कुमार ये कह कर टाल गये कि घर परिवार का कोई हो तो बताओ कहां दूसरों के चक्कर में पड़े हो.

खामियाजा तो सुशील मोदी को नीतीश कुमार से दोस्ती का ही भुगतना पड़ रहा है, लेकिन ये बीजेपी के बदले समीकरणों में उनसे पुरानी खुन्नस का नतीजा लगता है - जब साथी नेताओं से बेपरवाह सुशील मोदी ने नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बताया था.

सुशील मोदी को ये कीमत क्यों चुकानी पड़ी?

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और सुशील मोदी 'नीकु और सुमो' की जोड़ी के रूप में मशहूर रहे हैं. बिहार बीजेपी के नेताओं को तो ये कभी पसंद नहीं रहा, लेकिन मजबूरी में मन मसोस कर रह जाते थे. बीजेपी में मोदी-शाह युग आरम्भ होने के बाद से समीकरण बदलने लगे और ये दोस्ती पटना से दिल्ली तक बहुतों की आंख की किरकिरी बनने लगी.

दिल्ली से सुशील मोदी पर कड़ी निगाह रखी जाती थी क्योंकि बीजेपी नेतृत्व के मन में बस गया था कि सुशील मोदी ने बिहार में बीजेपी को नीतीश कुमार का पिछलग्गू बना कर रख दिया है.

नीतीश कुमार को तो मालूम है कि वो 2010 और फिर 2013 में नरेंद्र मोदी के खुले विरोध की कीमत चुका रहे हैं - अब तो सुशील मोदी के सामने भी पूरी तस्वीर साफ हो चुकी होगी. 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए बिहार बुलाये जाने से मना कर दिया था और फिर 2013 में बीजेपी की तरफ से मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाये जाने पर एनडीए ही छोड़ दिया था. 2014 के चुनाव में जेडीयू की हार की जिम्मेदारी लेने के नाम पर मुख्यमंत्री पद से भी इस्तीफा दे दिया था और फिर जीतनराम मांझी को कुर्सी सौंप दी. नौ महीने में ही जब जीतनराम मांझी ने रंग दिखाना शुरू किया तो कुर्सी छीन भी लिये.

सुशील मोदी से भी मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की नाराजगी 2010 और 2013 के बीच की ही है. 2012 में जब नीतीश कुमार एनडीए को अपने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मुहिम चला रहे थे तो सुशील मोदी भी कदम कदम पर साथ ही डटे रहे.

नीतीश कुमार की इस मुहिम का उनकी सरकार में मंत्री रहे गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे नेताओं ने विरोध जताना शुरू कर दिया था, लेकिन सुशील मोदी ने अलग ही लाइन ले ली जो बिहार बीजेपी के सुशील मोदी विरोधी गुट के नेताओं को नागवार गुजर रहा था.

सितंबर, 2012 में ही एक इंटरव्यू में सुशील मोदी ने सवाल जवाब के दौरान नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल बता डाला - और सुशील मोदी का वही बयान आज उनके गले की सियासी फांस बन बैठा है. वैसे उनकी एक बात तो सौ फीसदी सच है कि कार्यकर्ता के पद से तो उनको हटाने की किसी की औकात नहीं है - जैसे संजय जोशी भी कार्यकारिणी से हटाये जाने के बाद से बीजेपी कार्यकर्ता के पद पर बने ही हुए हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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