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Updated: 14 नवम्बर, 2020 03:09 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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साल 2014 से लेकर अबतक, इन गुजरे 6 सालों में जो शब्द सबसे ज्यादा बार हमारे कानों के पास से गुजरा वो था 'मोदी लहर' (Modi Wave) जो कितनी कारगर है गर जो इस बात का अनुभव करना हो तो हम हालिया बिहार चुनावों (Bihar Assembly Elections) का अवकोलन कर सकते हैं. बिहार में पीएम मोदी (PM Modi) ने एक बार फिर इतिहास अपने नाम किया है और महागठबंधन (Mahagathbandhan) को वहां लाकर छोड़ा है जिसकी कल्पना चुनाव से पहले शायद ही किसी ने की हो. चुनाव में कोरोना की चुनौतियां होने के बावजूद पीएम मोदी मास्टर ब्लास्टर रहें और जिन रणनीतियों को अमली जामा पहनाते हुए उन्होंने बिहार में भाजपा (BJP) की परफॉरमेंस में चार चांद लगाए उन्हें और बिहार चुनावों में भाजपा को याद रखा जाएगा.

बिहार में पीएम मोदी की बदौलत भाजपा विजेता की ट्रॉफी उठाने में कामयाब हुई है. वहीं तेजस्वी यादव (Tejasvi Yadav) टी20 के वो जुझारू खिलाड़ी साबित हुए हैं जिनमें ऊर्जा तो खूब थी लेकिन वक़्त ने उनका साथ नहीं दिया. भाजपा की इस जीत के बाद बिहार की भूमि 'मॉडिफाइड' हुई है. बिहार में लालटेन का तेल निकल चुका है. तीर, धनुष पर चढ़ते ही उसे तोड़ चुका है और कमल अपनी पूरी शान ओ शौक़त के साथ खिला है.

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बिहार में 1990 से राज कर रहा आरजेडी हो या फिर जेडीयू दोनों ही भाजपा के इस कमल का चाहे अनचाहे स्वागत करने को तैयार है. पहली बार ऐसा हुआ है कि बिहार में भाजपा ने इस तरह का प्रदर्शन किया है. बिहार में मोदी फैक्टर का जो सबसे दिलचस्प पहलू रहा वो ये कि इस जीत के बाद बिहार में भाजपा का भविष्य निर्धारित होगा. ऐसा इसलिए भी होगा कि जेडीयू की उपस्थिति के बावजूद बिहार में भाजपा वोटिंग परसेंटेज में निर्णायक फेर बदल करने में कामयाब हुई है.

बात बिहार की चल रही है तो बताना जरूरी है कि इस चुनाव के बाद बिहार में राजनीतिक दलों के अनुक्रम में असर पड़ा है. 2010 में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू बिहार में सीनियर प्लेयर थी. आज भाजपा और मोदी मैच के बड़े प्लेयर हैं. बिहार चुनावों में एक दिलचस्प बात ये भी रही कि पहले अच्छी परफॉरमेंस के लिए भाजपा को नीतीश कुमार पर निर्भर रहना पड़ता था मगर अब मामला ऐसा नहीं है. आज के समय में पीएम मोदी बादशाह की भूमिका में हैं.

2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में जो कुछ भी हुआ है और जिस तरह भाजपा ऐतिहासिक जीत दर्ज करने में कामयाब हुई है इससे वो दाग भी धुल गए हैं जो पार्टी पर 2015 में जेडीयू से दोस्ती के चलते लगे थे.

प्रधानमंत्री की निर्णायक रैलियां

जैसे ही बिहार चुनावों का पहला फेज खत्म हुआ लोगों में इस भावना का संचार हुआ कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाला है. ये वो समय था जब पीएम मोदी अपनी रैलियों में निर्णायक रणनीतियां अपनाने वाले थे.

अब बारी फेज 2 के चुनाव प्रचार की थी. इस फेज में पीएम मोदी ने जो रैलियां की उनमें उन्होंने बार बार 'जंगल राज में युवराज' की बात पर बल दिया. पीएम मोदी ने लोगों को उस दौर की याद दिलाई जब बिहार की सत्ता लालू यादव के हाथों में थी.

इसके अलावा बात अगर बिहार विधानसभा चुनावों के तीसरे फेज की हो तो ये वो फेज था जब सीमांचल और कोसी के हिस्सों में पोलिंग हुई. यहां वो हुआ जो पूरे चुनाव में नहीं हुआ. चूंकि ये हिस्सा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है इसलिए यहां ध्रुवीकरण का कार्ड खेला गया. पीएम मोदी ने लोगों से मुखातिब होते हुए कहा कि यही वो क्षेत्र है जहां भारत माता की जय और जय श्री राम के नारे का विरोध हुआ. पीएम मोदी के इस जुमले ने हिंदू वोटों को एकजुट किया.

बता दें कि ध्रुवीकरण यूं ही अचानक नहीं हुआ इस क्षेत्र में जो बातें पीएम मोदी ने कहीं सोच समझ के कीं.ध्यान रहे कि ये वो क्षेत्र है जहां 65% प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. कह सकते हैं कि पीएम मोदी के इस जुमले ने सीमांचल और कोसी क्षेत्र में आग में घी का काम किया और इस क्षेत्र में जबरदस्त ध्रुवीकरण हुआ भी.यहां भाजपा और पीएम मोदी इस बात को बखूबी जानते थे कि हिंदू एकजुट होंगे जो ओवैसी के सामने आने के बाद एकतरफ ही रहे.

बात सिर्फ यहीं तक नहीं थी

भाजपा और पीएम मोदी ने सिर्फ ध्रुवीकरण को हथियार नहीं बनाया बल्कि पप्पू यादव और राजीव रंजन ने भी महागठबंधन का खेल बिगाड़ा जो कभी किसी जमाने में आरजेडी के साथ हुआ करते थे.चूंकि राहुल गांधी ने भी बिहार चुनाव प्रचार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी इसलिए प्रधानमंत्री ने अपनी रैलियों में उन पर भी जमकर हमला बोला. अपने चुनाव प्रचार में पीएम मोदी ने लोगों को इस बात से अवगत कराया कि यही लोग (आरजेडी, लेफ्ट, कांग्रेस) व हैं जो टुकड़े-टुकड़े गैंग का समर्थन करते हैं.

कैसे भाजपा ने नीतीश के खिलाफ एन्टीइंकमबेंसी का फायदा उठाया

भाजपा इस बात को जानती थी कि बिहार में लोग नीतीश कुमार से नाराज हैं और चुनाव निर्णायक होने वाला है. भाजपा और पीएम मोदी ने इस बात का पूरा फायदा उठाया और लोगों को कहीं न कहीं इस बात से अवगत कराया कि यदि वो पूरी तरह से भाजपा को मौका देते हैं तो क्या होगा. भले ही तेजस्वी यादव ने युवाओं से 10 लाख रोजगार का वादा किया लेकिन जनता ने भाजपा या ये कहें कि एनडीए पर भरोसा जताया.

भाजपा ने लोगों को विकास के सपने दिखाए, अन्य दलों की पिछली गलतियों से अवगत कराया और बताया कि कैसे आज भी बिहार विकास की मुख्यधारा से पीछे है. चूंकि ये तमाम बातें खुद पीएम मोदी कर रहे थे भाजपा पर जनता ने भरोसा कायम रखा फिर जो हुआ वो हमारे सामने है.

बिहार में क्या बदला

जब से राहुल गांधी ने एनडीए सरकार और पीएम मोदी को लेकर सूट बूट की सरकार का जुमला दिया. पीएम मोदी ने अपनी पूरी रणनीति को बदल दिया और ध्यान योजनाओं और उनको पूरा करने में दिया। पीएम मोदी की योजनाओं से सीधा फायदा जनता को मिला जिसने अपना वोट भाजपा को देना पसंद किया. बता दें कि बच्चे और महिलाएं केंद्र सरकार की योजनाओं से सीधे प्रभावित हुए और इसी चीज ने महागठबंधन को मुसीबत में डाला. इस बार चुनावों में खास ये रहा कि दलित और पिछड़ों के वोट भी भाजपा की झोली में आए. चाहे वो गरीब कल्याण योजना हो या फिर उज्ज्वला योजना केंद्र की सारी योजनाओं का फायदा भाजपा को बिहार में मिला.

राजनीतिक प्रभाव

इस बात में कोई शक नहीं है कि 2020 के चुनाव परिणामों के बाद भाजपा को वो मुकाम हासिल हो गया है जिसे खिसकाने में आरजेडी और लेफ्ट के अलावा जदयू तक को बड़ी मेहनत करनी होगी. साफ़ है कि अब जो आने वाला वक़्त होगा वो अगर किसी के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है तो वो महागठबंधन तो है ही जेडीयू को भी पापड़ बेलने होंगे. जो परिणाम बिहार में आए हैं उसे देखकर हम बस ये कहते हुए अपनी बात को विराम देंगे कि बिहार में मोदी की आंधी ने न केवल आरजेडी और कांग्रेस के खेमों को ध्वस्त किया है. बल्कि जेडीयू को भी दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है. भविष्य का बिहार जेडीयू और भाजपा दोनों के लिहाज से दिलचस्प होगा.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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