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Updated: 08 मई, 2021 06:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन (MK Stalin) के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही तमिलनाडु (Tamil Nadu Politics) में बदलाव के संकेत मिलने लगे थे - और बरसों पुराने राजनीतिक दुश्मन AIADMK के प्रति स्टालिन की सदाशयता बदलते मिजाज का सबसे बड़ा सबूत है. देखा जाये तो बर्फ तो तभी पिघलने लगी थी जब चुनावों से पहले एआईएडीएमके सत्ता में थी और ई. पलानीसामी (E Palaniswami) तमिलनाडु के मुख्यमंत्री.

असल में, AIADMK के ट्विटर हैंडल से 22 सेकंड का एक वीडियो शेयर किया गया था. वीडियो में कुछ लोग अम्मा कैंटीन पर लगे पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के नाम वाले बोर्ड और पोस्टर हटाते देखे गये. 2013 में मुख्यमंत्री रहते जयललिता ने ही गरीबों को सस्ता खाना उपलब्ध कराने के मकसद से 'अम्मा कैंटीन' योजना की शुरुआत की थी.

ये घटना तमिलनाडु के मुगाप्पेर के जेजे नगर में बनी अम्मा कैंटीन में हुई जहां मौजूद कर्मचारियों पर भी हमले के आरोप हैं और कैंटीन में तोड़फोड़ के भी. AIADMK का आरोप है कि ये तोड़फोड़ और हमला DMK कार्यकर्ताओं ने किया है.

जब ये बात डीएमके नेता और मुख्यमंत्री मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन तक पहुंची तो आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिये गये. साथ ही डीएमके कार्यकर्ताओं को पार्टी ने बाहर कर देने और जयललिता के बोर्ड फिर से उसी जगह लगाने के आदेश भी दिये गये.

जैसा तमिलनाडु का राजनीतिक इतिहास रहा है, ये सब वाकई आश्चर्यजनक लगता है, लेकिन वास्तव में ऐसा ही हो रहा है. अम्मा कैंटीन में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और गुंडई करने के आरोप में पुलिस ने कुछ लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है - और हैरानी की बात ये है कि अम्मा कैंटीन में डीएमके कार्यकर्ताओं को भी फिर से बोर्ड लगाते भी देखा गया है.

शपथग्रहण के फौरन बाद ही मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने तत्काल प्रभाव से फटाफट कई फैसले लिये हैं जो कोरोना संकट से जूझ रहे लोगों के लिए बड़ी राहत लेकर आये हैं - और ये डीएमके के चुनावी वादों का ही हिस्सा है.

चुनावी वादे से शुरुआत

तमिलनाडु के लोग हर पांचवें साल सत्ता की चाबी दूसरे दल को थमा देते आ रहे थे, लेकिन 2016 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने लोगों को इस बात के लिए राजी कर लिया था कि वो काम करने के लिए लगातार दो मौके चाहती हैं. लोगों ने जयललिता की बात भी मान ली, लिहाजा डीएमके के लिए सत्ता में वापसी का इंतजार पांच साल और बढ़ गया.

10 साल बाद सत्ता में डीएमके की वापसी के साथ ही स्टालिन खासे एक्टिव नजर आ रहे हैं. कुर्सी संभालते ही स्टालिन ने पहला आदेश कोविड 19 के मरीजों के लिए किया है. सरकारी बयान के अनुसार, निजी अस्पतालों में कोराना वायरस के इलाज को सरकारी बीमा योजना के दायरे में लाने का फैसला किया गया है - और ये कोरोना से संक्रमित मरीजों के लिए बहुत बड़ी राहत है.

तमिलनाडु के अस्पतालों में मुख्यमंत्री बीमा योजना लागू की जाएगी और कोविड 19 का इलाज करा रहे लोगों का खर्च अब सरकार उठाएगी. खास बात ये है कि ये सुविधा सिर्फ सरकारी अस्पतालों में ही नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों भी उपलब्ध होगी.

e palaniswami, mk stalinतमिलनाडु में बरसों से चली आ रही राजनीतिक दुश्मनी को किनारे कर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और AIADMK नेता मिल कर लोकतंत्र को मजबूत करने और लोकहित में काम करने की बात करने लगे हैं - तमिलनाडु के लोगों के लिए भला इससे अच्छी बात क्या हो सकती है!

राज्य सरकार की तरफ से संचालित आविन दूध का दाम भी तीन रुपये तक घटा दिया गया है - और 16 मई से ये आदेश प्रभावी होगा. महामारी की मार से चावल राशन कार्ड वालों को 4 हजार रुपये भी दिये जाने का ऐलान किया गया है, जिसकी पहली किस्त 2 हजार रुपये मई में ही मिल जाएगी. साथ ही, महिलाओं को राज्य परिवहन निगम की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी शुरू होने जा रही है.

एमके स्टालिन ने लोगों की शिकायतों के समाधान के लिए एक नयी योजना शुरू की है - आपके निर्वाचन क्षेत्र में मुख्यमंत्री. एक आईएएस अफसर को इस स्कीम की जिम्मेदारी सौंपी गयी है और ये ही डीएमके के चुनावी वादों में ही शामिल था.

एमके स्टालिन ने चुनावों में वादा किया था कि अगर डीएमके सत्ता में आती है तो वो एक ऐसा इंतजाम करेंगे कि लोगों की समस्याओं का 100 दिन के भीतर समाधान हो.

स्टालिन ने ऐसा कोई वादा तो नहीं किया था कि सत्ता में आने के बाद वो एआईएडीएमके नेताओं के साथ कैसा बर्ताव करेंगे, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के साथ ही अम्मा कैंटीन में उत्पात मचाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाकर ये इशारा तो कर ही दिया है कि तमिलनाडु में लोगों के हित में शासन व्यवस्था के साथ साथ वो बीती बातों को भुलाकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बेहतर तालमेल कायम करने की कोशिश करेंगे.

तमिलनाडु में क्या क्या बदलने वाला है?

तमिलनाडु की गला काट राजनीति पहले से ही पश्चिम बंगाल शिफ्ट हो चुकी है - जैसे किसी जमाने में एम. करुणानिधि की, MGR यानी एमजी रामचंद्रन और बाद में जे. जयललिता से 24 घंटे ठनी रहती थी, बंगाल में अब वैसे ही ममता बनर्जी और बीजेपी नेतृत्व के बीच तनावपूर्ण राजनीति का दौर शुरू हो चुका है.

बदलाव की शुरुआत तो 2016 में ही हो चुकी थी - और वो भी स्टालिन की तरफ से ही पहल रही होगी. अपने शपथग्रहण समारोह में नैतिकता के नाते जयललिता ने डीएमके को न्योता तो भेज दिया था, लेकिन उनको किसी के आने की कोई उम्मीद नहीं थी. ये भी बाद में जयललिता के बयान से ही साफ हुआ.

डीएमके के तमाम विधायकों के शपथग्रहण समारोह के बहिष्कार के बावजूद एमके स्टालिन शपथग्रहण समारोह में पहुंचे और जाकर अपनी सीट पर बैठ गये. ये बात करुणानिधि को बेहद नागवार गुजरी और जयललिता पर इल्जाम लगा कि उनके बेटे को वो 16वीं लाइन में बैठने को जगह दी थीं. ये सुनते ही जयललिता ने साफ किया कि ऐसा जानबूझ कर नहीं किया गया. जयललितना ने कहा कि अगर उनको स्टालिन के आने की जानकारी होती तो वो पहली पंक्ति में बिठातीं.

दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद जब पलानीसामी मुख्यमंत्री बने तो संवाद का सिलसिला भी शुरू हो गया. राज्य से जुड़े मुद्दों को लेकर स्टालिन भी प्रतिनिधिमंडल के साथ जाते रहे और पलानीसामी भी बाकायदा समय देकर मिलने लगे. सदन के भीतर राजनीतिक विरोध तो वैसे ही रहा लेकिन जब दोनों दलों के नेता साथ में बाहर निकलते तो उनके बीच बातचीत भी होती.

करुणानिधि और जयललिता के दौर में ऐसे नजारे अपवाद को छोड़ कर शायद ही कभी देखने को मिलते हों. हां, उनके पहले डीएमके नेता सीएन अन्नादुरई और कांग्रेस नेता के कामराज के जमाने में ये सब सामान्य तरीके से चलता रहा.

करुणानिधि के निधन के बाद अगस्त, 2018 में पलानीसामी सरकार ने नये पर्यावरण नियमों का हवाला देकर डीएमके नेता की समाधि मरीना बीच पर बनाने की अनुमति नहीं दी. मरीना बीच पर ही पूर्व मुख्यमंत्रियों की समाधि है. इस मुद्दे पर काफी टकराव हुआ और स्टालिन को इसके लिए हाई कोर्ट के दरवाजे खटखटाने पड़े - और कोर्ट के परमिशन दे देने के बाद से तो सरकार को अदालत की बात मानने के सिवा कोई चारा भी नहीं बचा था.

वैसे भी मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके पूर्ववर्ती ई. पलानीसामी के बीच पहले की तरह जाती दुश्मनी निभाने की कोई वजह नहीं लगती. ये ठीक है कि दोनों ही एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी दलों की विरासत को संभाल रहे हैं, लेकिन बदले समय में अब वैसी कटुता देखने को नहीं मिल रही है.

पलानिस्वामी ने जनता के फैसले को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते हुए स्टालिन को चुनावी कामयाबी के लिए शुभकामनाएं दी, जवाब में ट्विटर पर ही स्टालिन ने भी धन्यवाद देते हुए पलानिस्वामी से साथ देने की अपील की, ये कहते हुए कि लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष का संगम है.

देश के बाकी हिस्सों की राजनीतिक के लिए ये कोई खास बात नहीं है. पश्चिम बंगाल की हार के बावजूद बीजेपी नेताओं ने ममता बनर्जी को जीत की बधाई दी, ये बात अलग है कि फौरन बाद ही तृणमूल कांग्रेस नेता पर धावा बोल दिये - तमिलनाडु में बीते दिनों के राजनीतिक माहौल के हिसाब से स्टालिन और पलानीसामी के बीच हुआ संवाद ध्यान तो खींचता ही है, एक नयी शुरुआत की तरफ इशारा भी करता है.

2021 में विधानसभा का ये पहला चुनाव रहा जो करुणानिधि और जयललिता दोनों की गैरमौजूदगी में हुआ. करुणानिधि की राजनीतिक विरासत के साथ उनके बेटे एमके स्टालिन मैदान में थे तो जयललिता के नाम पर एआईएडीएमके की कमान संभाल रहे ई. पलानीसामी सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहे थे. अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि तमिलनाडु के लोग फेमिली पॉलिटिक्स के जरिये सत्ता हासिल कतने वाले एमके स्टालिन के साथ खड़े होते हैं या एक पार्टी कार्यकर्ता की हैसियत से एआईएडीएमके का नेतृत्व कर रहे ई. पलानीसामी अपने ट्रैक रिकॉर्ड से लोगों को आकर्षित करने में कहां तक कामयाब होते हैं.

राहुल गांधी की पार्टी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाले स्टालिन के कैबिनेट साथियों में दो नामों की खासी चर्चा है - एक नेहरू और दूसरे गांधी. 1989 में पहली बार विधानसभा पहुंचे केएन नेहरू के साथ साथ स्टालिन ने रानीपेट से विधायक आर. गांधी को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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