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Updated: 04 मार्च, 2021 09:36 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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वीके शशिकला (VK Sasikala) के संन्यास की मिस्ट्री भी जे. जयललिता की मौत जैसी ही उलझी हुई है - और ये शशिकला की ही संदेहास्पद गतिविधियां ही रहीं जिनकी वजह से तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की बीमारी और फिर मौत को लेकर रहस्यमय गहराता गया और कुछेक कयासों के रहस्य पर से परदा कभी हटा भी नहीं.

शशिकला का ताजा एक्शन भी उनके हाल के बताये हुए मकसद से ही मेल खाता है, अगर कोई फर्क है तो वो सिर्फ ये कि अब वो खुद राजनीति के मेन कोर्स का हिस्सा नहीं हैं.

शशिकला पहले भी चाहती थीं कि जयललिता की इच्छानुसार, AIADMK का शासन 100 साल तक चले - और राजनीति से अपने संन्यास लेने के बाद भी वो बिलकुल वैसा ही चाहती हैं. उनके बयान से तो ऐसा ही लगता है.

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव (Tamil Nadu Election) के ऐन पहले शशिकला की तरफ से अचानक लिये गये संन्यास के फैसले में बीजेपी की भी परदे के पीछे बड़ी भूमिका मानी जा रही है, लेकिन क्या वास्तव में ऐसा ही है - और अगर वाकई ऐसा ही तो इसकी असल वजह क्या हो सकती है?

शशिकला के संन्यास का पहला असर तो यही हुआ है कि उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन अकेले पड़ गये हैं - क्योंकि अब तक वो अपने भतीजे की पार्टी AMMK को चुनाव में साथ लेकर चलने के लिए AIADMK पर खासा दबाव बना रही थीं, लेकिन एक झटके में उन सारी चीजों पर ब्रेक लग गया है.

अब देखना ये होगा कि ये सब जो हुआ है, उसका किस पर और कितना असर होता है - और उसी से मालूम हो सकता है कि शशिकला की तरफ से अचानक लिए गये इस फैसले का किस पर सीधा असर होता है - और क्या राजनीतिक लाभार्थियों की कतार में बीजेपी (BJP) भी कहीं खड़ी नजर आ रही है?

शशिकला ने राजनीति क्यों छोड़ी

जेल से छूट कर शशिकला के चेन्नई पहुंचने से पहले ही AIADMK नेतृत्व एक्शन मोड में आ चुका था. तमिलनाडु की सीमा में दाखिल होने से पहले ही शशिकला ने गाड़ी बदल दी थी. शशिकला जिस गाड़ी में सवार हुईं उस पर AIADMK का भी झंडा लगा हुआ था - और ये बाद पार्टी नेृतृत्व को रास नहीं आयी. AIADMK नेतृत्व को इसमें अनुशासनहीनता नजर आयी और उसी के चलते गाड़ी के मालिक AIADMK नेता एसआर सम्मंगी को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड कर दिया गया. साथ ही, AIADMK ने तिरुवल्लूर जिले के डिप्टी सेक्रेट्री दक्षिणामूर्ति सहित सात नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया. इल्जाम सभी पर एक ही लगा - पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होना.

वीके शशिकला के प्रभाव को लेकर ऐसी दहशत थी कि AIADMK कार्यकर्ताओं से जयललिता के जन्म दिन पर पार्टी की रक्षा का संकल्प लेने की सलाहियत भी जारी की गयी थी. मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी और डिप्टी सीएम ओ. पन्नीरसेल्वम की तरफ से कार्यकर्ताओं को लिखे पत्र में बताया गया था कि ऐसे में जबकि पार्टी के सामने चुनावी इम्तिहान की चुनौती है - दुश्मनों और राजनीतिक विरोधियों ने AIADMK को हराने के लिए हाथ मिला लिया है. कार्यकर्ताओं से अपील करते हुए लिखा गया, 'हम सब अम्मा की जयंती पर घरों में दीये जलाये और संकल्प लें कि पार्टी को बचाने में कसर नहीं छोड़ेंगे.'

palaniswami, sasikala, amit shahक्या शशिकला ने हमेशा के लिए तमिलनाडु की राजनीति छोड़़ दी है - चुनाव नतीजों के बाद देखना होगा कि कहीं वो एक और यूटर्न तो नहीं लेने जा रही हैं?

जयललिता के निधन के बाद शशिकला AIADMK चीफ के तौर पर उभर आगे आई - और फिर एक दौर ऐसा भी रहा कि वो मुख्यमंत्री की कुर्सी से थोड़ी ही दूर नजर आने लगी थीं. तभी भ्रष्टाचार के आरोपों में शशिकला को चार साल की कैद की सजा हो गयी. ये शशिकला ही रहीं जो जेल जाने से पहले सुनिश्चित कीं कि ओ. पनीरसेल्वम नहीं, बल्कि, ई. पलानीसामी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बनें. तब से पहले तो यही होता आया था कि जब भी जयललिता को जेल जाना पड़ा ओ. पनीरसेल्वम ही मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते आ रहे थे - और जब वो अस्पताल में भर्ती हुईं उसके बाद भी ऐसा ही हुआ, लेकिन फिर सब बदल गया. बाद में ओ. पनीरसेल्वम भी डिप्टी सीएम बनने को राजी हो गये. शशिकला की बदकिस्मती रही कि उनके जेल जाते ही दोनों ने हाथ मिलाया और एक मीटिंग में शशिकला को महासचिव के पद से बर्खास्त कर दिया गया.

शशिकला ने भी जेल से रिहा होते ही पार्टी महासचिव के पद से अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ अदालत का दरवाजा भी खटखटाया. चेन्नई की अदालत में तमिनलाडु के मुख्यमंत्री ई पलानीस्वामी और डिप्टी ओ. पन्नीरसेल्वम के खिलाफ अर्जी दाखिल कर रखी थी. शशिकला ने 2017 में AIADMK की एक जनरल काउंसिल की मीटिंग को लेकर मुकदमा दायर किया था, ये कहते हुए कि मीटिंग उनको महासचिव के पद से हटाने के लिए ही बुलायी गयी थी. शशिकला ने मामले की जल्द से जल्द सुनवाई और जुर्माने की कोर्ट से अपील की है. केस की अगली तारीख पर 15 मार्च को सुनवाई होनी है, देखना है अब इस बारे में शशिकला क्या फैसला लेती हैं?

राजनीति संन्यास की घोषणा करते हुए शशिकला ने DMK गठबंधन को हराने के लिए एआईएडीएमके नेताओं से एकजुट होने की अपील की है. कार्यकर्ताओं से शशिकला ने कहा, 'कार्यकर्ता मिलकर रहें और आने वाले विधानसभा चुनाव में DMK को हराकर बड़ी जीत सुनिश्चित करें.'

अपना स्टैंड साफ करते हुए शशिकला ने कहा है कि जयललिता के रहते हुए भी वो कभी किसी पद पर नहीं रहीं - और अब भी वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहती हैं. मीडिया को जारी बयान शशिकला का वो पत्र ही है, जिसमें वो लिखती हैं, 'राजनीति छोड़ रही हूं, लेकिन मैं हमेशा ईश्वर से प्रार्थना करूंगी कि अम्मा का स्वर्णिम शासन आये और विरासत आगे बढ़े... ये मानते हुए कि हम एक ही मां की संतान हैं, सभी समर्थकों को आने वाले चुनाव में एक साथ काम करना चाहिए. सभी को DMK के खिलाफ लड़ना चाहिये और अम्मा की सरकार बनानी चाहिये - सभी को मेरी तरफ से शुक्रिया.'

मीडिया में शशिकला का ये बयान आने के कुछ ही देर बाद, उनके भतीजे टीटीवी दिनाकरन सामने आये और पत्रकारों को बताया कि वो अपनी आंटी के फैसले के पक्ष में नहीं थी, लेकिन ज्यादा देर तक टाल भी नहीं सके. बोले, 'मैंने उनसे बात करने की कोशिश की, समझाया भी... मैंने उनसे कहा कि अभी ये अनावश्यक है और गुजारिश की कि वो राजनीति में बनी रहें. मैं उनका बयान जारी होने से 30 मिनट से ज्यादा नहीं टाल सका - लेकिन उनको अपना निजी फैसला लेने से मैं रोक भी कैसे सकता हूं.'

न तो दिनाकरन ने ही इससे ज्यादा बताया और न ही शशिकला ने ही और कुछ बताया है जिससे मालूम हो सके कि उनके राजनीति छोड़ने की असल वजह क्या हो सकती है?

शशिकला के अचानक से लिये इस फैसले पर सवाल और लोगों के मन में आशंकाएं उठनी स्वाभाविक है क्योंकि जो राजनीतिक गतिविधियां तेजी से आगे बढ़ रही थीं वे अचानक ही यू-टर्न ले चुकी हैं - और सब कुछ एक झटके बदल चुका है.

कहां AIADMK पर टूट का खतरा मंडराने लगा था और कहां एक साथ सब कुछ सुरक्षित हो गया है - फिलहाल तो कोई ऐसा नजर भी नहीं आ रहा है जो किसी तरह की बगावत का नेतृत्व करने की तैयारी कर रहा हो. अगर मन ही मन ऐसा कोई सोच भी रहा हो तो वो कुछ कर भी पाएगा, फिलहाल तो कम ही ऐसी कोई आशंका लगती है.

ये तो स्पष्ट नहीं है कि शशिकला किसी दबाव में या खास परिस्थितियों में ऐसा फैसला लेने को मजबूर हुई हैं, लेकिन सारी चीजों के बावजूद अभी ये साफ तो नहीं ही है कि शशिकला ने राजनीति छोड़ने का निर्णय क्यों लिया - असल वजह जो भी हों, लेकिन ये कोई स्वाभाविक, सहज या निर्विवाद फैसला तो नहीं ही लगता.

शशिकला के संन्यास का सियासी असर

ये तो इंकार करने वाली बात नहीं ही है कि शशिकला के संन्यास के फैसले से बीजेपी का कोई लेना देना नहीं हो सकता - यानी, शशिकला के फैसले से तमिलनाडु में बीजेपी की सियासी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. सच तो ये है कि बीजेपी को भी इसका सीधा फायदा होने वाला है क्योंकि ऐसा होने से सत्ताधारी एआईएडीएमके को फायदा मिलना तो तय है ही.

इंकार इस बात से भी नहीं किया जा सकता कि शशिकला समर्थकों के अलग राह अख्तियार करने की सूरत में एआईएडीएमके को नुकसान होता ही - और बीजेपी की भी ऐसी गतिविधियों पर नजर तो बनी ही होगी. पश्चिम बंगाल में जिस तरह बीजेपी अपने दम पर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में तोड़ फोड़ मचाये हुए, तमिलनाडु में एआईएडीएमके की मदद से बीजेपी के लिए ऐसा कुछ करना कोई मुश्किल काम तो नहीं ही माना जा सकता.

ये तो शुरू से ही माना जाता रहा है कि एआईएडीएमके में दो अलग अलग गुटों को साथ लाने की बीजेपी की कोशिश रही है - और ई. पलानीसामी और ओ. पनीरसेल्वम के हाथ मिलाने में भी बीजेपी की भूमिका से इंकार नहीं किया गया. नतीजा ये हुआ कि पलानीसामी और पनीरसेल्वम ने एक होकर शशिकला को किनारे लगा दिया था और जब जेल से छूटने के बाद एक बार फिर वो अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही थीं तो कदम पीछे खींचने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

यहां ये समझना भी जरूरी है कि एआईएडीएमके की सरकार भले ही पलानीसामी और पनीरसेल्वम मिल कर चला रहे हों, लेकिन शशिकला का पार्टी विधायकों पर कोई प्रभाव नहीं बचा है - शायद ही कोई मानने को तैयार होगा.

जैसे राजस्थान में बड़ी संख्या में बीजेपी विधायकों पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के प्रभाव में बताये जाते हैं, तमिलनाडु में ठीक वैसा ही शशिकला का प्रभाव है. दरअसल, शशिकला समर्थक ऐसे कई नेता और विधायक हैं जो मानते हैं कि उनकी राजनीतिक उपलब्धियों की आर्किटेक्ट शशिकला ही हैं कोई और नहीं. जयललिता के निधन के बाद शशिकला के सामने हाथ जोड़े विधायकों की तस्वीरें देखें तो चीजें साफ साफ नजर आएंगी.

शशिकला जिस थेवार समुदाय से आती हैं, तमिलनाडु की आबादी में उसकी 10 फीसदी हिस्सेदारी है. ये समुदाय जयललिता की पार्टी का समर्पित वोटर रहा है राज्य की 40-50 सीटों पर इस समुदाय का सीधा प्रभाव है.

शशिकला की नाराजगी का सीधा असर उस खास वोट बैंक पर होता और उनके समर्थक विधायक भी बगावत की राह अख्तियार कर सकते थे. फिलहाल तो ये सब अच्छे मैनेज कर लिया गया है, लेकिन ये भी जरूरी नहीं कि ये स्थायी भाव हो.

शशिकला भी राजनीति की तमाम बारीकियों से वाकिफ हैं. परंपरागत रूप से इस बार जयललिता की विरोधी पार्टी डीएमके के सत्ता में पहुंचने की संभावना है. ऐसा 2016 में ही होना था लेकिन जयललिता ने डीएमके नेतृत्व के इरादों पर पानी फेर दिया था - अब जयललिता की गैर मौजूदगी की एमके स्टालिन पूरा फायदा उठाने की फिराक में हैं.

तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि मौके की नजाकत को शशिकला भी अच्छी तरह समझती हैं और चुनाव में एआईएडीएमके अगर सत्ता नहीं बचा पाती तो सारी तोहमत उन पर ही मढ़ दी जाती. ऐसा करके वो चुनाव में एआईएडीएमके की हार की सूरत में सीधा बच जाएंगी. शशिकला के हिसाब से देखें तो कमजोर एआईएडीएमके ही उनके लिए फायदेमंद है, लेकिन अगर पार्टी चुनाव जीत जाती है तो मान कर चलना होगा कि हमेशा के लिए शशिकला का प्रभाव भी खत्म हो सकता है.

मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी तो चाहते ही थे कि कैसे शशिकला को किनारे लगा कर दिनाकरन के प्रभाव को भी न्यूट्रलाइज किया जा सके - और बीजेपी भी नहीं चाहती थी कि मौजूदा एआईएडीएमके नेतृत्व किसी भी सूरत में कमजोर पड़े कि डीएमके और कांग्रेस गठबंधन उसका फायदा उठा ले.

शशिकला ने जिस किसी भी वजह से और जिन भी परिस्थितियों में मैदान छोड़ा है, फायदे में तो ई. पलानीसामी और ओ. पनीरसेल्वम ही हैं और उनके नाते बीजेपी भी स्वाभाविक लाभार्थी की श्रेणी में आ जाती है - और यही वजह है कि माना जा रहा है कि शशिकला के खत का मजमून वाह्य बलों ने ही तैयार किया है और बीजेपी भी तो उसी कतार में शामिल है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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