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Updated: 12 सितम्बर, 2020 10:41 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सीनियर नेताओं की चिट्ठी से नाराज होकर इस्तीफे की पेशकश करने और फिर अगले इंतजाम तक अंतरिम कांग्रेस (Congress) अध्यक्ष बने रहने को राजी हुई सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने संगठन में भारी फेरबदल किया है - फेरबदल में गुलाम नबी आजाद को शिकार माना जा रहा है क्योंकि चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं की अगुवाई का जिम्मा गुलाम नबी आजाद ने ही उठाया था.

फेरबदल के बीच ही सोनिया गांधी कुछ कमेटियां भी बनायी हैं जिनमें राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के खास और गांधी परिवार के भरोसेमंद माने जाने वाले नेताओं को जगह दी गयी है. एक कमेटी ऐसी बनायी गयी है जिससे संगठन के चुनाव कराये जाने के संकेत भी मिलते हैं, लेकिन कांग्रेस कार्यसमिति को सोनिया गांधी ने पुनर्गठित कर दिया है. चिट्ठी लिखने वाले नेता ऐसा न करके चुनाव कराये जाने की मांग कर रहे थे.

समझने वाली बात ये है कि फेरबदल में गुलाम नबी आजाद को महासचिव पद से हटाया जाना और हरियाणा का प्रभार छीन लेना ज्यादा अहम नहीं है, बल्कि राहुल गांधी को कोई जिम्मेदारी न दिया जाना ज्यादा महत्वपूर्ण लगता है - क्या इसका मतलब ये भी हो सकता है कि ये सारी कवायद राहुल गांधी के लिए ही हो रही हैं?

राहुल गांधी को कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी में जो ताजा फेरबदल की है, उसमें गुलाम नबी आजाद को एक जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया है, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष रहे राहुल गांधी को अब भी किसी भी तरह की जिम्मेदारी से मुक्त ही रखा है. वो अब भी तकनीकी तौर पर कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और केरल के वायनाड से सांसद भर हैं, लेकिन बिहार में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में गठबंधन से लेकर सीटों पर उम्मीदवारों के नाम तक के फैसले में आखिरी बात उनकी ही होगी.

मतलब ये कि पूरी लंबी चौड़ी कवायद में राहुल गांधी को लेकर कांग्रेस के भीतर जो असंतोष रहा वो जहां का तहां बना रहेगा. कांग्रेस के असंतुष्ट नेता चाहते तो यही रहे कि राहुल गांधी जिम्मेदारी लें और जो करना हो करें, लेकिन बगैर जिम्मेदारी के हर जगह दखल तो न ही दें. ऐसी सोच वाले नेता चिट्ठी लिखने वालों में भी हैं और उनके अलावा भी.

rahul gandhi, sonia gandhi, ghulam nabi azadकांग्रेस फेरबदल में गुलाम नबी आजाद के खिलाफ एक्शन हुआ तो नहीं लगता

सोनिया गांधी ने कम से कम दो महत्वपूर्ण समितियां बनायी है - एक जो कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देगी और दूसरी जो संगठन के चुनाव कराये जाने के लिए जरूरी इंतजाम करेगी. राहुल गांधी ऐसी दोनों ही कमेटियों में नहीं हैं. न तो राहुल गांधी के पास संगठन में कोई पद है और न ही किसी राज्य के प्रभारी की जिम्मेदारी है.

राहुल गांधी के पास भले ही कोई जिम्मेदारी न हो, लेकिन उनकी आंख-नाक और कान के साथ साथ जबान के रोल में सबसे फिट रणदीप सिंह सुरजेवाला को जिम्मेदारियों के बोझ से लाद दिया गया है - देखा जाये तो संगठन में सबसे ज्यादा जिम्मेदारियां उनके पास ही हैं. प्रवक्ता होने के साथ साथ रणदीप सुरजेवाला को महासचिव बनाकर कर्नाटक की जिम्मेदारी भी सौंप दी गयी है. साथ ही कार्यकारिणी के साथ साथ वो अध्यक्ष को सलाह देने वाली समिति में भी शामिल किये गये हैं.

ऐसे भी समझा जा सकता है कि सोनिया गांधी की नयी टीम पुराने वफादारों के साथ साथ राहुल गांधी के करीबियों का कॉम्बो पैकेज है. जो नेता चुपचाप हां में हां मिलाते हुए काम करते आये हैं उनको नये सिरे से या फिर से मौका दिया गया है - और सवाल पूछने या सलाह देने के साथ साथ चिट्ठी लिखने वालों को लक्ष्मण रेखा की अहमियत समझाने की भी कोशिश की गयी है.

कैसे माना जाये कि गुलाम नबी आजाद के खिलाफ एक्शन हुआ है

सोनिया गांधी ने जो फेरबदल किया है उसमें आंतरिक चुनाव कराये जाने का इशारा जरूर है - सेंट्रल इलेक्शन अथॉरिटी यानी CEA. CEA का गठन कर सोनिया गांधी ने एक तरीके से चिट्ठी लिखने वाले 23 नेताओं की डिमांड पूरी करने के संकेत दिये हैं. राहुल गांधी के भरोसेमंद मधुसूदन मिस्त्री को इसका अध्यक्ष बनाया गया है. मधुसूदन मिस्त्री 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वडोदरा से लोक सभा का चुनाव लड़ चुके हैं और यूपी चुनाव में राहुल गांधी के करीबी सहयोगी रहे हैं.

कांग्रेस में पूर्ण कालिक अध्यक्ष को लेकर सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में शामिल कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी और भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे नेताओं को कहीं कोई जगह नहीं दी गयी है, लेकिन चिट्ठी लिखने वालों की अगुवाई करने वाले गुलाम नबी आजाद के साथ भी यही हुआ है, कहना ठीक नहीं होगा.

महासचिव पद की जिम्मेदारी जिनसे वापस ले ली गयी है उनमें गुलाम नबी आजाद के साथ साथ अंबिका सोनी और मल्लिकार्जुन खड़गे भी शामिल हैं. अंबिका सोनी तो गांधी परिवार को लेकर सवाल उठाने वालों में हैं नहीं और मल्लिकार्जुन खड़गे भी नहीं. अंबिका सोनी तो चिट्ठी लिखने वालों के खिलाफ एक्शन लेने की भी मांग कर चुकी हैं.

अंबिका सोनी और मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ साथ गुलाम नबी आजाद भी कांग्रेस कार्यसमिति का हिस्सा हैं - फिर कैसे माना जाये कि गुलाम नबी आजाद के खिलाफ कार्रवाई की गयी है.

महासचिव के पद से हटाये जाने वाले नेताओं की सूची में तो गौरव गोगोई का नाम भी है - वो पश्चिम बंगाल के प्रभारी रहे. वैसे गौरव गोगोई को हाल ही में लोक सभा में अधीर रंजन चौधरी के साथ उप नेता बनाया गया है. गौरव गोगोई असम से सांसद हैं और अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस कमेटी का फिर से अध्यक्ष बना दिया गया है. पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं.

खास बात एक ये भी है कि चिट्ठी लिखने वालों में शामिल जितिन प्रसाद को पश्चिम बंगाल का प्रभारी बनाया गया है. हो सकता है उत्तर प्रदेश का पूरा प्रभार प्रियंका गांधी को दिये जाने के बाद उनके रास्ते से हटाने के लिए ये इंतजाम किया गया हो, लेकिन जिम्मेदारी दिया जाना और वो भी ऐसे प्रदेश का जहां चुनाव होने हैं, इसे हल्के में तो नहीं ही लिया जा सकता. जितिन प्रसाद के खिलाफ लखीमपुर खीरी की जिला कांग्रेस कमेटी के प्रस्ताव की काफी चर्चा रही और समझा गया कि उनके खिलाफ ये सब प्रियंका गांधी की टीम के लोगों के इशारे पर किया गया है. जितिन प्रसाद को लेकर समझने वाली एक बात ये भी है कि वो उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों से जुड़े मुद्दे उठा रहे थे और ब्राह्मण चेतना परिषद के बैनर तले काफी एक्टिव रहे. विकास दुबे एनकाउंटर के बाद अखिलेश यादव और मायावती की ब्राह्मण पॉलिटिक्स में दिलचस्पी को देखते हुए इसे कांग्रेस की रणनीतियों का हिस्सा माना जा रहा था, लेकिन अब लगता है उसमें प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के चलते बदलाव किया गया है.

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए बनायी गयी सलाहकार समिति में रणदीप सिंह सुरजेवाला को छोड़ सभी सीनियर नेताओं को रखा गया है - एके एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी और मुकुल वासनिक. कहने को तो मुकुल वासनिक ने भी चिट्ठी पर दस्तखत कर दिया था लेकिन CWC की मीटिंग में इमोशनल होकर माफी भी मांग लिये थे. खास बात ये है कि ये कमेटी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अगले अधिवेशन तक के लिए ही है. मतलब, स्थाई नहीं हैं और उसके बाद नये सिरे से फेरबदल निश्चित तौर पर होनी है.

एक और खास बात पूरे फेरबदल में सचिन पायलट को कहीं भी जगह नहीं मिली है. सचिन पायलट को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम के पद से पहले ही हटाया जा चुका है. राजस्थान विधानसभा सत्र के दौरान जो व्यवहार उनके साथ हुआ वो तो सबने देखा ही है. जब सचिन पायलट के साथ सुलह की बातचीत चल रही थी तो चर्चा रही कि उनको संगठन में महासचिव बनाया जा सकता है, लेकिन अभी तो ऐसा कुछ नहीं किया गया है.

सूत्रों के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि अगले साल AICC का अधिवेशन छत्तीसगढ़ या पंजाब में बुलाया जा सकता है - और हो सकता है वहीं पर राहुल गांधी को भी वो जिम्मेदारी दे दी जाये जो उनको छोड़कर गांधी परिवार का हर सदस्य और गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान हर कांग्रेस कार्यकर्ता चाहता है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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