कांग्रेस के 'असंतुष्ट' सोनिया गांधी से राहुल समेत अन्य बातों पर दो टूक जवाब चाहते हैं!
कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में चल रहे गतिरोध के बीच सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का गुस्सा कम हुआ है वो असंतुष्ट नेताओं से बात करने को तैयार तो हैं लेकिन शर्त ये रखी गयी है कि किसी भी सूरत में ये लोग पार्टी के अनुशासन या ये कहें कि 'लक्ष्मण रेखा' को पार नहीं करेंगे.
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कांग्रेस पार्टी (Congress Party) और उसके मूल संगठन में 23 असंतुष्ट नेताओं (Congress Dissenters) के बीच चल रहे गतिरोध से कुछ संकेत मिल रहे हैं. कुछ कांग्रेस नेता, जो उन लोगों के बीच मध्यस्थ के रूप में काम कर रहे हैं, जिन्होंने पत्र लिखकर कांग्रेस नेतृत्व की कार्यशैली और AICC पदाधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाया था, दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर लाकर मामला सही करने की कोशिश कर रहे हैं. यह माना जाता है कि अंतरिम पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) इस वादे के बदले असंतुष्टों को सुनने को राजी हुई हैं कि किसी भी सूरत में ये लोग पार्टी के अनुशासन या ये कहें कि 'लक्ष्मण रेखा' को पार नहीं करेंगे. कई स्रोतों के साथ बातचीत के आधार पर, यह प्रतीत होता है कि असंतुष्टों की मुख्य मांग राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से एक दृढ़ प्रतिबद्धता प्राप्त करना है कि वह खुले तौर पर खुद को पार्टी के शीर्ष पद के लिए दावेदार घोषित करेंगे या कांग्रेस नेताओं के एक वर्ग को ऐसी मांग करने से रोकेंगे.
दिलचस्प बात यह है कि 23 असंतुष्टों में से लगभग आधे लोगों को राहुल गांधी के एआईसीसी के 87 वें अध्यक्ष के रूप में लौटने पर कोई आपत्ति नहीं है. उनका विरोध इस बात पर है कि आखिर क्यों राहुल 24x7 राजनीतिज्ञ नहीं बनना चाहते और आखिर क्यों वो संगठन को 'परदे के पीछे' से चला रहे हैं.
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि असंतुष्टों के खिलाफ सोनिया गांधी का शुरुआती गुस्सा कुछ कम हुआ है और वह 14 सितंबर से शुरू हो रहे आगामी संसद सत्र से पहले उनसे बातचीत करने को तैयार हैं. उनकी योजना में, असंतुष्टों को अपने पत्र में उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दो प्रतिनिधियों का चयन करना चाहिए. सोनिया गांधी भी पार्टी चुनाव कराने को लेकर गंभीर हैं और चाहती हैं कि सभी 'हितधारक' कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) के लिए चुनाव लड़ें.
आज कांग्रेस हुए सोनिया गांधी की सबसे बड़ी चुनौती राहुल गांधी हैं
हालांकि, असंतुष्ट लोग पहले शीर्ष पद पर स्पष्टता चाहते हैं यानी वो जानना चाहते हैं कि क्या राहुल दावेदारी पेश करेंगे या फिर गैर-गांधी परिवार का सदस्य शीर्ष पद के लिए अपना दावा पेश कर सकता है. कांग्रेस पार्टी के सूत्रों का कहना है कि यह मुद्दा कई संभावनाओं से भरा हुआ है और इसमें ऐसी भी क्षमता है कि वह देश की सबसे पुरानी पार्टी में फूट पैदा कर दे. राहुल गांधी 2004 की शुरुआत में राजनीति में शामिल हुए, लेकिन सत्ता और राजनीति के प्रति एक अलग भावना के साथ अब तक, वह कुछ हद तक अपरंपरागत बने हुए हैं. माना जाता है कि कठोर बौद्ध विपश्यना के कारण उनके अंदर वो भूख नहीं है कि वो शीर्ष पोजीशन या सत्ता के मोह में फंसे.
हफ्तों और महीनों तक, असंतुष्ट नेता, पार्टी के सभी गुटों को साथ लेकर राहुल की असमर्थता के लिए सोनिया गांधी का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे. ध्यान रहे कि राहुल पार्टी को किसी एनजीओ की तरह ट्रीट करते हैं. राहुल गांधी अक्टूबर 1994 से जुलाई 1995 तक ट्रिनिटी में छात्र थे और उन्हें विकास अध्ययन में एमफिल से सम्मानित किया गया था. मालूम देता है कि कैम्ब्रिज ने राहुल को काफी प्रभावित किया है.
2010 में कैम्ब्रिज कैंपस के पेपर वर्सिटी से बात करते हुए, राहुल ने दो राजनीति विज्ञान के छात्रों, मैरो गोल्डन और एशले लामिंग से कहा था कि, कैंब्रिज में जो पढ़ाया जाता था, उससे वह बहुत असहमत थे. मैं अभी बहुत कम वामपंथी हूं, जितना मैं था, एक चीज के लिए.गुजरे सालों में, कांग्रेसी यह सोचने से कतराते हैं कि राहुल गांधी की मूल सोच क्या थी यदि उनकी वर्तमान स्थिति 'बहुत कम वामपंथी' है.
सोनिया गांधी को 1998 से सभी को साथ लेकर चलने की चुनौती का सामना करना पड़ा था जब उन्होंने औपचारिक रूप से कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभाला था. बता दें कि अर्जुन सिंह-एनडी तिवारी, माधवराव सिंधिया और एस बंगारप्पा की अगुवाई में ब्रेकअवे कांग्रेस गुट तब मूल संगठन में शामिल हो गए थे. इनमें से कुछ नेताओं ने पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी के वफादारों के साथ मामला तय करने की कोशिश की थी, लेकिन सोनिया गांधी ने उन्हें हतोत्साहित करते हुए कहा था, 'कांग्रेस परिवार' के मुखिया के रूप में, 'वह' समान रूप से कार्य करने के लिए, कर्तव्य-बद्ध 'थीं. राहुल गांधी के खिलाफ शिकायतों का दूसरा हिस्सा उन मुद्दों की पसंद के बारे में है जिन्हें उठाया जा रहा है.
पिछले साल, सोनिया गांधी ने दिन के प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए एक 17-सदस्यीय समूह का गठन किया था. इस समूह में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी, अहमद पटेल, गुलाम नबी आज़ाद, एके एंटनी, मल्लिकार्जुन खड़गे, आनंद शर्मा, जयराम रमेश, अंबिका सोनी, कपिल सिब्बल, केसी वेणुगोपाल, अधीर रंजन चौधरी, रणदीप सिंह सुरजेवाला, ज्योतिरादित्य शामिल थे. ध्यान रहे कि सिंधिया ने मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़ दी थी.
समूह को बनाए हुए एक वर्ष से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन इसकी अब तक केवल एक मीटिंग 25 अक्टूबर, 2019 को हुई है. इसके बजाय, राहुल अपनी इच्छा के अनुसार अलग अलग मुद्दों को चुन रहे हैं और उन्हें उठा रहे हैं. संक्षेप में, राहुल का व्यक्तित्व और उनकी पसंद का मुद्दा पार्टी में बेचैनी का मुख्य स्रोत है.
जब असंतुष्टों के एक समूह ने पार्टी के भीतर से परिवर्तन और सुधार के लिए आपस में बातचीत शुरू कर दी थी, तो उनमें से एक ने चुटकी ली थी और कहा था की , 'यह मानते हुए कि कांग्रेस एक निकाय है, हमें यह पता लगाने की ज़रूरत है कि समस्या कहां है? क्या समस्या छाती में है कि पेट में या फिर गुर्दे और यकृतमें उनमें से तीन ने एक साथ जवाब दिया था कि 'यह सिर है.'
वर्तमान कांग्रेस के पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जो चाहते हैं कि राहुल के नेतृत्व वाली कांग्रेस हर चुनावी सफलता का स्वाद चखे, लेकिन वह पार्टी को स्वच्छ बनाने के अपने प्रयासों में विफल होते हैं. यह विरोधाभास राहुल और कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.
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