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Updated: 04 अक्टूबर, 2019 02:30 PM
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हरियाणा में चुनाव के ऐन पहले कांग्रेस ने दलित और जाट वोटों के हिसाब से नेतृत्व परिवर्तन किया था. कुमारी शैलजा कांग्रेस का दलित चेहरा रही हैं और भूपिंदर सिंह हुड्डा रैलियों में भीड़ जुटाने वाले जाट नेता. वैसे बीजेपी मनोहरलाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाने के साथ ही गैर जाट राजनीति कर रही है. जींद उपचुनाव में भी बीजेपी ने ऐसा ही किया था और कामयाब रही. तब बीजेपी के कृष्ण मिड्ढा ने कांग्रेस के चमकीले चेहरे रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनावी मैदान में ठिकाने लगा दिया था.

ये बदलाव किया गया तो था गुटबाजी खत्म करने के लिए लेकिन अब तक तो ऐसे कोई संकेत मिले नहीं हैं - ऊपर से अंदर का झगड़ा सड़क पर आ चुका है. चूंकि चुनाव अभियान समिति की जिम्मेदारी हुड्डा गुट के पास है, इसलिए तंवर गुट टिकट हासिल करने के लिए सड़क पर उतर आया है. हुड्डा को लेकर नाराजगी तो कुमारी शैलजा और उनके समर्थकों में भी कम नहीं है.

कांग्रेस उम्मीदवारों की जो सूची आयी है उसमें तंवर के समर्थकों को कौन कहे खुद उनका भी नाम नहीं शामिल है. अशोक तंवर सोहना विधानसभा सीट को लेकर पैसे लेने का खुला इल्जाम लगा रहे हैं. कहने को तो सूची में मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा का भी नाम नहीं है, लेकिन वो अभी राज्य सभा सदस्य हैं - और कांग्रेस भला अनिश्चित के चक्कर में एक निश्चित चीज को गंवाने का गलत निर्णय लेगी, ऐसा तो नहीं लगता. राज्य सभा में सख्या का खेल भी बीजेपी लगभग खत्म ही कर चुकी है.

हारे हुए नेताओं को पहले टिकट

हरियाणा विधानसभा की 90 सीटों में से 84 के लिए कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. अभी तक सिर्फ एक मौजूदा कांग्रेस विधायक का टिकट काटा गया है और वो हैं - रेणुका विश्नोई. पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की बहू रेणुका विश्नोई हांसी से विधायक हैं. हालांकि, उनके पति कुलदीप विश्नोई टिकट पाने में कामयाब रहे हैं. बाकी 16 विधायकों पर हुड्डा की कृपा पूरी बरसी है.

कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की तरफ से जारी सूची में भूपिंदर सिंह हुड्डा को गढ़ी सांपला किलोई सीट से उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि रणदीप सुरजेवाला को उनकी पुरानी सीट कैथल से ही कैंडिडेट बनाया गया है. हुड्डा 10 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं और सुरजेवाला तो कांग्रेस प्रवक्ता के रूप में टीवी के चिर परिचित चेहरा हैं ही.

हुड्डा और सुरजेवाला दोनों ही अपने हालिया चुनाव हारे हुए हैं. 2019 के आम चुनाव में भूपिंदर सिंह हुड्डा सोनीपत से चुनाव मैदान में थे और बीजेपी के रमेश चंद्र कौशिक से डेढ़ लाख से भी ज्यादा वोटों से हार गये थे. हारने को तो उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा भी रोहतक से चुनाव हारे थे लेकिन उनकी हार का अंतर 10 हजार वोटों से भी कम रहा.

sonia gandhi, hooda and rahul, tanwarनेता भले लड़ते रहें, जिम्मेदारी तो नेतृत्व की ही होती है!

हुड्डा की ही तरह लेकिन 2019 के आम चुनाव से पहले सुरजेवाला जींद उपचुनाव हार गये थे. कैथल से विधायक होने के बावजूद सुरजेवाला को राहुल गांधी ने मैदान में उतारा था, जबकि सुरजेवाला खुद अपने किसी करीबी के लिए पैरवी कर रहे थे. जींद उपचुनाव में बीजेपी ने INLD विधायक रहे हरिचंद मिड्ढा के बेटे कृष्ण मिड्डा को को अपने पाले में मिला लिया था और कांग्रेस के सपनों पर पानी फेर दिया था. तब माना गया था कि राहुल गांधी जींद उपचुनाव के जरिये हरियाणा के लिए एक निर्विवाद नेता की तलाश में थे. अगर सुरजेवाला चुनाव जीत गये होते तो शायद हुड्डा का पत्ता पहले ही कट चुका होता - और इसके लिए राहुल गांधी अशोक तंवर को राजी भी कर चुके होते क्योंकि दोनों ही उनके पसंदीदा नेता हैं. अशोक तंवर के बारे में भी आखिरी दिनों में यही माना जाने लगा था कि वो हुड्डा के आतंक से हथियार लगभग डाल चुके थे और अपनी ताकत बनाये रखने के लिए सुरजेवाला को सपोर्ट करने लगे थे - लेकिन एक हार ने सब गुड़-गोबर कर दिया.

बाकी छह सीटों पर फंसा है पेंच

कांग्रेस की सूची फाइनल करने को लेकर भले ही देर तक माथापच्ची होती रही, फिर भी कुछ लोंगो के नाम नहीं शामिल किये जा सके - लेकिन एक नेता ऐसा भी रहा जिसने सूची की परवाह किये बगैर ही नामांकन कर डाला. कांग्रेस के मौजूदा विधायक आनंद सिंह दांगी ने टिकट की घोषणा होने से पहले ही अपनी महम सीट से नामांकन दाखिल कर दिया.

मानना पड़ेगा दांगी के भरोसे को उम्मीदवारों की सूची आयी तो उनका नाम साफ साफ दर्ज था. कांग्रेस की लिस्ट आने से पहले दांगी ने कह दिया था कि उन्हें टिकट मांगने की जरूरत नहीं है. दांगी ने सिर्फ नामांकन ही नहीं दाखिल किया, बल्कि यहां तक दावा किया कि कोई और भी चाहे तो वो टिकट दिलवा सकते हैं.

आनंद सिंह दांगी 1991, 2005, 2009 और 2014 में महम विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. वैसे दांगी आत्म विश्वास के इस लेवल की बड़ी वजह आशा हुड्डा की मौजूदगी भी रही. आशा हुड्डा, भूपिंदर हुड्डा की पत्नी हैं. दांगी ने ये भी दावा किया था कि उनके नामांकन में भूपिंदर सिंह हुड्डा, दीपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा को भी शामिल होना था लेकिन केंद्रीय समिति की मीटिंग के चलते वे नहीं पहुंच सके.

कांग्रेस की सूची में मौजूदा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा और पूर्व PCC चीफ अशोक तंवर के नाम न होने की चर्चा तो खूब हो रही है, लेकिन इसमें दीपेंद्र हुड्डा का भी नाम नहीं है. अभी छह सीटें बची हुई हैं जिन पर उम्मीदवार घोषित किये जाने हैं, लेकिन कई पर पेंच फंसा हुआ है. जिन छह सीटों पर उम्मीदवार घोषित किये जाने हैं, वे हैं - अंबाला कैंट, रादौर, लाडवा, बरवाला, फतेहाबाद और असंध विधानसभा.

कहा जा रहा है कि हुड्डा और शैलजा के टकराव के चलते अंबाला कैंट को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका है. हुड्डा इस सीट से अपने करीबी पूर्व मंत्री निर्मल सिंह की बेटी चित्रा को कांग्रेस उम्मीदवार बनाना चाहते हैं, जब शैलजा अपने किसी नजदीकी को. दरअसल, ये इलाका कुमारी शैलजा का है और अपनी राजनीतिक जमीन को आगे भी बनाये रखने के लिए वो ऐसा चाह रही हैं. मुश्किल ये है कि टिकट देने में हुड्डा की ही मनमानी चल रही है - क्योंकि ये जिम्मेदारी तो सोनिया गांधी ने ही उन्हें दी हुई है. अशोक तंवर की नाराजगी की बड़ी वजह भी यही है. बताते हैं अशोक तंवर ने अपने पसंद के 80 उम्मीदवारों की सूची आलाकमान को सौंपी थी, लेकिन हुड्डा के प्रभाव के चलते उनकी दाल नहीं गल पा रही है.

कांग्रेस की सूची में पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के दोनों बेटों के नाम हैं - कुलदीप विश्नोई को हिसार की आदमपुर सीट से और चंद्र मोहन को पंचकूला से. ये चंद्र मोहन वही हैं जो हरियाणा के डिप्टी सीएम रह चुके हैं और कुछ दिन के लिए चांद मोहम्मद भी बने हुए थे.

पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के बेटे और बहू दोनों टिकट हासिल करने में कामयाब रहे हैं - रणवीर महिंद्रा बधरा से और किरण चौधरी तोशाम से, जहां से फिलहाल वो विधायक हैं. साथ ही, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप शर्मा को गनौर सीट से टिकट मिला है.

गुटबाजी के बीच भी एक सहमति है - सिद्धू की 'नो एंट्री'!

हरियाणा कांग्रेस के बारे में अब आम धारणा बन चुकी है कि राज्य में कांग्रेस कम से कम पाच गुटों में बंटी हुई है. अभी तो नंबर वन गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा का ही है और उनके मुकाबले कट्टर विरोधी अशोक तंवर का गुट है. दोनों से इतर एक गुट कैथल विधायक रणदीप सुरजेवाला का भी है. सिर्फ ये तीन ही नहीं दो गुट कांग्रेस की महिला नेताओं का भी दो-दो हाथ करने पर हरदम आमादा रहता है - एक, कुमारी शैलजा का और दूसरा, कांग्रेस विधायक दल की नेता से हाल ही में हटायी गयीं किरण चौधरी का.

वैसे भी अशोक तंवर ने हटाये जाने के बाद साफ साफ कह दिया था कि वो हुड्डा और शैलजा का बिलकुल वैसे ही साथ देंगे जैसा पांच साल तक अध्यक्ष रहते उन्हें मिलता रहा. पुराने मामलों को याद करें तो 2016 में दिल्ली की रैली में राहुल गांधी के सामने ही हुड्डा और तंवर के समर्थक नेताओं में मारपीट हो गयी थी. तब राहुल गांधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष हुआ करते थे. प्रदेश की कमान बदलने से पहले जुलाई, 2019 में भी दोनों गुटों के नेताओं में ऐसी ही झड़प हुई लेकिन तब राहुल गांधी नहीं बल्कि हरियाणा के प्रभारी गुलाम नबी आजाद को मूकदर्शक बने रहना पड़ा था.

हरियाणा कांग्रेस में भले ही तमाम मुद्दों पर गुटबाजी हावी हो, लेकिन एक मसला ऐसा भी है जिस पर हर गुट एक राय है - और वो है नवजोत सिंह सिद्धू का विरोध.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से दोस्ती और पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा से गले मिलने को लेकर विवादों के चलते पंजाब में कैबिनेट छोड़ चुके सिद्धू को लेकर विरोध अभी थमा नहीं है. हरियाणा कांग्रेस के कई बड़े नेता सिद्धू से चुनाव प्रचार कराये जाने के पक्ष में नहीं हैं. वे नहीं चाहते कि सिद्धू का नाम कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की सूची से भी बाहर रखा जाये.

ये नेता आम चुनाव के दौरान सिद्धू की सभा में पाकिस्तान विरोधी नारे लगाये जाने और एक महिला के चप्पल चला कर विरोध जताने की याद दिला रहे हैं. ऐसे नेताओं का कहना है कि रोहतक संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीवार दीपेंद्र हुड्डा के हार जाने की एक बड़ी वजह भी यही थी. सिद्धू का विरोध कर रहे नेताओं की दलील है कि सिद्धू की पाकिस्तान परस्त छवि की वजह से चुनावों में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.

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