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Updated: 12 नवम्बर, 2019 07:12 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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कहते हैं राजनीति में कोई दोस्त या दुश्मन नहीं होता, लेकिन विचारधारा तो होती है ना? कुछ बातों को लेकर एक स्टैंड तो रहता है ना हर पार्टी का? आखिर अपना वजूद बनाए रखने के लिए पार्टी का कुछ तो अपना होता ही है, लेकिन अगर सब कुछ दाव पर लगाकर सरकार बनानी पड़े तो फिर ऐसी राजनीति का क्या भविष्य होगा? आज कर महाराष्ट्र की राजनीति (Maharashtra Politics) में जो सियासी ड्रामा चल रहा है, उसे देखकर हर किसी के मन में कुछ ऐसे ही सवाल उठ रहे हैं. शिवसेना (Shiv Sena) ने मुख्यमंत्री पद की लालसा में अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है. ऐसा लग रहा है कि शिवसेना कुछ (मुख्यमंत्री पद) पाने के लिए सब कुछ (अपना वजूद तक) खोना पड़ेगा. और अगर ऐसा नहीं होता है तो कांग्रेस (Congress) कैसे शिवसेना को अपना समर्थन देगी? शिवसेना जैसी है और जैसी उसकी विचारधारा है, उसके साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस जनता को क्या मुंह दिखाएगी?

कांग्रेस की वजह से ही महाराष्ट्र में सरकार बनाने (Maharashtra government formation) में देरी हो रही है. देरी भी इतनी अधिक हुई कि राज्यपाल को भी सरकार बनती हुई नहीं दिख रही है और राष्ट्रपति शासन (President Rule) तक लागू हो गया है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी इसकी मंजूरी दे दी है. हालांकि, अभी भी अगर तीनों पार्टियों में बात बन जाए तो अपना दावा पेश कर के वह सरकार बना सकते हैं. पूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कुछ बातें कही हैं, जिन पर गौर करें तो शिवसेना को अगर कांग्रेस का समर्थन चाहिए तो उसे खुद में कुछ बदलाव करने होंगे. पाटिल कहते हैं कि अगर शिवसेना कहे कि वह बाहर से आने वाले लोगों को नौकरी करने, बिजनेस करने की इजाजत नहीं देंगे, यूपी-बिहार से लोगों को आने नहीं देंगे समर्थन कैसे मिलेगा? वह कहते हैं कि शिवसेना की छवि भी कट्टर हिंदुत्व की है, ऐसे में मुस्लिम धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म और अन्य लोग जो हिंदू धर्म के नहीं हैं, उनका क्या? वह कहते हैं कि शिवसेना के साथ गठबंधन करने पर इन सभी चीजों पर विचार करना होगा. शिवराज पाटिल ने कहा कि वह सोनिया गांधी को सलाह देने की हालत में नहीं हैं, लेकिन फिर भी एक सलाह दे डाली कि अगर कुछ ऐसा किया जाए जिससे देश की एकता पर आंच ना आए तो हमें ऐतिहासिक कदम उठाना चाहिए. यानी वह साफ कर रहे हैं कि अगर कांग्रेस को शिवसेना के साथ जाना है, तो पहले उससे कुछ बातें साफ कर लेनी होंगी. कुछ चीजों पर विचारधारा का टकराव ना हो, इसलिए स्पष्टता जरूरी है. ऐसे में अगर शिवसेना 3 शपथ ले लेती है तो कांग्रेस बिना किसी हिचकिचाहट के समर्थन दे देगी और उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अपने पिता बाल ठाकरे का शिवसेना का मुख्यमंत्री (Maharashtra CM) बनाने का सपना पूरा कर सकेंगे.

Shiv Sena 3 promises to Congress to form governmentशिवसेना को अब महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन पाना है और उसके लिए कुछ मांगें माननी पड़ सकती हैं.

1. क्‍या शिवसेना कहेगी, यूपी बिहार से नौकरी के लिए महाराष्ट्र आने वाले सभी लोग इज्जत के पात्र हैं?

यूपी-बिहार के लोग महाराष्ट्र में जाकर नौकरी करते हैं, ये बात तो सभी जानते हैं, लेकिन इसी के साथ ये बात भी सब जानते हैं कि शिवसेना को यूपी-बिहार के लोगों से कुछ ज्यादा ही नफरत है. ये नफरत इसलिए है क्योंकि उनका मानना है यूपी-बिहार के लोगों की वजह से महाराष्ट्र के लोगों को नौकरी नहीं मिल पा रही है. वह तो महाराष्ट्र को लेकर इतने कट्टर हैं कि दुकानों पर लिखे उनके नाम भी मराठी में करने का आंदोलन चला चुके हैं. ऐसी शिवसेना को अगर कांग्रेस अपना समर्थन देती है तो वह यूपी-बिहार वालों को क्या मुंह दिखाएगी? कैसे उनके बीच जाकर ये कहेगी कि वह उनका दर्द समझती है? हां अगर शिवसेना इस बात की कसम खा ले कि वह हर यूपी-बिहार वाली की इज्जत करेगी, तो कांग्रेस की ताकत का बढ़ना लाजमी है. यानी शिवसेना के उद्धव ठाकरे को ये शपथ लेनी होगी कि यूपी-बिहार से नौकरी के लिए जो लोग महाराष्ट्र आते हैं वह सभी इज्जत के पात्र हैं, ना की उनके साथ शिवसेना मारपीट करे.

2. क्‍या शिवसेना कहेगी, मुस्लिमों को देशभक्ति और गद्दारी का सर्टिफिकेट नहीं बांटेंगे?

कांग्रेस पार्टी सेकुलर है, जिससे बहुत से मुस्लिम वोटर्स भी जुड़े हैं. अगर वही कांग्रेस एक कट्टर हिंदूवादी पार्टी के साथ गठबंधन में शामिल हो जाती है, तो बेशक मुस्लिम वोटर्स का कांग्रेस से मोह भंग होगा. उन्हें भी यही लगेगा कि कांग्रेस सिर्फ सत्ता पाने के लिए किसी के भी साथ हाथ मिलाने के तैयार हो जाती है, भले ही वह कट्टर हिंदूवादी हो या एंटी मुस्लिम हो. आपको बता दें कि बाल ठाकरे ये बात साफ-साफ कहते थे कि जो भी मुसलमान भारत में रहते हैं और यहां के कानून नहीं मानते हैं, वह गद्दार हैं. ऐसे कई मौके भी आए जब शिवसेना ने मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगला. ऐसे में कम से कम मुस्लिम वोटर्स तो शिवसेना का साथ देने वाले का साथ नहीं देंगे. यानी कांग्रेस को यहां भी नुकसान उठाना पड़ सकता है. ऐसे में कांग्रेस की दूसरी शर्त के तहत समर्थन पाने के लिए कांग्रेस को ये शपथ लेनी होगी कि वह मुस्लिमों को देशभक्ति और गद्दारी का सर्टिफिकेट नहीं बांटेंगे.

3. क्‍या शिवसेना कहेगी, आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है?

जयपुर के पांच सितारा रिसॉर्ट में बैठे कांग्रेस के विधायकों ने साफ किया है कि शिवसेना कोई आरएसएस नहीं है, जिसके साथ सरकार ना बनाई जा सके. उन्होंने कहा है कि विचारधारा की लड़ाई छोड़कर कांग्रेस को शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए. यानी एक बात तो साफ है कि कांग्रेस को आरएसएस से दिक्कत है, लेकिन शिवसेना से नहीं. आरएसएस को कांग्रेस तो एक सांप्रदायिक संगठन मानता है, लेकिन शिवसेना ऐसा नहीं मानती है, तो अब क्या? क्या शिवसेना के साथ गठबंधन करने के बाद जनता कांग्रेस से ये सवाल नहीं करेगी कि आरएसएस पर शिवसेना का रवैया इनके जैसा नहीं है, फिर भी उन्होंने शिवसेना से गठबंधन किया. यानी, कांग्रेस का समर्थन चाहिए तो शिवसेना को एक और शपथ लेनी होगी, वो ये कि आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है.

4. क्‍या शिवसेना कहेगी, सावरकर गांधी जी की हत्‍या के आरोपी और भारत रत्‍न के पात्र नहीं?

एक ओर शिवसेना है, जो विनायक दामोदर सावरकर को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिलवाना चाहती है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस है, जो वीर सावरकर को गांधी जी की हत्या का आरोपी मानती है. यहीं दिखता है विचारधारा का टकराव. बल्कि कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी को गोडसे और सावरकर को एक ही तराजू में तोलने का काम भी कर चुके हैं. अब अगर कांग्रेस का समर्थन पाना है तो शिवसेना को सावरकर से जुड़ी भी एक शपथ लेनी पड़ सकती है. हो सकता है कि कांग्रेस ये शर्त रख दे कि पहले उद्धव ठाकरे शपथ लेते हुए कहें कि वीर सावरकर गांधी जी की हत्या के आरोपी हैं और वह भारत रत्न के पात्र नहीं हैं. हो सकता है ऐसा करने पर उन्हें कांग्रेस तुरंत ही अपना समर्थन दे दे.

महाराष्ट्र में सरकार का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन अब तक कोई भी पार्टी या गठबंधन अपनी सरकार नहीं बना सके हैं. अब तो स्थिति ये हो गई है कि राष्ट्रपति शासन तक लागू हो गया है. शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी सरकार बनाने की कोशिशें तो कर रहे हैं, लेकिन सब कुछ बेनतीजा दिख रहा है. देर कांग्रेस की तरफ से होती नजर आ रही है. वैसे भी, विचारधारा के स्तर पर टकराव तो कांग्रेस और शिवसेना का ही है, ऐसे में हो सकता है कि कांग्रेस शिवसेना के साथ हाथ मिलाने में हिचक रही हो. हां, अगर शिवसेना ये 4 शपथ ले ले तो उसे बेशक कांग्रेस का समर्थन मिल ही जाएगा. ऐसे में अगर कोई कांग्रेस पर सवाल उठाएगा तो वह सीना तान कर कहेगी कि शिवसेना को अपनी शर्तों पर झुकाकर उसे समर्थन दिया है, ना कि उसके सामने घुटने टेके हैं.

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