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Updated: 26 अगस्त, 2019 04:25 PM
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दिल्ली में बीजेपी ने नये सदस्यों के लिए जो लक्ष्य निर्धारित कर रखा था तादाद उससे काफी आगे बढ़ चुकी है. फिर भी दिल्ली बीजेपी के ज्यादातर नेता और कुछ हद तक संघ भी मनोज तिवारी से खफा बताया जा रहा है. दिल्ली में बीजेपी के अध्यक्ष मनोज तिवारी हैं जिनकी अगुवाई में ये मुहिम चल रही है.

हैरानी की बात ये है कि मनोज तिवारी ने सदस्यता अभियान के प्रभारी शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में जिसे अभियान का पहला नया सदस्य बनाया था, नेताओं की नाराजगी उसी शख्स से है.

सपना चौधरी से आपत्ति किस बात की है?

बीजेपी के मेंबरशिप मुहिम के तहत दिल्ली में 17 लाख नये सदस्य बनाये गये हैं. पार्टी नेतृत्व ने 10 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा था जबकि 14 लाख सदस्य पहले से ही थे. दिल्ली में होने जा रहे विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुटी बीजेपी के लिए ये बहुत अच्छी खबर है, लेकिन मनोज तिवारी की तमाम कोशिशों पर पानी फिरता लग रहा है.

बीजेपी के इन 17 लाख सदस्यों में ही मशहूर हरियाणवी डांसर सपना चौधरी भी हैं. बल्कि, सपना चौधरी की सदस्यता के साथ ही बीजेपी की ये मुहिम दिल्ली में शुरू हुई थी. लोक सभा चुनावों में सपना चौधरी ने बीजेपी का खुला सपोर्ट किया था लेकिन फिर उनके कांग्रेस ज्वाइन करने को लेकर खूब बवाल भी हुआ. जब सपना चौधरी ने कांग्रेस ज्वाइन करने को लेकर प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर खंडन किया तो कांग्रेस की ओर से तमाम सबूत पेश किये जाने लगे थे. फिर कुछ ही दिन बाद सपना चौधरी और मनोज तिवारी की तस्वीर सामने आयी और तब माना जाने लगा कि ये मनोज तिवारी ही रहे जिन्होंने सपना चौधरी को कांग्रेस से छीन कर बीजेपी में ला दिये.

कहां मनोज तिवारी को इस बात के लिए तारीफ मिलती, उल्टे वो साथी नेताओं के ही निशाने पर ही आ गये हैं. नये सदस्यों में वे नेता भी तो शामिल माने ही जा सकते हैं जो कांग्रेस और आम आदमी पार्टी छोड़ कर हाल फिलहाल बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. खबर ये भी है कि अभी दोनों ही दलों के कुछ और भी नेता बीजेपी का दामन जल्दी ही थाम सकते हैं जिनमें ऐसे नेता भी शामिल हैं जो 2019 का लोक सभा चुनाव लड़ कर बीजेपी उम्मीदवारों से हार चुके हैं.

sapna choudhary with shivraj singh chauhanदिल्ली बीजेपी को दिक्कत मनोज तिवारी से है या सपना चौधरी से?

चर्चा है कि दिल्ली बीजेपी के ज्यादातर नेता कहने लगे हैं कि नाचने-गाने से चुनाव नहीं जीते जाते. एक रिपोर्ट में एक गुमनाम बीजेपी नेता का बयान है, 'आप पार्टी को ऑर्केस्ट्रा की तरह नहीं चला सकते - इसके लिए लोगों के बीच पहुंच बनानी होगी.' ऐसे नेता सपना चौधरी के बहाने सीधे सीधे मनोज तिवारी को ही टारगेट कर रहे हैं जो खुद भी भोजपुरी के जाने माने गायक और एक्टर भी हैं. हालांकि, मनोज तिवारी चुनाव भी मोदी लहर में ही पहली बार जीत पाये, वरना अपने बूते तो समाजवादी पार्टी के टिकट पर गोरखपुर से भी किस्मत आजमा चुके थे. फिलहाल मनोज तिवारी दिल्ली से दूसरी बार संसद पहुंचे हैं.

मनोज तिवारी साथी नेताओं के निशाने पर तो हैं ही, दिल्ली का कामकाज देखने वाले संघ के पदाधिकारी भी नाराज बताये जा रहे हैं. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मनोज तिवारी को संगठन का कोई अनुभव नहीं है फिर भी वो कामकाज में अनावश्यक रूप से दखल देते रहते हैं. संघ के नेताओं का तो यहां तक मानना है कि लोक सभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से बीजेपी दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी आसानी से जीत सकती है, लेकिन मनोज तिवारी की वजह से हार का भी मुंह देखना पड़ सकता है.

माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा के लिए सपना चौधरी को चुनाव मैदान में भी उतारने की कोशिश है, लेकिन दिल्ली बीजेपी के कुछ नेताओं और संघ पदाधिकारियों की नाराजगी इसमें रोड़ा बन सकती है.

निरहुआ और सपना चौधरी में फर्क क्यों?

2019 के लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी ने ऐसे कई लोक कलाकारों को टिकट दिया था और रविकिशन जैसे भोजपुरी कलाकार जीत कर संसद भी पहुंच चुके हैं - आखिर मनोज तिवारी भी तो रविकिशन की तरह ही भोजपुरी स्टार रहे हैं.

आम चुनाव पर नजर डालें तो बीजेपी ने आजमगढ़ से भोजपुरी कलाकार दिनेशलाल यादव निरहुआ को चुनाव मैदान में उतारा था. आजमगढ़ से निरहुआ को बीजेपी के टिकट देने की वजह समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव रहे. हालांकि, अखिलेश यादव के आगे निरहुआ को हार का मुंह देखना पड़ा.

निरहुआ को चुनाव में हार जरूर मिली, लेकिन भला वो कैसे भूल सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद बीजेपी उम्मीदवार के लिए रैली करने आजमगढ़ पहुंचे थे - और ऐसा लग रहा था जैसे मोदी खुद से भी ज्यादा तवज्जो निरहुआ को ही दे रहे थे. कुछ कुछ ऐसे भी समझ सकते हैं जैसे उस रैली में स्टार प्रचारक तो निरहुआ ही लग रहा था - और उसमें प्रधानमंत्री मोदी खुद को शामिल भर बता रहे थे.

अगर सपना चौधरी को भी दिल्ली में किसी एक सीट से टिकट दे दिया जाता है तो क्या वो निरहुआ से भी खराब फैसला हो सकता है - या फिर दिल्ली बीजेपी के नेता मनोज तिवारी को नहीं पचा पा रहे हैं - ठीक वैसे ही जैसे किरण बेदी की पैराशूट एंट्री उन्हें नहीं सुहायी और चुनावों में अपना रंग भी दिखा दिया. चुनाव से पहले से ही माना जा रहा था कि बीजेपी अगर हारती भी है तो अपने नेताओं की ही वजह से - और हुआ भी वही.

किरन बेदी का विरोध करने वालों में तो मनोज तिवारी भी आगे ही रहे, कहा भी था - हमें दारोगा नहीं नेता चाहिये. मनोज तिवारी को दिल्ली में पूर्वांचल के लोगों की बड़ी आबादी को देखते हुए लाया गया था और चुनाव जीतकर उन्होंने फैसले को सही भी साबित कर दिया है - लेकिन ताजा विरोध आपसी गुटबाजी का ही हिस्सा लग रहा है.

मनोज तिवारी 30 नवंबर 2016 को दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष बने थे और इसी साल उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है. अगले नवंबर में वो एक बार फिर तीन साल के लिए नियुक्त किये जा सकते हैं या चुनाव लड़ कर आ सकते हैं. चुनाव के ऐन पहले ये जो बवाल चल रहा है वो न तो मनोज तिवारी के लिए अच्छा है न बीजेपी के लिए.

मनोज तिवारी की मदद के लिए बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को दिल्ली का प्रभारी बनाया है. वैसे कई मौके ऐसे भी आये हैं जब मनोज तिवारी को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा है. बताते हैं आम चुनाव के दौरान दिल्ली की सात लोक सभा सीटों के लिए 21 नाम प्रदेश बीजेपी की ओर से भेजे गये थे. मालूम हुआ लिस्ट में तत्कालीन सांसदों के नाम तो थे ही, ऐसे भी कई पदाधिकारियों के नाम डाले गये थे जो चुनाव प्रबंधन में लगे थे. आलाकमान को लगा कि जब प्रबंधन में लगे लोग भी चुनाव लड़ेंगे तो उनके काम कौन करेगा?

सबसे ताज्जुब की बात ये रही कि उस सूची में गौतम गंभीर का नाम नहीं था, जिससे सबसे ज्यादा नाराज अरुण जेटली हुए थे. दरअसल, अरुण जेटली ने ही गौतम गंभीर को बीजेपी ज्वाइन कराया था. बहरहाल, भूल सुधार जल्दी ही हो गया और अब तो गौतम गंभीर संसद भी पहुंच चुके हैं.

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