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Updated: 13 अगस्त, 2022 09:12 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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भारतीय मूल के मशहूर ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी (Salman Rushdie) पर अमेरिका के न्यूयॉर्क में एक कार्यक्रम के दौरान हमला हुआ. इस दौरान हमलावर ने सलमान रुश्दी पर चाकू से ताबड़तोड़ 15 वार किए. जिसके बाद से रुश्दी की हालत गंभीर बनी हुई है. इस हमले के पीछे की वजह 1988 में आई रुश्दी की चर्चित किताब 'द सेटेनिक वर्सेज' (The Satanic Verses) थी. दरअसल, 'द सेटेनिक वर्सेज' को पूरी दुनिया के मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा ईशनिंदा मानता है. और, 1989 में ईरान के कट्टरपंथी इस्लामिक नेता अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सलमान रुश्दी पर 33 साल बाद जानलेवा हमले को अंजाम दिया गया. कहना गलत नहीं होगा कि इस्लाम में ईशनिंदा करने के बाद 'सिर तन से जुदा' होना तय है. इस स्थिति में रुश्दी पर हुए इस हमले की नूपुर शर्मा से तुलना जरूरी है.

Rushdie Beheading attack Nupur Sharmaइस्लाम में अल्लाह और पैगंबर पर टिप्पणी का सीधा सा मतलब है ईशनिंदा. और, ईशनिंदा की एक ही सजा तय है.

कही भी चले जाओ, 'सिर तन से जुदा' की सोच से नहीं मिलेगा छुटकारा

विदेशों में तमाम कारणों से शरण पाने वाले लोगों की लिस्ट बहुत लंबी है. कोई किसी तानाशाह से बचकर शरण में है, तो कोई अपने देश की सरकार के खिलाफ बगावत कर सुरक्षा पाने के लिए भटक रहा है. लेकिन, इन तमाम लोगों के साथ इस बात की आशंका कम ही रहती है कि इनका सिर कलम करने के लिए कोई देश सीधे तौर पर किसी को भेजे. लेकिन, इस्लाम में अल्लाह और पैगंबर का अपमान करने बाद पूरी दुनिया भी आपके लिए छोटी पड़ जाती है. सलमान रुश्दी इसका हालिया उदाहरण हैं. कहना गलत नहीं होगा कि इस्लाम में ईशनिंदा के लिए 'सिर तन से जुदा' करने वाली कट्टरपंथी सोच वाला बस एक शख्स आपके पास पहुंचने की देरी है. फिर ये मायने नहीं रखता है कि आप दुनिया के किस हिस्से में हैं?

ईशनिंदा मतलब मौत का समन, कभी भी तामील हो जाएगा

कुछ साल पहले 'सिर तन से जुदा' वाली कट्टरपंथी सोच वालों ने ही उत्तर प्रदेश के लखनऊ में कमलेश तिवारी को मौत के घाट उतार दिया था. कमलेश तिवारी लंबे समय तक जेल में रहे. और, बाहर आने के बाद उनको मौत के घाट उतारने के लिए दो सिरफिरों ने उनसे हिंदू बनकर फेसबुक पर दोस्ती की. फिर मिलने के बहाने घर आकर कमलेश तिवारी का गला रेत दिया. मुंबई में जन्मे लेखक सलमान रुश्दी पर हुआ 33 साल बाद हुआ हमला भी इसी की बानगी है कि ईशनिंदा का मतलब मौत का समन है, जो कभी भी तामील हो सकता है. इसके लिए समयसीमा मायने नही रखती है. फिर इसके लिए 3 दिन लगें या 33 साल. वैसे, सलमान रुश्दी भी अच्छी-खासी सुरक्षा में रहते थे. लेकिन, इस्लाम की इस कट्टरपंथी सोच को बस एक मौका चाहिए. जो उसे मिल गया.

इस्लाम की कट्टरता के आगे सबकुछ बेकार

इस्लाम में मजहब या पैगंबर के खिलाफ कुछ भी कहने या लिखने की छूट नहीं है. शार्ली हैब्दो पर हुए हमले से लेकर फ्रांस में मारे गए स्कूल टीचर तक सबकी गलती ईशनिंदा ही थी. और, इस्लाम में ईशनिंदा की एक ही सजा है. और, वह है 'सिर तन से जुदा.' सलमान रुश्दी से लेकर तसलीमा नसरीन जैसे लेखकों के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया जा चुका है. और, इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है. क्योंकि, किसी को भी नहीं पता है कि कल को कौन सा मुस्लिम शख्स कट्टरपंथ की आग में झुलसता हुआ, इनकी गर्दन को निशाने पर ले ले. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इस्लाम की कट्टरता के आगे सबकुछ बेकार साबित हो जाता है. तब वहां पढ़ाई-लिखाई से लेकर तमाम चीजें गौण हो जाती हैं. वरना इस्लामिक आतंकी संगठन अलकायदा के पूर्व सरगनाओं की डिग्रियां कुछ तो असर रखतीं.

माफी भी काम नहीं आती, बना रहता है आजीवन खतरा

पैगंबर टिप्पणी विवाद से चर्चा में आईं नूपुर शर्मा ने अपने बयान को लेकर माफी मांगते हुए कहा था कि 'मेरी मंशा किसी को ठेस पहुंचाने की नहीं थी, मेरे शब्दों से किसी की धार्मिक भावनाएं ठेस पहुंची है तो मैं अपने शब्द वापस लेती हूं.' लेकिन, इसके बावजूद दुनियाभर के कई इस्लामिक देशों ने भारत से संबंधों को तोड़ने तक की धमकी जारी कर दी थी. भारत में मुस्लिम समुदाय के एक हिस्से ने आगजनी, पत्थरबाजी और दंगों तक को अंजाम दे दिया. इतना ही नहीं, नूपुर शर्मा का समर्थन भर कर देने की वजह से ही उदयपुर से लेकर अमरावती तक में बेकसूर लोगों को 'सिर तन से जुदा' की सजा दे दी गई. वहीं, कट्टरपंथी इस्लामिक सोच वाला एक शख्स पाकिस्तान से नूपुर शर्मा की हत्या करने चला आया. और, हाल ही में सहारनपुर से एक आतंकी को पकड़ा गया है, जिसे पाकिस्तान से नूपुर शर्मा की हत्या का टास्क दिया गया था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो इन तमाम चीजों को देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि नूपुर शर्मा की जान को खतरा शायद ही कभी टलेगा.

मशहूर शायर निदा फाजली की गजल की दो लाइनों के साथ अपनी बात को खत्म करता हूं कि

अपना चेहरा न बदला गया

आईने से खफा हो गये

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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